Prem ka Purvabhas - 6 in Hindi Love Stories by Rakesh Rakesh books and stories PDF | प्रेम का पूर्वाभास - भाग 6

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प्रेम का पूर्वाभास - भाग 6

जब आदित्य बर्दाश्त नहीं कर पता है कि वह अधेड़ आयु का व्यक्ति अरुणा को जबरदस्ती किस करने। कि कोशिश कर रहा है तो आदित्य पार्क में से एक पत्थर उठाकर उस व्यक्ति कि महंगी लंबी कार पर फेंक कर मार देता है कार पर तेज मोटा पत्थर लगते ही कार का शीशा टूट जाता है।

कार का शीशा टूटते ही वह व्यक्ति और उसके चम्मचे पिस्तौल निकाल लेते हैं।

आदित्य फुर्ती से पार्क के दूसरे गेट पर भागकर पहुंच जाता है और उस गेट से उस तरफ से निकलता है, जहां उस अंधेड व्यक्ति कि कार के पीछे अरुणा खड़ी हुई थी।

गाड़ी का शीशा टूटने की वजह से वहां खड़े जितने भी लोग थे, सबका ध्यान गाड़ी के टूटे शीशे और गाडी का शीशा तोड़ने वाले को ढूंढने पर लगा हुआ था और अरुणा सबसे अलग धूध कोहरे में उस व्यक्ति की गाड़ी के पीछे छिपी खड़ी हुई थी।

आदित्य अपनी जान की परवाह किए बिना अरुणा से कहता है 'जिससे मिलने के लिए अपने खुद को घायल किया था मैं वही आदित्य हूं।" और यह कहकर अपने गले का गरम मफलर अरुणा के गले में डालकर और अरुणा की गरम कश्मीरी शाल उसके संगमरमर जैसे बदन से उतर कर खुद ओढ़ लेता है और वहां से जाते-जाते अरुणा से कह कर जाता है कि गाड़ी का शीशा तोड़ने वाला मैं ही हूं।"

यह सब कुछ इतना जल्दी होता है कि अरुणा समझ नहीं पाती है कि यह क्या हुआ आदित्य से मिलने के बाद अरुणा अपने कमरे में जाकर ताकिए पर मुंह गडकर आदित्य का मफलर अपने सीने से लगाकर पलंग पर उल्टी लेट जाती है।

अरुणा को पहली बार कोई गैर युवक अपना सा लगा था। उस रात अरुणा आदित्य के मफलर को सीने से लगाकर पूरी रात सोती है और दूसरे दिन सुबह अरुणा आदित्य के मफलर को ऐसी जगह छुपाती है जिससे कि उसकी छोटी मां मफलर को देखकर यह ना कहे कि यह किस मर्द का मफलर है और तेरे पास कैसे पहुंचा।

अरुणा से मिलने के बाद आदित्य को थोडी तसल्ली महसूस होती है कि मेरा पूर्वाभास पूरा नहीं तो थोड़ा तो गलत ही साबित हुआ, क्योंकि अरुणा से उसकी स्कूल की फेरवेल पार्टी में से पहले मुलाकात भी हुई और बातचीत भी हुई और अरुणा के रिएक्शन से ऐसा भी लगा कि हम दोनों की अच्छी दोस्ती भी हो जाएगी।

जब आदित्य पिता जी के खाना खाने के बहुत देर बाद तक मां से खाना नहीं मांगता है तो मां आदित्य के कमरे में आकर कहती है "इतनी देर पहले तूने मुंह हाथ धो लिए फिर पिता जी के साथ खाना खाने क्यों नहीं आया।" फिर आदित्य के कुछ जवाब देने से आदित्य की मां आदित्य के सर पर हाथ फैर कर कहती है "बेटा एक बार मैंने तेरा कहना नहीं माना था, तो मुझे पागल कुत्ते ने काट लिया था, इसलिए बेटा तू ऐसी गलती कभी मत करना तेरे पूर्वाभास हमेशा सच्चे होते हैं और एक बार मुझे उस लड़की से मिलवा जिसका जिक्र तेरे सामने होते ही तेरा चेहरा कमल जैसे खिल उठता है नाम तो मैंने प्रेम और तेरे मुंह से सुना था शायद अरुण है।"
"हां मां उसका नाम अरुणा ही है।" आदित्य कहता है
"तेरे साथ कॉलेज में पढ़ती है।" मां पूछती है?
"नहीं मां हमारे कॉलेज के साथ वाले गर्ल्स स्कूल में पढ़ती है।" आदित्य बताता है
यह सुनने के बाद मां खुद ही बुदबुदाने लगती है " भगवान ना करे वह अरुणा हो।"
"मां कौन सी अरुणा।" आदित्य पूछता है?
"बेटा एक दिन एक अरुणा नाम की स्कूल की लड़की तेरे पिता जी कि सुनार कि दुकान में आकर छुप गई थी और तेरे पिता जी ने जब उसे दुकान से बाहर निकालने की कोशिश की तो तेरे पिता जी के पीछे पड़ गई थी कि मेरे गले की सोने की चैन खरीद लो मुझे अपने माता-पिता के पास देहरादून जाना है और तभी उसके पीछे एक औरत कुछ आदमियों को अपने साथ लेकर उस लड़की को ढूंढते हुए वहां पहुंच गई थी। वह औरत उस अरुणा नाम की लड़की की एक भी बात सुने बिना उसे जबरदस्ती वहां से अपने साथ ले गई थी। उस महिला को तेरे बाबूजी अच्छी तरह पहचानते है वो उनके साथ राजस्थान के कॉलेज में पढ़ती थी और उसने किसी दूसरे धर्म के लड़के के प्यार में फंसकर घर से भाग कर शादी कि थी बस इतना ही पता है मुझे उस अरुणा के बारे में अब तू सो जा तुझे सुबह जल्दी उठकर कॉलेज जाना है और मुझे अभी खाने के छुटे बर्तन धोकर रखने हैं।"
"मां पूरी बात बात कर जा।" आदित्य कहता है
"पूरी जानकारी चाहिए तो अपने पिता जी से सुबह ले लेना।" आदित्य की मां कहती है

आदित्य मन ही मन खुश होता है कि अरुणा तक पहुंचाने का रास्ता अरुणा की छोटी मां है और छोटी मां तक पहुंचाएंगे पिता जी।

आदित्य उस रात जल्दी सोने की कोशिश करता है क्योंकि उसे सुबह जल्दी उठकर दीपाली को बताना था कि मैंने कैसे अरुणा को अपना गरम मफलर दिया और कैसे अरुणा की गर्म कश्मीरी शॉल ली क्योंकि दीपाली ही तो स्कूल के अंदर अरूणा को बताएगी यह आदित्य है तब अरुणा को समझ आएगा कि अस्पताल में प्रेम था आदित्य नहीं तभी तो अरुणा मुझसे बात करेगी दीपाली के फोन से बस आदित्य को यह समझ आ नहीं आ रहा था कि पिता जी से अरुणा कि छोटी मां के जीवन की कैसे जानकारी लूं।

सुबह फिर आदित्य कि किस्मत उसे अरुणा के और करीब पहुंचा देती है क्योंकि आदित्य को दीपाली अरुणा स्कूल के अंदर जाते हुए स्कूल के गेट पर ही एक साथ मिल जाते हैं और आदित्य के इशारे किए बिना दीपाली अरुणा को छोड़ने आए लड़के से नजरे बचा कर अरुणा को इशारा करके बताती है कि यह है आदित्य और दीपाली अरुणा के कहने से आदित्य को फोन करने का इशारा करके स्कूल के अंदर चली जाती है।

अरुणा से मिलने और उसकी पहली बार आवाज सुनने के लिए बेचैन आदित्य का उस दिन पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता है और वह कॉलेज की कैंटीन में अकेला बैठकर दीपाली के फोन का इंतजार करने लगता है क्योंकि दीपाली ही उसकी अरुणा से अपने मोबाइल पर बात करवाने वाली थी।