Shmshan in Hindi Short Stories by Ashish Bagerwal books and stories PDF | श्मशान

Featured Books
Categories
Share

श्मशान

विरासत में मिले धन को तो समस्त भाई - बहनों ने बराबर बांट लिया लेकिन विरासत में मिली सेवा को कोई भी नहीं बांट सके, सभी को अपना समझने वाले कुंदन लाल जी की स्थिति आज यही थी।
कुंदन लाल जी बड़े ही सक्षम ,समझदार और सुलझे हुए व्यक्ती थे, कोई भी उनकी बिना प्रशंसा किए हुए नहीं रह सकता था। करोड़ों का देश-विदेश में सोने चांदी का व्यापार था और अन्य कारोबारों में भी उनका अच्छा खासा सिक्का चलता था, परंतु सक्षमता के पीछे कुछ ना कुछ कमी जरूर थी। जीवन के 30 वर्ष ही बिते थे की अल्पायु में ही उनकी पत्नी स्वर्गवासी हो गई और साथ में छोड़ गई तन्हाई और चार संताने( तीन पुत्र और एक पुत्री)।
मात-पिता दोनों का प्यार कुंदन लाल जी द्वारा ही बच्चों को प्राप्त हुआ, वह पुनर्विवाह के बिलकुल खिलाफ थे।
समय बितता गया और बच्चे पढ़ाई पूरी करके पिता का बिजनेस संभालने लगे, समय बीतने से पूर्व बच्चों का विवाह करवा दे अन्यथा लोग क्या कहेंगे यह सोचकर उन्होंने बच्चों का विवाह बड़ी धूमधाम से करवा दिया।
बचपन में ही मात - पिता का साया सर से हट जाना और जवानी में पत्नी का चला जाना कोई छोटी बात नहीं थी पर दिल पर पत्थर रखकर जीने वाले कुंदन लाल जी अचानक कुछ चिंतित दिखने लगे, कारण था उनकी संताने चाहती थी कि वह छोटे शहर से निकलकर बड़े शहर में अपना व्यापार बढ़ाये तथा उनके साथ उनके पिताजी भी बड़े शहर आए।
कुंदन लाल जी का व्यापार के साथ-साथ शहर से भी काफी लगाव था उनकी बचपन की यादें जवानी के किस्से और बुढ़ापे की अनुभवशीलता इसी शहर से जुड़ी हुई थी।
अंत में उन्होंने निश्चय किया कि वह अपने बच्चों के साथ अन्य शहर में न जाकर इसी शहर में आखरी सांस तक रहेंगे, किंतु जब उन्हें लगा कि उनकी वजह से बच्चों को बुरा ना लगे तो उन्होंने बच्चों को भी जाने से मना नहीं किया।
कुंदन लाल जी को दिन प्रतिदिन अकेलापन काटने लगा तथा धीरे-धीरे वह मौत की नींद में सोते चले गए। रविवार के दिन कुंदन लाल जी ने अपने नौकर से कहा कि उनके बच्चो को फोन लगाए और उनसे कहे कि उनके पिताजी की जीवन लीला समाप्त होने वाली है उससे पहले उनसे मिलने आए। बच्चों को जब इस बात की खबर हुई तो वह तुरंत ही वहां पहुंच गए परंतु जब वह वहां पहुंचे तब तक उनके पिताजी की मृत्यु हो चुकी थी।
पिता के अगल-बगल बैठकर तीनों बेटे - बेटी और बहुएं मातम मनाने लगी, बच्चे उनके आज्ञाकारी थे परंतु वह पिताजी की भावनाओं को नहीं समझ सके।
नौकर जब आया और उसने एक चिट्ठी उनके बच्चो को थमाई, तो बच्चों के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
चिट्ठी में लिखा हुआ था - मैं जिंदगी भर काम कर भी वह जमीन नहीं खरीद पाया जिसमें में जिंदगी के कुछ पल और रूक सकूं, मौत बेचकर के मैं यूं हंस कर के जिंदगी जी सकूं।
शमशान है जिंदगी मेरी मौत तो एक सौदा हैं
पक्का व्यापारी हूं मैं बच्चो यही तो मेरा औदा है।