Drashtikon - 3 in Hindi Love Stories by Radha books and stories PDF | दृष्टिकोण - 3

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दृष्टिकोण - 3

अवि करन के घर के बाहर खड़ा होकर दरवाजे की घंटी बजाता है अंकल जी दरवाजा खोला कर कहते है - अवि हो ना ??
अवि - जी अंकल जी ।
अंकल जी - करन अभी भी ऊपर कमरे में ही है किसी से बात नही कर रहा है तुम्हारा दोस्त है तुम्हारी बात मान जाए तो उसे समझाओ और नीचे ले कर आओ।
अवि - हां, मै लेकर आता हु।
जाते हुए अवि को पीछे से आवाज लगाते हुए अंकल जी कहते है - उसका ध्यान रखना।
अवि जाते हुए - जी अंकल जी, प्यार से समझाऊंगा।
अवि कमरे मे जाता है करन बिस्तर के कोने में बैठा हुआ था और उसके पास उसके दोस्त जीत और अमर बैठे हुए थे वो दोनो अवि के भी फ्रेंड्स है चारों का एक ग्रुप है। अवि अंदर जाकर करन के सामने बैठ जाता है। और कहता है - क्या है, क्या हुआ है ?
करन - कुछ नहीं।
अवि - कुछ नहीं ??
करन - नही।
अवि - तो यहां ऐसे किसी की मैय्यत में बैठा है
करन - तनु ने मुझे छोड़ दिया उसने कहा कि मैं उसके लायक नहीं हु।
अवि - तूने गलत सुन लिया होगा उसने कहा होगा कि वो तेरे लायक नहीं हैं तू तो कितना हैंडसम है और वो छछुंदर जैसी।
करन - पर वो कितनी खूबसूरत है।
अवि - प्यार में सब खूबसूरत लगते है।
अवि जीत और अमर की ओर देखता है जीत अमर से धीरे से कान में कहता है - अवि कितना फेक रहा है तनु तो बहुत खूबसूरत है।
अवि उन्हे नजरअंदाज करते हुए - तू तो होसियार समझदार लड़का है ना और वो छछुंदर जैसी पागल मंदबुद्धि लडकी है जो तेरे अंदर छुपी अच्छाई को नही देख सकी।
जीत अमर से धीरे से - वो टॉपर है क्लास की।
करन - जैसे भी है अच्छी लगती हैं मुझे।
अवि - अरे !!!! तुझे हुआ क्या है प्रोब्लम क्या है तेरी ??
करन - मै उससे बहुत प्यार करता हूं उसके बिना एक पल भी नहीं सोच सकता हूं, जब भी सोचता हूं दिल बहुत दुखता हैं मन करता है मर जाऊ वो नही तो मैं भी नहीं हु। पूरी दुनिया खाली खाली लगती हैं सब व्यर्थ लगता हैं जीने का कोई मकसद ही नजर नही आ रहा किसी में मन ही नही लगता , तुम सब एक बार यहां से चले जाओ मैं भी चला जाऊंगा दुनिया से ( जोर जोर से रोने लगता हैं ) ।
जीत और अमर उसे चुप करने की कोशिश करते हैं अवि बिना कुछ बोले चुप चाप कमरे से बाहर निकल जाता है सबको लगता हैं कि वो चला गया है अंकल जी भी अवि कहकर आवाज लगाते हैं लेकिन वो बिना कुछ बोले चला जाता है।

कुछ देर बाद....

अवि दरवाजे से अंदर आता है उसके हाथ में रस्सी थी और जेब में कुछ छुपा रखा था सामने बैठे अंकल जी कहते हैं - क्या करना चाहते हो ?
अवि - कुछ नहीं अंकल जी आप बेफिक्र बैठिए हम अभी आते हैं अंकल जी - उसका ध्यान रखना।
अवि - जी जरूर।
अवि कमरे मे जाता है और बिना किसी से कुछ बोले पंखे के फंदा तैयार करने लगता हैं और तैयार करके करन की तरफ देख कहता है - ले लटक!!!
वहां बैठे सभी के होश उड़ जाते है करन के कुछ समझ नहीं आता है माना की उसने मरने की सोच रखा था लेकिन अवि ऐसे आकर बोलेगा की ले लटक इसकी उसे बिलकुल उम्मीद नहीं थी।करन कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है।
अवि करन से दुबारा कहता है - ले भाई , लटक जा !
करन से सब्र नहीं होता है और कह देता है - क्या कर रहे हो अवि, मजाक है क्या लटकना।
अवि - नही, बिल्कुल नहीं ।
करन - तो ये क्या कर रहे हो ?
अवि - तुम भी तो यही करने वाले थे।
अवि जीत और अमर की ओर इशारा करके कहता है - उठाओ इसे !
दोनो उठ कर करन को बाजुओं से उठाने लगते है।
करन - मै नही लटकूंगा।
अवि - मरना का इरादा कर ही लिया है तो हमारे सामने मरो, जाने का इंतजार क्यों कर रहे हो। हम कुछ नहीं बोलेंगे बस मरते हुए देखेंगे और मरने में थोड़ी बहुत मदद करेंगे।
करन दोनो से अपना हाथ छुड़ाने कि कोशिश करता है लेकिन दोनो उसे खड़ा कर ही देते हैं बस अवि के फंदा लगाने की ही देर थी करन बार बार मना करता है तो अवि कहता है - ठीक है, ऐसे मत मर तू बैठ।
ऊपर छत पर से इतनी आवाजे आते देख अंकल जी घबराहट से भरी आवाज लगाते हैं - करन बेटा, सब ठीक है ना ??
अवि - जी अंकल जी, सब ठीक है।
करन को आराम से बिस्तर पर बैठा कर अवि अपनी जेब से चूहे मारने की दवाई निकलता है और करन को दे कर कहता है - ले, ये ले और एक ही सांस में खा जा।
अवि करन की ओर देखता है करन उसे बिना पलक झपकाऐ घूर घूर कर देख कर था उसके चेहरे में बहुत गुस्सा था लेकिन अवि एकदम शांति से कहता है - खा भी जा
करन - पागल !!
अवि - तू पागल।
करन कुछ नहीं बोलता है अवि फिर जेब मे हाथ डालता है और चाकू निकाल कर कहता है - नस तो तू काट ही ले ।
करन - अरे, पागल कही का।
जीत और अमर अवि को देख बस यही सोच रहे थे कि आज अवि ने केसे भी करके करन को मारने का फुल इरादा कर ही लिया है
अवि- ये भी नहीं, तो चल उठ और उस बालकनी से नीचे कूद जा ।
करन - कैसी बातें कर रहा है।
अवि - कुछ नहीं होगा बस हो सकता है की एक टांग टूट जाए या हाथ टूट जाए या फिर चेहरा फुट जाए।
करन - पागल जैसी बाते मत कर।
अवि - पागल जैसी बाते तो तू कर रहा है 3 दिनो से अंकल जी को परेशान करके रखा है ना कुछ बोलता है और ना खाना खाता है टेंशन दे रखी है बस, तुझे पता है वो तेरी वजह से ठीक से सोए नही है खाना भी नही खाते हैं मुरझा गए हैं तेरी वजह से 3 दिन से नोकरी पर भी नहीं जाते है यही सोच कर डरते हैं कि कुछ कर ना ले और तू पागल अकेला है तो ऐसे परेशान करेगा उन्हे। तुझे तो उस लड़की की पड़ी है जिसको तेरी कोई परवाह नहीं। उसके होने ना होने से तेरी लाइफ में कोई फर्क नही पड़ने वाला, तुझे प्यार करने वाले सब यही है तेरे साथ, वो तो तुझे दिख ही नही रहे हैं और तुझे वो लड़की दिख रही है जिसने जाने से पहले तेरी तरफ मुड़ कर नहीं देखा। अब नीचे जा ओर अंकल जी से माफी मांग और खाना खा।
तीनो अवि की बात सुनते रह जाते है। करन बहुत भावुक हो जाता है और रोने लगता है उसके लगातार आंसू गिर रहे थे। अवि उठता है और दरवाजे के पास जाकर कहता है - ओर हां, अभी भी मरने का इरादा हो तो गुड नाईट तो मत पीना इससे तो मच्छर तक नही मरते तो तू तो कभी भी नहीं मरेगा
इतना बोल कर वो नीचे आ जाता है अंकल जी उससे पूछते है - माना क्या ??
अवि - आप मिल लीजिए उससे।
अवि बाहर चला जाता है अंकल जी उपर जाते है कमरे के दरवाजे पर पहुंचते ही पंखे पर लगे फंदे को देख डर जाते है और फिर उनकी नजर चाकू और चूहे मारने की दवाई पर जाती हैं वे घबराते हुए करन के पास जाते है जीत और अमर बिन बोले कमरे से बाहर निकल जाते है करन पापा को देख जोर जोर से रोने लगता हैं और जोर से गले लगा लेता है और सिसकते हुए कहता है - मुझे माफ कर दो पापा , मै दुबारा आपको परेशान नही करूंगा मैं बहक गया था जो आपको नही देख पाया, आपके होते हुए मुझे कोई नहीं चाहिए मुझे किसी की जरूरत नहीं है पापा (करन जोर से गले लगा लेता है )।
अंकल जी - मै हमेशा तेरे साथ हु

अगले दिन ... कॉलेज में....

श्वेता और रावी क्लास में बैठे हुए थे सब टीचर के आने का इंतजार कर रहे थे श्वेता नोट बुक में देख रही थी दरवाजे से किसी के आने का अहसास होता है वो अपनी नजरे उठा कर दरवाजे की तरफ देखती है वहां बहुत ही हैंडसम लड़का खड़ा था और वो भी उसे ही देख रहा था उसे अपनी ओर देखते देख श्वेता घबरा जाती हैं और नजरे चुराने लगती है तभी क्लास में टीचर आते हैं और उसका परिचय देते हुए कहते है - ये यश है आज से यश आप सब के साथ ही पढ़ेगा साथ मिल कर पढ़ाई करना ।
टीचर यश की ओर देख कहते है - जाओ यश, जाके बैठ जाओ।
यश आगे बढ़ता है बीच बीच मे उसकी नजर श्वेता की ओर जाती हैं जो सामने की ओर देख रही थी। यश अपनी जगह जाकर बैठता है वो श्वेता की चेयर के दाई ओर से तीसरे न. की थी श्वेता यश की ओर देखती है उसी समय उसकी नजर भी श्वेता पर जाती हैं श्वेता उसकी आंखो में देखते देखते अचानक से कही खो सी जाती है रावी उसे हाथ लगाते हुए कहती है - क्या हुआ श्वेता, कहां खो गई ?
श्वेता अपनी नजर उस पर से हटा कर कहती है - कही नही ।
रावी - तुम यश को जानती हो।
श्वेता - नही, पर देखा देखा लग रहा है।
रावी - कितना हैंडसम है ना वो।
श्वेता का ध्यान अभी भी यश की ओर ही था तो वो अचानक से कह देती हैं - हां, बहुत
रावी ( चौकते हुए) - क्या , क्या कहा तूने ?? तुम ऐसा कभी कहती नही हो।
श्वेता - इतना भी हैंडसम नही है एक दिन पहले भी देखा था उसे कॉलेज में, तब तो ऐसा कुछ नहीं लगा था।
रावी - तुम मिली थी यश से??
श्वेता - मिली नही थी बस कॉलेज में देखा था।
रावी - अच्छा
श्वेता - लेकिन पता नहीं क्यों आज उसका देखना बहुत अजीब एहसास दे रहा है। उसका मुझे ऐसे देखना जैसे......
रावी - जैसे बहुत दिनो बाद उसे देखा हो जिसे देखने के लिए आंखे तरस गई हो।
श्वेता - हां, ....... नही, क्या बोल रही हो।
रावी - देखो ना कितना हैंडसम है।
श्वेता इस बार उसकी ओर नही देखती है और पढ़ाई में ध्यान देने लगती हैं और क्लास खत्म होती हैं

क्रमश: ........