Ek thi Nachaniya - 32 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | एक थी नचनिया - भाग(३२)

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एक थी नचनिया - भाग(३२)

और उन्होंने इस विषय पर डाक्टर मोरमुकुट सिंह से सलाह मशविरा किया तो वे बोले....
"उपाय तो अच्छा है लेकिन एक खतरा है इसमें,"
"वो भला क्या",माधुरी ने पूछा....
"वो ये कि कभी किसी अखबार के किसी इश्तिहार में जुझार सिंह ने रागिनी की तस्वीर देख ली हो तो वो तब इन्हें फौरन ही पहचान लेगा"डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोले....
"हम रागिनी को गाँव की लड़कियों की तरह तैयार करेगे,इसलिए वो कभी भी इसे पहचान ही नहीं पाएगा,उस पर से ज्यादातर ये घूँघट में रहेगी तो पहचानने का सवाल ही नहीं उठता"माधुरी बोली...
"तब ठीक है,मुझे कोई दिक्कत नहीं",मोरमुकुट सिंह बोला....
"और रागिनी को आप ही जुझार सिंह के पास लेकर जाऐगें,ताकि उसे सिनेमाहॉल के लिए हो रहे काम में मजदूरी का काम मिल सकें,पुलिस इन्हें वहाँ जल्दी नहीं खोज पाऐगी",रामखिलावन बोला....
"हाँ! मैं तैयार हूँ तो कब लेकर जाना है इन्हें वहाँ",मोरमुकुट सिंह ने पूछा....
"जितनी जल्दी हो सके,क्योंकि पुलिस इन्हें खोज रही होगी"माधुरी बोली...
"तो ये रहेगीं कहाँ?",मोरमुकुट ने पूछा...
"आपके अस्पताल में आपकी गरीब रिश्तेदार बनकर,इन्हें वहाँ कोई सर्वेन्ट क्वार्टर दे दीजिएगा",दुर्गेश बोला...
"लेकिन ये तो काफी खतरे वाला काम है,डाक्टर साहब को हम लोग यूँ खतरे में नहीं डाल सकते"मालती बोली...
"कोई बात नहीं मालती भाभी! इतना खतरा तो मैं उठा ही सकता हूँ"मोरमुकुट सिंह बोले...
"एक बार फिर से सोच लीजिए,पुलिस मुझे खोजती हुई आपके अस्पताल भी पहुँच सकती है",रागिनी बोली...
"कोई बात नहीं,कस्तूरी के लिए मैं इतना तो कर ही सकता हूँ"मोरमुकुट सिंह बोले....
"तो फिर ठीक है आज ही रागिनी जीजी को आपके साथ भेज देते हैं",माधुरी बोली....
और फिर माधुरी और मालती ने रागिनी को गाँव की औरतों की तरह तैयार करके मोरमुकुट सिंह के साथ भेज दिया,अस्पताल पहुँचकर मोरमुकुट सिंह ने रागिनी को अस्पताल में साफ सफाई करने वाली महिला कर्मचारी के संग ठहरवा दिया,चूँकि वो महिला काफी बूढ़ी थी और उसका अपना कहने के लिए कोई नहीं था,अस्पताल और डाक्टर मोरमुकुट सिंह उसके एक मात्र सहारे थे,वो डाक्टर मोरमुकुट सिंह को बहुत मानती थी इसलिए उसने आसानी से रागिनी को अपने कमरे में ठहरने की इजाज़त दे दी,अब मोरमुकुट सिंह का काम बेहद आसान हो गया था और दूसरे ही दिन वो रागिनी को लेकर उस साइट पर पहुँचा जहाँ सिनेमाहॉल का काम चल रहा था,वहाँ पहुँचकर वो जुझार सिंह से बोला.....
"मैं एक औरत को लाया हूँ,बेचारी गरीब और बेसहारा है,इसका पति किसी औरत के संग परदेश भाग गया है,घर में खाने को कुछ भी नहीं है,इसलिए बेचारी मजबूर होकर यहाँ आई है,अगर इसे यहाँ कुछ काम मिल जाता तो बेचारी की कुछ मदद हो जाती"
जुझार सिंह ने रागिनी को सिर से पैर तक देखा,वो रागिनी की शकल नहीं देख पाया क्योंकि वो घूँघट में थी,रागिनी कद काठी से बहुत सुन्दर थी,उसका गोरा,खूबसूरत और छरहरा बदन देखकर जुझार सिंह के मन में पाप समा गया,वैसे भी वहाँ सिनेमाहॉल की साइट पर उसे औरतों के दर्शन ही नहीं होते थे,इक्का दुक्का औरतें वहाँ मजदूरी के लिए आतीं थीं,लेकिन उनमें से जुझार सिंह को अब तक कोई भी ना भायी थी और वो इसी तलाश में था कि कब उसके हत्थे कोई औरत लग जाए और वो औरत अब रागिनी के रुप में उसके सामने खड़ी थी,जुझार सिंह ने रागिनी को देखकर कहा.....
"रायजादा साहब! ये मजदूरी कर लेगी भला! कहाँ से पकड़कर लाएँ हैं इतनी लम्बी चौड़ी झपाट औरत?"
"हाँ....हाँ...क्यों नहीं कर लेगी मजदूरी,दो वक्त की रोटी आखिर सबको चाहिए होती है,जब पेट में आग लगती है तो इन्सान मजबूर होकर कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है,पेट की आग कुछ भी काम करने को मजबूर कर देती है", विचित्रवीर रायजादा बना मोरमुकुट सिंह बोला...
"क्यों री! कर लेगी ना मजदूरी,तसले उठाने पड़ते हैं,ईंटे ढ़ोनी होती है और तो और पत्थर भी तोड़ने पड़ते हैं",जुझार सिंह बोला....
"हाँ! काहे ना करूँगी मजूरी,लाचार औरत हूँ,मरद का कोन्हों ठिकाना ना है,देखो तो भरी जवानी में मुझे छोड़कर चला गया,किसी और के पल्ले बँधती तो राज करती राज,लेकिन वो बेअकल आदमी उसकी अकल पर तो जैसे उस घटवारिन को देखकर पत्थर पड़ गए थे,तभी तो मुझ जैसी खबसूरत औरत को छोड़कर चला गया" घूँघट में से रागिनी बोली....
"वैसे नाम क्या है तुम्हारा?",जुझार सिंह ने रागिनी से पूछा....
"रामकली....रामकली नाम है मोरा"रागिनी बोली....
"तो रामकली रहती कहाँ हो?",जुझार सिंह ने पूछा...
"अभी तो जैसे तैसे करके कभी बस अड्डे और स्टेशन पर रात कट जाती है,काम मिलते ही कोई ठिकाना भी ढूढ़ लूँगीं",रामकली बनी रागिनी बोली....
"रामकली! तुम्हें ठिकाना ढूढ़ने की जरूरत नहीं है,यहाँ जो रेत,सीमेंट और बालू रखने के लिए गोदाम बनाया गया है तुम वहाँ ठहर सकती हो,वहाँ स्टोव,थोड़े बहुत बरतन और बिस्तर भी है,वहाँ चौकीदार रहता है,उसको कहीं और ठहरवा देगें"जुझार सिंह बोला....
"इतनी मेहरबानी का कारण जान सकती हूँ भला!,सुन सेठ मैं ऐसी वैसी औरत नहीं हूँ,तू ज्यादा चक्कर में मत आ",रामकली बनी रागिनी बोली...
"नहीं! रामकली! तू गलत समझ रही है,मैं तो बस तेरी मदद करना चाहता था"जुझार सिंह बोला...
"तेरी ऐसी मदद पर रामकली थूकती है,चलो साहब मैं इस छिछोरे आदमी के पास मजूरी ना करूँगी",रामकली विचित्रवीर रायजादा से बोली....
"रामकली! ज्यादा जिद अच्छी नहीं है,जुझार सिंह जी बड़े अच्छे इन्सान है,तुम यहाँ काम नहीं करोगी तो फिर कहाँ जाओगी"विचित्रवीर रायजादा बना मोरमुकुट सिंह बोला...
"आप कहते हैं तो ठीक है मजूरी कर लेती हूँ,लेकिन मैं यहाँ रहूँगीं नहीं",रामकली बोली....
"मत रहना यहाँ,मैं तुम्हारे लिए और कोई इन्तजाम कर दूँगा",विचित्रवीर रायजादा बने मोरमुकुट सिंह ने कहा...
"तो कब से आना है काम पर",रामकली बनी रागिनी ने पूछा...
"अभी से शुरू कर दोगी काम तो आधे दिन की मजदूरी तो मिल ही जाएगी",जुझार सिंह बोला....
"सेठ! ज्यादा टपर टपर मत बोल,मैं इन साहब से पूछ रही थी तुझसे नहीं ,समझा! बड़ा आया!"रामकली बनी रागिनी बोली...
"रामकली! जब जुझार सिंह जी कह रहे हैं तो आज से ही क्यों नहीं लग जाती काम पर,कुछ तो मिल ही जाएगा",विचित्रवीर बने मोरमुकुट सिंह ने कहा...
"ठीक है तो मेरे रहने का इन्तजाम भी कर दीजिए",रामकली बोली...
"तुम ऐसा करो,जिस अस्पताल में मैं रहता हूँ ,तुम उसी अस्पताल के सरवेंट रुम में ठहर जाओ,मेरे साथ आया करो और मेरे साथ ही चला करो"विचित्रवीर बने मोरमुकुट सिंह बोले...
"जी! तब तो बहुत अच्छा है",रामकली बोली...
और उस दिन से रामकली सिनेमाहॉल के काम में मजदूरी करने लगी,मोरमुकुट सिंह उसे साथ लेकर आता और साथ लेकर चला जाता,इससे जुझार सिंह को काफी चिढ़ हो रही थी,क्योंकि वो अभी तक रामकली का चेहरा नहीं देख पाया था,रामकली जानबूझकर जुझार सिंह के सामने घूँघट में रहती,बाकी वो वहाँ काम करने वाले और लोगों के सामने घूँघट नहीं किया करती,जिससे वहाँ खबर फैल गई कि रामकली बहुत ही खूबसूरत है और जुझार सिंह को रामकली की खूबसूरती के दर्शन अब तक ना हुए थे,इसलिए वो भीतर ही भीतर कुढ़ा जा रहा था और मन ही मन कहता कि ये बुलबुल मुट्ठी में नहीं आ रही है कैसें भी करके इस बुलबुल को मुट्ठी में लाना ही होगा.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....