Prem ka Purvabhas - 8 in Hindi Love Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | प्रेम का पूर्वाभास - भाग 8

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प्रेम का पूर्वाभास - भाग 8

छोटी मां बरसों से बेकरार थी अपने अंदर का सारा धुआं जहर निकालने के लिए इसलिए वह अपनी आंखों से आंसू पोंछ कर आदित्य को बताती है "राजस्थान के हमारे छोटे से गांव की पहचान मेरी बहन नंदिनी के जवान होने के बाद बनी थी, क्योंकि अगर कोई अनजान व्यक्ति भी नंदिनी को देख लेता था तो नंदिनी की खूबसूरती पर मोहित होकर नंदिनी को ढूंढते हुए हमारे गांव में जरूर आता था एक बार नंदिनी की खूबसूरती निहारने के लिए इसलिए पिता जी नंदिनी को गांव से बाहर नहीं जाने देते थे क्योंकि नंदिनी स्वर्ग की अप्सरा मेनका उर्वशी और किसी हुर की पारी से कम सुंदर नहीं थी गुलाब की पंखुड़ियां जैसे होंठ थे उसके और होठों से थोड़ा ऊपर खूबसूरत तिल चंदन हल्दी जैसा रंग कुदरती रेशमी बाल चंचल हिरणी जैसा स्वभाव गुस्सा घायल शेरनी जैसा देखने में हंसिनी आवाज कोयल जैसी जब नंदिनी गांव में जन्माष्टमी या किसी दूसरे त्यौहार या फिर शादी विवाह समारोह में राधा कृष्ण मीरा के भजन सुनती थी तो पूरा गांव कहता था नंदिनी स्वर कोकिला है और गांव की स्त्रियां अपने पतियों को युवा लड़कों को नंदिनी से बात नहीं करने देती थी उन्हें हमेशा डर रहता था कि कहीं हमारे घर के मर्द नंदिनी के प्रेम में दीवाने होकर घर बाहर ना छोड़ दे और नंदिनी को न पाने की वजह से संन्यासी ना बन जाए गांव की ही नहीं दूसरे गांव की अनजान स्त्रियां भी जब नंदिनी को सजी संवरी देख लेती थी तो अपने पतियों को रिझाने के लिए नंदिनी जैसे ही सजने सवारने लगती थी और जब नंदिनी किसी तीज त्यौहार पर सजती संवरती थी, तो गांव का क्या बुड्ढा क्या जवान सब नंदिनी की एक झलक पाने के लिए बहाने से हमारे घर के चक्कर काटते रहते थे।

"हद से ज्यादा सुंदर होने की वजह से बाबू जी ने नंदिनी को आगे पढ़ाई करने शहर के कॉलेज में नहीं भेजा था और मुझे शहर के बड़े कॉलेज में भेजा था लेकिन मैं पढ़ाई में हमेशा बाबू जी की डांट खाती थी मुझे सबसे ज्यादा बाबू जी से जब नफरत होती थी जब वह कहते थे कि नंदिनी जैसी बन नंदिनी घरेलू समझदार बुद्धिमान लड़की है, अगर नंदिनी तेरी जगह शहर के कॉलेज में पढ़ाई करने जाती तो देश दुनिया में जरूर अपना और मेरा नाम ऊंचा करती। पिता जी की जली कटी बातों से मुझे धीरे-धीरे अपनी बड़ी बहन से नफरत होने लगी थी।

"एक बात और नंदिनी मेरी सगी बहन नहीं थी, एक बरस की नंदिनी को उसके माता-पिता गंगा नदी के किनारे छोड़ कर गायब हो गए थे, मेरे पिता जी नंदिनी को गंगा नदी के पास अकेले रोते हुए देखा कर उठा लाए थे और जब नंदिनी के माता-पिता को पुलिस ढूंढ नहीं पाई थी, तो नंदिनी को पिता जी ने खुद पालने का फैसला ले लिया था और दो वर्ष बाद जब मेरे जन्म के बाद मां का देहांत हो गया था, तो पिता जी ने शादी इसलिए नहीं की थी कि कोई सौतेली मां मेरी दोनों बेटियों के साथ कहीं सौतेला बर्ताव न करें।

नंदिनी से मुझे सबसे ज्यादा नफरत उस समय हुई थी जब कॉलेज में साथ पढ़ने वाले जिस लड़के से मैं बहुत प्यार करती थी वह और उसके माता-पिता बहुत अमीर ऊंचे खानदान के बाद बावजूद मेरे पिता के पास शादी का रिश्ता लेकर आए थे लेकिन जब उस लड़के के परिवार वालों ने मेरी और उस लड़के कि शादी का रिश्ता मेरे घर लेकर आएं तो उन्होंने नंदिनी को देखने के बाद मुझसे अपने बेटे रणविजय की शादी करने का इरादा बदल दिया था और वह किसी भी हालत में मेरी बहन नंदिनी को अपने घर की बहू बनाना चाहते थे।

रणविजय के माता-पिता से तो मुझे कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन जब रणविजय ने भी मुझे छोड़कर नंदिनी का दीवाना हो गया था तो मुझे रणविजय पर बहुत गुस्सा आया था।

तब मैंने अपने मन में ठान लिया था कि जिस दिन रणविजय और मेरी सौतेली बहन नंदिनी की शादी होगी मैं उस दिन आत्महत्या कर लूंगी लेकिन जब नंदिनी ने बताया कि मैं अपने बचपन के दोस्त विक्रम से प्यार करती हूं और चाहे कुछ भी हो मैं उसी से शादी करूंगी तुम मुझे बहुत खुशी हुई थी अब रणविजय मुझे मिल जाएगा।

लेकिन रणविजय नंदिनी के प्रेम में इतना हद से ज्यादा आगे बढ़ गया था कि उसने नंदिनी से शादी न होने की वजह से जीवन भर अकेले रहने का फैसला कर लिया था।

और जब नंदिनी के पति विक्रम की देहरादून में बड़े सरकारी दफ्तर में उच्च पद पर सरकारी नौकरी लग गई थी, तो रणविजय नंदिनी के पीछे देहरादून पहुंच गया था और रणविजय के पीछे पीछे मैं भी देहरादून पहुंच गई थी।

शादी के एक वर्ष बाद नंदिनी सुंदर सी बेटी की मां बन गई थी, उन दिनों में नंदिनी के साथ ही रह रही थी।

एक दिन नंदिनी का पति विक्रम अपने ऑफिस के काम के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए देहरादून गया था, रणविजय ने मौका देखकर आधी रात को नंदिनी के घर से नंदिनी को उठाकर उससे मंदिर में शादी करने के लिए उसे अपने साथ ले गया था और जब रणविजय अपनी इस नीछ हरकत में मेरी वज़ह से कामयाब नहीं हो पाया था तो उसने नंदिनी के खिलाफ गहरी चाल चली रणविजय ने मुझे अपने प्यार के जाल में दोबारा फसाया और मुझसे नंदिनी की बेटी का अपहरण करवाया था।

और उसकी बेटी का अपहरण कर के नंदिनी को ब्लैकमेल कर के नंदिनी को एक सुनसान जगह बुला कर उसके साथ बलात्कार किया था।

अपनी इज्जत लूट जाने के बाद नंदिनी ने अपने को अपने पति के लायक नहीं समझा और समाज की नजरों में अपने को गिरा हुआ समझकर उसने नदी में कूद कर अपनी जान दे दी थी।

रणविजय नंदिनी की लड़की को दिल्ली ले आया था, मुझे यह कहकर कि नंदिनी के पति को कहना कि नंदिनी जब नदी में नहाते नहाते डूबने लगी तो नंदिनी को बचाने के चक्कर में नंदिनी की बच्ची भी मेरे हाथ से छूट कर नदी में गिरकर डूब गई थी और कुछ दिनों बाद अपने पिता के नाम एक चिट्ठी लिखकर छोड़ना कि मुझे किसी दूसरे धर्म के लड़के से प्रेम हो गया है आप और गांव के लोग मेरी उसके साथ शादी करने की इजाजत नहीं देते हैं, इसलिए मैं उसके साथ घर छोड़कर भाग कर शादी कर रही हूं और मुझे फोन करके दिल्ली के इस पते पर पहुंच जाना यह लो दिल्ली का पता और कुछ रुपए तुम्हारे काम आएंगे।"