प्राचार्य का दूसरा निर्देश अगले दिन नाटक का विद्यलय में रिहर्सल के लिये था जिसके लिये सौभाग्य को लाने कि जिम्मेदारी चिन्मय को देते हुए समय से रिहर्सल सम्पन्न कराने कि जिम्मेदारी जोगिन्दर सिंह कि थी।
दूसरे दिन जोगिंदर सिंह ने नाटक के पूर्वाभ्यास सत्र का आयोजन किया को बेहद सफल रहा सबने नारी पात्र के रूप में सौभाग्य को सराहा और उसके चयन को सही ठहराया।
अस्मत नामक आदिवासी संस्कृति आधारित नाटक का मंचन शुरू हुआ सारा विद्यालय बड़े धैर्य शांति से नाटक का रिहर्सल देखने के लिए एकत्र था चिन्मय सौभाग्य आदि ने अपने अपने पात्रों के अनुरूप पोशाक एव साज सज्या के साथ थे ।
मंचन शुरू हुआ ज्यो ही नाटक में सौभाग्य के किरदार कि उपस्थिति हुई उपस्थित सभी लोग एक टक निहारते रह गए ।
कोल आदिवासी समाज अपनी बेटी सौभाग्य पर गौरवांवित एवम आल्लादित था।
सौभाग्य ने अपने संवाद बोलने शुरू किए-( नारी जिसे पत्थर कि मूरत में दुर्गा के नौ रुपों सरस्वती लक्ष्मी पार्वती देखा जाता है जीवित जागृत बेटी नारी अपमान तिरस्कार भय भ्रम काम वासना के शस्त्रों से पल प्रहर घायल कि जाती है सभ्य समाज ही तो करता क्रूरता का घिनौना नंगा नाच आदिवासी सभ्य समाज के भोग विलास के साधन संसाधन मात्र बनकर पैदा होते है और मर जाते है आखिर कब तक अशिक्षा भूख भय के भ्रम जाल में आदिवासी तड़फ तड़फ कर जीता रहेगा )
ज्यो ज्यो सौभाग्य चिन्मय अपने अपने संवाद बोलते सामने बैठा जन समूह और संवेदनशील सजग होकर देखता नाटक देख रहा प्रत्येक व्यक्ति नाटक के दृश्यों संवादों में स्वंय को खोजता प्रतीत हो रहा था ।
प्राचार्य हृदयशंकर सिंह ने तो कल्पना भी नही की थी इतनी बड़ी सफलता कि स्वंय भी हतप्रद थे उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा नाटक ज्यो ज्यो बढ़ता जा रहा था दर्शकों कि एकाग्रता तन्मयता बढ़ती जा रही थी नाटक का समापन हुआ तालियों कि गड़गड़ाहट से वायुमंडल गूंज उठा प्राचार्य हृदयशंकर सिंह ने मंच से आदिवासी परिवारों शिक्षकों पात्र छात्रों को प्रोत्साहित करते हुए उनका आभार व्यक्त किया और निर्देश दिया कि आदिवासी लोंगो को सुरक्षित उनके घरों तक पहुँचना सुनिश्चित किया जाय कमेटी के सारे सदस्यों ने मिलकर सभी आदिवासी परिवारों एव सदस्यों का अभिवादन करते हुए उन्हें विदा किया ।
प्राचार्य ने चिन्मय और सौभाग्य को नाटक मंचन कमेटी के सदस्यों समर्थ गुप्त जोगिन्दर सिंह एव रमणीक दुबे एव सुकान्त श्रीवास्तव को एक साथ बुलाया चिन्मय सौभाग्य नाटक मंचन कमेटी के सदस्य शिक्षकों के साथ ज्यो ही प्राचार्य कक्ष में दाखिल हुए इंतज़ार कर रहे प्राचार्य जी अपनी कुर्सी से ऊठकर खड़े हुए और सबका अभिवादन एव स्वागत करने के उपरांत सबको बड़े आदर के साथ बैठाया और सौभाग्य कि तरफ मुखातिब होते बोले बिटिया आप तो माता सरस्वती कि पुत्री ही अंश ही लगती है बड़े भाग्यशाली है आपके माता पिता जिन्होंने आपको जन्म दिया है और प्रश्न किया पढ़ती है ? सौभाग्य बोली नाही साहब अबे तक स्कूल के मुहँ नाही देखे हई सौभाग्य का जबाब सुनते ही प्राचार्य जी को तो ऐसे लगा जैसे वह अचेत से हो गए है उन्हें विश्वास ही नही हो रहा था कि अनपढ़ भी इतना शानदार नाटक मंचन कर सकता है अपने आपको सभालते हुए प्राचार्य ने सौभाग्य से फिर प्रश्न किया आपको इतना स्प्ष्ट और वेबाक संवाद बोलना किसने सिखाया कोई कुछ बोलता उससे पहले रमणीक दुबे बोल उठे सर यह सब चिन्मय का ही कमाल है चिन्मय ने ही मुझे सौभाग्य को नाटक के नारी पात्र के रूप में चयन करने का निवेदन अपनी जिम्मेदारी पर किया था परिणाम आपने स्वंय देखा प्राचार्य ने सौभाग्य एव चिन्मय को आशीर्वाद दिया और वार्षिकोत्सव के सम्मान पुरस्कार में सौभाग्य को विशेष सम्मान देने की घोषणा की ।
आदिवासी परिवारों के बीच अस्मत ही चर्चा का विषय था अस्मत हर व्यक्ति कि जुबान पर चर्चा का विषय था हर आदिवासी के मन मस्तिष्क आत्मा में अस्मत के भावों से भरे हुए आदिवासी समाज कि संवेदनाए जागृती होने के लिए बेचैन थी।
विद्यलय का वार्षिकोत्सव समारोह समापन पर सम्मान एव पुरस्कार वितरण के दिन सौभाग्य को सादर बुलाया गया और उसके लिए सबसे आकर्षक एव कीमती सम्मान पुरस्कार देने का निर्णय विद्यालय प्रबंधन ने लिया और उसे सम्मानित किया गया ।वी
विद्यालय के वार्षिकोत्सव के समापन के बाद चिन्मय अपने उद्देश्य पर पुनः लग गया कभी कभार वह विद्यालय से जल्दी फुर्सत मिलने पर कोल बस्ती जाता औऱ सौभाग्य शेरू के साथ जंगलों में जाता घण्टो बाते करता फिर चला आता यही क्रम चलता रहा।