you come... in Hindi Short Stories by माया books and stories PDF | तुम चले आओ....

Featured Books
Categories
Share

तुम चले आओ....

सोमेश.....सोमेश......,आवाज़ लगाती हुई कविता बाहर गार्डन में भाग कर आई। रोज़ की तरह आज भी सोमेश अपने खाने का डब्बा घर पर भूल कर जा रहे थे। कविता ऐसे ही पीछे भाग कर सोमेश भाई को ऑफिस जाते हुए सामान पकड़ाती थी।इसे सोमेश भाई की लापरवाही कहा जाए या कविता का प्यार ? चलो जो कुछ भी था मगर दोनों के जीवन की गाड़ी बड़े प्यार से आगे बढ़ रही थी।कविता मंत्रालय में पर्सनल असिस्टेंट के पद पर कार्यरत थी और सोमेश इंजीनियर था। उन दोनो को एक बड़ा ही प्यारा बेटा था वासु। दोनों जी भर कर प्यार लुटाते थे उस पर,बच्चा भी बड़ा प्यारा था।कविता और में बचपन के दोस्त हैं और में जानती थी की वो अपने परिवार की खुशी के लिए लिए बहुत सारे समझोते करती थी।और ठीक भी है।जिंदगी में कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना भी पड़ता है।सोमेश के परिवार का रवैया कुछ खास ठीक नहीं था कविता के साथ पर उसने कभी किसी बात की शिकायत नहीं की,और करती भी किसे सोमेश कुछ सुनने को तैयार नहीं था अपने परिवार वालों के बारे में।कविता अच्छे से सामंजस्य बैठाना जानती थी अतः चुप ही रहती थी। 24फरवरी की बात थी वासु की स्कूल में फुटबाल का मैच था।वासु को उसमें बेस्ट प्लेयर का मैडल मिला था।कविता को छुट्टी न मिलने के कारण सोमेश ही स्कूल गए थे। उस मैच में वासु गिर गया था और उसकी कमर में चोट लग गई थी।उसे हॉस्पिटल ले जाने की बजाय सोमेश भाई उसे घर ले आए और बेड पर लेटा दिया। खुद ऑफिस चले गए,कविता को घर आते आते रात के 9बज गए थे। कविता मेडल देख कर खुश तो हुई परंतु बेटे को इस हालत में देख कर कविता को गुस्सा भी आया सोमेश पर,लेकिन हमेशा की तरह घर में शांति बनी रहे इसलिए चुप रही।रात को 11 बजे सोमेश घर आए तो बेटे ने दर्द की शिकायत की ओर सोमेश भाई ने बिना सोचे कमर पर आयोडेक्स की मालिश कर दी ये कहते हुए की सुबह हॉस्पिटल जायेगे।पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। दूसरे दिन सुबह वासु अपने पैरों पर खड़ा नही हो पाया और न ही चल पाया उसकी रीढ़ की हड्डी में लकवा मार गया था। ये देख कविता और सोमेश के पावों तले जमीन खिसक गई।बहुत इलाज करवाया पर कोई फरक नहीं पड़ा।कविता मन ही मन सोमेश को इसका दोषी मान चुकी थी।सोमेश ने अपने जॉब से रिजाइन कर दिया और घर में रह कर वासु की देखभाल करने लगा परंतु सोमेश की मां और पिता को सोमेश का इस तरह घर रहना अच्छा नहीं लगा ,कविता के जाने के बाद वो रोज़ घर आते और सोमेश को अहसास दिलाते की कविता को बोलो घर में रहे, तुम मर्द हो,तुम जॉब मत छोड़ो। धीरे धीरे ये जहर सोमेश के मन में भरता गया। अब दोनो एक घर में रहते हुए भी अजनबियों की तरह रहने लगे,बस बात करने के लिए बात करते पर मन नहीं मिल पाते थे दोनो के।मुझे ये समझ नही आता की माता पिता क्यों ये नहीं समझ पाते की उनका बेटा अब किसी का पति है,किसी का पिता है।और अधिकार कम नहीं होता पर हस्तांतरित ज़रूर होता है।ये सब करने से उन्होंने अपने बेटे सोमेश के मन में बहुत हलचल पैदा कर दी थी,पर अब क्या हो सकता था ज़हर का बीज तो बोया जा चुका था।इसी कशमकश में एक दिन सोमेश घर छोड़ कर चले गए।अब तो कविता पर दुखों का पहाड़ टूट गया था।पहले वासु और अब सोमेश। खैर जिंदगी विकल्प नहीं देती है।जो लिख दिया किस्मत में ऊपर वाले ने वैसे तो जीना ही है।कविता भी जी रही थी ऊपर से सोमेश की अम्मा ने कहना शुरू कर दिया की तुम्हारी वजह से मेरा सोमू चला गया।पहले भी उनका रिश्ता अपने बेटे से ही था। उसके जाने के बाद तो कविता को उन्होंने अजनबी ही कर दिया। कविता बड़ी हिम्मत के साथ जी रही थी वासु का भी वो बहुत ध्यान रखती थी परंतु तन्हाई में उसके आस पास सिर्फ सोमेश ही होता था।वो खुद को अधूरा महसूस करती थी सोमेश के प्यार के बिना,हर दिन इंतजार करती थी सोमेश का,और मन ही मन कहती थी की सोमू तुम एक अच्छे बेटे तो बने , अच्छे पिता और अच्छे पति नहीं बन पाए।पर मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि प्रेम कभी पूर्णता नहीं चाहता,प्रेम तो वो बंधन है जो बिना किसी शर्त के बंध जाता है मेरा घर और मेरा मन सब तुम्हारे बिना अधूरा है।में सब हालात ठीक कर दूंगी सब संभाल लूंगी बस तुम चले आओ.........