difficult times in life in Hindi Motivational Stories by संदीप सिंह (ईशू) books and stories PDF | जीवन मे मुश्किल वक्त

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जीवन मे मुश्किल वक्त

जीवन मे मुश्किल वक्त

मातृभारती परिवार के सभी सम्मानित सदस्यों को प्रणाम, आज दो बातें कर लूं आप सब से जीवन में मुश्किल वक़्त की......
हम सभी जानते है कि जीवन है तो झंझावात भी है, कभी उतार कभी चढ़ाव.... यही आपा धापी ही जीवन है।


ऐसा भी सम्भव नहीं की हमेशा वक्त बढ़िया ही हो, सरल हो, जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते है, ठीक उसी तरह वक्त का भी हाल है... एक ओर सहज सरल सुखमय जीवन और दूसरी तरफ कठिन, मुश्किलों से भरा जीवन।

मुश्किल वक़्त मे अपना धैर्य, आत्मबल और परख इन तीन बातों को याद रखना चाहिए ।
अब लाख टके का सवाल यह है कि मुश्किल वक्त (समय) मे कौन सी बात याद रखनी चाहिए?
बड़ा आला दर्जे का सवाल है।

हमारे बुजुर्गों ने मुश्किल वक्त मे जीने के लिए सुझाया है कि,

" आफत काल (विपत्ति काल) परखिये चारी (चार), धीरज, धरम, मित्र अरु (और) नारी। "

अर्थात मुश्किल वक़्त मे अथवा विपत्ति काल मे चार लोगों की परख (पहचान) की जाती है,
🔸धीरज - स्वयं के धैर्य की
🔸धरम - धर्म की (आचरण)
🔸मित्र - सच्चे सखा /मित्र की, और
🔸नारी - अपनी पत्नी की।

इनके साथ और सहयोग से मुश्किल वक्त भी बीत जाता है किन्तु कलयुग के वर्तमान काल जिसे अर्थयुग भी कह सकते है, इसमे अमूमन...

धैर्य तो लगभग डायनासोर की प्रजाति की तरह विलुप्तता की कगार पर खड़ा है, इंसान मे अहम (इगो) इतना हो गया कि धैर्य (संयम) ने तो अपना बोरिया बिस्तर बांधने मे ही भलाई समझी।

धर्म की बात तो धर्म मतलब कंठी माला, टीका, नमाज नहीं आचरण से है, आप का आचरण उत्तम होगा तो विपत्ति मे जीवन आसान होगा, आचरणहीनता से तो आप समाज द्वारा ठुकरा दिए जाओगे तो धर्म भी आप पर ही निर्भर है।
और...

मित्र, स्वार्थ के दौर मे जहां छोटी सी बात पर लोग खून के प्यासे हो जाते है, और खून मे लाल, श्वेत कणो से ज्यादा धोखा, फरेब, चाटुकारिता हावी हो तो, सखा अब कृष्ण - सुदामा सरीखे मिलना तो हाथियों के झुंड मे एक हाथी को लंगोट पहनाने जैसा ही है, हाँ 100% मे एक आध अपवाद हो तो अलग बात है और ज्यादातर स्वार्थ की मित्रता है।

रहीं बात नारी (पत्नी) की तो, पहले खुद के गिरेबां मे झांक कर देखिये , अब इस युग मे जब पुरुष खुद राम नहीं तो नारी से सीता की उम्मीद कैसे?


अब जब कि पाश्चात्य सभ्यता को हमने अंगीकार कर लिया तो, सहज अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की व्यवस्थाओं पर परिचर्चा तो बेमानी ही है।


लिव इन रिलेशनशिप के दौर मे आप उम्मीद करोगे की विपत्ति का भरोसेमंद साथी खोजे तो ये गंजे के सिर पर बालो की लहलहाती फसल की कल्पना जैसा ही है।

मुश्किल हालातों मे भी अपने व्यावहार मे परिवर्तन नहीं करना चाहिए। सबसे पहले समस्याओं से निपटने के लिए स्वयं को सक्षम बनाना चाहिए, क्योंकि जब आप को खुद ही अपने पर भरोसा नहीं होगा तो भला दूसरा कैसे कर लेगा?

हमे बेहतर जीवन के लिए अपने धैर्य और आचरण और खुद पर विश्वास (आत्मबल), को दुरुस्त रखना चाहिए।
यदि आप इसे व्यवस्थित और व्यवहारिक जीवन मे धारण करते है तो सब कुछ सहज होगा।

यदि पति, पत्नी के साथ विश्वास से रिश्ता निभाता है और पीठ पीछे आंख मे धूल झोंक कर विश्वासघात नहीं करता है तो ही पत्नी से उसी भाव की अपेक्षा कर सकता है। यह दोनों (पति /पत्नी) पर लागू होता है।

मित्र भी तीन प्रकार के बनाता है इंसान जीवन मे -
1- समान्य मित्र - समान्य परिचय, मिलना जुलना, जहां सिर्फ यदा कदा बातें होती है।


2- मित्र - जिनके साथ रहता है हंसी ठिठोली, मस्ती करता है।


3- परम मित्र - वह, जिससे अपनी व्यथा, खुशी, समस्या पर विमर्श इत्यादि करता है खुल कर।

तो ऊपर बुजुर्गों के कथनानुसार , जिस मित्र को परखने की बात कही है वो तीसरे क्रम वाले यानि परम मित्र के लिए कहा है।
सच कहूँ तो जीवन मे मुश्किल भरे पलों का आना उतना ही जरूरी है जितना कि किसान के लिए बरसात, क्योंकि फसल की गुणवत्ता इसी से सम्भव है।

विपत्ति के समय मे ही हमे स्पष्ट होता है कि कौन मेरे बारे मे क्या सोचता है, कौन अपना है कौन पराया। कौन आपकी मजबूरी का फायदा उठा रहा है कौन पूरे भाव से साथ खड़ा है।

विपत्ति से सीख ले कर, सबक लेकर भविष्य का निर्धारण करना चाहिए। जिस प्रकार एक चिकित्सक शल्यक्रिया ( ऑपरेशन 🤣) करके विकृति को बाहर कर देता है, ठीक उसी प्रकार मतलबी, स्वार्थी, से लबरेज लोगों को भी जीवन से निकाल कर आगे बढ़ जाना चाहिए।

एक बात बताता चलूँ नहीं लोचा हो जाए गुरु, बुजुर्गों वाली और चिकित्सक वाली बात अपने भाग्यवान, अर्धांगिनी, सोना, बाबू, जानू पर मत आजमा देना वर्ना लेने के देने पड़ जाएंगे 🤣🤣 कोर्ट कचहरी तो है ही, मुए आज भ्रूण हत्या के कारण वैसे भी कई राज्यों का महिला पुरुष दर बिगड़ चुका है, जो है उसका सम्मान करो।


विपत्तियों से तो जैसे तैसे निपट लोगे, विपत्ति काल से निपटने परखने के चक्कर मे विपत्ति मोल मत ले लेना।
वर्ना कई बिना शादी के घूम रहे है, बिना वज़ह सूची मे नाम बढ़ा बैठोगे।

शिक्षित समाज मे उन्नत सभ्यता मे जीने वाले लोगों को अब सरकारों को बताना पड़ रहा है कि "बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ"
जब बेटी नहीं 🤱पैदा करोगे तो बहुएं 👸 कहा से लावोगे। 😇

आज बस इतनी ही तफरी बाकी फिर कभी....
अमां यार मैं भी शादीशुदा हूँ, दूसरों को समझाने के चक्कर मे घर के मधुमक्खी के छत्ते मे हाथ डाल बैठूंगा, जब मेरी धर्मपत्नी कभी पढ़ेंगी।

खैर जीवन मे बिना हताश 🧎हुए, निरंतर आगे बढ़े🚶, मुश्किल वक़्त भी कट जाएगा।

और अंत मे कट जाएगा सफर साथ चलने से, कि मिल जाएंगी मंजिले 👫साथ चलने से।
अब दे अनुमति ताकि मैं भी की पैड को विराम दूँ।


🙏🏻
✍🏻 संदीप सिंह (ईशू)