आज के दैनिक समाचार जगत के साप्ताहिक स्तम्भ ढूँढाड़ के सर्जक में प्रकाशित मन को झकझोरने वाली तथा असंगतियों पर प्रहार करने वाले व्यंग्य लेखन रचनाकार, शब्द शिल्पी : यशवंत कोठारी आलेख शेयर कर रहा हूँ । आपकी सुविधा के लिए लेख की ट्रांसक्रिप्ट भी साथ में भेज रहा हूँ । पढ़ें और आनन्द ले ।
सादर,
राकेश जैन कोटखावदा
मन को झकझोरने वाली तथा असंगतियों पर प्रहार करने वाले व्यंग्य लेखन रचनाकार, शब्द शिल्पी : यशवंत कोठारी
राजस्थान किलों और विरासत के रूप में तो प्रख्यात है ही, यह कई धार्मिक सम्प्रदायों और उनके श्रद्धेय व पवित्र तीर्थस्थलों का घर भी है। जब मुग़ल बादशाह औरंगजेब अपनी धर्मांधता और सत्ता के मद में आकर हिन्दू मन्दिरों को तहस-नहस करने लगा। तब मेवाड़ के महाराणा द्वारा चुनौती स्वीकारने के बाद ब्रजभूमि छोड़कर भगवान श्रीनाथ भी मेवाड़ पधारे। अरावली की गोद में बनास नदी के किनारे राजसमन्द जिले में स्थित नाथद्वारा में स्थापित भगवान श्रीनाथजी के विग्रह को मूलरूप से भगवान कृष्ण का ही स्वरूप माना जाता है। श्रीनाथजी मन्दिर में भगवान कृष्ण सात वर्षीय 'शिशु' अवतार के रूप में विराजित हैं। नाथद्वारा के कीर्तन और कीर्तनकार, मीनाकारी और चित्रकारी, साड़ियां या आभूषण, सभी कुछ अनोखे है। नाथद्वारा शैली चित्रकला का कमल वन, नंदन कानन राजपूत शैली, मेवाड़ शैली, किशनगढ़ शैली का अनोखा कोकटेल है।
इसी धर्मनगरी नाथद्वारा निवासी सोहनलाल कोठारी एवं श्रीमति गोपी बाई कोठारी के यहाँ 3 मई, 1950 को सात भाई बहनों में सबसे बड़ी दो बहनों के बाद यशवन्त कोठारी का जन्म हुआ। इनसे छोटे चार भाई ओर है। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा राजकीय बहुउद्देशीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, नाथद्वारा में हुई,जहाँ से सन् 1966 में इन्होंने हायर सेकेण्डरी परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1969 में यशवन्त ने राजकीय महाविद्यालय, नाथद्वारा से बी.एससी. परीक्षा पास कर राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से रसायन विज्ञान में एम.एससी. की उपाधि ली।
एम.एससी. करते ही ये राजकीय महाविद्यालय डीडवाना में अस्थाई लेक्चरर बन गए । इनकी सन् 1972 में आयुर्वेद कॉलेज उदयपुर में रसायन शास्त्र के व्याख्याता पद पर नियुक्ति हो गई। ये यहां 1979 तक सेवारत रहे। 1979 में यशवन्त कोठारी ने राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर में केमिस्ट्री (रसायन विज्ञान) विषय के एसोसिएट प्रोफेसर पद पर कार्यारंभ किया। यशवन्त कोठारी राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर में 2008 तक कार्यरत रहे।सितम्बर,2008 में इन्होंने स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और विपुल स्वतन्त्र लेखन में सक्रिय हो गए।कागज-कलम और कम्प्यूटर की दुनिया में जम गये ।
जीवन के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण रखने वाले यशवन्त का विवाह चित्तौड़गढ़ जिले के भदेसर निवासी चौथमलजी गेलडा एवं श्रीमती कस्तूर बाई गेलडा की सुपुत्री मुन्ना से 22 मई,1974 को सम्पन्न हुआ। इनके दो पुत्र एवं एक पुत्री है। सबसे बड़े पुत्र बुद्धि प्रकाश बैंगलोर में एवं सबसे छोटे पुत्र यशपाल गुड़गांव में सोफ्टवेयर इंजीनियर हैं एवं बीच की पुत्री दीपाली नवनीत जैन सोफ्टवेयर इंजीनियर के साथ विवाह के बाद अभी अमेरिका (यूएसए) में रह रही है।
उदयपुर आयुर्वेद कॉलेज में यशवन्त कोठारी को स्थायी प्राध्यापकी मिलने के बाद अखबार, पत्रिकाएं खरीदने और संग्रह करने का शौक लग गया। पढ़ते-पढ़ते ही इन्हें लगा कि ऐसी रचनाएं तो वे भी लिख सकते है। लिखने का प्रयास किया और 1974 में एक लघु व्यंग्य 'धर्मयुग' में भेज दिया। पहले प्रयास में ही इनकी रचना 'धर्मयुग' में छप गई। इनकी दूसरी रचना 'सारिका' में प्रकाशित हुई। यह थी उनकी लिखने की शुरुआत और उससे उपजी धुन। और जब जुनून सवार हुआ तो इन्होंने खुद को भावी साहित्यकार मान निरन्तर लिखने में रम गये।इन्हें साहित्य का चस्का लग गया। ये पढ़ते, लिखते और रचना भेजते। लिखने के बाद बार-बार पढ़ते, काटते और फिर लिखते। पत्र-पत्रिकाओं से रचना अस्वीकृत होने पर सुधार किये। जयपुर आने के बाद इन्होंने अपनी पहली व्यंग्य पुस्तक 'कुर्सी सूत्र' स्वयं ने प्रकाशित की। दूसरी तीसरी पुस्तक प्रकाशकों ने छाप दी। पुस्तकें बिक गई तो यशवन्त ने पहली बार एकमुश्त रायल्टी का स्वाद चखा।
व्यंग्य वह तिलमिलाहट है, जो आपको अंदर तक छेदकर आर-पार निकल जाने की क्षमता रखता है। व्यंग्य की एक विशेषता यह है कि उससे हास्य व क्रोध दोनों उत्पन्न किये जा सकते हैं। गिरते मानव-मूल्यों व अमानवीय स्थिति को व्यंग्य उकेरता है। कला की उम्दा समझ रखने वाले यशवंत कोठारी के व्यंग्य आज की भौतिकवादी मानसिकता पर जमकर प्रहार करते हैं और आत्मचिंतन करने पर मजबूर करते हैं कि आखिर यह प्रवृत्ति हमें कहाँ ले जाएगी। पाठक यशवंत की रचनाओं को पढ़कर मुस्कुराते हैं, सोचने लगते हैं, तिलमिला जाते हैं या लोटपोट हो जाते है।
यशवन्त कोठारी का प्रथम प्रकाशित व्यंग्य संकलन 'कुर्सी सूत्र' दो भागों में है, पहले भाग में चार एकांकी और दूसरे भाग में पन्द्रह व्यंग्य रचनाएं हैं। पहले भाग की रचनाएं राजनैतिक और शैक्षणिक विद्रूपताओं को चित्रित करती है। दूसरे भाग में विषयों की व्यापकता के साथ व्यंग्यकार ने समाज की बहुआयामी विसंगतियों पर पेना प्रहार किया है। 'कुर्सी सूत्र' के बाद इनका व्यंग्य संकलन 'हिन्दी की आखरी किताब' में कसावट लिए हुए अत्यंत प्रभावशाली रचनाएं हैं। इस संकलन की रचनाओं में व्यंग्य का तेवर और अधिक प्रखर हुआ है। 1996 में यशवन्त कोठारी की प्रकाशित व्यंग्य पुस्तक 'मास्टर का मकान' से व्यंग्य साहित्य की दुनिया में धमाका हुआ था। इसमें 45 व्यंग्य है और सभी एक से बढ़कर एक। इस पुस्तक पर इन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी का कन्हैयालाल सहल पुरस्कार मिल चुका है।
व्यंग्य-लेखन में एक नई विधा और शिल्प को उकेर कर अपनी पहचान बनाने वाले यशवन्त कोठारी की गुदगुदाने वाली सशक्त व्यंग्य रचनाओं के प्रकाशित संकलन है - यश का शिकंजा, अकाल और भेड़िये, राजधानी और राजनीति, दफ्तर में लंच, मैं तो चला इक्कीसवीं सदी में, नोटम नमामी एवं रिश्वत महारानी की जय - इन व्यंग्य संकलनों के अलावा 'असत्यम अशिवम असुन्दरम' व्यंग्य उपन्यास है। सफल व्यंग्य लेखक, कार्य-विषय और शैली दोनों दृष्टियों में सफल यशवन्त कोठारी में सम सामयिक व्यवस्था की समझ तथा उसमें पल रही विसंगतियों को कुचलने हेतु जन संघर्ष की पहचान है। इनमें विषय को ढूँढने की क्षमता है। यशवन्त कोठारी शिक्षक, लेखक, घुमक्कड़, उपन्यासकार, सामाजिक कार्यकर्ता, व्यंग्यकार मने क्या नहीं है। मतलब बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं।
यशवंत कोठारी ने बातचीत में सुप्रसिद्ध साहित्यकार शरद जोशी के बारे में यूं बताया - वे 1977 की सर्दियों के दिन थे। शरद जोशी किसी कवि सम्मेलन के सिलसिले में उदयपुर आए और एक होटल में ठहरे हुए थे। मैं उनसे मुलाकात करने होटल में ही पहुंचा। मेरा नाम सुनते ही शरद भाई तपाक से बाहर आए और गर्मजोशी से मिले। उन्होंने कहा- ‘यार पार्टनर, तुम्हारा नाम तो जाना-पहचाना है।’ मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि देश का लब्ध-प्रतिष्ठित लेखक मुझे जानता है। बातचीत के दौरान उन्होंने उदयपुर-दर्शन की इच्छा व्यक्त की। होटल से हम दोनों सिटी पैलेस, म्यूजियम, सहेलियों की बाड़ी, फतेहसागर घूमने करने निकल पड़े। दाल-बाटी की संगत की। उन दिनों वे ‘उत्सव’ फिल्म के संवाद लिख रहे थे। घूमते हुए वे वसंत सेना पर बड़ी बेबाक टिप्पणियां करते रहे। वसंत, होली आदि भी वे लगातार बोलते रहे। मैं उनकी बातें सुनने का लाभ लेता रहा। कवि सम्मेलन में जाते-जाते शाम तक ठंड बढ़ने की संभावना थी, इसलिए उन्होंने एक शाल मंगवा ली। उनसे इस पहली मुलाकात के कुछ समय बाद मैं मुंबई गया। वहां मानसरोवर होटल में एक बार फिर उनसे मुलाकात हुई। बातचीत हिंदी व्यंग्य लेखन और नाटकों पर चल पड़ी। उन्होंने कई मित्रों पर बड़ी आत्मीयतापूर्ण टिप्पणियां कीं। वे मेरी पुस्तकों, रचनाओं की यदा-कदा प्रशंसा और कई बार कठोर समीक्षा भी करते थे। उनसे तीन-चार बार की मुलाकात में ही मुझे लग गया था कि मैं उनसे काफी कुछ सीख सकता हूं। लेकिन घड़े में घड़े जितना ही समाता है।
इन्हें सन् 1999-2000 में राजस्थान साहित्य अकादमी का कन्हैयालाल सहल पुरस्कार 'मास्टर का मकान' शीर्षक की व्यंग्य पुस्तक पर मिला है। 1996 के साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित यशवन्त कोठारी के तीस से अधिक पी.एच.डी./डी. लिट् शोध प्रबन्धों में विवरण - पुस्तकों की समीक्षा आदि सम्मिलित हैं। ये जर्नल ऑफ आयुर्वेद तथा आयुर्वेद बुलेटिन के प्रबन्ध सम्पादक रहे हैं। वे कई राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भाग ले चुके हैं। यशवन्त कोठारी 'नई गुदगुदी' मासिक के वर्षों तक मानद सहायक सम्पादक रहे हैं। दिसम्बर 2013 से मई 2014 तक अमेरिका के 10 विश्वविद्यालयों में विदेशों में हिन्दी के पाठ्यक्रम पर चर्चा हेतु भ्रमण पर रहे। सन् 2019-20 में पुनः अमेरिका की यात्रा की। यशवन्त कोठारी 2017, 2018, 2019 एवं 2020 में पद्मश्री हेतु नामित रहे हैं, यह गृह मंत्रालय की साईट पर देखा जा सकता है।ये राजस्थान साहित्य अकादमी की कमेटियों में छह वर्षों तक रहे हैं।कोठारी भारत सारकार की राजभाषा -–हिन्दी समिति के चार वर्षों तक सदस्य के रूप में ग्रामीण विकास मंत्रालय में रहें . उन्होंने विश्व कविता समारोह अहमदाबाद २०१७ में भाग लिया .वे फेस बुक पर साहित्यम् मासिक के संपादक रहे हैं.
उनकी कुछ पुस्तकें इंग्लिश में भी छपी है .श्री नाथद्वारा –श्रीनाथजी पर लिखी उनकी पुस्तक इस विषय की अकेली पुस्तक है.भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता नामक पुस्तक भी इस विषय पर लिखी गई इकलौती पुस्तक है.कोठारी अभी भी निरंतर लिख रहे हैं.वे सर्जन रत रहे ऐसी कामना है .
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