अब रागिनी और श्यामा अच्छी सहेलियाँ बन गए थे और रागिनी को अब श्यामा के बारें में सब पता था और वो भी श्यामा की मदद करने के लिए तैयार हो गई थी,श्यामा ने बताया कि वो जेल से भागना चाहती है लेकिन अभी नहीं दो चार महीनों के बाद क्योंकि उसका दुश्मन जुझार सिंह कलकत्ता से आ गया है और अब वो उससे अपना बदला लेगी,लेकिन उसे पहले ये भरोसा हो जाएँ कि उसे अब वहाँ किसी डाकू से कोई खतरा नहीं है और जब उसे पूरी तरह यकीन हो जाएगा,तब हम दोनों जेल से भागेंगे,
और उसी दौरान पता चला कि पुराने जेलर साहब सेवानिवृत्त हो चुके हैं उनका उस जेल से कार्यकाल समाप्त हो चुका है अब उनकी जगह कोई नौजवान जेलर आया है और फिर एक दिन वो उस महिला जेल की सभी कैदियों से मिलने पहुँचा,जेल के प्राँगण में नए जेलर के स्वागत की तैयारी की गई थी,सभी महिला कैदी जेल के प्राँगण में पहुँची, लेकिन रागिनी ने जब से जेलर साहब का नाम सुना था तो उस दिन से ही उसने मन में ठान लिया था कि वो उसकी शकल कभी नहीं देखेगीं ,इसलिए वो उस दिन टअपनी कोठरी से बाहर ना निकली,ये बात श्यामा की समझ से भी परे थी लेकिन उसने इस बारें में रागिनी से कुछ नहीं पूछा....
और तभी नए जेलर साहब बृजभूषण परिहार जेल में आए और प्राँगण में खड़े होकर उन्होंने सभी महिला कैदियों को सम्बोधित करते हुए कहा...
"कैसीं हैं आप सब,यहाँ आप लोगों को कोई तकलीफ़ तो नहीं है,आप सभी एक एक करके मेरे पास आकर अपना परिचय देकर अपनी अपनी समस्या मुझसे कह सकतीं हैं?"
और इस तरह से एक एक करके सभी महिला कैदी जेलर बृजभूषण परिहार के सामने आकर अपना परिचय देतीं और अपनी समस्या बताती जातीं और जेलर साहब के साथ आया हवलदार उन्हें नोट करता जाता,जब सभी का परिचय हो चुका तो जेलर बृजभूषण परिहार ने सभी से पूछा...
"सभी का परिचय हो चुका,कोई बचा तो नहीं है,आप सभी की समस्याएँ नोट की जा चुकीं हैं और जल्द ही सभी की समस्याओं का समाधान करने की मुहिम जारी होगी"
और तभी महिला हवलदार जेलर साहब के पास आकर बोली....
"साहब! एक कैदी रह गई है"
"कहाँ है वो? उसे जल्दी से मेरे सामने लाओ,हो सकता है कि वो डर के मारे यहाँ ना आ रही हो" जेलर साहब बोले....
"नहीं! साहब! ऐसा कुछ नहीं है,वो तो बड़ी धाकड़ है,जरा सी बात पर मार कुटाई पर आ जाती है,वो किसी से नहीं डरती" महिला हवलदार बोली....
"ओह...तो उसे फौरन यहाँ बुलाओ",जेलर साहब बोले....
और फिर महिला हवलदार रागिनी को बुलाकर जेलर साहब के सामने आई और जैसे ही जेलर साहब ने रागिनी को देखा तो उनके चेहरे का रंग उतर गया शायद वे रागिनी को पहले से पहचानते थे और उन्होंने सबके सामने दिखावे के लिए उससे उसका नाम पूछा,फिर रागिनी ने अपना नाम बताया और जेलर साहब ने उससे उसकी समस्या पूछा तो रागिनी बोली.....
"जेलर साहब! पहले समस्या जरूर थी लेकिन जेल में नहीं जिन्दगी में ,दूसरों के भरोसे नहीं बैठ सकती थी इसलिए अपनी समस्याओं को खुद हल करना सीख लिया है क्योंकि कुछ लोग तो दूसरों को समस्याओं में उलछा हुआ देखकर बीच मँझधार में छोड़कर चले जाया करते हैं और मैं ऐसे लोगों से कोई उम्मीद नहीं लगाया करती",
जेलर साहब ने जैसे ही रागिनी की बातें सुनी तो वे उससे कुछ नहीं कह पाए और हवलदार से वहाँ से चलने के लिए कहा,इसके बाद वे बिना कुछ कहे वहाँ से चले गए....
रागिनी का जेलर साहब के प्रति ऐसा व्यवहार श्यामा भी देख रही थी और जब रागिनी अकेली थी तो श्यामा ने उसके पास जाकर पूछा....
"तुम जेलर साहब को पहले से जानती हो क्या?"
"हाँ! जानती हूँ",रागिनी बोली....
"वो भला कैसें?",श्यामा ने पूछा...
"ये वही इन्सान है जिससे मेरी शादी होने वाली थी और इसके बाप ने जब देखा कि मैं बिलकुल अकेली पड़ गई हूँ तो उसने हम दोनों का रिश्ता तोड़ दिया था",रागिनी बोली...
"ओह....तो तभी जेलर साहब तुम्हें देखकर स्तब्ध रह गए थे",श्यामा बोली.....
"हाँ! यही कारण था कि मुझे देखकर उनके चेहरे का रंग उड़ गया था"रागिनी बोली....
"तो अब क्या करोगी? अब तो उनसे कभी ना कभी तुम्हारा सामना होता ही रहेगा",श्यामा बोली....
"मुझे कुछ लेना देना नहीं है उस इन्सान से,वो मेरे सामने रहे या मुझसे दूर ,मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता" रागिनी बोली....
"ठीक है ! अब तुम शान्त हो जाओ,आज के बाद हम दोनों इस बारें में कोई बात नहीं करेगे,अब तो हमें ये सोचना है कि हम इस जेल से किस तरह भागें,क्योंकि अभी कोई योजना बनाऐगें तभी तो आगें चलकर उस योजना को सफल बना पाऐगें"श्यामा बोली...
"हाँ! अब मैं भी बाहर जाना चाहती हूँ,बहुत दिन हो गए मैंने अपने बेटे को नहीं देखा,उसे देखने का मन कर रहा है"रागिनी बोली...
"तो फिर चलो ना कुछ सोचते हैं ताकि हम इस कैदखाने से बाहर निकल पाएँ",श्यामा बोली...
और इस तरह से श्यामा और रागिनी जेल से भागने के लिए योजनाएँ बनाने लगीं और इधर जुझार सिंह सिनेमाहॉल बनवाने के काम में लग गया,जब भी उसे विचित्रवीर रायजादा की जरूरत पड़ती तो वो उसे वहाँ बुलवा लेता,विचित्रवीर रायजादा बना मोरमुकुट सिंह जुझार सिंह के पास पहुँच तो जाता था,लेकिन वो वहाँ पहुँचकर जुझार सिंह की इतनी बेइज्जती करता था कि जुझार सिंह को अफसोस होता कि आखिर उसने इस खड़ूस को यहाँ क्यों बुलवा लिया,इसलिए अब जुझार सिंह विचित्रवीर रायजादा को बुलवाने से कतराने लगा था,सिनेमाहॉल का काम अब जोरों से चल रहा था,
अब सिनेमाहॉल को बनते बनते चार महीने से ऊपर हो चुका था,इसलिए एक दिन रामखिलावन श्यामा से मिलने जेल पहुँचा और उससे बोला कि जीजी अब तुम्हारा जेल से भागने का समय हो गया है और फिर एक रात श्यामा और रागिनी ने अपनी बनाई योजना के अनुसार जेल से भागने की कोशिश की लेकिन उस दौरान महिला हवलदारों को उन दोनों के जेल से भागने की भनक लग चुकी थी इसलिए वे भी चौकन्नी होकर निगरानी कर रही थीं,श्यामा अब शरीर से कमजोर और बूढ़ी हो चली थी इसलिए वो जेल की दीवार फाँदने में सफल ना हो सकी लेकिन रागिनी अभी जवान थी इसलिए वो दीवार फाँदने में सफल रही और जेल से भाग निकली,
उसके पास रामखिलावन का पता था जो कि श्यामा ने उसे दिया था और वो उन सभी के पास पहुँची और सारी कहानी कह सुनाई,चूँकि रागिनी के बारें में श्यामा पहले ही रामखिलावन को बता चुकी थी और रामखिलावन ये भी पता था कि श्यामा के संग रागिनी भी जेल से भागने वाली है,इसलिए उसने फौरन ही रागिनी को पहचान लिया,हालांकि वो रागिनी से पहले कभी नहीं मिला था....
और अब सभी ये सोच रहे थे कि रागिनी को कहाँ छुपाया जाए क्योंकि पुलिस रागिनी के पीछे पड़ी होगी और तभी दुर्गेश ने फिर से एक उपाय निकाला जिसे सुनकर सभी राजी हो गए कि रागिनी को उधर ही भेज देना चाहिए......
क्रमशः....
सरोज वर्मा....