memoir of kar sevak in Hindi Short Stories by Captain Dharnidhar books and stories PDF | कारसेवक का संस्मरण

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कारसेवक का संस्मरण

धरणीधर पारीक
ग्राम- मूण्डरू
तहसील- श्रीमाधोपुर
जिला - सीकर राजस्थान

संस्मरण- बात उस समय की है जब श्रीराम जन्म भूमि पर बाबरी ढांचा खड़ा था जो गुलामी की दास्तान कह रहा था । वह ढांचा बर्बरता की कहानी लिए खड़ा था। विदेशी आक्रान्ता बाबर ने 1526 मे हिन्दुस्तान पर आक्रमण किया था उसके सेना नायक मीरबांकी ने महाराजा विक्रमादित्य द्वारा बनाया गया श्रारीम के जन्म स्थान पर भव्य राम मंदिर को तोड़कर मज़िदनुमा ढ़ांचा खड़ा कर दिया । बाबर को खुश करने के लिए उसका नाम बाबरी रख दिया था। राजा मेहरबान सिंह उस समय तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे । उनको खबर मिली तो वे अपने सैनिको को लेकर अयोध्या पहुंच गये , युद्ध हुआ , उसमे काफी सैनिक बलिदान हुए । तत्कालीन राजाओ ने अपने बल पर मुक्त कराने के लिए युद्ध लड़े । सर्व समाज के वीर रक्त बहा इस प्रकार राम जन्म भूमि को मुक्त कराने के लिए 76 लड़ाइयां लड़ी गयी । अंग्रेजो ने इसे हिन्दू मुस्लिम को लड़ाने के लिए एक मुद्दा बनाकर जीवित रखा । देश अंग्रेजो से तो आजाद होगया लेकिन गंदी राजनीति ने इसका हल न निकालकर इसे ओर उलझा दिया इन्होने वही काम किया जो अंग्रेज करते आये थे । राम जन्म भूमि मुक्ति के लिए विश्वहिंदु परिषद व संतो के आह्वान पर अयोध्या मे कारसेवा का कार्यक्रम रखा था । परिस्थितियां विपरीत थी प्रशासन का राज हट था कारसेवको को यूपी की सीमा मे घुसने भी नही देंगे । उसी आन्दोलन के क्रम मे ...
मेरे गांव से हम 7 कारसेवक 27 अक्टूबर को रवाना हुए थे । उस समय पूरे गांव ने ससम्मान उद्घोषो के साथ विदा किया था । मै संकल्प करके ही निकला था मेरे प्राण दान का समय आगया है , वह मुझे अब करना है ।
मैने हिन्दु समाज की उन नम आंखो को पढ़ लिया था उनके अश्रू मुझे अंतिम विदाई दे रहे है ।
क्योंकि उस समय के यूपी सरकार के मुख्य मंत्री ने घौषणा कर रखी थी अयोध्या मे परिन्दा भी पर नही मार सकता । रोज अखबारो मे वहां के इंतजामो की चर्चा होती थी । अयोध्या मे पहुंच ने वाले पानी के रास्तो मे मगरमच्छ छोड़ रखे थे । यूपी की सीमा सील कर रखी थी । पूरी अयोध्या छावनी मे तब्दील हो रखी थी ।
सच कहूं मुझे रात्रि मे नीन्द भी नही आती थी । मैने गांव मे आव्हान किया था अपने प्राणों का मोह छोड़कर बीर बजरंगी आगे आये । राम जी के लिए बलिदान होना है या कारसेवा करनी है । अपने मन को कह दो वापस लौटकर नही आयेंगे ।
श्रीमाधोपुर तहसील मे मेरे गांव से हम सात लोग तैयार हो गये थे ।
मैने गांव वालो से यही कहा था हम वापस आयेंगे या नही आयेंगे किन्तु आप सब पीछे से कार सेवा मे हम सफल हो यह प्रार्थना करना है ।

* श्रीमाधोपुर से हमारे पास संदेश आगया था की शायद कारसेवा को देखते हुए सरकार गाड़ी बंद कर सकती है । तो पहले ही निकलना होगा । हम श्रीमाधोपुर से ट्रेन से गये थे । हमे निर्देश था की इकट्ठे नही जाना है दो दो कारसेवक जायेंगे । हम दिल्ली से अलग अलग होगये ।
उसी समय दिल्ली से विजय मल्होत्रा अपने दलबल के साथ कारसेवा के लिए जा रहे थे । मै कुछ समय उनके साथ चला । फिर उनको छोड़कर गाजियाबाद आ गया । वहां यूपी पुलिस ने रोक लिया पूछा कहां जा रहे हो । मैने कहा फैजाबाद जा रहा हूँ वहा पर मामा हलवाई का काम करते है उनके साथ काम करता हूँ । मेरा झोला चैक किया उसमे गुड़ चना देखकर मुझे पकड़कर गाड़ी मे बैठाकर ले गये । एक रात सब्जी मंडी मे काटी । अगले दिन सुबह मेरी रिपोर्ट दर्ज कर दूसरी गाड़ी मे बैठाकर लगभग 40 किलोमीटर ले जाकर जैन कॉलेज मे बंद कर दिया । वहां आचार्य धर्मेंद्र जी पहले से ही बंद कर रखे थे । फिर आचार्य धर्मेंद्र जी के साथ रहे । फिर कारसेवा का वह दिन भी आगया । हमे यही खबर थी कोई वहां पहुचा ही नही । किन्तु धर्मेंद्र जी ने बताया हमारे भाई वहां पहुंच गये है उनके लिए हमे हनुमान चालीसा का पाठ करना है । लगभग 9 से 10 के बीच बीबी सी से न्यूज सुनी अयोध्या मे कारसेवा शुरू अशोक सिंहल घायल। उस समय दिल मे एक टीस उठी कि हम वहा नही है हम सबकी आंखे नम होगयी थी ।
हमे निर्देश मिला आप जहां है वही से वापस लोट जाये । लेकिन मन नही माना मै वापस न लौटकर वही बना रहा । हमने धर्मेंद्र जी के साथ ही वही अनशन किया। आचार्य धर्मेंद्र जी की आंखो से उस समय अश्रु बह रहे थे । वे कह रहे थे मेरे निहत्थे भाईयो पर वहां गोली चल रही है ।