ईमानदार खरगोश
एक समय की बात है, खरगोश नौकरी की तलाश में था। उसने फैसला कर लिया कि वह मेहनत की कमाई ही खायेगा, पर नौकरी मिलना आसान काम नहीं था। वह इधर - उधर भटकता रहा लेकिन उसे कहीं काम नहीं मिला। फिर भी वह निराश नहीं हुआ और अपनी कोशिश में जुटा रहा। वह उदास रहने लगा। एक दिन उसे लोमड़ी मिली। उसने उसकी उदासी का कारण पूछा! खरगोश बोला-, "आजकल मैं काम की तलाश में जो हूँ।" लोमड़ी बोली-, "तुम एक काम करो, रीछ के पास चले जाओ! उसकी शेर के दरबार में अच्छी जान पहचान है।" लोमड़ी ने सलाह दी। उसने रीछ के पास जाकर अपनी दिक्कत बताकर कहा-, "भाई! आप मुझे नौकरी दिलवा देंगे तो मैं जिन्दगी भर आपका अहसान मानूँगा।" इस पर रीछ बोला-, "नौकरी तो गुण और योग्यता से मिलती है। मैं कौन होता हूँ नौकरी दिलवाने वाला? तुम कल सुबह ठीक दस बजे राजा शेर के दरबार में पहुँच जाना ।" रीछ ने खरगोश को लिफाफा पकडाते हुए बोला-, "यह लिफाफा मेरे भाई को देते आना। तुम तो उसे जानते ही हो परन्तु होशियारी से ले जाना। इसमें खास चीज है।" रीछ ने उसमें जानबूझकर लिफाफे में उसके मनपसन्द मटर की फलियाँ रखी थी। खरगोश ने सकुशल वह लिफाफा उसके भाई तक पहुँचा दिया। अगले दिन सुबह ठीक नो बजे खरगोश, राजा शेर के दरबार में पहुँच गया। कुछ ही देर में राजा शेर आया और बोला-, "खरगोश! तुम नौकरी चाहते हो?" "जी महाराज! वह बोला। राजा ने रीछ से पूछा-, "तुम्हारी क्या राय है? तुम इसकी परीक्षा ले चुके हो?" "जी महाराज! खरगोश बहुत ईमानदार और नेक है। हमें ऐसे ही ईमानदार काम करने वालों की जरूरत है।" "खरगोश को नौकरी दे दी जाय!" राजा शेर ने आदेश दिया। खरगोश, रीछ के पास गया और 'धन्यवाद' देते हुए बोला-, "आपकी वजह से मुझे यह नौकरी मिली है।" रीछ बोला-, "खरगोश! यह नौकरी मेरी वजह से नहीं, तुम्हें तुम्हारी ईमानदारी से मिली है।"
सीख: - ईमानदारी सबसे बड़ी नीति वह गुण है, जो व्यक्ति हो हर जगह सफलता दिलवाता है।
कर्म बड़ा या भाग्य
एक बार देवर्षि नारदजी वैकुंठधाम गए, वहां उन्होंने भगवान विष्णु का नमन किया । नारद ने श्रीहरि से कहा, 'प्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहा। जो पाप कर रहे हैं, उनका भला हो रहा है ।' तब श्रीहरि ने कहा, 'ऐसा नहीं है देवर्षि, जो भी हो रहा है, सब नियति के जरिए हो रहा है।' नारद बोले, मैं तो देखकर आ रहा हूं, पापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वाले, धर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है । भगवान ने कहा, कोई ऐसी घटना बताओ । नारद ने कहा, अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं, वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था। तभी एक चोर उधर से गुजरा, गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका, वह उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया। आगे जाकर चोर को सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली। थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया । प्रभु! बताइए यह कौन सा न्याय है? नारदजी की बात सुन लेने के बाद प्रभु बोले, 'यह सही ही हुआ। जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था, उसकी किस्मत में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिलीं । ' वहीं, उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है।
सीख - इंसान को कर्म करते रहना चाहिए, क्योंकि कर्म से भाग्य बदला जा सकता है।