आकाशवाणी की अपनी सेवा में दो बार कार्यक्रम अधिकारी के रुप में मैं आकाशवाणी लखनऊ में नियुक्त था। एक बार 1992से 1993तक लगभग एक साल और दूसरी बार 2003से 2013 में अपने रिटायरमेंट तक। दोनों बार आकाशवाणी लखनऊ की पोस्टिंग के दिन मेरे लिये स्वर्णिम काल सिद्ध हुए ।
पहली बार स्व.श्री मुक्ता शुक्ला मैडम बाधवा,सोमनाथ सान्याल सहायक केन्द्र निदेशक के रुप में मेरे "बास " रहे। "बिग बास" की भूमिका में थे उन दिनों केन्द्र निदेशक के रुप में कार्यरत स्व.श्री रामधनी राम(जो आगे चलकर मेरे दूसरे टेन्योर में उप महानिदेशक मध्य क्षेत्र-1 बनकर वहीं आ गये थे ) !
उधर अन्य वरिष्ठों में उन दिनों सर्वश्री सुशील राबर्ट बैनर्जी डिप्टी डाइरेक्टर एस.टी.आई.(पी.) भी बास थे जो मेरे दूसरे टेन्योर में निदेशक बनकर साथ रहे।दूसरी बार के कार्यकाल में एक बार फिर जब अपना लखनऊ केन्द्र पर आना हुआ तो उप महानिदेशक म.क्षे.-1के रुप में स्व.रामधनी राम,(मेरे सुपर बास),केन्द्र निदेशक (मेरी बिग बास) के रुप में श्रीमती करुणा श्रीवास्तव,स.के.नि.(मेरे बास)के रुप में श्री पी.० आर० चौहान और श्री वी.के.बैनर्जी का स्मरणीय संरक्षण मिला । श्रीमती करुणा श्रीवास्तव उसी बीच स्थानातरित हो गई और श्री गुलाब चंद केन्द्र निदेशक मेरे बास बनकर आये ।ऊधर राम साहब सेवा निवृत्त हो गये थे और मैडम नूरेन नक़वी उप महानिदेशक म.क्षे.-1 अब मेरी सुपर बास बनकर आ गईं। उनका भी भरपूर स्नेह मुझे मिलता रहा ।
ख़ास तौर से सितंबर 2007में जब मेरे युवा सैन्य अधिकारी कनिष्ठ पुत्र लेफ्टिनेंट यश आदित्य, (जो उन दिनों 7मैकेनाइज्ड इन्फैंट्री(1डोगरा)रेजीमेंट में नियुक्त थे )की आन ड्यूटी एक ख़तरनाक हादसे में मौत हो गई थी ।
बहरहाल, समय रुकता नहीं है ।जुलाई 2007 में श्री गुलाब चंद का स्थानांतरण आकाशवाणी जयपुर हो गया और अब अपनी केन्द्र निदेशक बनकर आ गई थीं स्व.अलका पाठक ।कैम्पस में ही बने वन रुम सेट में रहकर और और युवा महिला कार्यक्रम अधिकारियों द्वारा लाई जाने वाली टिफिन पर लगभग एक साल का पूरा समय काट दिया मैडम ने।वे फिर वापस दिल्ली चली गईं।
इतिहास चुप नहीं बैठता...उस ने फिर अपने आपको दुहराया और कुछ वर्ष बाद यही गुलाब चंद जी अपर महानिदेशक म.क्षे.-1 पद पर आ गये और केन्द्र निदेशक का भी काम देखते रहे ।हालांकि बाद में श्री सुशील राबर्ट बैनर्जी की नियुक्ति के.नि.पद पर हो गई ।इन दोनों ने अपने रिटायरमेंट तक मुझे भरपूर संरक्षण दिया।
मेरे उन दिनों के बास के.नि.श्री सुशील राबर्ट बैनर्जी नाटक के विशेषज्ञ माने जाते थे और प्रशासनिक कामकाज में प्राय:उन्हें सख़्त नहीं माना जाता था।लेकिन आकाशवाणी लखनऊ में मेरे पेक्स संगीत प्रशासन रहते हुए उन्होंने एक ऐसा सख़्त निर्णय लिया जो चर्चा का विषय बन गया।हुआ यह कि वर्षों तक एक टाप ग्रेड के वादक कलाकार (गया के पंडा घराने से ताल्लुक रखने वाले) अपनी दादागिरी के चलते कार्यालय या तो आते ही नहीं थे ।या आ गये तो काम नहीं करते थे।ऊपर से वरिष्ठों से अशिष्टता भी किया करते थे।मैनें उनकी उपस्थिति पंजिका सुव्यवस्थित तरीक़े से मेन्टेन करना शुरू किया और जब जब वे अनुपस्थित रहे उसका ज्ञापन दिया जाता रहा।संयोगवश उन्हीं दिनों जब उनका रिटायरमेंट आया तो इन ढेर सारी गैर हाजिरी के चलते ब्रेक सर्विस/कटौती की नौबत आ गई।लगभग तीन लाख की बड़ी धनराशि उन्हे ख़ामियाजे के तौर पर गंवानी पड़ी।बैनर्जी साहब पर बहुत दबाब पड़ा लेकिन वे मेरे प्रस्ताव और अपने निर्णय पर अडिग रहे।अनुशासन हीन लोगों के लिए यह एक तगड़े संदेश के रुप में गया।
सच मानिये,आकाशवाणी की अपने अंतिम दिनों की सेवा में आकाशवाणी लखनऊ में मेरे बास केन्द्र निदेशक के रुप में लौह पुरुष के समान श्री सुशील राबर्ट बैनर्जी मिले जिनके इस एक काम ने मुझे यह विश्वास दिलाया कि अनुशासन पालन के लिए कठोर होना आवश्यक है !सचमुच ऐसे "बास"पर किसे नहीं फक्र महसूस होगा ?
एक और बात । जिन दिनों लखनऊ की जीवन रेखा गोमती की शुचिता की चर्चा तक नहीं होती थी मैने अपर महानिदेशक श्री गुलाब चंद जी की सहमति से "गोमती तुम बहती रहना" नामक 13 एपिसोड के कालजयी कार्यक्रम बनाकर जनता और शासन दोनों का ध्यान खींचा था । वहीं "कुछ नक्श तेरी याद के" माध्यम से मलिका ए गज़ल बेगम अख़्तर की पूरी संगीत यात्रा को जीवंतता देने की भी मैनैं कोशिश की थी ।
इसीलिए पाठकों मैं सच कहता हूँ कि आकाशवाणी इलाहाबाद, रामपुर, गोरखपुर और लखनऊ से जुड़ी ये ढेरों स्मृतियाँ मेरी थाती हैं ।किन किन को याद किया जाय, उनकी खू़बियों का बखान किन किन शब्दों में किया जाय... मैं तय नहीं कर पाता हूँ ।
पुनर्जन्म में विश्वास रखते हुए भरपूर उम्मीद करता हूँ कि इस जन्म में कर्मणा जिस सूचना और प्रसारण मंत्रालय और आगे चलकर अब प्रसार भारती परिवार से मैं अब तक जुड़ा रहा हूँ अगले जन्म में भी उन्हीँ का साथ पाऊँ और नये शरीर की नई कल्पनाओं को साकार करता रह सकूँ ।सभी की स्मृतियों को नमन करता हूँ ।अब तो कारवां गुजर चुका है मैं मात्र उनका गुबार देख रहा हूं।