जुझारू ने गांव के सभी लोंगो को अपने घर बुलाया और बिटिया सौभाग्य के लगन कि तिथि से अवगत कराया ।
गांव के सभी लोंगों ने आश्वासन दिया सौभाग्य के लगन के दिन गांव में कोई भी अपने घर कोई आयोजन नही करेगा और सभी अपनी शक्ति के अनुसार सौभाग्य के लगन में जो भी बन पड़ेगा अपना सहयोग करेगा ।
जुझारू ने पुरुषों का तीखा ने गांव के महिलाओं का आभार व्यक्त किया और सहयोग आमंत्रण करते सबके सम्मिलित होने के लिए विनम्र आग्रह किया ।
सौभाग्य के लगन में अभी चार माह का समय बाकी था सौभाग्य सभी बातों से बेफिक्र होकर चिन्मय से मिलती घण्टो बाते करती और भविष्य के सपने संजोती ।
चिन्मय सौभाग्य साथ शेरू अवश्य रहता जैसे दोनों के सपनो भविष्य का साक्ष्य हो ।
बातों ही बातों में सौभाग्य ने चिन्मय को बताया कि उसका लगन परमपुरवा के किसी राखु के साथ होना बाबू ने निश्चित किया है चिन्मय ने सौभाग्य को आधे अधूरे मन से बधाई तो दी साथ ही साथ यह भी कहने से नही चुका की सौभाग्य तो चिन्मय कि ही है कैसे सम्भव है कि वह पराई हो जाय ।
सौभाग्य गम्भीर हो बोली का कहत हौ हमरे समझ से नाही आवत बा हमार वियाह जेठ में होई जाय वोकरे बाद तू दिने के सपना देखत रहे ।
सौभाग्य ने ऐसा कह कर एक तरह से चिन्मय को अपने सम्मोहन वाण से आहत कर दिया चिन्मय दुःखी होकर बोला भाग्य भगवान ही लिखता है जिसमे किसी का कोई बस नही चलता ठीक है कि तुम्हारा लगन राखु के साथ होना है यदि हमारे प्यार में सच्चाई होगी तो भगवान को ही निर्णय करना होगा अब तुम लगन कि तैयारी करो हम भगवान पर भरोसा करते है ।
जब चिन्मय अपने हृदय भाँवो का उदगार व्यक्त कर रहा था उस समय शेरू ऐसे हरकत कर रहा था जैसे कि वह स्वंय भगवान का प्रतिनिधित्व कर रहा हो और चिन्मय और सौभाग्य का भविष्य देख रहा हो ।
सौभाग्य बार बार अपनी बातों से चिन्मय कि भावनाओं को उकेरने कि कोशिश करती लेकिन चिन्मय शांत सागर कि तरह अंतर्मन कि गहराई से सौभाग्य के लिए दृढ़ संकल्पित था तो माता पिता कि आकांक्षाओं का अस्तित्व उसे दोनों ही प्राप्त कर लेने का पूर्ण विश्वास था वह सौभाग्य से बार बार यही कहता तुम व्यर्थ में चिंता कर रही हो सौभाग्य का भाग्य भविष्य तो लकी सुगा के मेरे द्वारा खरीदने के साथ ही निर्धारित हो गया था।
चिन्मय घर पर लकी सुगा से अपने मन कि बाते सौभाग्य के विषय मे अपने भाव व्यक्त करता लकी सुगा चिन्मय का वफादार भी था दिनभर चिन्मय कि अनुपस्थिति में पण्डित शोभराज तिवारी एव स्वती तिवारी से बाते करता अपनी शरारतों से उन्हें आकर्षित करता कभी भजन कि लाइने सुना कर कभी नाच कर लेकिन कभी भी चिन्मय कि बात नही बताता ।
सौभाग्य जब भी घर पर रहती शेरू के साथ खूब सारी बाते करती शेरू सौभाग्य से ही अधिक घुला मिला था जुझारू और तीखा से उसकी पटती जरूर थी लेकिन वह जब भी अकेले होता किनारे पड़ा रहता जब भी वह सौभाग्य को देखता उसके अंदर स्फूर्ति का नव संचार जैसा होने लगता और उसे लगता उसकी दुनिया मिल गयी ।
धीरे धीरे दिन बीतता रहा बसंत पंचमी का उत्सव चिन्मय के विद्यालय में होना था चिन्मय सुबह ही तैयार होकर विद्यालय के लिए निकल पड़ा स्कूल में बसंत पंचमी के उपलक्ष्य में आयोजित सरस्वती पूजन कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर भाग लिया बच्चों ने आपस मे अबीर गुलाल एक दूसरे को लगाए और सभी शिक्षकों ने अपने सभी छात्रों को अबीर गुलाल लगाकर आशीर्वाद दिया ( अभी भी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में यह प्रथा है प्रचलित है बसंत पंचमी अर्थात सरस्वती पूजन के दिन से ही होली का शुभारम्भ हो जाता है और इसी दिन संवत रखी जानी शुरू होती है यानी होलीका की स्थापना होती है जिसे होली के दिन जलाया जाता है) विद्यालय में सरस्वती पूजन के बाद चिन्मय सीधे विद्यालय से निकला औऱ नेवाड़ी सौभाग्य के बस्ती पहुंचा।
सौभाग्य के माता पिता जुझारू और तीखा को लगता कि दोनों आपस मे मित्र है इसके अलावा कुछ नही उन्हें भली भांति मालूम था कि चिन्मय इलाके के बड़े आदमी उच्च ब्राह्मण कुल शोभराज तिवारी जी कि एकलौती औलाद है जो स्वंय ना तो सौभाग्य के विषय मे मित्रता से अधिक कुछ नहीं सोचेगा तो सौभाग्य को भी अपनी हद मालूम है ।
तीखा और जुझारू का आश्वस्त रहना वाजिब था लेकिन उन्हें बच्चों कि कोमल भावनाओ में भविष्य के शांत ज्वार का तनिक भी भान नही था चिन्मय और सौभाग्य बाहर सदा कि भांति बाते करते चले गए उनके पीछे पीछे शेरू दुम हिलाता ।
तीखा और जुझारू को सौभाग्य कि सुरक्षा को लेकर जरा भी चिंता नही थी कारण शेरू सौभाग्य के साथ साये कि तरह पीछे पीछे रहता सौभाग्य और चिन्मय आपस मे बात करते हुए कुछ दूर पर पेड़ के नीचे बैठ गए और उनके सामने शेरू ।
चिन्मय औऱ सौभाग्य बहुत देर तक आपस मे बात करते रहे चिन्मय एकाएक बोला बहुत देर हो गयी अब हम चलते है अंम्मा पिता जी परेशान होंगे साथ साथ सौभाग्य भी चलने को उठी।
चिन्मय बोला मैं एक बात तो भूल ही रहा था आज वसंत पंचमी है और आज हम लोग आपस मे अबीर गुलाल लगाकर एक दूसरे को बीतते संबत्सर कि सफल बिदाई और खूबसूरत यादों कि जीवन यात्रा कि शुभकामनाएं देते है इतना कहते हुए चिन्मय ने अबीर अपने दाहिने हाथ से चिन्मय के माथे पर ऐसा लगाया कि वह उसकी मांग को भरता चला गया यह दृश्य देखते ही शेरू दो पैरों पर खड़ा होकर दो पैरों से ताली ऐसा बजा रहा था जैसे शेरू सौभाग्य का भाई या पिता हो और फिर बड़ा खुश होकर अपने अंदाज में दहाड़ लगाई जैसे वह अब तक वन प्रदेश का युवराज था अब राजा हो गया है।
पूरे नेवाड़ी और मझारी समेत वन प्रदेश में सन्नाटा छा गया चिन्मय और सौभाग्य ने शेरू कि खुशी को बहुत गहराई से अनुभव किया चिन्मय घर कि तरफ प्रस्थान कर चुका था ।
सौभाग्य शेरू के साथ घर पहुंची किसी ने उसकी अबीर से भरी मांग पर ध्यान नही दिया ना तो जुझारू ने ना ही तीखा ने रात ढल चुकी थी सौभाग्य ने खाना खाया और सो गई ।
सोने के दौरान उसके माथे पर चिन्मय द्वारा लगाया गया अबीर तो नही स्प्ष्ट हो रहा था लेकिन उसकी मांग में बहुत स्प्ष्ट दिख रहा था ।
माँ तीखा को बेटी सौभाग्य के ऊपर खुद से अधिक भरोसा था अतः वह बेटी को कभी भी गलत नजरिए से देखने कि कोशिश नही करती जिससे कि ऐसा लगे की उनकी बेटी बहक कर किसी दूसरे रास्ते को चल पड़ी है।
लगभग एक सप्ताह बीतने के बाद सौभाग्य पड़ोस के गांव जोगी काला के घर गयी जोगी कि पत्नी जलेबा ने सौभाग्य का बहुत आदर सत्कार किया और बहुत देर तक बाते करती रही उन्होंने सौभाग्य को बड़े गौर से देखा और उसकी मांग में लाल रंग सिंदूरी रेखा को स्प्ष्ट देखा ।
सौभाग्य पूरे कोल समाज कि बहुत प्रिय और अभिमान थी अतः जलेबा ने तत्काल कुछ भी सीधे सौभाग्य से बोलने से बचना चाहा फिर उन्हें शेरू का भी भय था जो क्योकि शेरू जब भी कोई सौभाग्य को बोलता तुरंत ही आक्रामक हो जाता ।
जलेबा ने सोचा कि कब तीखा से मुलाकात होगी वह सौभाग्य के मांग में सिंदूर की चर्चा अवश्य करेगी जलेबा ने माँ की ही तरह सौभाग्य को प्यार दुलार देकर विदा किया ।
सौभाग्य अपने घर लौट आयी लगभग एक सप्ताह बाद जलेबा को किसी कार्य से पड़ोस के गांव नेवाड़ी जाना पड़ा वह तीखा के घर गयी जब वह पहुंची सौभाग्य घर पर नही थी ।
तीखा ने जलेबा का आदर सत्कार किया जलेबा जोगी कोल कि पत्नी थी जोगी कोल समाज में गणमान्य और मुखिया थे कुछ देर इधर उधर कि बात करने के बाद जलेबा ने तीखा से पूछ ही लिया का हो तीखा कुछ दीना फेर जुझारू गांव के सब घर के मनई के बुलाई के ई बताये रहे कि संवत पहिले सौभाग्य के वियाहे के गोड़ धोवाई होई संवत जरले के दु महीना बाद वियाह तीखा बोली हाँ मुखिया काकी तय अबे तक इहे बा ।
जलेबा बोली तीखा हम ना त तोहे नीचा दिखावे ख़ातिर कहत हई ना त हमरे मन मे कौनो खोट तोहरे परिवार या बेटी के लेके बा हम त जौन देखे हई ऊहे कहत हई काहे की हमार परानी कोल विरादरी के मुखिया है और हमे विरादरी के इज़्ज़त बेइज़्ज़त के ख्याल रखे के पड़त है ।
जलेबा ज्यो ज्यो भूमिका बना रही थी त्यों त्यों तीखा के मन मे शंका संसय के बादल घिरते चले जा रहे थे।
जलेबा की भूमिका बनाने के बाद तीखा बोली का बात है मुखिया काकी काहे हमे दुविधा में डाले हुऊ बताव जलेबा ने फिर एक बार नए अंदाज में कहा तू तीखा कलेजा पर पत्थर रखी ल काहे कि जौन हम बतावे जात हई ऊ शायद तू सुन के सहन ना करी पाव।
तीखा बोली मुखिया काकी अब बताई द बुझऊल न बुझाव हमार जियरा घबरात बा जलेबा बोली नाही हो तीखा बहिन हम तोहार हिते चाहब नुकसान थोड़े होय देब अगर नुकसान चाहतीं त काहे बतावे खातिर परेशान रहितीन।
जलेबा और तीखा के बात चित नोक झोंक अंदाज में चल ही रही थी कि सौभाग्य आ धमकी और पिछे पीछे दुम हिलाता शेरू सौभाग्य को देखते जलेबा काकी बोली सौभाग्य तू तनिक इंहा आव सौभाग्य को कोई इल्म नही था वह बेखौफ जलेबा काकी के पास पहुंच गई ।
जलेबा काकी ने कहा सौभाग्यवा ते तनिक अपने भाई शेरू के बोल हम ते तोर माई अंदर झोपड़ी में जाइत है ई बाहर बईठल रहे सौभाग्य ने शेरू को बाहर बैठने का इशारा किया और जलेबा काकी के साथ झोपड़ी के अंदर दाखिल हुई पीछे पीछे तीखा भी थी अंदर दाखिल होने के बाद जलेबा काकी ने आदेशात्मक अंदाज़ में तीखा से कहा तीखा शीशा ले के आऊ तीखा शीशा लेकर ज्यो ही आयी तुरंत शीशा को जलेबा काकी सौभाग्य के चेहरे के सामने करती बोली देख तीखा तोरे सौभाग्य के मांग में सेनुर के दाग जब ई हमरे घरे गई रही तबे हम ध्यान दिए रहे और मौका तलाशत रहे कि तोहे खबरदार करी देई ।
तीखा ने देखा वास्तव में सौभाग्य के मांग में सिंदूर कि लाल रेखा बिल्कुल स्प्ष्ट दिख रही थी तीखा ने पूछा बिटिया ई का ह सौभाग्य अपने भोले अंदाज़ में बोली माई हमे कुछ मालूम नाही ह चिन्मय आए रहे पंचमी के अबीर हमे लगाए रहे पसीना से होई सकत है मांग में चल गइल होई ।
तीखा को अपनी बेटी कि बात पर ऐसे ही भरोसा था ऐसे भगवान पर तीखा बोली हम कहत रहनी ह कि हमार सौभाग्य गलत होई नाई सकत ।
जलेबा काकी बोली लेकिन एकर मांग त भरी गइल बा अब वियाहे से पहिले एकर जोग टोक करेके पड़े तबे वियाहे में एकर मरद मांग भरी सकतेन।
तीखा बोली जलेबा काकी ई बाती के एहि झोपड़ी में रहे द हम सौभाग्य के वियाहे से पहिले जौंन जोग टोक होई आप जईसन बताईब कईल जाय आखिर कोल परिवारन के आपे लोग न बढ़ बुजुर्ग हई।
जलेबा काकी चली गयी उनके जाने के बाद तीखा ने पति जुझारू से सौभाग्य के मांग अनजाने में चिन्मय द्वारा भरे जाने कि बात बताई जुझारू ने बेटी सौभाग्य कि आंखों में आंख डाल कर बड़ी कड़ाई से उसके मन को टटोलने कि कोशिश करते हुए चिन्मय द्वारा अनजाने में ही सही मांग भरे जाने कि जानकारी जानने की कोशिश कोल शाम दंड के तौर तरीकों से की सब तौर तरीके अख्तियार करने के बाद जुझारू को यकीन हो गया कि उनकी बेटी सौभाग्य देवी कि तरह भोली और अनजान है लाख कोशिशों के बाद भी तीखा और जुझारू अपने मन कि पीड़ा को दबा नही सके यह जानते हुये कि बेटी सौभाग्य के कौनो दोष नाही ना ही चिन्मय का ही कोई दोष है।
क्योकि वसंत पंचमी को गुलाल अबीर खेलने कि प्रथा कोल आदिवासी समाज मे भी है ई त माई जगदम्बा के अनबुझ पहेली ह कि होली त्योहार के शुभारम्भ से सौभाग्यवा कि जिनगी के कुछ सकेत दिए ह का ह ई त ऊहे जाने हम लोगन के परेशानी ई बा कि ई बात जगन तक ना पहुंचे और वियाहे से पहिले जौन जोग टोक होई कई दिहल जाय ।