अब भूतेश्वर ने इस विषय पर बहुत सोचा और कालवाची एवं महातंत्रेश्वर के विचारों के पश्चात वो इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि कालवाची सत्य कह रही है,यदि उसकी पुत्री जीवित रही तो उसे भी अपना जीवन जीने हेतु कालवाची की भाँति ही संघर्ष करना पड़ेगा जो कि उचित नहीं है और उसने वही किया जैसा कि कालवाची ने कहा था,दोनों ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर उस शिशु कन्या को एक काली अँधेरी कन्दरा में छोड़कर दिया और कन्दरा के द्वार पर एक बड़ा सा पत्थर लगा दिया जिससे वो शिशु कन्या वहाँ से निकल ना सके और वे अपने निवासस्थान लौट आए एवं सबसे ये कह दिया कि कालवाची ने एक मृत कन्या को जन्म दिया था,इसके पश्चात कालवाची ने कभी भी माँ ना बनने का प्रण लिया,क्योंकि अब उसे ज्ञात हो चुका था कि उसके गर्भ से अब जो भी सन्तान उत्पन्न होगा उसमें प्रेत का अंश तो अवश्य ही रहेगा इसलिए यही अच्छा है कि वो कभी माँ ही ना बने.....
परन्तु उधर हिरणमयी और धवलचन्द्र ने कालवाची की पुत्री को उस अँधेरी कन्दरा से बाहर निकाल लिया,क्योंकि वो उन दोनों के सभी क्रियाकलापों पर दृष्टि रख रहे थे,इसलिए उन्हें पता था कि कालवाची ने उस कन्या को कहाँ रखा है और उन्होंने उस प्रेतनी कन्या का नाम कालबाह्यी रखा,अब कालबाह्यी हिरणमयी और धवलचन्द्र के यहाँ पलने लगी.....
इधर धीरे धीरे सभी के बालक बालिका बड़े हो रहे थे और उधर सभी को कालवाची के माँ ना बन पाने का दुख था,किन्तु भैरवी,त्रिलोचना और वत्सला ने कालवाची को सान्त्वना दी और उससे कहा कि चिन्ता मत करो,हमारे बच्चे भी तुम्हारे बच्चों की भाँति ही हैं,तुम इनसे मिलने कभी भी आ सकती हो और समय ऐसे ही बीत रहा था उधर महाराज कुशाग्रसेन, रानी कुमुदिनी और व्योमकेश जी स्वर्ग सिधार चुके थे और इधर गिरिराज,गिरिराज की माँ चन्द्रिका देवी और धंसिका भी अब स्वर्गलोक की यात्रा पर जा चुके थे,समय बीतता जा रहा था और अब सभी बालक बालिका व्यस्क हो चुके थे....
इधर अचलराज की पुत्री चारुचित्रा व्यस्क हो चुकी थी और उधर कौत्रेय का पुत्र विराटज्योति भी व्यस्क हो चुका था इसलिए कौत्रेय ने अचलराज के पास दोनों के विवाह का प्रस्ताव भेजा और अचलराज तो इसी प्रतीक्षा में बैठा था और उसने कौत्रेय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया,अन्ततोगत्वा कुछ ही समय पश्चात ही विराटज्योति और चारुचित्रा का विवाह हो गया और दोनों सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे ,अब वैतालिक राज्य का राजा विराटज्योति था और उसकी रानी चारुचित्रा थी...
विराटज्योति अपने राज्य को ठीक से सम्भाल रहा था जिससे उसके कार्य से प्रजा भी प्रसन्न थी और भूतपूर्व राजा अचलराज भी,अचलराज को इस बात की प्रसन्नता थी कि अब वैतालिक राज्य को उससे भी योग्य राजा मिल गया है,सबसे अधिक ये प्रसन्नता थी कि विराटज्योति उसकी पुत्री चारुचित्रा से अत्यधिक प्रेम करता था और किसी भी अन्य स्त्री की ओर आँख उठाकर भी ना देखता था,क्योंकि विराटज्योति के लिए चारुचित्रा ही संसार की सबसे सुन्दर युवती थी,ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि विराटज्योति को उसके गुप्तचरों ने सूचना दी कि राज्य में दस्युओं(डाकूओं) का अतिभय(आतंक) अत्यधिक बढ़ चुका है.....
दस्यु रात्रि को अत्यधिक मात्रा में आते हैं और राज्य मे रह रहे लोगों के घर में घुसकर उनका धन चोरी करके ले जाते हैं,उनकी हत्याएँ कर देते हैं यहाँ तक कि उन घरों की व्यस्क युवतियों एवं पुत्रवधुओं को भी उठाकर ले जाते हैं,विशेष प्रकार से उनका उद्देश्य तो राज्य की सुन्दर युवतियों को ले जाना है और उन युवतियों को ले जाकर वे उन्हें दूसरे राज्यों में दासियाँ बनाकर भेज देते हैं और उनके बदले में उन्हें अपार धन प्राप्ति होती है.....
ये सुनकर विराटज्योति अत्यधिक चिन्तित हो बैठा और उसने इस विषय पर पूर्व महाराज अचलराज से विचार विमर्श करने का निर्णय लिया,तब विराटज्योति उनके कक्ष के समीप जा पहुँचा और द्वार पर खड़े सैनिक से बोला....
"सैनिक! पूर्व महाराज को सूचित करो कि महाराज विराटज्योति उनसे भेंट करना चाहते हैं"
और सैनिक अपने अपने राजा का संदेश लेकर अचलराज के पास पहुँचा तो अचलराज ने विराटज्योति को अपने कक्ष में आने की अनुमति दी ,तब विराटज्योति ने अचलराज के पास पहुँचकर उन्हें प्रणाम किया और उनसे बोला.....
"महाराज! राज्य पर संकट आन पड़ा है"
"कैसा संकट? महाराज विराटज्योति!",अचलराज ने पूछा....
तब विराटज्योति बोला.....
"जी! महाराज! गुप्तचरों ने सूचना दी है कि राज्य में रात्रि को दस्यु आकर लूटपाट करते हैं और व्यस्क युवतियों को उठाकर ले जाते हैं और उनका व्यापार करते हैं जिससे वें बहुत अधिक धन अर्जित कर रहे हैं, नगरवासियों ने ये बात भय के कारण हमें नहीं बताई ,उन दस्युओं ने प्रजाजन को चेतावनी दी है कि यदि उन्होंने राज्य के राजा तक ये सूचना पहुँचाई तो राज्य में कोई भी जीवित नहीं रहेगा",
"ओह....उन दस्युओं का इतना साहस,तो अब आपने क्या सोचा है?", अचलराज ने पूछा....
"जी! इसी विषय पर आपसे विचार विमर्श करने आया था",विराटज्योति बोला....
"इस विषय पर विचार करने योग्य कुछ भी नहीं है,आज रात्रि ही आप सेना के साथ जाकर उस स्थान पर रह रहे दस्युओं पर आक्रमण कर दीजिए,एक भी दस्यु बचने ना पाएं,ये राज्य की सुरक्षा का विषय है इसलिए इस पर बिलम्ब करना उचित नहीं",अचलराज बोला....
"जैसा आप कहें महाराज! मेरा भी यही विचार था,मैं तो बस आपसे आपका मत लेने आया था", विराटज्योति बोला....
"हाँ! तो अभी इसी समय अपने सेनापति दिग्विजय सिंह को रात्रि के लिए योजना बना डालिए कि किस प्रकार क्या क्या करना है,मुझे पूर्णतः विश्वास है कि आप हमें निराश नहीं करेगें",अचलराज बोला....
"जैसी आपकी आज्ञा",विराटज्योति बोला....
"हम आशा करते हैं कि कल आप विजयी होकर ही लौटेगें",अचलराज बोला....
"जी! अवश्य! आपका आशीर्वाद रहेगा तो मैं अवश्य विजयी हूँगा",विराटज्योति बोला....
"मेरा आशीर्वाद तो सदैव आपके साथ है महाराज!",अचलराज बोला....
"तो मुझे आज्ञा दीजिए",विराटज्योति बोला....
"हाँ! अब आप जा सकते हैं और याद रहे तनिक सावधानीपूर्वक कार्य कीजिएगा",अचलराज बोला...
"जी! महाराज!",
और ऐसा कहकर विराटज्योति अचलराज के कक्ष से चला और अपने सेनापति दिग्विजय सिंह के संग रात्रि के आक्रमण हेतु योजना बनाने लगा,जब योजना बन चुकी तो वो अपनी रानी चारुचित्रा के पास पहुँचकर बोला....
"प्रिऐ! आज रात्रि मुझे कहीं जाना है और तुम मुझसे पूछोगी नहीं कि मैं कहाँ जा रहा हूँ"?,
"हाँ! नहीं पूछूँगीं,क्योंकि मुझे ज्ञात है कि मेरे स्वामी किसी आवश्यक कार्य हेतु बाहर जा रहे होगें,किसी सुन्दरी के पास नहीं",चारुचित्रा बोली...
"मेरे प्रति अपना ये विश्वास सदैव ऐसे ही रखना प्रिऐ!"विराटज्योति बोला...
"ऐसा ही होगा स्वामी! क्योंकि मुझे भी आप पर पूर्ण विश्वास है",चारुचित्रा बोली....
"तो अब मैं जाऊँ,सेनापति जी मेरी प्रतीक्षा कर रहे होगें",विराटज्योति बोला...
"जी!महाराज! और आप जिस कार्य हेतु जा रहे हो तो ईश्वर आपको उस कार्य में सफलता प्रदान करें",चारुचित्रा बोली...
और विराटज्योति चारुचित्रा के मस्तक पर चुम्बन कर अपनी योजना को सफल बनाने हेतु निकल पड़ा....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....