रात के तक़रीबन दस बजे होंगे । कविता अपनी सहेली अनुपमा के यहाँ से दावत के बाद घर लौट रही थी । कार राजेश ड्राइव कर रहा था । रास्ते में कविता ने राजेश से मुख़ातिब होते हुए कहा " राजेश तुमने अनुपमा का डाइंग रूम देखा ? सोफा सेट और सेंटर टेबल वाज़ सो अमेजिंग, हैं न?
“हाँ ! वाकई देट वाज़ वैरी ब्यूटीफुल।” राजेश ने उसकी तरफ़ देखे बिना जवाब दिया ।
“तुम्हें पता है,मैं ने अनुपमा की फैमिली को इस मंडे लंच पर इनवाईट किया है ?" कविता ने राजेश की जानिब देखते हुए बताया ।राजेश ने कविता की तरफ़ एक पल के लिए देखा और कहा ,“ओह ! देट्स गुड !"
“लेकिन हम अपने घर को घर कब बनायेंगे डार्लिंग ?” कविता ने प्यार से अपनी कोहनी राजेश के कंधे पर टिकाते हुए शिकायती लहजे में कहा और उसके जवाब का इंतज़ार करने लगी ।
राजेश का ध्यान ड्राइविंग पर था । उसने कविता की तरफ देखे बगैर पूछा “क्या मतलब ? "“अरे बाबा अपना घर देखा है ? और आज अनुपमा का घर देखा ? घर उसको कहते हैं”कविता ने अपने दूसरे हाथ से राजेश के गालों पर एक हलकी सी थपकी देते हुए प्यार से कहा ।
“देखो राजेश मैं भी चाहती हूँ कि हमारे घर में भी एक शानदार सोफा सेट हो, जिसके सेंटर में एक खूबसूरत सी टेबल हो और जिसे देखते ही मेरी सहेलियों और तुम्हारे दोस्तों के मुंह से एकदम निकले, वाव !"
“अच्छा ! तो तुम्हारा मतलब है कि हमारा घर इसलिए घर नहीं है कि हमारे पास एक शानदार सोफा सेट नहीं है ? “ राजेशमुस्कुराया ।
“और तुम्हें तो पता है कि हमारे घर में सोफा रखने की जगह भी कहाँ है ? " राजेश ने स्पष्ट किया ।
“मुझे पता है, राजेश । मगर मुझे एक कमरा चाहिए, जहां मुझे शानदार सोफा रखना है बस !" कविता ने ज़िद के से अंदाज में कहते हुए अपनी कोहनी राजेश के कंधे से हटा ली और दूसरी तरफ़ देखने लगी । "
“देखो कविता, घर में कुल चार कमरे ही तो हैं । एक बच्चों का स्टडी रूम है , एक हमारा बेडरूम है और एक कमरे में मेरा आफिशियल वर्क होता है, तो बताओ अब कैसे करेंगे ? " राजेश ने सवालिया नज़रों से कविता की तरफ देखा ।
“मुझे पता है ।“
“पताहैआपको, जो भी गेस्ट आते हैं उन्हें बेडरूम में ही बिठाना पड़ता है । मुझे कितना ख़राब लगता है । ?”कविता ने मुंह बनाते हुए कहा ।
"ठीक है बाबा ! अब मूड खराब मत करो । इसके बारे में भी सोचेंगे ।“ राजेश ने गाड़ी के ब्रेक लगाये । बातों ही बातों में कब घर आ गया, पता ही नहीं चला ।
अगले दिन डिनर पर कविता ने चहकते हुए पति से कहा “राजेश ! ये देखो में ने सब सेट कर दिया है ।” और वो मोबाईल पर राजेश को तस्वीरें दिखाने लगी । “देखो ये सोफा सेट, सेंटर टेबल और ये पर्दे,मैंने आर्डर कर दिये है । कैसे हैं ?” उसने सवाल के साथ अपनी बात खत्म की ।
राजेश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,“वेरी नाइस ! तुम्हारी पसंद का तो मैं हमेशा से ही कायल हूँ । तभी तो मैं ने तुम्हें पसंद किया है स्वीट हार्ट !” राजेश ने कविता को छेड़ते हुए कहा ।“
मगर कविता हमारे पास कोई एक्स्ट्रा कमरा भी तो नहीं है ?“ राजेश बोला ।
“बच्चों के स्टडी रूम के पास वाले कमरे को ड्राइंग रूम बना सकते हैं न ? " कविता ने सकुचाते हुए कहा ।
“और माँ बापूजी कहाँ जायेंगे ?” राजेश ने सवालिया नज़रों से कविता की जानिब देखा ।
“राजेश ! माँ और बाबूजी के लिए वो कमरा बहुत बड़ा है । और फिर हमारे पास कोई दूसरा ऑप्शन भी तो नहीं है । “ कविता ने मासूमियत से कहा ।
“देखो राजेश,मैंने अपना काम कर दिया है । कल तक सब सामान डिलीवर हो जाएगा । परसों सन्डे है । परसों अनुपमा भी लंच के लिए आने वाली है । फिर मुझे कमरा सेट भी करना पड़ेगा । कब से गंदा पड़ा है । जाले वाले भी लगे हैं । देखो! अब तुम्हारा काम बाक़ी है । तुमने प्रामिस किया था कि तुम कुछ न कुछ ज़रूर करोगे ।“ कविता ने राजेश की प्लेट में सलाद रखते हुए कहा ।
"ठीक है भाई, मैडम का हुक्म सर आँखों पर ।” राजेश ने सीधे हाथ से सैल्यूट की मुद्रा बनाई ।“अब खाना खाने की इजाज़त है ? " राजेश ने मुस्कुरा कर पूछा ।
“बिलकुल” कविता ने भी इठलाते हुए जवाब दिया ।
सन्डे का दिन आ गया । अनुपमा और उसका हसबैंड कविता के घर लंच के लिए पहुँच गए । अनुपमा ने ड्राइंग रूम में दाख़िल होते ही बड़े जोश और हैरत के साथ, दोनों हाथों को अपने होंठों पर रखते हुए, आँखेंपूरीखोलकर कहा “कविता ! व्हाट आ ब्यूटीफुल सरप्राइज़ ! कितना प्यारा ड्राइंग रूम है तेरा ! और ये फर्नीचर कहाँ से लिया यार तूने ?"
कविता का सर गर्व से तन गया । उसने कनखियों से राजेश की तरफ देखा । उसने भी मुस्कुराते हुए अपनी भवों को उचका कर कविता की तारीफ़ की । कविता ने अनुपमा और उसके हसबैंड को बैठने का इशारा किया और खुद भी नए सोफे पर बैठ गई । थोड़ी ही देर में कमरे से ठहाकों की आवाजें गूजने लगीं ।
उधर छत पर बने स्टोर रूम में ख़ामोशी छाई हुई थी । स्टोर रूम की मद्धिम रोशनी में दो काले साए ख़ामोश बैठे हुए थे ।