Towards the Light – Memoir in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार

स्नेही मित्रो

कई बार बात बहुत छोटी सी होती है किंतु हमारे जीवन में यह बहुत गहन प्रभाव डालती है। सच में यदि सोचकर देखें तब महसूस होगा कि इस भौतिक जगत में से निकलना इतना आसान नहीं है। हम एक चीज़ में से निकल कर दूसरी किसी बात में फँस जाते हैं लेकिन मुक्त नहीं रह पाते।

हम अपनी उलझनों में से निकलने के लिए हाध पैर मारते हैं, छटपटाते रहते हैं।

किसी के द्वारा सुनाई गई एक कथा याद आती है :

एक पंडित जी प्रतिदिन किसी रानी के पास कथा करने जय करते थे। कथा के अंत में वे सब को कहते 'राम कहे तो बंधन टूटे' लेकिन उनके कहने के बाद वहाँ पिंजरे में बंद तोता बोल उठता 'ऐसा मत कहो रे पंडित झूठे'। पंडित जी को क्रोध आ जाता कि यहाँ सब लोग क्या सोचेंगे? रानी क्या सोचेंगी?

कई बार कोशिश की कि तोता ऐसे न बोले लेकिन वे उसको बोलने से रोक नहीं सके | पंडित जी बड़े पशोपेश में पड़ गए और अपने सतगुरु के पास गए, उन्होंने उन्हें अपना पूरा हाल बताया। सद्गुरु तोते के पास गए और पूछा:

-"तुम ऐसा क्यों कहते हो ?"सद्गुरु ने पूछा

तोते ने उत्तर दिया -'"मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था। एक बार मैं एक आश्रम में जहाँ सब साधु संत राम राम राम बोल रहे थे, वहाँ बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन उसी आश्रम में बड़े प्रेम से मैं राम राम बोल रहा था, तभी एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया, फिर मुझे एक दो श्लोक सिखाए ।

श्लोक सुनकर आश्रम में एक सेठ ने संत को कुछ पैसे देकर मुझे उनसे खरीद लिया। अब सेठ ने मुझे अपने घर लाकर चांदी के पिंजरे में बंद कर दिया और इस प्रकार मेरा बंधन बढ़ता गया। निकलने की कोई संभावना ना रही।

एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को 'गिफ्ट' कर दिया| राजा मुझे पाकर बहुत खुश हो गए और उन्होंने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम राम बोलता था इसलिए सबको बहुत प्यारा लगता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं तो राजा ने रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कहूं कि 'राम राम कहे तो बंधन छूटे'।

तोते ने सतगुरु से कहा आप ही कोई युक्ति बताएं प्रभु, जिससे मेरा बंधन छूट जाए। सतगुरु बोले-

"आज तुम चुपचाप सो जाओ, हिलना भी नहीं। रानी समझेगी कि तोता मर गया और छोड़ देगी।"तोते को सद्गुरु जी की बात बहुत पसंद आई और

ऐसा ही हुआ। दूसरे दिन कथा के बाद जब तोता नहीं बोला, तब संत ने आराम की साँस ली। रानी ने सोचा तोता तो गुमसुम पड़ा है, शायद मर गया है ।

रानी पिंजरा खोलकर मुझे देखने लगीं और जैसे ही पिंजरा खुला वह फुर्र से आकाश में उड़ गया | तोता पिंजरे से निकलकर आकाश में उड़ते हुए बोलने लगा ' समर्थ सतगुरु मिले तो बंधन छूटे।'वह स्वतंत्र होकर प्रसन्न हो गया था | वह अपने वास्तविक मित्रों में आ गया था,

किसी को भी बंधन पसंद नहीं आता |

अतः शास्त्र कितना भी पढ़ लो, कितना भी जाप कर लो, लेकिन जब तक व्यवहार में बातों का प्रयोग नहीं करेंगे तब तक सब कुछ व्यर्थ है।

बुद्धि व विवेक का इस्तेमाल करके बेहतर बना जा सकता है।

हम सभी ध्यान रखें और किसी पिंजरे में न फँसकर स्वयं की बुद्धि का उपयोग करते हुए जीवन में अग्रसर रहें।

आप सबकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती