पीली भीत उत्तर प्रदेश केतराई क्षेत्र का जिला है पीलीभीत की तहसील है पुरनपुर पूरनपुर तहसील का गांव मंगल का पुरवा पीलीभीत जनपद में पंजाबी जनसँख्या बहुत है जिनका मुख्य व्यवसाय खेती उन्नत तराई क्षेत्र में पंजाब के नक्शे कदम खेती को विकसित करने में पंजाबी पंजाबियत का बहुत बड़ा योगदान है।। रुद्रपुर ,किच्छा पीलीभीत की सामाजिक भौगोलिक स्थिति लगभग एक जैसी ही है रुद्रपुर एव किच्छा उत्तर प्रदेश के बिभाजन के बाद उत्तराखंड में है जबकि पीलीभीत उत्तर प्रदेश का हिस्सा है मंगल का पुरवा में सरदार सुच्चा सिंह के पास अच्छी खासी खेती थी और खेती से उनकी अच्छी खासी आय, आर्थिक, संमजिक स्तर स्थिति थी सुच्चा सिंह के पड़ोसी थे गिरधर वर्मा उनके पास भी अच्छीखासी खेती थी सुच्चा सिंह और गिरधर अच्छे खासे मित्र थे दोनों एक दूसरे के पूरक या यूं कहें कि दोस्ती की मिशाल थे गांव की छोटी मोटी बातों में भी गांव वाले सुच्चा सिंह गिरधर से परामर्श लेते और उसे स्वीकार करते सुच्चा सिंह सिख्ख और भारतियता राष्ट्रीयता से ओत प्रोत गांव वालों के लिये एक आदर्श थे सुच्चा सिंह पंजाब से आकर मंगल का पुरवा बसे थे जबकि गिरधर मंगल के पुरवा के पीढ़ियों से बासिन्दा थे सुच्चा सिंह की इतनी इज़्ज़त थी कि पूरा गांव उनके एक इशारे पर मर मिटाता जब ऊँन्नीस सौ चौरासी में इंद्रा गांधी को उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गयी पूरे राष्ट्र में सिख्खो के विरुद्ध जन आक्रोश विध्वंसक हो गया और निरीह सिख्खो की हत्याएं हुई जिसका मलाल सम्पूर्ण राष्ट्र को आज तक है क्योंकि भारत के गौरवशाली इतिहास और विकासोन्मुख वर्तमान में पंजाब सिख्ख बहुत बड़ा योगदान है यह सच्चाई प्रत्येक भारतवासी जानता है इंद्रा जी की हत्या के बाद भड़के दंगे की लपट जब पूरे राष्ट्र को झुलसा रही थी पीलीभीत भी अछूता नही था जब दंगाई पीलीभीत में अपने प्रतिशोध की आग में पिलीफित के सिख्ख समुदाय को जलाना चाहा तब सुच्चा सिंह जी अकेले भीड़ के बीच पहुंच गए और बोले बेशक हमारा सर धड़ से अलग कर दो मगर किसी सिख्ख का कोई नुकशान न करो लेकिन मेरा दोष क्या है यह बताओ ?जब मंगल का पुरवा के आस पास दंगाइयों के बीच सुच्चा सिंह जी के अकेले पहुचने की भनक भर लगी सारे क्षेत्र की जनता निकल कर सुच्चा सिंह के बचाव में चट्टान की तरह खड़ी हो गयी दंगाइयों की संमझ में बात आ गयी और गलती का एहसास हुआ सभी ने सिख्खो को गले लगाया सुच्चा सिंह के कद की ऊंचाई इस स्तर की थी ।।सुच्चा सिंह के दो बेटे सुखविन्द्र और करतार थे और सुच्चा के सच्चे मित्र गिरधर को भी दो ही औलादे विजय और राज थे सुच्चा सिंह और गिरधर सिंह के बेटे अपने पिता की दोस्ती की तरह ही साये की तरह साथ साथ रहते साथ साथ पड़ते खेलते गांव वाले कहते सुच्चा सिंह गिरधर की दोस्ती पीढ़ियों तक चलने वाली है और मिशाल है सुखविन्द्र और विजय साथ साथ पढ़ते हुये स्नातक परास्नातक करने के बाद अमेरिका रिसर्च करने के लिये चले गए करतार राज ने वकालत पास करने के बाद स्थानीय न्यायालय में वकालत करने लगे।। अमेरिका पहुचने के बाद सुखविन्द्र कृषि उत्पाद एव विपरण पर शोध कार्य शुरू किया और विजय ने कृषि उद्योग और विकास विषय पर शोध कार्य शुरू किया दोनों बहुत मेहनती और कर्मठ थे दोनों के शोध कार्यो से उनके मार्गदर्शक यानी गाइड बहुत खुश रहते और दावे से कहते ये दोनों भारतीय नौजवान जज्बे जुनून से परिपूर्ण है कोई भी किसी भी तरह के लक्ष्य को हासिल कर सकने में सक्षम है।। सुखविंदर के गाइड थे डॉ मार्टिन और विजय के गाइड थे डॉ क्ट्सन दोनों सुखविंदर और विजय ने चार वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद पी एच डी की डिग्री हासिल की और कृषि विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर पद पर अध्यापन का कार्य करने लगें बहुत जल्दी ही विजय और सुखविंदर विश्वविद्यालय के लोकप्रिय प्रोफेसर हो चुके थे सुखविन्द्र ने अमेरिन लड़की मोनिका से विवाह कर लिया विजय ने विवाह नही किया सुखविंदर और विजय साथ साथ रहते थे मगर सुखविंदर के मोनिका से विवाह के बाद अलग रहता मगर रिश्तो में कोई दूरी नही थी लगभग दस वर्ष दोनों अमेरिका में रहकर इज़्ज़त शोहरत दौलत नाम कमाया ।।किस्मत जब साथ देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है सुखविंदर औए विजय को कनाडा से उच्चपद पर और अधिक वेतन पर कृषि शोध पर कार्य करने का अवसर मिला तीनो सुखविंदर मोनिका और विजय कनाडा पहुँच गए सुखविन्द्र को कनाडा कृषि उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित करने का गुरुतर दायित्व मिला और विजय को कृषि उत्पाद की गुणवत्ता और उसके विकास की जिम्मेदारी मिली दोनों के शोध विषय ही उनका कार्य क्षेत्र बन गया दोनों बहुत लगन निष्ठा से बहुत जल्द ही भारतीयों का डंका कनाडा में बजा दिया स्थिति यहॉ तक आ गयी कि कनाडा की सरकार कृषि संबंधी कोई फैसला लेने से पूर्व सुखविन्द्र और विजय के विचार अवश्य लेती।। कनाडा सरकार ने दोनों को पांच पांच सौ एकड़ का फार्म हाउस दे रखा सुखविन्द्र अपनी सरकारी जिम्मेदारी के बाद अपने फार्म पर नए नए प्रयोग करता गेहू दलहन तिलहन साक भाजी और उनके विपरण के नए नए आइडिया लागू करता जो बहुत लोकप्रिय एव लाभदायक होते विजय अपने फार्म हाउस ओर मछली मधुमक्खी पालन एव डेयरी उद्योग मुर्गी पालन के साथ साथ उसके बिभिन्न उत्पाद भी बनाता जो बहुत लोक प्रिय थे दोनों होनहार भारतीयों का कनाडा ने डंका बज रहा था।। समय व्यक्ति की सदा परीक्षा लेता रहता है जो उस पर खरा उतरता वर्तमान उंसे स्वीकार करता और भविष्य के लिये प्रेरक बनता।। भारत के युवा प्रधान मंत्री राजीव गांधी जी कनाडा राजनीतिक कूटनीतिक दौरे गए राजीव जी की बेहद खास बात यह थी जहां भी जाते बड़ी बारीकी से भारत के लिये वहां भारत को खोजते मतलब जो भी भारत के विकास के लिये उन्हें उचित और संभव लगता उंसे भारत लाने की पूरी ईमानदारी से कोशिश करते उनकी कनाडा यात्र के दौरान जब उन्होंने सुखविंदर और विजय की कनाडा में तारीफ और चर्चा सुनी उन्होंने ने विजय सुखविन्द्र को बुलाया और बोले आप लोग यहां भारत की प्रतिष्ठा को चार चाँद लगा रहे हो भारत के लिये अभिमान है लेकिन क्या कभी यह सोचा है कि जिस मातृभूमि ने आपको सब कुछ दिया प्यार परिवश इज़्ज़त शोहरत उसके लिये आपका कोई कर्तव्य है कि नही सुखविंदर और विजय कुछ जबाब नही दे सके भारत के युवा प्रधानमंत्री मंत्री राजीव गांधी ने कहा माना कि आप दोनों ने अमेरिका और कनाडा में सराहनीय कार्य करते हुये भारत माता का सर गर्व से ऊंचा किया है लेकिन यदि आप अपनी योग्यता का उपयोग अपने देश गांव के लिये करते तो शायद कितने ही जरूरत मंद भारतीयों को रोजी रोटी देते और भारत के विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भागीदारी करते हुये भारत के युवाओं के लिये अनुकरणीय प्रेरक मार्गदर्शक बनते।। मैं आप दोनों को भारत आकर अपने हुनर से भारत माँ की सेवा के लिये आमंत्रित करता हूँ आप लोंगो के लिये जो कुछ भी सम्भव होगा भारत सरकार करेगी सुखविन्द्र और विजय प्रधान मंत्री से मिलकर लौटे तो मातृभूमि की आवाज उनके मन मस्तिष्क को झकझोरने लगी भारत के प्रधानमंत्री मंत्री का दौरा समाप्त होने पर स्वदेश लौट आये।।
सुखविंदर और विजय के माँ बाप दोनों के इज़्ज़त शोहरत दौलत से फुले नही समाते पूरे पिलीफित में सुखविन्द्र और विजय के काबिलियत का शोर था सुखविंदर और विजय ने प्रधान मंत्री की बात पर गम्भीरता से विचार किया और अपने नीर्णय लिया की भारत लौटकर अपने वतन की सेवा की जाय दोनों ने एक साथ सभी औपचारिकता पूर्ण करते हुये कनाडा सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल किया और पी एच डी के अपने गाइड क्रमश डॉ मार्टिन एव क्ट्सन से भारत लौटने के बाबत सलाह किया दोनों के गाइडों ने एक स्वर में कहा कि भावनाओं के वशिभूत तुम दोनों बहुत बड़ी गलती करने जा रहे हो अमेरिका और कनाडा की सामाजिक संरचना और ग्रामीण संरचना पारदर्शी और दुराग्रह रहित है यहां स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तो है मगर निम्न प्रद्वंद्विता नही है भारत मे इसके विपरीत तुक्ष प्रतिद्वंदिता है स्वस्थ प्रतिस्पर्धा नही जिस कल्पना को लेकर भारत जाने का नीर्णय तुम दोनों ले रहे हो उसकी वास्तविकता का स्वाद तुम दोनों ने अमेरिका और कनाडा में चखा है तुम दोनों को भारत मे कसैले और विषैलेपन का एहसास होगा वैसे भारत के प्रधानमंत्री होशियार है उन्होंने आप दोनों को आमंत्रित करके तुममें भारतीयता को जगा दिया जहाँ परेशानियां बहुत होंगी सम्भव हैं कि प्रधानमंत्री आपकी प्रारम्भिक स्थिति में कुछ मदद करे लेकिन बाद में चाह कर भी मदद नही कर पाएंगे इसके दो कारण है एक तो वहां की राजनीतिक व्यवस्था में प्रतिस्पर्धा नही है प्रतिद्वंतिता है और सामाजिकता व्यवस्था की भी यही सच्चाई है जिसे भारतीय भाषा मे एक दूसरे की डांग खींचना लेग पूलिंग कहते है जिसका शिकार तुम दोनों का बनना निश्चित है फिर भी तुम दोनो ने अपने प्रिय देश जाकर सेवा करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है तो जाओ लेकिन हम लोंगो की बातों पर गम्भीरता से ध्यान देना।। सुखविंदर और विजय बोले अलविदा परदेस चलते अपने देश चले गांव की ओर वही की सोंधी माटी को सोना बनाया जाए सुखविन्द्र और विजय भारतीय उच्चायोग के मार्फ़त प्रधानमंत्री के कनाडा दौड़े पर हुई वार्ता का हवाला देते हुये भारत लौटकर जो उन्हें करना था उसका प्रोजेक्ट और सहयोग के तौर तरीकों को वर्णित करते हुए भेज दिया और भारत लौट आये।।
भारत लौटने के बाद सुखविन्द्र और विजय में अपने गाँव मंगल का पूरा के पास चार सौ एकड़ जमीन सरकार से कुछ शर्तो पर पट्टे पर ली जिसे भारत सरकार की सिपारिश पर राज्य सरकार ने दे दिया सुखविन्द्र ने व्यवसायिक खेती सब्जी ,दलहन ,तिलहन और फल आदि की खेती शुरू किया और धान कूटने का प्लांट ,ऑयल प्लांट, आटा प्लांट लगाया और विजय ने मछ्ली मधुमख्खि पालन डेयरी मुर्गी पालन फूलों की खेती का कार्य शुरू किया दोनों की मेहनत रंग लायी दोनों ने अपने गाइड के एक एक बात पर बड़ी संजीदगी से ध्यान दिया और बहुत जल्दी ही सुखविन्द्र ने तीन सौ और विजय ने भी तीन सौ लोगो को प्रत्यक्ष रोजगार दिया और गांव के पशुपालकों को सहकारिता के माध्यम से डेयरी उद्योग में हज़ारों क्षेत्र वासियों की आय में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि का राह दिखया सुखविंदर के पिता अपने बेटे की सफलता और गांव के विकास में उसके योगदान से वाहे गुरु का सुक्रिया लम्हा लम्हा कहते तो विजय के पिता गिरधर भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते ।। करतार और राज भी अपने भाईयों के कार्य मे सगयोग करते समूचे पीलीभीत में एव उत्तर प्रदेश में विजय और सुखविंदर की चर्चा थी दोनों को राज्य एव राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से सम्मान प्राप्त हुये एक जुमला कहे या नारा उस समय बहुत जोरो से प्रचलित था,( सुखविंदर विजय रहे है बोल जागो नौजवानों चलो गाँव की ओर) सुखविन्द्र और विजय युवाओं के प्रेरणा स्रोत बन चुके थे देश के राज नेता भी अपने सार्वजनिक कार्यकमों भाषणों में विजय और सुखविंदर को नौजवानों के महानायक के रूप की प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत करते विजय औए सुखविंदर के सयुक्त प्रायास से लग्भग पूरे पूरनपुर तहसील एव पीलीभीत जनपद में युवा सोच में एक क्रांतिकारी परिवर्तन की बयार बह चली थी अब युवा गांव छोड़कर बाहर जाने की अवधारणा से बाहर निकलकर अपने गांव में ही अपनी काबिलियत हुनर दिखाने की हिम्मत जुटाने लगे सर्वत्र एक सकारात्मकता की सोच ने मजबूत इरादों नेक नियति की राष्ट्र प्रेम गांव शहर के भेद से अलग गांव को राष्ट्र के विकास की धुरी के रूप प्रतिस्थापित करने की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का शुभारंभ विजय और सुखविंदर ने किया था।। हरित क्रांति,श्वेत क्रांति,पिंक क्रांति कृषि आधारित उद्योग सभी उपलब्ध संसाधनों के आधार पर भारत की वास्तविक स्वतंत्रता का अलख जगा दिया सुखविंदर के पिता सुच्चा सिंह और विजय के पिता गिरधर को अपने सपूतों पर अभिमान तो था ही क्षेत्र जनपद प्रदेश की जनता को भी अभिमान था विजय ने अब तक विवाह नही किया था लोंगो ने बहुत जानने की कोशिश की मगर सच्चाई पता नही चल पा रही थी कि विजय आखिर विवाह क्यो नही कर रहा।।
विजय और सुखविंदर ने अपने कृषि उद्यमों लिखवा रखा था( गांव स्वर्ग गांव में ही वर्क गांव से खुशहाली सब ओर चलो गांव की ओर) सुखविंदर की अमेरिकन पत्नी को बहुत अच्छा लगने लगा वह कहती रहती इंडिया हैवन ऑफ अर्थ इंडियन एंजेल ऑफ
लव एंड वैल्यूज सुखविंदर दो बेटों के पिता बन चुका था। एक एक दिन सुखविंदर और विजय के अमेरिन शोध गाइड मार्टिन और क्ट्सन ने भारत आने की इच्छा व्यक्त की विजय और सुखविंदर ने अपने आदर्श गुरुओं को बड़े आदर के साथ आमंत्रित किया और दोनों स्वय दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे स्वागत हेतु पहुंचे और साथ लेकर मंगल का पूरा लेकर आये उनके स्वागत के लिये पूरा गांव उमड़ पड़ा उनको सिर्फ यही मालूम था कि अमेरिका से आये दोनों महानुभाव सुखविंदर और विजय के गुरु है लोग चाहते कि इन गुरुओं के लिये क्या किया जाय कि इनकी शिक्षा जो इन्होंने विजय और सुखविंदर को दी कि कुछ गुरुदक्षिणा सम्भव हो यही स्थिति पुरन पुर और पिलीफित का था मार्टिन क्ट्सन को अंदाज़ ही नही था कि भारत की मिट्टी की संस्कृति में रिश्तो मानवीय मूल्यों और भावनाओं का इतना ज्यादा महत्व और प्रभाव है अमेरिकी संवेदनाओं के सजग प्रहरी होते है मगर भावनाओं के प्रबाह में नही बहते मार्टिन क्ट्सन के साथ क्ट्सन कि पुत्री मारिया साथ आई थी जिसने विवाह नही किया था।विजय जब क्ट्सन के निर्देशन में शोध कार्य कर रहा था उसी दौरान उसकी मुलाकात मारिया से हुई शोध कार्यो से जब भी थोड़ा समय मिलता विजय और सुखविंदर क्ट्सन के आवास पर जाते क्योकि मार्टिन का घर दूर था क्ट्सन के घर आते जाते अमेरिका की स्वच्छंद सामाजिक संस्कृतियों में विजय के मन मे तो कोई भाव नही पैदा कर पाए मगर पता नही क्यो कैसे मारिया विजय के प्रति आकर्षित हो गयी और उससे प्यार करने लगी विजय ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह नही मानी और बोली ठीक है मैं जीवन भर तुम्हारे इन्ज़ातर में रहूंगी और नही मिले तो मर जाऊंगी यह बात क्ट्सन को नही मालूम थीं जब भी बेटी मारिया के सामने विवाह का प्रस्ताव रखते वह टाल जाती एक दिन उनको सच्चाई का पता चला तुरंत ही मार्टिन से मशवरा कर भारत जाने का फैसला कर लिया अब विजय की उम्र बयालीस वर्ष और मारिया की आयु चालीस वर्ष थीं क्ट्सन ने विजय के पिता से विजय और मारिया के प्यार की हकीकत बताया और यह भी बताया कि मारिया ने अब तक शादी नही किया है और ना ही विजय ने क्यो न दोनों का विवाह कर दिया जा गिरधर और सुच्चा सिंह को कोई आपत्ति नही थी विजय और मारिया का धूम धाम से विवाह हुआ।।मार्टिन और क्ट्सन ने कहा किसी समय समाज की संस्कृति उसके लोंगो से होती है आज विजय और सुखविंदर ने भारत और भारतीयों के प्रति अमेरिका के लोंगो की अवधारणा को आमूल चूल बदल दिया भारत के गांव ही यहां के खुशहाली के केंद्र है ।।
कहानीकार----नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश6