Pootonwali - Shivani in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | पूतोंवाली - शिवानी

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पूतोंवाली - शिवानी

आजकल के इस आपाधापी से भरे माहौल में हम सब जीवन के एक ऐसे फेज़ से गुज़र रहे हैं जिसमें कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा पा लेने की चाहत की वजह से निरंतर आगे बढ़ते हुए बहुत कुछ पीछे ऐसा छूट जाता है जो ज़्यादा महत्त्वपूर्ण या अच्छा होता है। उदाहरण के तौर पर टीवी पर कोई उबाऊ दृश्य या विज्ञापन आते ही हम झट से चैनल बदल देते हैं कि शायद अगले चैनल पर कुछ अच्छा या मनोरंजक देखने को मिल जाए। मगर चैनल बदलते-बदलते इस चक्कर में कभी हमारा दफ़्तर जाने का समय तो कभी हमारा सोने का समय हो जाता है और हम बिना कोई ढंग का कार्यक्रम देखे ख़ाली के ख़ाली रह जाते हैं। कुछ ऐसी ही बात किताबों के क्षेत्र में भी लागू होती है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ने की चाह में आगे बढ़ते हुए पीछे कुछ ऐसा छोड़ जाते हैं जो ज्ञान या मनोरंजन की दृष्टि से ज़्यादा अहम..ज़्यादा फायदेमंद होता है।

दोस्तों..आज मैं इस बात को अपने समय की प्रसिद्ध लेखिका शिवानी की रचनाओं के बारे कह रहा हूँ जिनकी रचनाओं को पढ़ने का मौका तो मुझे कई बार मिला मगर किसी न किसी वजह से मैं उनका लिखा पढ़ने से हर बार चूक गया। आज से तीन महीने पहले उनकी लिखी "पूतोंवाली" किताब को पढ़ने के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ है कि मैं कितना कुछ पढ़ने से वंचित रह गया। लेकिन फ़िर कुछ ऐसा हुआ कि चाह कर भी इस बेहद रोचक किताब पर कुछ लिख नहीं पाया। अब लिखने के बारे में सोचा तो एक बार पुनः किताब पर नज़र दौड़ाने के बहाने इस किताब को फ़िर से पढ़ा गया।

दोस्तों हिन्द पॉकेट बुक्स के श्रद्धांजलि संस्करण 2003, में छपी इस किताब 'पूतोंवाली' में उनके लिखे दो लघु उपन्यास और तीन कहानियाँ शामिल हैं।

'पूतोंवाली' नाम लघु उपन्यास है उस औसत कद-काठी और चेहरे मोहरे वाली 'पार्वती' की जिसे उसकी माँ की मृत्यु के बाद सौतेली माँ की चुगली की वजह से पिता के हाथों रोज़ मार खानी पड़ी। पिता के आदेश पर मोटे दहेज के लालच में सुंदर, सजीले युवक से ब्याह दी गयी।

अपने रूपहीन चेहरे और कमज़ोर कद-काठी की वजह से पति की उपेक्षा का शिकार रही 'पार्वती' को आशीर्वाद के रूप में मिले 'दूधो नहाओ पूतों फलो' जैसे शब्द सच में ही साकार हुए जब उसने एक-एक कर के पाँच पुत्रों को जन्म तो दिया मगर..

इसी संकलन के एक बेहद रोचक लघु उपन्यास 'बदला' की कहानी पुलिस महकमे के ठसकदार अफ़सर 'त्रिभुवनदास' की नृत्य कला में निपुण बेहद खूबसूरत बेटी 'रत्ना' की बात करती है। जो अपनी मर्ज़ी के युवक से शादी करना चाहती है मगर उसका दबंग पिता उस युवक को रातों रात ग़ायब करवा उसका ब्याह किसी और युवक से करवा देता है। अब देखना यह है कि अपने प्रेमी के वियोग में तड़पती 'रत्ना' क्या उसे भूल नयी जगह पर अपने पति के साथ राज़ीखुशी घर बसा लेती है अथवा...

इसी संकलन की एक अन्य कहानी 'श्राप' में रात के वक्त सोते-सोते लेखिका अचानक किसी ऐसे सपने की वजह से हड़बड़ा कर उठ बैठती है जो उसे फ़्लैशबैक के रूप में दस वर्ष पीछे की उस घटना की तरफ़ ले जाता है जिसमें वह अपनी मकान मालकिन के कहने पर, उसकी बहन के रहने के लिए, उसे अपने पोर्शन के दो कमरे कुछ दिनों के लिए इसलिए इस्तेमाल करने के लिए दे देती है कि उसे वर पक्ष वालों की ज़िद के चलते अपनी सुंदर, सुशील बेटी की शादी उनके शहर में आ कर करनी पड़ रही है। वधु पक्ष की तरफ़ से दिल खोल कर पैसा खर्च करने के बावजूद भी इस बेमेल शादी में कहीं ना कहीं कुछ खटास बची रह जाती है।

विवाह के कुछ महीनों बाद लेखिका को अचानक पता चलता है कि शादी के चार महीनों बाद एक दिन ससुराल में रसोई में काम करते वक्त लापरवाही की वजह से उनकी बेटी की जलने की वजह से मौत हो गयी।

इसी संकलन की एक अन्य कहानी में अचानक एक दिन लेखिका की मुलाक़ात बरसों बाद अपनी उस ख़ूबसूरत सहेली 'प्रिया' से रेलवे स्टेशन पर मुलाक़ात होती है, जिनकी दोस्ती कॉलेज वालों के लिए एक मिसाल बन चुकी थी। और उसकी उसी सहेली ने एक दिन बिना कोई वजह बताए अचानक से कॉलेज छोड़ दिया था। इस ट्रेन वाली मुलाक़ात में 'प्रिया' लेखिका के साथ गर्मजोशी तो काफी दिखाती है मगर अपना पता ठिकाना बताने से साफ़ इनकार कर देती है।

इस बात के काफ़ी वर्षों के बाद एक दिन नैनीताल के किसी उजाड़ पहाड़ी रास्ते पर लेखिका की मुलाक़ात अचानक एक लंबे चौड़े..मज़बूत कद काठी के नितांत अजनबी व्यक्ति से होती है जो 'प्रिया' और लेखिका के बीच घट चुकी निजी बातों और घटनाओं का बिल्कुल सही एवं सटीक वर्णन करता है। जिससे लेखिका घबरा जाती है। अब सवाल उठता है कि आख़िर कौन था वो अजनबी जो उन दोनों के बीच घट चुकी एक-एक बात को जानता था?

इसी संकलन की अंतिम कहानी में ट्रेन में रात का सफ़र कर रही लेखिका के कूपे में बड़ा सा चाकू लिए एक लुटेरा घुस आता है और सब कुछ लूट कर जाने ही वाला होता है कि अचानक कुछ ऐसा होता है कि लूटने के बजाय वही लुटेरा लेखिका के पास फॉरन करैंसी से भरा हुआ एक बटुआ छोड़ कर चला जाता है।

127 पृष्ठीय इस बेहद रोचक और पठनीय किताब के हार्ड बाउंड संस्करण को छापा है 'सरस्वती विहार' (हिन्द पॉकेट बुक्स का सजिल्द विभाग है) ने और इसका मूल्य रखा गया है मात्र 125/- रुपए। आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रकाशक को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।