unknown love in Hindi Love Stories by Ashutosh Mishra books and stories PDF | अनजान इश्क

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अनजान इश्क

काफी देर तक चुप रहने के बाद
तुम सच में जा रही हो??
फोन पर दोनो तरफ एकदम सी चुप्पी थी। तब तक पास वाले मस्जिद से अजान शुरू हो चुकी थी। शाम की अजान की मीठी आवाज सच में कितना दिल को छू जाता है न ?? जैसे पहाड़ के टीलों पर से गुजरती सरसराती हवा।🥰
जैसे लगता है कही दूर ढेर सारी दुआए काबुल हो रही हो।
अक्सर दोनो के फोन पर बाते करते वक्त अजान शुरू हो जाया करती थी। प्रेम और प्रीति अजान के टाइम चुप हो जाया करते थे। पर इस वाली शाम और अजान आज थोड़ी निम सी कड़वी लग रही थी। एक दम बेरंग, निरश सा । आज की आखिरी अज़ान थी जो दोनो साथ में सुन रहे थे।ये आज अजान खत्म क्यू नही हो रहा??प्रेम बुदुदाया जा रहा था।
जल्द ये अजान खतम हो जाय तो प्रेम को ढेर सारी बातें करनी थी।
प्रेम फिर से वही दोहराया "प्रिती सच में तुम्हे जाना है??? पर कुछ दिन रुक तो जाओ। देखो ना कल दिवाली है। ऐसा मत करो।

प्रेम और प्रीति एक दूसरे को बहुत दिनो से नही जानते थे,वे यू ही किसी रिलेटिव के यहां शादी में मिल गए थे। .................

वो फरवरी का महीना था। हल्के हल्के चढ़ती गुलाबी धूप की स्वागत और जाड़े को अलविदा कहने का महीना था। मुंहबोली बहन सुरभि की शादी को लेकर घर में चहल पहल सी थी। मेहमानों का आना जाना शुरू हो गया था।रंगबिरंगे कपड़ों से तने हुए पंडाल शूर्य की रोशनी को छान कर नए चुटकुले रंग बिखेर रहे थे चारो तरफ ।

आज सुरभि की हल्दी रस्म है । सबके ड्रेस में एक ही कॉमन है पीला रंग। सब अपने अपने काम में व्यस्त हैं।घर के लड़के भाई बिरादरी वाले साजो सामान बनाने में लगे हुए हैं।
क्या बोलते हैं उसे? आसान कहे तो दीवाल पर अच्छी परदे टांग रहे थे।ताकि फोटो सेशन अच्छा रहे। घर की लड़कियां और उनके दोस्त सब का आना शुरू हो चुका है। सबके सब पीली ड्रेस पहनने से ऐसा लग रहा था जैसे इस फरवरी पूरी सरसों की पीलापन यही छोड़ गया हो।

प्रेम भी यही इधर उधर की कामों में काफी व्यस्त है।फूलों का सजना पूरा हो चुका है।

अरे भाई इस को यहां लगाना है। थोड़ा और पर्दे को यहां तक फैलाओ।
बीच के उपर साइड फूल थोड़ा और लगाओ। कजिन( हनी )बोले जा रही थी।

अभी तक तयारी पूरा नहीं हुआ?6 बजने जा रहे है। जल्दी करो सब।
दूसरी कजिन जोया गुस्से में बोले जा रही थी। इन सबके बीच उनकी सहेलियों की उपस्थिति के साथ उनकी खुसर फुसर की मीठी मीठी कोलाहल सच में अच्छा लग रहा था। पूरा छत गहमागहमी से भरा पड़ा था।

भीड़ के बीच कुर्सी पर अपने पैरो को पैर पर चढ़ाए, हाथों को अपने गालों पर टिकाए चेहरे को उंगलियों से छूती एक हंसती हुई चेहरा। हंसने के साथ दिखती हल्की हल्की छोटी छोटी दांत, थोड़े बिखरे बाल और कुछ बालों का आगे लटकना ।
सच में अजब सी । भीड़ के बीच सबको अलग कर रही थी।
काफी देर बाद प्रेम को दिखाई दी थी वो
देखते ही प्रेम के दिमाग पर एक बर्फ सी नमी सा जम चुका था।उसे कुछ अच्छा सा लगने के साथ ठीक महसूस नही हो रहा था। बार बार कोसीस होती की उस ओर ना देखे पर क्या करे गुड की डाली सी नजरे चली जाती थी ।
प्रेम छत से उतर नीचे की ओर चला गया। वो वहां रहना ही नहीं चाहता था।उसकी नजर उसकी साथ नहीं दे पा रही थी। वो फौरन दुआर की तरफ चला गया।

भाग 1