Asamartho ka bal Samarth Rmadas - 23 in Hindi Biography by ՏᎪᎠᎻᎪᏙᏆ ՏOΝᎪᎡᏦᎪᎡ ⸙ books and stories PDF | असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 23

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असमर्थों का बल समर्थ रामदास - भाग 23

उत्तम लक्षण सार:
एक सज्जन इंसान बनने के लिए कौन से गुण, कौन सी आदतें आवश्यक हैं, कौन से आदर्श हैं, यह समर्थ रामदास इस भाग में बताते हैं। ये गुण इंसान के आध्यात्मिक विकास के लिए भी आवश्यक हैं। जब हम अपने अवगुणों को स्वीकार करके उन्हें बदलने का निश्चय करते हैं तो यह आध्यात्मिक उन्नति का पहला कदम बन सकता है।

आत्म-अवलोकन अध्यात्म का सबसे महत्वपूर्ण विषय है। इसके द्वारा अपने अवगुणों को दूर कर, गुणों को अपनाना आसान होता है। ऐसे ही कुछ उत्तम गुण हम इस भाग में जानेंगे, जो व्यवहारिक जीवन के साथ आंतरिक विकास में भी काम आएँगे।

* बिना रास्ते की पूरी जानकारी लिए सफर के लिए न निकलना उत्तम लक्षण है।

* बिना जानकारी का (अपरिचित) फल न खाना, पथ पर पड़ी अपरिचित चीज़ न उठाना उत्तम लक्षण है।

* वाद-विवाद के प्रसंग से दूर रहना उत्तम लक्षण है।

* चरित्र की जानकारी लिए बिना किसी से संबंध (रिश्ता) न बनाना उत्तम लक्षण है।

* सोच-समझकर बात करना उत्तम लक्षण है।

* पूरा सोच-विचार करने के बाद ही कार्य आरंभ करना उत्तम लक्षण है।

* कोई भी कार्य नीति-अनीति का विचार किए बिना न करना उत्तम लक्षण है।

* हमेशा अपनी मर्यादा का पालन करना उत्तम लक्षण है।

* ‘जहाँ प्रेम नहीं है, वहाँ क्रोध भी न करना’ उत्तम लक्षण है।

* चोर - बेईमान के साथ जान-पहचान न रखना उत्तम लक्षण है।

* रात को एकाएक सफर के लिए न निकलना उत्तम लक्षण है।

* सादगी भरा व्यवहार करना (निर्मल मन के साथ किया गया व्यवहार) उत्तम लक्षण है।

* ‘गलत मार्ग से धन न कमाना उत्तम लक्षण है।

* नीति का मार्ग न त्यागना उत्तम लक्षण है।

* किसी की निंदा, द्वेष न करना उत्तम लक्षण है।

* गलत लोगों की संगत में न रहना उत्तम लक्षण है।

* दूसरों का धन न लूटना उत्तम लक्षण है।

* वक्ता को सवाल पूछ-पूछकर परेशान न करना उत्तम लक्षण है।

* एक संघ में रहनेवालों में कलह न करवाना उत्तम लक्षण है।

* हर परिस्थिति में अभ्यास न छोड़ना उत्तम लक्षण है।

* झगड़ालू लोगों से वाद-विवाद में न पड़ना उत्तम लक्षण है।

* मन पर हुए अच्छे संस्कार न छोड़ना उत्तम लक्षण है।

* जो अच्छा है, वह सीखने के लिए हमेशा तत्पर रहना उत्तम लक्षण है।

* अपनी शेखी बघारने के लिए झूठ न बोलना उत्तम लक्षण है।

* अच्छे कार्य के लिए 'मैंने किया' बताकर श्रेय न लेना उत्तम लक्षण है।

* दिया हुआ वचन न भूलना उत्तम लक्षण है।

* अपनी शक्ति का उपयोग सही समय और सही जगह पर करना उत्तम लक्षण है।

* अपनी नाकामी के लिए दूसरों पर दोष न लगाना उत्तम लक्षण है।

* आलस का त्याग करना उत्तम लक्षण है।

* चुगली न करना उत्तम लक्षण है।

* कोई भी कार्य पूरी जानकारी लेकर करना उत्तम लक्षण है।

* शरीर को आवश्यकता से ज़्यादा आराम की आदत न डालना उत्तम लक्षण है।

* निरंतर प्रयास करना उत्तम लक्षण है।

* मेहनत करने से न कतराना उत्तम लक्षण है।

* लोगों के सम्मुख अनावश्यक बातें न करते रहना उत्तम लक्षण है।

* ज़रूरत से ज़्यादा चिंता न करना उत्तम लक्षण है।

* मिले हुए उपकार को न भूलना और उसका बदला चुकाना उत्तम लक्षण है।

* किसी का विश्वासघात करके पीड़ा न देना उत्तम लक्षण है।

* अपनी उदारता को न छोड़ना उत्तम लक्षण है।

* आत्मनिर्भर होना उत्तम लक्षण है।

* दुष्ट, दुर्जन इंसान से कर्ज़ न लेना, उसके साथ आर्थिक व्यवहार न करना उत्तम लक्षण है।

* सबूत-गवाह के बिना कोर्ट में न जाना (किसी पर आरोप न लगाना) उत्तम लक्षण है।

* जहाँ हमारी बात का आदर नहीं होता, वहाँ मौन रखना उत्तम लक्षण है।

* अपनी शक्ति का प्रयोग दुर्बलों पर न करना उत्तम लक्षण है।

* ज़रूरत से ज़्यादा खाना-पीना न करना, दुष्ट की संगत में ज़्यादा समय तक न रहना उत्तम लक्षण है।

* अपनी कीर्ति अपने ही मुख से न बताना उत्तम लक्षण है।

* चुगलखोर इंसान से मित्रता न करना उत्तम लक्षण है।

* बिना कामकाज किए बैठ न पाना उत्तम लक्षण है।

* जीवन यापन के लिए पिता पर निर्भर न रहना उत्तम लक्षण है।

* अनीतिपूर्ण आचरण न करना, किसी के पीछे उसकी बुराई न करना उत्तम लक्षण है।

* किसी की मदद करने का अवसर न गँवाना उत्तम लक्षण है।

* जो भूल कबूल करे, उसे क्षमा करना उत्तम लक्षण है।

* अपने से श्रेष्ठों के साथ व्यवहार में मर्यादा का पालन करना उत्तम लक्षण है।

* मूर्खों के साथ मित्रता न रखना उत्तम लक्षण है।

* कामचोरी न करना उत्तम लक्षण है।

* सोच-समझकर ज़िम्मेदारी लेना उत्तम लक्षण है।

* क्षमाशील होना उत्तम लक्षण है।

* गुरु सानिध्य ( गुरु की आज्ञा में) में रहना उत्तम लक्षण है।

* सत्य के मार्ग से न हटना उत्तम लक्षण है।

* नकली अभिमान न होना उत्तम लक्षण है।

जो उत्तम लक्षणों से युक्त नहीं है, वह ‘अवलक्षणी’ (अवगुणी) है, ऐसा समर्थ रामदास कहते हैं। मूर्खलक्षण और पढ़तमूर्ख लक्षणों के साथ इंसान को कैसा नहीं होना चाहिए, यह ज्ञान मिलता है तो उत्तम लक्षण में इंसान को कैसा होना चाहिए, इसका आदर्श हमारे सामने आता है। यदि आपमें उत्तम लक्षण हैं तो उन्हें बढ़ाएँ और यदि नहीं हैं तो उन्हें अपनाकर अपने जीवन को बेहतर बनाएँ।