नशा या नाश का मार्ग - भाग तीन
मदिरा, शराब ,वाइन ,लीकर,दारू समय के साथ साथ बदलते नाम लेकिन प्रकृति में कोई बदलाव नही मदिरा महाराज,यानी राजा मतलब सपन्न व्यक्ति के लिये हो सकता है शक्ति,राज्य ,बैभव के अधीन ही मदिरा का रहना सेवन कुछ हद तक स्वीकार्य हो सकता है ।शराब शौख है,मदिरा महत्व है वाइन प्रकृति कि अनिवार्यता है लीकर दारू विनाश का रास्ता है भारतीय धर्म मे मदिरा का सेवन वर्जित है माना जाता है कि यह विनास कि जननी है यदुवंशियों का विनाश वारुणी के मद में ही हुआ दुर्वासा के श्राप से समुद्र के जल ही मदिरा मय हो गया और मदिरा के मद में ही शाम्भ के टुकड़ों से एक दूसरे पर प्रहार करते रहे जो वज्र के समान घातक था।मदिरा का रूपांतरण शराब में मुगल काल मे हो गया नाम ही बदला प्रकृति नही शराब के साथ सबाब और कबाब जुड़ गया जो सुरा सुंदरी का ही रूपांतरित स्वरूप था नबाबों एव बादशाहों के सामंतों के शौख मनोरंजन का प्रमुख साधन हुआ करता था पश्चिमी देशों में जहां सर्दी पूरे वर्ष पड़ती है वहां के जीवन शैली कि अनिवार्यता हो सकती है वाइन शराब मदिरा अक्सर देश की सुरक्षा व्यवस्था में लगे सेना के जवानों को शराब पीने ना पीने की छूट उनके व्यक्तिगत निर्णय पर छोड़ दिया जाता है और एक निश्चित मात्रा तक ही अनुमति प्रदान की जाती है शराब शौख से जब नशा का रूप धारण कर लेती है तो भयंकर हो जाती हैं और विनाश को जन्म देती है शराब संस्कृति किसी विकास शील या विकसित समाज के लिये अनिवार्यता नही हो सकती शराब की शुरुआत बहुत साधरण लगती है मगर धीरे धीरे असाधरण स्थिति कि तरफ ले जाती है कहा जाता है पहले इंसान शराब पीता है बाद में शराब इंसान को पी जाती है शराब मानव समाज मे प्राचीन ऐसा पेय है जिसका समय समय पर सिर्फ नाम बदला प्रकृति प्रबृत्ति नही ।
शराब सदैव हानिकारक नही--
यदि कोई नियमित मात्रा में शराब का सेवन उचित आहार के साथ और नियमानुसार करता है तो नुकसानदेह नही होती ऐसा सिर्फ अभिजात्य वर्ग ही जो अनुशासन को स्वीकारता है कर सकता है आम जन के बस की बात नही है हज़ारों में कोई एक ऐसा व्यक्ति मिलेगा जो शराब का नियमित सेवन करता हो और स्वस्थ दीर्घायु हो यह अपवाद है ।
शराब अल्कोहल का प्रयोग अनेको औषधियों के निर्माण में होता है और कभी के कभी विशेष रोगों में चिकितसको द्वारा भी एक निश्चिंत मात्रा में सेवन के लिये बताया जाता है शराब सेवन में थ्री डी नियम अनुभवी लांगो द्वारा प्रतिपादित किये जाते है पहला शराब के एक पैग से दूसरे पैग के बीच का समय बीस मिनट से तीस मिनट होना चाहिए दूसरा शराब के साथ वरिष्ट भोज्य होना अनिवार्य है तीसरा पचास मिली में उतना ही पानी अनिवार्य है संभव है यह शराब सेवन करने वालो के अपने अनुभव हो सम्भव है भिन्न भिन्न भी हो मगर किसी के द्वरा शराब सेवन की महिमा नही बताई गई है।
शराब का स्वस्थ एव समाज पर प्रभाव---
शराब पहले इंसान पिता है बाद में जब शराब इंसान को पीने लगती है तब बहुत भयंकर स्थिति देखने को मिलती है चाहे कितना भी बड़ा आदमी हो उंसे दो नशे की आदत लग जाय समझो अपने आप वह दरिद्र और जानवर कि श्रेणी में आ खड़ा हो जाएगा शराब नशे के तीन रूप होते है जब कोई व्यक्ति पीना शुरू करता है तो उसके ऊपर शराब शेर बनकर बोलती है वह स्वय को ताकतवर भी लगता है और उसके आस पास महिमा उसका महिमा मंडन करने वाले दरबारी भी नज़र आते है जब वह शराब सेवन के दूसरे दौर में पहुंचता है तो उसके अंतर्मन में भय शंका और दुविधा का प्रादुर्भाव हो जाता है शराब शुभारंभ का समाज पीछे छूट चुका होता है और वह अकेला हो जाता है जब शराब सेवन का तीसरा और अंतिम दौर व्यक्ति के जीवन मे आता है तो व्यक्ति सुअर हो जाता है स्तर विहीन मर्यादा विहीन और सिर्फ शराब ही जीवन में रह जाता है ।
शराब के समाज राष्ट्र पर पड़ने वाले प्रभाव-----
अधिकतर सड़क दुर्घटनाओं का जन्मदाता शराब ही है बहुत से लांगो को शराब बगैर बहन चलाने का मज़ा ही नही आता दूसरा एक स्वस्थ मन मस्तिष्क अपराध नही कर सकता जितने भी अमानवीय कृत्य किये जाते है वह शराब के नशे में ही होते है जो बिना शराब के नशे में सम्भव ही नही है हत्या बलात्कार लूट आदि जितने भी अपराध होते है यदि उनके विषय मे आंकड़े एकत्र किए जाए तो स्पष्ठ है कि सौ फीसदी अपराध शराब के नशे में ही किये जाते है ।शराब के कारण एक और भयंकर स्थिति देखने को मिलती है वह है घरेलू हिंसा इस प्रकार कि घटनाएं प्रायः निम्न मध्यम वर्ग या मजदूर परिवारो में देखने को मिलती है जिनके परिवार के मुखिया कि आय सीमित होती है और उसके आय का काफी हिस्सा उसके स्वय के शराब पर व्यव्य होता है नही मिलने पर वह तरह तरह के कर्जो के बोझ में तब जाता है और पारिवारिक मांगो एव आवश्यकताओ को पूर्ण नही कर पाता है जिसके कारण घर मे आय दिन घरेलू बात विवाद हिंसा होती है ऐसे परिवार का शराबी मुखिया अपने सामने ही अपनी पीढ़ी को वेवश मजबूर लाचार बोझ नागरिक बना देता है ।शराबी या किसी भी नशे के नशेड़ी कि बहुत बड़ी विशेषता यह होती है कि वह बहुत बड़ा समाजवादी होता है उंसे कही कोई अंतर प्राणि प्राणि में नज़र नही आता वह कही किसी बातावरण को स्वीकार कर लेता है उंसे दिवाली होली ईद सिर्फ उसके नशे में निहित समाहित होती है समाज उसकी छोटी सी नशे की आवश्यकता का आधार बन जाता है जो अन्तह उंसे भयानक अंत कि तरफ ले जाता है।
हंगामा है क्यो बरपा थोड़ी सी तो पी है -
दिल्ली सरकार अरबिंद केजरीवाल जी अन्ना जी के आंदोलन कि उपज के राजनैतिक अस्तित्व है जब पहली बार 2015 में चुनांव जीते थे तब आगरा में और 2020 गोरखपुर दोनों चुनांव के पूर्व ही मैंने बड़े दम्भ के साथ कहा था कि दिल्ली में अपनी सरकार आएगी और आयी भी मगर वतर्मान में शराब विवाद ने मन खिन्न कर दिया है दिल्ली की लग्भग दो करोड़ जनसंख्या में डेढ़ करोड़ मध्यम मध्यम वर्गीय एव निम्न मध्यम वर्गीय एव मजदूर वर्ग के लोग है जो बिहार उत्तर प्रदेश से अधिक संख्या में है जिनकी आय 15000 से 25000 तक मासिक है इसी में मकान खाना आदि सारी व्यवस्था उनकी सम्मिलित है यदि उन्हें शराब की आशातीत सुविधा मिल गयी तो जो कमाएंगे वही गवाएंगे साथ ही साथ दिल्ली की जनता की भावी पीढ़ी नशेड़ी होगी अभी कम नही है दिल्ली हर शुभ अशुभ के शुभारंभ कि आवनी है पंजाब का युवा नशे की लत में गुमराह है ही अब दिल्ली को उसी नक्से कदम पर ले जाने कि किसी भी कोशिश को मूलत समाप्त किया जाना चाहिये मैं अरबिंद केजरीवाल जी से पुरजोर अपील करना चाहूंगा कि यदि मोहल्ले मोहल्ले दारू कि दुकान कि कोई योजना लागू है तो अविलम्ब वापस ले साथ ही साथ धार्मिक मार्मिक भावनात्मक स्थानों पर शराब बिक्री पर रोक अवश्य लगवाने कि शासकीय कोशिश करें यही राष्ट्र समाज के भविष्य के लिये उचित होगा।।
नन्दलाल मणि त्रिपठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।