the toy one in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | खिलौना वाला

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खिलौना वाला

1. खिलौना वाला

एक खिलौने वाला ने अपने बेटे को खिलौना बनाने की कला सिखाने का निश्चय किया। वह बड़ा होकर खिलौने वाला ही बना। दोनों अब साथ में अपने खिलौनें बेचने बाजार जाते। पिताजी के खिलौने डेढ़ - दो सौ रुपए में बिकते पर बेटे के खिलौने का मूल्य पांच - छह रुपये से ज्यादा ना मिलते। बाजार से आने के बाद खिलौने वाले ने, अपने बेटे को पास बिठाता और खिलौने बनाने में हुई त्रुटि के बारे में बताता और अगले दिन उस गलती को सुधारने के लिए समझाता । यह क्रम बहुत सालों तक चला। लड़का काफी समझदार था वह अपनी निर्माण कला में सुधार करने का प्रयत्न करता रहा। कुछ समय बाद उस लड़के के खिलौने भी डेढ़ सौ रुपए तक बिकने लगें। खिलौने वाला अब भी अपने बेटे को उसी तरह समझाता और खिलौने बनाने में होने वाली गलती के बारे में अपने बेटे को बताता। बेटे ने अपनी निर्माण कला पर और भी अधिक ध्यान दिया और उसकी निर्माण कला और भी अधिक निखारने लगी। अब खिलौने वाले के बेटे के खिलौने चार - पांच सौ रुपए तक बिकने लगें। बेटे की निर्माण कला को सुधारने का क्रम खिलौने वाले ने अब भी बंद नहीं किया। एक दिन बेटे ने झुंझलाकर कहा, 'आप तो कमियाँ निकालना बंद ही नहीं करते। मेरी निर्माण कला अब तो आप से भी बेहतर हो गयी है। मुझे मेरे खिलौने के लिए चार - पांच सौ रुपए तक मिल जाते हैं लेकिन आपके खिलौने के मूल्य अब भी दो - अढ़ाई सौ रुपए ही है।' खिलौने वाले ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा बेटा ! जब में तुम्हारी उम्र का था तब मुझे मेरी निर्माण कला का अहंकार हो गया था और फिर मैनें अपनी निर्माण कला में सुधार की बात छोड़ दी। तब से मेरी प्रगति रुक गयी और में दो सौ रुपए से अधिक के खिलौनें ना बना सका। अपनी गलतियों को समझने और उसे सुधारने के लिए हमेशा तैयार रहो ताकि बहुमूल्य खिलौने बनाने वाले श्रेष्ठ खिलौने वालों की श्रेणी में पहुंच सको।'

सीख: - अपनी निर्माण कला पर अहंकार न करें...


2. ईमानदारी

एक आदमी समुद्री जहाज में यात्रा के लिए निकला। आदमी विद्वान था व अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध भी। उसने अपने पास एक हजार मुद्राओं की एक पोटली भी रख ली। यात्रा के दौरान उस आदमी की एक यात्री से अच्छी दोस्ती हो गई। एक दिन बात-बात में आदमी ने साथी यात्री को साथी को लालच आ गया। एक दिन सुबह-सुबह उसने चिल्लाना शुरू कर दिया कि हाय मेरा पैसा चोरी हो गया। उसमें एक हजार मुद्राएं थी। कर्मचारियों ने कहा, 'तुम घबराते क्यों हो, चोर यहीं होगा। हम सबकी तलाशी लेते हैं। चोर है तो यहीं पक्का मिल जाएगा।' यात्रियों की तलाशी शुरू हुई। जब बारी विद्वान आदमी की आई तो कर्मचारी बोले, 'अरे साहब, आपकी तलाशी क्या ली जाए? आप पर तो शक करना ही गुनाह है।' लेकिन, विद्वान आदमी ने कहा, 'आप तालाशी लीजिए। वरना, साथी यात्री के दिल में एक शक बना रहेगा।' तलाशी ली गई, पर कुछ न मिलदन बाद साथी यात्री ने उदास मन से पूछा, 'आपकी वो पोटली कहां गई ?' आदमी ने मुस्करा कर कहा, 'उसे मैंने समुद्र में फेंक दिया। मैंने जीवन में दो ही दौलत कमाई है, एक ईमानदारी व दूसरा, विश्वास। अगर मेरे पास मुद्राएं मिलती तो हो सकता है कि लोग मुझ पर यकीन कर लेते, पर शक बना ही रहता। मैं दौलत गंवा सकता हूं अपनी प्रतिष्ठा नहीं।'