सुबह की 8 बजे वाली बस की हॉर्न रेशमा की दिलों को झकझोर दिया करता था। घर जो मैन रोड के करीब था।
उसकी नजर हर आती जाती हुई गाड़ियों में अपनी नैयर जाने वाले लोगों को तलाशती फिरती। पिछले दिनों घर के बाहर भैंसों को चारा दे रही थी तो श्याम जी चाचा और उनके लड़के मिल गए थे।अपने नैयर के लोगों को देख गजब की उत्सुकता जागी थी उस दिन रेशमा के अंतरात्मा में।
उसके नैयर और ससुराल में ज्यादा दूरी नही है फिर भी 10kam रहा होगा। ससुराल में घर शहर को जाने वाली रोड से एकदम सटा हुआ है। हर आती जाती वाहनों की समय सारिणी रेशमा मौखिक याद कर रखी थी।
अरे चाचा !अपनी पल्लू को सीधा करते अपनी शर से घिसकाते रेशमा चिल्ला पढ़ी।
कुछ देर के लिए श्याम चाचा ठिठक कर रुक गए।
चाचा हम बद्रीनारायण के मझली लड़की रेशम ! यही तो ब्याही गई हूं।
झट से पैर छुने के बाद, चाचा नहीं पहचाने??
पहचान लिए बिटिया तुमको ,कैसे नहीं पहचानते ।
तुम्हारी ब्याह के लिए हम और बद्री कई महीनो तक साथ घूमे थे और संयोग देखो यही हुआ ज्वार में ही पास में।
चलिए चाचा घर चलते हैं अंदर
नही बिटिया रहने दे। अबेर हो जाए गा। शाम भी ढलने को आ गई। गाय सब बाहर ही थाने पर ही छोड़ आए है।शहर आए थे ,इनके कुछ पोस्टऑफिस में पैसा के काम से।
बद्री चाचा ने अपने बेटे कमलेश के तरफ इशारा करते हुए कहा।
किसी और दिन आयेंगे ,अब खाली हाथ जाना ठीक नहीं लग रहा।
नहीं नहीं चाचा जाने में देर नहीं होगी । दू पहिया से तो तनिक भी नहीं।
बस थोड़ा देर। तनिक पानी चाय पी लीजिए।
का करत है कमलेश अभी शहर?रेशमा ने पूछा
कौने काम धाम??
हां,दीदी वही रहते है।
हमारे बियाह के टाइम ई 5 या 7 साल का रहा होगा।याद है चाचा जब हम आपके यहां मठ्ठा लेने आया करते थे तो कितना रोता था देख कर।
आज रेशमा को अपनी मायका की हर यादें आंखों के सामने घूर रहा था। इतने सालों बाद नैहर के लोगो का मिल जाने से अपनेपन से तृप्त हो रही थी।सारा नईहर सामने से दिख रहा था।
रेशमा तुम्हारा भी तो गांव गए कई दिन हो गए। श्याम चाचा चाय के घूंट के साथ पूछ बैठे।
हां,चाचा एकबेर अम्मा के काम क्रिया में गई थी। फिर अभी साल भी नहीं लगा की बाबूजी चल पड़े।उसके बाद कहां आना जाना हुआ।
चाचा मां बाबूजी के मर जाने के बाद फिर कौन पूछता है लड़कियों को। बिन बुलाए जाने को मन भी नहीं करता।
दोनो भाई भौजाई सब अपने ही लगन में उलझल हैं लोग।
कहते कहते रेशमा की आंखे डबडबा आईं थीं।
चाचा का हाल है गांव का, सब ठीक है ना।
रेशमा को सब का हाल एक साथ ले लेना था।एक कंठ में सब का हाल चाल पूछे जा रही थी।
श्याम चाचा के आने से लग रहा था जैसे मायका उसके एकदम से करीब हो।
चाचा के बिदा लेने के बाद उसे लग रहा था जैसे सब कुछ चला गया हो उसका उनके साथ।
रात भर उसे अपनी मायका की यादों में नीद भी नहीं आई। मन ही मन सोंची किसी दिन हो आए मायका से, फिर कौन जाय बिन बुलाए।
भाई सब भौजाई के इशारे के मोहताज है।अब तो वहां भौजाई सब की ही चलता होगा।
नहीं, नहीं जाना चाहिए। मन ही मन बुदबुदाए जा रही थी।
अगले दिन जब घाम निकलने के साथ छत पर गेहूं सुखा रही थी तो गोतिनी की बेटी चिल्ला पड़ी
बड़ी अम्मा तोहार गांव वाला 🚌 बस जा रही हैं। देखा तो ठीक 8 बजे थे।
हर रोज वो आने जाने वाली बसों में यही देखती किसी दिन नैहर का कोई मिल जाय। नैहर का तो हर कुछ प्रिय होता है चाहे धूल हो या कोई परिचित।
आशुतोष