राम - रावण और मनुष्य जीवन - 2
पहले भाग मे आपने " मन का रावण " को पढ़ चुके होगें, इससे आपने समाज के स्वरुप को, दर्द को महसूस किया होगा।
कुछ सालों पहले दिल्ली में निर्भया और जम्मू में आसिफा नाम के 6 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप और नृशंस हत्या जैसी हृदय विदारक घटना हुई थी ।
अभी इन घटनाओं का जख्म भरा ही नहीं था कि 27 नवंबर 2018 को हैदराबाद में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना हो गई।
समाज में छुपे इंसानी दरिंदों ने प्रियंका रेड्डी नाम की डॉक्टर को गैंगरेप करने के बाद जिंदा जलाकर मार डाला था । इस घटना को लेकर लोगों में काफी आक्रोश रहा।
भाग - दो मे आप उपस्थित हुए इसके लिए हार्दिक आभार।
राम जैसे आदर्श वादी चरित्र के साथ ही रावण को भी बुराई का प्रतीक बताने वाले हमारे इस सभ्य समाज की खुद की वास्तविक स्थिति कितनी विकृत है कि आप को आभास हो जाएगा कि राम के चरित्र आदर्शो का अनुसरण करने का दावा करने वाले को लोगों के जीवन मे रावण से ज्यादा घृणित सोच व्याप्त हो गई है।
इसी सभ्य समाज के मनुष्यों के मनुष्य जीवन पर चर्चा को आगे बढ़ाऊँगा।
आज जब राम चन्द्र जी के आदर्शो की बात करे तो इन आदर्शों को हमे बच्चों के जन्म के साथ ही घर से ही शिक्षित करने का आरंभ करना चाहिए। लड़कों के मन मे नारी के प्रति सम्मान बेहद आवश्यक है। इसका आभास वह माँ बहन, दादी, बुआ आसपास के पड़ोसी, इत्यादि से भी सीख सकता है।
इससे उसके व्यक्तित्व के साथ साथ एक बेहतर नागरिक का भी निर्माण सम्भव होगा। समय आ गया है कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है कि बच्चों के चरित्र निर्माण के प्रति गम्भीरता से विचार करें।
कभी भी बच्चा उम्र के साथ विपरित लिंग की ओर आकर्षित भी हो तो भी उसे समझाइए। यह सभ्य समाज मे निवास करने वाले सभी जिम्मेदार माता पिता, परिजनों का नैतिक दायित्व है, इसके लिए आपको प्रतिबद्ध होना होगा।
बेहतर शिक्षा के साथ साथ सामाजिक मूल्यों, नैतिक मूल्यों के विषय मे मे भी ज्ञात होना नितांत आवश्यक और समय की मांग भी यही है।
क्योंकि समाज के प्रथम पायदान पर ही चरित्र का गिरता स्तर इतना वीभत्स है कि आप सहम जाएंगे।
भारत मे दुष्कर्म के मामले मे 90% घटनाओं मे आरोपी सगे संबंधी शामिल है। इससे ही स्पष्ट हो जाता कि हमारे अपनों की आस पड़ोस के रिश्तों की सोंच, मानसिकता कितनी विकृत है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट बताती है कि 2017 में भारत में कुल 32,559 दुष्कर्म के मामले पंजीकृत हुए हुए, जिसमें 93.1% आरोपी करीबी (सगे संबंधी, परिचित) ही थे।
एक माता पिता की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे इस विषय मे बच्ची के साथ एक अपनत्व पूर्ण, भावनात्मक जुड़े ताकि वह आप से हर समस्या खुल कर कह सके। और बेटियों को भी अपने चरित्र को बेहतर बनाने के प्रयास करना चाहिए।
हमारी संस्कृति लड़कियों की परवरिश कुछ इस तरह करती है कि वह निर्भर बनती चली जाती है जबकि हमें अपनी बेटियों को निडर बनाना चाहिए।
किशोरावस्था मे यह एक उम्र का उन्माद होता है, जो भविष्य मे घातक सिद्ध होता है। आइए एक नजर राष्ट्रीय आंकड़ों पर डालते है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े भी महिलाओं के खिलाफ आपराधिक घटनाओं में वृद्धि को स्पष्ट करते हैं।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3.29 लाख मामले दर्ज किए गए।
2016 में इस आंकड़े में 9,711 की बढ़ोतरी हुई और इस दौरान 3.38 लाख मामले दर्ज किए गए।
2017 में 3.60 लाख मामले दर्ज किये गए।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो-2017 की रिपोर्ट के हिसाब से देश में सबसे ज्यादा 5562 मामले मध्यप्रदेश में दर्ज हुए। इस सूची में 3305 रेप मामलों के साथ राजस्थान दूसरे नंबर पर रहा।
वर्ष 2016 के एक आंकड़े के अनुसार भारत में दुष्कर्म के रोजाना 106 मामले सामने आते हैं।
2015-16 में कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS 4) में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भारत में 15-49 आयु वर्ग की 30 फीसदी महिलाओं को 15 साल की आयु से ही शारिरिक हिंसा का सामना करना पड़ा है।
NFHS 4 में कहा गया है कि इसी आयु वर्ग की 6 फीसदी महिलाओं को उनके जीवनकाल में कम से कम एक बार यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है।
देश के हर कोने से महिलाओं के साथ दुष्कर्म, यौन प्रताड़ना, दहेज के लिये जलाया जाना, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना और स्त्रियों की खरीद-फरोख्त के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं।
भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कोई कमी नहीं आई और अब वह इस मामले में विश्व में पहले पायदान पर पहुँच गया है जबकि 2011 में भारत चौथे पायदान पर था।
2011 में भारत के इस खराब प्रदर्शन के लिए मुख्यतः कन्या भ्रूण हत्या, नवजात बच्चियों की हत्या और मानव तस्करी जिम्मेदार थीं।
जबकि 2018 का सर्वे बताता है कि भारत यौन हिंसा, सांस्कृतिक-धार्मिक कारण और मानव तस्करी इन तीन वजहों के चलते महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है।
भारतीय राजनीति की विडंबना है कि आकड़ों मे उलझा कर वह इसे भी अपनी चुनावी हार जीत के लिए उछालता और भुनाने के लिए तत्पर दिखता है। हमारी सरकार मे ये दर इतनी थी, फलानी सरकार मे ये है इत्यादि। ऐसे अपराधों पर रोकथाम हो सके ऐसे सार्थक प्रयासों पर चर्चा नहीं होगी ।
जब कि होना यह चाहिए कि इस समस्या को काबु करने के लिए तत्परता दिखाए तो निदान का निचोड़ मिल सकता है। मगर यह सम्भव नहीं है।
निर्भया कांड के बाद देश भर में फैले आक्रोश के बीच सरकार ने इस समस्या से निपटने का संकल्प लिया था। किन्तु यह बिडम्बना ही कही जायेगी कि सरकार, प्रशासन, न्यायालय, समाज और सामाजिक संस्थाओं के साथ मीडिया भी इस कुकृत्य में कमी लाने में सफल नहीं हो पायी है।
हालांकि ज्यादातर बड़े राज्यों में यौन उत्पीड़न , दहेज हत्याएं और पति या परिजनों द्वारा क्रूरता जैसे अपराध में कमी आई है।
किन्तु पिछले कुछ सालों में हमारे देश में यौन उत्पीड़न की घटनाएं काफी तेजी से बढ़ रही है ।
हमारे देश में 1 साल के मासूम बच्ची से लेकर 90 साल की महिलाएं भी सुरक्षित नहीं है जैसा मैंने पहले भाग मे भी बताया था।
महिलाओं के प्रति हालांकि अन्य कई अपराध है जो इन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते है। किंतु लेख विस्तृत नहीं करना है इस लिए विषय यौन उत्पीड़न पर ही केंद्रित करना चाहूँगा।
हालांकि कुछ सामाजिक पहलुओं और इंसाफ पाने के लिए जटिल न्यायिक प्रक्रिया के कारण इससे जुड़े सभी अपराध दर्ज नहीं हो पाते।
उस पर प्रत्येक पांच में से एक मामले में ही अपराध सिद्ध हो पाता है। यह बहुत निराशाजनक दर है।
(क्रमशः) बने रहिए रचना के साथ अगले भाग मे - मन के रावण का दहन कैसे सम्भव है। इस विषय पर चर्चा होगी।
"आपको रचना कैसी लगी कृपया समीक्षा के माध्यम से आशीर्वाद और उपस्थिति अवश्य प्रदान करें।"
✍🏻संदीप सिंह (ईशू)