Naam Jap Sadhna - 14 in Hindi Anything by Charu Mittal books and stories PDF | नाम जप साधना - भाग 14

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नाम जप साधना - भाग 14

नाम जप पर रसिक संत पूज्य श्री भाईजी के विचार

गीताप्रेस गोरखपुर के आदिसम्पादक रससिद्ध संत पूज्य श्रीभाईजी (श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार जी) के नाम को कौन नहीं जानता। अगर इन महापुरुष के बारे में कुछ जानना चाहते हो तो गीतावाटिका गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तक 'भाईजी एक अलौकिक विभूति' जरूर पढ़नी चाहिये। यहाँ तो केवल भाईजी के नाम जप के प्रति विचारों को ही दिया जा रहा है।–

1. जिस प्रकार अग्नि में दाहिका शक्ति स्वाभाविक है, उसी प्रकार भगवन्नाम में पाप को, विषय-प्रपंचमय जगत के मोह को जला डालने की शक्ति स्वाभाविक है। इसमें भाव की आवश्यकता नहीं है।

2. किसी प्रकार भी नाम जीभ पर आना चाहिये, फिर नाम का जो स्वाभाविक फल है, वह बिना श्रद्धा के भी मिल जाएगा।

3. तर्कशील बुद्धि भ्रान्त धारण करवा देती है कि बिना भाव के क्या लाभ होगा ? पर समझ लो, ऐसा सोचना अपने हाथों अपने गले पर छुरी चलाना है।

4. भाव हो या नहीं, हमें आवश्यकता है नाम लेने की। नाम की आवश्यकता है, भाव की नहीं।

5. देखें, नाम भगवत् स्वरूप ही है। नाम अपनी शक्ति से, अपने वस्तुगुण से सारा काम कर देगा। विशेषकर कलियुग में तो भगवन्नाम के सिवा कोई और साधन नहीं है।

6. मन को निग्रह करना बड़ा कठिन है – चित्त की शान्ति के लिये प्रयास करना भी बड़ा कठिन है, पर भगवन्नाम तो इसके लिये सहज साधन है। भगवन्नाम की जोर से ध्वनि करो।

7. तर्क, भ्रान्ति जनक है कि रोटी-रोटी करने से क्या पेट भरेगा? पर विश्वास करो। प्रभु का नाम रोटी की तरह जड़ शब्द नहीं है, यह चिन्मय है। नाम और नामी में कोई अन्तर नहीं हैं।

8. आलस्य और तर्क, ये दो नाम जप में बाधक हैं।

9. निश्चय समझो, नाम के बल से बिना ही परिश्रम भव सागर से तर जाओगे और भगवत्प्रेम को भी पा जाओगे।

10. निरन्तर नामजपो, कीर्तन करो। सर्वोत्तम साधन यही है।

11. बस, दो बात है – भगवान् की कृपा पर विश्वास और भगवान् के नाम का जप, फिर कोई चिन्ता नहीं। ध्यान नहीं लगता न सही, मन वश में नहीं होता न सही।

12. भगवान् पापी, नीच के भी उद्धारक हैं। वो पतित पावन हैं, पर विश्वास करके केवल जीभ से भगवान् के नाम का उच्चारण करो।

13. अन्तर के मल को नाश करने के लिये भगवन्नाम से सरल , बच्चे, बूढ़े सभी प्रेम से नाम जप कर सकते हैं।


14. भगवान् के नाम में श्रद्धा नहीं है, प्रेम नहीं है, तो दूसरे के कहने से लेना आरम्भ कर दें। आदत डालें, फिर काम होगा ही क्योंकि हरि नाम में वस्तुगुण ही ऐसा है। पाप नाश करने की स्वाभाविक शक्ति ऐसी है कि जीभ पर नाम आते ही मल का नाश होने लगता है।

15. प्रभु का नाम पापों का नाश करके ही शान्त नहीं होता, अपितु उसके बाद हृदय में ज्ञान की ज्योति पैदा करता है, फिर भगवान के प्रति प्रेम उत्पन्न करता है, इसी प्रेम से भगवान् प्रकट होते हैं।

16. भगवान् के नाम, रूप, लीला और धाम में अन्तर नहीं है। ये सब भगवत् स्वरूप ही हैं।

17. नाम, भगवान् को हमारी ओर खींचता है और हमें भगवान् की ओर।


18. मन वाणी से निरन्तर भजन होते रहना चाहिये।

19. मन से नाम का स्मरण न हो तो वाणी से निरन्तर नाम लेने का अभ्यास अवश्य करते रहना चाहिए।

20. सर्वोत्तम काम है दिन-रात भजन करना।

21. अगर मनुष्य चेष्टा रखे तो एक लाख नामजप, नहीं तो पचास हजार नाम जप आसानी से कर सकता है।

22. नाम लेते लेते अन्तः करण के मल का नाश होता है। फिर नाम का स्वाद प्रकट होता है। नाम में रस आने पर तो फिर नाम छुटना कठिन हो जाता है।

23. नाम की पूँजी खरी पूँजी है। ये जिसके पास है, उसे यमराज का भी भय नहीं ।

24. चौरासी लाख योनियों में मनुष्य ही भजन के द्वारा मन पवित्र करके, माया मुक्त होकर, प्रभु प्रेम को पा सकता है। मनुष्य जन्म हमको मिला है, इसलिए हरि नाम की अग्नि से समस्त गन्दगी जला डालिए ।

25. जो मनुष्य भगवान् का नाम जपता रहता है, वही भाग्यवान् है, वही सुखी और वही सच्चा साधक है।

26. जिसकी जीभ निरन्तर नाम की रट लगाती है, वह चाण्डाल होने पर भी सबसे श्रेष्ठ है।

27. नाम का फल तो है पंचम पुरूषार्थ अथात् ‘श्रीभगवत्प्रेम प्राप्ति’ पाप नाश और मुक्ति तो नाम के अनुसांगिक फल हैं।

28. नाम जप में और मन्त्र जप में इतना ही अन्तर है कि मन्त्र में विधि की प्रधानता होती है और नाम में नहीं। नाम किसी भी विधि-अविधिपूर्वक लिया जाये तो भी लाभदायक होता है और मन्त्र का अविधिपूर्वक जप करने पर कहीं-कहीं हानि भी हो जाया करती है। अत: नाम जप से सबका लाभ ही लाभ है।

29. साधक को चाहिए कि वह, उठते बैठते, चलते फिरते, शुद्धि-अशुद्धि में जीभ से बराबर नाम जपता रहे। अपने जिम्मे के भी काम करे। पर काम भर को बोले फिर जीभ को नाम में लगा दे।

30. वो लोग बड़े भाग्यशाली हैं, जिनको कम बोलना पड़ता है। क्योंकि वह चाहें तो बहुत नाम जप कर सकते हैं। वाणी का सदुपयोग तो नाम जप में ही है।

31. भगवान् के नाम जप का अभ्यास होने के बाद मन से सोचते और हाथों से काम करते रहने पर भी जीभ से नाम अपने आप निकलता रहेगा। सारे शास्त्रों का सार व सत्संग का फल यही है कि भगवान् के नाम में रूचि हो जाये।

32. प्रतिज्ञा कर लीजिये प्रतिक्षण लगातार नाम जप करने की। नाम जप की तार यदि जाग्रत अवस्था में कभी नहीं टूटेगी तो निश्चय ही सब पाप मर जायेंगे। धैर्य रखें, न घबरायें, न हार मानें, यह महात्माओं का अनुभूत सरल प्रयोग है।

33. मेरी समझ से सबसे सरल साधन है नाम का अभ्यास। मुख से निरन्तर भगवान् के नाम का उच्चारण होता रहे और हाथों से काम । अभ्यास होने पर ऐसा होना खूब सम्भव है - बस, ‘ मुख नाम की ओट लई है। ’

34. भगवन्नाम की वास्तविक महिमा क्या है, कोई कह नहीं सकता। वह अचिन्त्य है, अनिर्वचनीय है। नाम की महिमा लोगों ने जो गायी है, वह तो कृतज्ञ-हृदय से उद्गार मात्र हैं। अर्थात् जिन महापुरूषों को नाम से अशेष लाभ हुए हैं, उन्होंने उन अशेष लाभों को लक्ष्य में रखकर भगवन्नाम की महिमा गायी है।

35. नाम के विषय में इसके आगे क्या कहूँ, तुलसीदास जी ने तो कलम ही तोड़ दी – 'राम न सकहिं नाम गुन गाई ।’

36. प्रेमीजनों को तो अपने प्रेमास्पद का नाम इतना प्यारा होता है कि स्वयं तो वे उसे कभी भूल ही नहीं सकते, दूसरे को कभी भूले-भटके उच्चारण करते सुन लेते हैं, तो उसकी चरण धूलि लेने दौड़ते हैं।

37. उपदेश देने का तो मैं अधिकारी नहीं हूँ। सलाह के तौर पर यही कहता हूँ कि आलस्य का त्याग करके श्रीभगवन्नाम जप करते रहना चाहिये।

38. श्रीभगवान् का नाम जप करते रहिये और कम से कम यह दृढ़ चेष्टा रखिये, जिसमें वाणी और शरीर से कोई पाप न हो।

39. सारे साधनों का प्राण है–भगवान् का नाम।
‘नाम राम को अंक है, सब साधन हैं सून।’

40. रही मेरे बल देने की बात सो मेरे पास एक ही बल है – हरि का नाम और आपसे भी यही कहता हूँ– ‘नाम का आश्रय लीजिये। सारे पाप-तापों से छुड़ाने में यह पूरा समर्थ है।’