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तुम थे

तुम थे

उन दिनों महज 16-17 साल की थी मैं, और रातों को जागने की आदत मेरी नई-नई थी. तुम्हें तभी तो नोटिस करना शुरू किया था मैंने, और तुम्हारे साथ होने पर मुझे जो मिलती थी वो राहत नई-नई थी. पता ही नहीं चला कि यह मुलाकात कब आदत बन गई और आदत कब जरूरत और जरूरत कब चाहत में बदल गई. शायद!!! लड़कपन की वह मेरी पहली मोहब्बत नई-नई थी. उस समय इस जुनून, उस फितूर और इस सुकून का एहसास पहले कभी हुआ ही नहीं था. क्योंकि तुम थे मेरे पास ऐसे जैसे कोई नहीं था. याद है मुझे कि : जब मैं थक हार कर घर आया करती थी, और तेरा चेहरा देखकर फिर से खिल जाया करती थी. गेहूं सा तेरा वो रंग न जाने कैसा जादू करता है, यार! I have no idea मैं बस तेरी खुशबू से बहक जाया करती थी. उस वक्त, उस पल, उस लम्हा तुम थे, मैं थी हमारे दरमियां और कोई नहीं था, तुम थे मेरे पास ऐसे जैसे कोई और नहीं था. Remember, उन दिनों सर्दियों की रातों में सब घर वालों को सुलाकर छत पर आ जाया करती थी. कभी तुझे और कभी उस चांद को, ताकती चली जाती थी. तुम और चांद बड़े ध्यान से सुनते थे मुझे जब मैं अपनी नोबेल के शब्द दर शब्द पढ़ती चली जाती थी. तुम्हारा temperature हमेशा मेरे बॉडी temperature से ज्यादा रहता था, शरारती सी मैं तुम्हें अपने दोनों हाथों से पकड़ कर बैठ जाया करती थी. और धीरे-धीरे बिखरती सी चांदनी रात में जब मेरे लबों को तुम्हारा स्पर्श होता था, तो मेरी सांसो में मानो तुम्हारी गर्माहट की मिश्री घुल जाया करती थी. उस तरह तो मेरे वजूद में और कोई समया ही नहीं था, क्योंकि तुम थे मेरे पास ऐसे, जैसे और कोई नहीं था. जानती हूं मैं!! आजकल यह दूरियां जरा सी बढ़ने लगी है और मुझे जूस कॉर्नर पर किसी और के साथ देखकर तुम्हारी थोड़ी सी तो जलने लगी है. पर यार तुम तो वाकिफ ही नहीं, मेरी मोहब्बत की हद से, यह कॉफी, बीयर और नींबू पानी सब एक टाइम पास हैं, क्योंकि my dear मेरी जिंदगी बस तुम से ही तो चलने लगी है. जाने बहार गुले गुलजार ऐसे नाराज ना हो यार क्योंकि जितना नशा तुझ में है सिगरेट और शराब में भी नहीं जैसे तू है मेरे पास ऐसे और कोई नहीं है.

भरोसा न था
मैंने बहुतों को प्यार करते देखा है रात रात भर पागल होते देखा है मुझे इश्क पर भरोसा न था पर अचानक तुझे देख मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा जोर-जोर से कहने लगा यही है वो जिसके सामने में पिघलने लगी. मुझे इश्क पर भरोसा ना था पर अचानक तुझे देख मेरा दिल धड़कने लगा जोर जोर से कहने लगा कि यही है वो जिसके सामने मैं पागलने लगी थी. उसकी हर अदा पसंद थी मुझे उसका गुस्सा भी रास आता था मुझे उसकी गलतियों से भी प्यार था मुझे उसकी एक उदासी न भाती थी मुझे. वह बड़े-बड़े शहरों के सपने देखता था मैं शांत रहकर घंटों उसे देखती थी उसकी मेरी दोस्ती एक दम किताब की तरह थी ना उसने मुझे कभी मना किया ना मैंने कभी पढ़ ना छोड़ा. एक अजीब सा सुकून था उसकी बांहों में वह मेरी तरह ना था, फिर भी मैं उसकी तरह रहना चाहती थी एक दिन अचानक वह दूर चला गया और और पीछे ढेर सारे सवाल छोड़ गया. मैंने लाख समझाया वह समझे ना मैंने लाख मनाया वह माने ना मैंने कहा - वापस आजा वो आया ना मैंने कहा - तू रोएगा वो रोया ना. उसके जाने के बाद मेरे मन में उसके लिए बहुत सारे सवाल है, और अगर भविष्य में उससे कभी मुलाकात हुई तो उससे पूछूंगी : क्या आज भी जब तू आईना देखता है तो क्या तुझे मेरा चेहरा याद आता है. क्या आज भी जब तू खाना खाता है तो क्या कोई अपना पहला निवाला तुझे खिलाता है. क्या आज भी, तेरी शर्ट का पहला बटन जो मैं बंद किया करती थी क्या वह बटन मेरे बंद करने के इंतजार में है. और सबसे important बात, क्या आज भी कोई! तेरी दस्तक देने से पहले दरवाजा खोलता है बताना! क्या वह अपनी आंखों में काजल की तरह तुझे सजाती है. क्या हर सांस में वो भी इश्क करती है क्या आज भी, किसी और की आंखों में तू मुझे तलाशता है. अच्छा हुआ तू चला गया तेरा जाना क्या हुआ मैंने जीना सीख लिया इस दुनिया में ठहरना सीख लिया अपनों में अपनों को तलाशना सीख लिया.