नीलम कुलश्रेष्ठ
एपीसोड ---1
गुजरात में जो साहित्य महिलायों ने स्वतंत्रता के बाद लिखा गया है, मैं उसकी चर्चा अधिक करना चाहूंगी। क्योंकि दो वर्ष पूर्व मैं एक हिंदी सेमीनार में जाकर आश्चर्यचकित रह गई कि गुजरात में जो हिंदी रचनाकार रच रहीं हैं, उसके विषय में विश्वविद्ध्यालय के हिंदी विभागों को कम जानकारी है। प्रसन्नता की बात ये हुई कि इस सेमीनार में उपस्थित विद्वानों ने महिला लेखन के इतिहास को सहेजने में रुचि दिखाई थी।
सबसे पहले मैं क्षमायाचना कर रहीं हूँ कि ये विवरण पढ़ने में आपको बार बार ये शब्द पढ़ने को मिलेंगे -मैंने ये लिखा,या मैंने ये सम्पादित किया तो कृपया ये मेरा गर्व न समझें। आप जैसे गुजरात के हिंदी विद्वानों को उस साहित्य की जानकारी होनी चाहिए जिसे गुजरात की स्त्रियों ने रचा है, उसमें से कुछ मुख्य धारा से जुड़ा हुआ है।
एक महत्वपूर्ण बात बता रहीं हूँ डॉ.अंजना संधीर ने जो गुजरात की 45 कथाकारों की कहानियों की पुस्तक`स्वर्ण कलस गुजरात` सम्पादित की थी अंजना संधीर ने एक और पुस्तक सम्पादित `स्वर्ण आभा गुजरात` करके गुजरात की 100 हिंदी कवयित्रियों को चिन्हित किया है। इन दोनों में अधिकांश रचनायें स्वतंत्रता के बाद लिखी गईं हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ ने सन 2003 में सुलोचना रांगेय राघव का उपन्यास -`बारी बारणा खोल दो` प्रकाशित की थी। --शायद कुछ लोगों को ही पता हो सुप्रसिद्ध लेखक रांगेय राघव जी की पत्नी सुलोचना का जन्म जूनागढ़, गुजरात में हुआ था। उनके पिता कृष्णस्वामी आय्यंगर जूनागढ़ के नवाब महाबत खां बॉबी के यहाँ कृषि वैज्ञानिक थे। आप जो केसर आम खाते हैं इसे उन्होंने आमों की क्रॉस ब्रीडिंग करके पैदा किया था.नेहरू जी तक विदेश समिट्स में इसकी पेटियां उपहार देने के लिए ले जाते थे। ये मीठी सी बात मुझे पता नहीं लगती यदि सुलोचना जी ने ये उपन्यास स्वतंत्रता के बाद नहीं लिखा होता। मैं इसे पढ़कर चमत्कृत रह गई थी क्योंकि इसमें बोर्डी के आस पास समुद्र तट के आस पास बसे, विशेष रूप से वारली आदिवासियों का बहुत सूक्ष्म वर्णन है। अपने पुस्तक प्रेम के कारण इन के पिता की गहरी मित्रता कन्हैयालाल मुंशी से हो गई थी। वे इतने साहित्य प्रेमी थे कि उनकी चालीस कमरों वाली हवेली में अक्सर साहित्यिक गोष्ठियां होतीं थीं जिसमें भाग लेते थे कवि दलपत राय जी के पुत्र नानालाल, झवेरचंद मेघाणी जी मुंशी जी व उस समय के प्रसिद्द साहित्यकार। ।
गुजरात की प्रथम गुजराती हिंदी कवयित्री थीं बड़ौदा की मधुमालती चौकसी, गुजराती भाषी महिला। है न आश्चर्य की बात. सन 1980 -82 तक इनकी कवितायें` धर्मयुग `में प्रकाशित होती रहीं थीं यानी तबसे गुजरात का महिला लेखन साहित्य की मुख्य धारा से जुड़ गया था। ` मेरी पीड़ा प्यार हो गई, पतझड़ आज बहार हो गई - इनकी पंक्ति से इनका परिचय दे रहीं हूँ.इनका पूरा जीवन इन्हीं पंक्तियों में समाकर रह गया था क्योंकि 1 अक्टूबर 1929 को जन्म लेने वाली मधु बेन सन २०१२ अपनी मृत्यु तक वे रोगिणी ही रहीं। भारतीय आध्यात्म क्या होता है, ये मैंने मधु जी से जाना क्योंकि वे शवासन व अपने आध्यात्मिक रुझान के कारण ज़िंदगी मुश्किलों से जीतती रहीं।
इनको अपने रोग से आध्यात्म से लड़ना सिखाया था चांदोद के एक पंडित महंत ललित किशोर शर्मा जी ने। ये गुजरात की हिन्दी प्रचारिणी सभा के एक संस्थापक थे व सैकड़ों एकड़ की गुजरात के चाँदोद के मन्दिर की जायदाद छोड़ वड़ोदरा में मुंह बोली अपने से बीस वर्ष छोटी बहिन के घर रहने आ गये थे. उन्होंने ही मधु जी को हिन्दी सिखाई व ब्रजभाषा भी।उन दिनों `धर्मयुग `के सम्पादक श्री वीरेंद्र कुमार जैन जी इनकी कवितायें प्रकाशित करते थे। वे इनसे इतने प्रभावित थे कि वे इनसे मिले भी। प्रेम के आध्यात्मिक स्वरुप पर ये कवितायें रचतीं रहीं। कुछ लोग तो इन्हें गुजरात की महादेवी वर्मा भी कहते थे।इनको अपने प्रथम काव्य संग्रह `भाव निर्झर `पर केंद्रीय हिंदी निदेशालय का पुरस्कार मिला था।इनका बेहद महत्वपूर्ण कार्य है घनानंद की प्रेयसी सुजान के मनोभावों पर आधारित बृजभाषा में खंडकाव्य `सुजान की पाती `लिखना।
इस दुर्लभ पुस्तक का परिचय दे दूँ। कवि घनानंद को नवाब ने उनके दरबार की नर्तकी सुजान से प्रेम करने के कारण निकाल दिया था। शायद उनका साहित्य इसी वियोग की व्यथा कथा है। मधु जी ने कल्पना की थी कि तमाम शानो शौकत के बीच एक दरबारी नर्तकी सुजान भी तो उनके वियोग में तड़पी होगी। यदि वह कुछ रचती तो क्या लिखती ? इस खंड काव्य में यही कल्पना है। मैं इसकी बानगी प्रस्तुत कर रहीं हूँ ---
``फूलन में बैठि बैठि शूलन से बात करूँ
ऐसी अनहोनी कबूं न निहारी है।
एक एक आखर में एक एक बूँद भरी
याही तै तो कहों तायें टीसें भरी प्रान की
बाँचि लीजो एक एक पंक्ति सुजान प्यारे
फारि फेंक दीजो नहीं पाती या सुजान की। ``
उनकी मृत्यु के बाद उनके किसी रिश्ते के भाई ने उनकी कविताओं से भरी १०-१२ डायरियां वड़ोदरा से यहाँ लाकर मुझे सौंप दी थीं क्योंकि मधु जी की इच्छा थी कि इनको सम्पादित कर पुस्तकों के रूप में मैं प्रकाशित करवाऊं. अर्थ व्यवस्था वह वे इन्हीं भाई के नाम कर गईं थीं.अब मेरी परीक्षा की घड़ी आरम्भ हुई कि क्या छोड़ूँ ?क्या सहेजूँ ?एक डेढ़ महीने के अथक परिश्रम से मैं तीन पुस्तकों के रूप में उनका सम्पादन कर सकी थी। इन काव्य संग्रहों को मैंने ये शीर्षक दिये जिससे मधु जी के जीवन की झलक मिल सके `मेरी पीड़ा प्यार हो गई `, ` प्रस्तुत हूँ युद्ध करने को मैं, `पीड़ित पायल की रुन झुन `. नमन प्रकाशन दिल्ली ने ये काव्य संग्रह प्रकाशित किये उनकी. जिजीविषा का सम्मान करते हुये, उनका सपना पूरा करते हुये उनकी पंक्तियाँ पढ़ रहीं हूँ
`अनास्था के घटाटोप अन्धेरे को
ध्वस्त कर
सूर्य की पहली किरण की तरह
अवश्य पहुंचूंगी दिलों तक
मैं. `
जब भी स्त्रियां कलम उठातीं हैं तो उनकी कलम इस व्यवस्था से शिकायत करने लगती है. गुजरात की हर महिला रचनाकर की रचनाओं में ये शिकायत या स्त्री विमर्श मिलेगा ही लेकिन मैं गुजरात के प्रथम स्त्री विमर्श कविता संग्रह का नाम लेना चाहूंगी। ये है सन 1991 में प्रकाशित मंजु महिमा द्वारा रचित `बोनसाई संवेदनाओं के सूरजमुखी `. गुजरात की प्रथम स्त्री विमर्श पुस्तक है सन २००२ में प्रकाशित `जीवन की तनी डोर :ये स्त्रियां `जो मेरे आलेख, सर्वे, रिपोतार्ज का संग्रह है। प्रथम कहानी संग्रह हैं रानु मुखर्जी का व मेरा` `हैवनली हैल ` [अखिल भारतीय प्रथम अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरूस्कार से पुरस्कृत ]. मेरे कहने का आशय ये है कि हम जो गुजरात में रच रहे हैं, उसे भारत में पत्रिकाओं, पुस्तकों के माध्यम से पढ़ा जा रहा है। मैं क्योंकि एक औद्दोगिक नगर वडोदरा में रह रही थी इसलिए जो औद्योगिक समस्यायों पर कहानियां लिख रही थी वे साहित्यिक पत्रिकाओं में स्वीकृत नहीं की जा रहीं थीं दो तीन तो हुईं हैं लेकिन मेरी ज़िद थी कि जो मैं युवा वर्ग की मुसीबतें देख रहीं हूँ वही लिखूंगी। जब ऐसी कहानियों का संग्रह आया `शेर के पिंजरे में ` तो आपको जानकार ख़ुशी होगी कि अहिन्दीभाषी प्रदेशों में इसे प्रथम साहित्य गरिमा पुरस्कार, कादम्बिनी कल्ब, हैदराबाद से मिला था। हरियाणा की निधि ब्रार ने अपने कॉर्पोरेट साहित्य के शोध में मेरा कहानी संग्रह लिया है।
मैं फिर `मैं `,मैं `करने के लिए क्षमा मांग रहीं हूँ अपने गुजरात से प्रथम क्लीनिकल ट्रायल की कहानी लिखी गई है `गिनी पिग्स `,ये मेरी ही है.` सरोगेसी व कचरा बीनने वालियों पर लिखी गई कहानियाँ भी इस विषय की आरम्भिक कहानियां हैं। इनके अलावा वरिष्ठ रचनाकार डॉ.सुधा श्रीवास्तव, डॉ.प्रणव भारती, कमलेश सिंह, डॉ.अनु मेहता, मधु प्रसाद, डॉ. प्रभा मुजुमदार, डॉ.नैना डेलीवाला, निशा चंद्रा, कुमुद मिश्रा, कविता पंत की रचनाओं में में स्त्री चिंतन व देश के लिए चिंता साफ़ दिखाई देता है। डॉ आशा सिंह सिकरवार के दोनों काव्य संग्रह में स्त्री दर्द कराहता नज़र आता है।
महिला ग़ज़लकारों की बात की जाये तो अब तक डॉ.अंजना संधीर के तीन गज़ल संग्रह आ चुके हैं `बारिशों का मौसम `,धूप छाँव `और`मौजे -सहर`। गर्व की बात ये है कि इनकी ग़ज़लों की नीरज जी ने भी तारीफ़ की है। डॉ.मालिनी गौतम का `दर्द का कारवाँ `,मरियम गज़ाला का `क्षितिज की देहलीज़ `पर व् लक्ष्मी पटेल `शबनम `का `कागज़ी रिश्ते `एक एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।
स्वर्गीय इंदिरा दीवानने अनेक उपन्यास लिखे थे लेकिन आश्चर्य ये है कि वे साहित्य की मुख्यधारा में क्यों नहीं स्थान बना पाईं थीं। वड़ोदरा की गीतांजलि चटर्जी ने `तीसरे लोग उपन्यास `लिखकर देश को चौंका दिया था क्योंकि ये उपन्यास` गे `पर आधारित था। राजपीपला के राजा मानवेंद्र व ऐसे ही कुछ लोगों से मिलकर प्रमाणिक जानकारी जुटा कर ये लिखा गया था। इनके दो और उपन्यास आ चुके हैं।
डॉ. सुधा श्रीवास्तव, डॉ.प्रणव भारती व नीलम कुलश्रेष्ठ के उपन्यास चर्चित हो रहे हैं। गुजरात विश्वविद्ध्यलय में इन पर शोध आरम्भ हो चुका है। प्रणव जी ने `एक दुनियां अजनबी `व नीना शर्मा हरेश ने `मेरे हिस्से की धूप `उपन्यास लिखकर किन्नर विमर्श में योगदान दिया है। सुलोचना रांगेय राघव के बाद नीलम कुलश्रेष्ठ ने गुजरात की पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास लिखा है `हवा !ज़रा थामकर बहो `. प्रणव जी के उपन्यास `गवाक्ष `को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद पुरस्कार मिल चुका है।मेरे दो अन्य उपन्यासों के नाम हैं --`दहशत `व `पारू के लिए काला गुलाब `
वैसे तो महिला रचनाकार निबंध कम लिखतीं हैं लेकिन हर्ष का विषय है महिला ललित निबंधकारों में डॉ रंजना अरगड़े व नीलम कुलश्रेष्ठ का नाम लिया जा सकता है।जिनके निबंधों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है
डॉ.नैना डेलीवाला की दो अनुवाद की पुस्तकें और समीक्षा के लेखों की पुस्तक `संघर्ष और सृजन के अंतर्द्वंद ` हैं. साहित्य की मुख्य धारा से जुड़ी देल्ही की आलोचक डॉ.मीना बुद्धिराजा अहमदाबाद आकर बस गईं हैं, इनकी दो आलोचना की पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। मैंने साहित्य की स्तरीय पुस्तकों पर समीक्षा `हंस `,`नया ज्ञानोदय ` `वर्तमान साहित्य `व `आजकल `में लिखीं हैं। ये मातृभारती पर ऑनलाइन उपलब्ध हैं। प्रणव जी भी समीक्षा लिखती रहतीं हैं।निशा चंद्रा फेसबुक पर निरंतर महत्वपूर्ण पुस्तकों की समीक्षा लिख रही हैं। इनकी समीक्षाएं अपनी भाषा के कारण चर्चित हो रहीं हैं।
,आनंद की डॉ. अनु मेहता भी सृजनरत हैं। वड़ोदरा से गुजराती भाषी कवयित्री क्रांति कनाटे, डॉ. नलिनी पुरोहित, निर्झरी मेहता, वंदना भट्ट, नलिनी रावल ऐसे नाम हैं जो हिंदी सृजन से बरसों से जुड़े हुए हैं। सभी नाम लेना सम्भव नहीं है।
डॉ.नलिनी पुरोहित ने मालती जोशी जी के उपन्यास को गुजराती में अनुदित किया है। वंदना भट्ट ने क्षमा कौल के उपन्यास को, डॉ. साधना भट्ट ने सुप्रसिद्ध उपेंद्रनाथ रैणा के काव्य संग्रह ` काश्मीर निर्गमन `को गुजराती में अनुदित करके कश्मीर से पंडितों के निष्कासन का दर्द गुजरातियों के विशाल पाठक तक पहुंचाया है। आरती करोड़े ने नीलम कुलश्रेष्ठ के उपन्यास `हवा ज़रा धीमे बहो `व `वड़ोदरा नी नार ` का गुजराती अनुवाद किया है।बहुत सी रचनाकार गुजराती भाषा की पुस्तकों को हिंदी में अनुवाद कर हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रहीं हैं। इसमें प्रमुख हैं डॉ अनु मेहता जिन्होंने पद्मश्री प्रवीण दरज़ी के `पूर्वाभास `काव्य संग्रह का हिंदी में अनुवाद किया है।
मेरा एक लघुकथा संग्रह `रोटी ` प्रकाशित है लेकिन सूरत की पांच पुस्तकों की लेखिका पूनम गुजरानी का उल्लेखनीय लघुकथा संग्रह `तीन, तेरह, तेंतीस `इसलिए है कि इन्होंने मूल लघुकथा के ढांचे आक्रोश, विद्रोह को छोड़कर सकारात्मक लघुकथाएं लिखीं हैं। सुप्रसिद्ध गायिका साधना सरगम का गाया इनका स्वच्छ भारत अभियान पर लिखा गीत यू ट्यूब पर ढाई लाख लोगों ने अब तक देखा है, सराहा है।
श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ
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