Antaraman (daily newspaper) - 2 in Hindi Motivational Stories by संदीप सिंह (ईशू) books and stories PDF | अंतर्मन (दैनंदिनी पत्रिका) - 2

Featured Books
  • ખજાનો - 86

    " હા, તેને જોઈ શકાય છે. સામાન્ય રીતે રેડ કોલંબસ મંકી માનવ જા...

  • ફરે તે ફરફરે - 41

      "આજ ફિર જીનેકી તમન્ના હૈ ,આજ ફિર મરનેકા ઇરાદા હૈ "ખબર...

  • ભાગવત રહસ્ય - 119

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૯   વીરભદ્ર દક્ષના યજ્ઞ સ્થાને આવ્યો છે. મોટો...

  • પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21

    સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ...

  • ખજાનો - 85

    પોતાના ભાણેજ ઇબતિહાજના ખભે હાથ મૂકી તેને પ્રકૃતિ અને માનવ વચ...

Categories
Share

अंतर्मन (दैनंदिनी पत्रिका) - 2

🔸संबंध का आधार 🔸


रिश्ता - दो व्यक्ति अथवा प्रिय जनों के प्रगाढ़ भावनात्मक लगाव झुकाव, समर्पण, और स्नेह की परिपाटी पर संबंध स्थापित होता है।

और इसी संबंध को आम बोलचाल की भाषा में रिश्ता कहा जाता है।
मेरी समझ क्षमता के लिहाज से रिश्ते निम्न प्रकार के होते है -
▪️1- ईश्वरीय संबंध -
जो माँ और शिशु का होता है। शिशु जो गर्भ से धरती पर कदम रखता है, और वह अनभिज्ञ अबोध शिशु फिर भी माँ को, उनके सानिध्य को महसूस कर लेता है।
हालांकि यही जब युवा होकर पत्नी प्रेम के वशीभूत माँ बाप को वृद्धावस्था मे दर दर की ठोकरें खाने को विवश कर देता है। सभी एक से नहीं होते ये अलग बात है, किन्तु भारत जैसे सांस्कारिक देश मे ये प्रवृत्ति और बढ़ते वृद्धाश्रम कष्टप्रद और दुःखद हैं।
▪️2-रक्त संबंध -
इस प्रकार के संबंध हमे जन्मजात प्राप्त होते है, जैसे पिता, बहन, भाई, बुआ, चाचा, दादा दादी, मामा मामी, नाना नानी, बहनोई, भतीजा, पुत्र, पुत्री, आदि ।
पति - पत्नी (रक्त संबंध ना होते हुए भी करीबी और विश्वसनीय संबंध होता है, सन्तान प्राप्ति के पश्चात रक्त संबंध मे सम्मिलित हो जाता है।
इनसे हमे विशेष परिचित नहीं होना पड़ता और ना ही बहुत जांच परख की आवश्यकता होती है। यदि कुछ विशेष कारण ना हो तो सम्भवतः ये पीढ़ी दर पीढ़ी चलते है। आधुनिकता के दौर मे अब यह भी पीढ़ी तक सीमित होते जा रहे है।
इनमे जुड़ाव की सबसे कमजोर कड़ी भावना होती है। इस प्रकार के संबंध अधिकतर भावनात्मक कारणों से विखण्डित होते है। इनके अंतर्गत भी पिता भाई, बहन पुत्र पुत्री का संबंध जीवन काल तक होता है।
▪️3- सामाजिक संबंध -
इस तरह के संबंध पास पड़ोस, स्कूल /कालेज /गांव के मित्र होते है, जिनमे से एक आध को छोड़ ज्यादातर बनते बिगड़ते रहते है, अंततः समान्य तरीके से व्यवहारिक हो जाते है।
▪️4-घनिष्ट संबंध -
इस प्रकार का संबंध किसी विशेष नाम से नहीं स्थापित होते। ये विश्वास, स्नेह, विचारों, भावनाओं, गुणों, सोच, जीवन शैली इत्यादि मानदण्डो के पैमाने की कसौटी पर परख कर स्थापित किए जाते हैं। यह संबंध संख्याबल मे अल्प होते है, किंतु विशेष होते है।
▪️5-व्यवहारिक संबंध -इस तरह के संबंधो की बुनियाद तो नहीं होती किंतु अस्तित्व अवश्य होता है। यह कार्यस्थलों, विचार विमर्श, विचारधारा, या व्यवहारकुशलता से स्थापित होते है। इसमे भाषा, संप्रदाय, स्थान कुछ भी मायने नहीं रखता अपितु विश्वास और एक दूसरे का सम्मान भाव नितांत आवश्यक होता है।
यह एक ऐसे संबंध होते है जो आरंभ तो व्यवहारिक होते है किन्तु निरंतर समयांतराल दो रूपों मे सम्मिलित होने की संभावना बेहद प्रबल होती है, जो उपरोक्त व्याख्यायित है 1-सामाजिक संबंध. 2-घनिष्ट संबंध.
और इनका चयन व्यवहारिक तौर से परख के पश्चात ही संभव है।
यह तो मुख्य प्रकार होते हैं।

किंतु एक गौण श्रेणी का उल्लेख करना यहाँ नितांत आवश्यक है, और यह है -

▪️विपरितलिंगाकर्षण संबंध -
इस संबंध के स्थापित होने मे अल्प ज्ञान, उम्र का उन्माद, काम भाव की प्रबलता, और कुसंगति ज्यादा प्रभावी होती है।
यह अधिकांशत: वासनात्मक भाव से प्रेरित होता है, किंतु इसे प्रेम शब्द की उपाधि प्रदान कर पवित्र प्रेम को कलंकित किया जाता है। सच यह है कि यह अनुशासित जीवन की अनुशासनहीन या कहें मर्यादा की लक्ष्मण रेखा पार करने के पश्चात ही सम्भव होता है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव मे यह समाज मे तेजी से फैल रहा है।
और इसमे दोषी कोई एक नहीं अपितु दोनों लिंगी होते है।
कई लोग तो प्रभु श्री कृष्ण के पवित्र प्रेम को इस गंद के पुंज को स्थापित करने के लिए उदाहरण के तौर पर प्रयोग करने से भी नहीं चूकते। 100% मे 3% ही सत्य और वासनामुक्त प्रेम करते है।
यह हमारे समाज मे संबंधो का पतन काल ही कहा जा सकता है कि लिव इन रिलेशनशिप और समलैंगिक संबंधो को भी सहजता से स्वीकृति ही नहीं बल्कि कानूनी जामा पहना कर संरक्षित भी किया जा रहा है।
और इस सामाजिक पतन के परिणाम से आप सभी अनभिज्ञ नहीं वरन् बखूबी परिचित है।

आज इतना ही.......

✍🏻संदीप सिंह (ईशू)