Mandir ke Pat - 5 in Hindi Horror Stories by Sonali Rawat books and stories PDF | मंदिर के पट - 5

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मंदिर के पट - 5


चारों ओर फैला सन्नाटा । गहरा अंधेरा और पल-पल खिसकता समय । बढ़ती भयानकता । आज की रात रजत को रोमांचित कर रही थी । यद्यपि एक रात वह इसी खंडहर में सकुशल बिता चुका था किंतु आज उसका हृदय व्यग्र था । गेंदा सिंह बस्ती की ओर जा चुका था । मोमबत्ती जला कर देर से रजत पढ़ने की कोशिश कर रहा था लेकिन शब्द थे कि सब आपस में गड्डमड्ड हुए जाते थे । कई बार प्रयत्न करके भी वह कुछ न पढ़ सका तो किताब बंद करके रख दी और सोने की चेष्टा करने लगा ।

पिघलती हुई मोमबत्ती आधी जल चुकी थी । रजत ने आंखें बंद कर लीं । नींद अभी आंखों से कोसों दूर थी । और तभी उसे लगा जैसे कोई बड़ा सा काला ठंडा अंधेरे का टुकड़ा उसके ऊपर छाने लगा।

रजत ने घबरा कर आंखें खोल दीं । बाहर हवा की सांय सांय बढ़ती जा रही थी । लगता था तूफान आएगा । हवा के थपेड़े बार-बार कमरे के द्वार से टकरा कर भड़भड़ा उठते । बिल्कुल ऐसे जैसे कोई जोर जोर से सांकल बजा रहा हो ।

अजीब खौफ़नाक माहौल हो रहा था । अचानक हवा के एक तेज झोंके ने मोमबत्ती बुझा दी । बाहर का अँधेरा कमरे में उतर आया । रजत ने चादर अपने गिर्द लपेट ली । तभी सांकल जोर से बज उठी ।

रजत चौंक पड़ा । इस एकांत निर्जन स्थान में कौन है हो सकता है ? उसने जोर से पूछा -

"कौन है ?"

उत्तर न मिला । रजत ने सोचा - हवा के झोंके ने यह शरारत की होगी और अपनी मूर्खता पर खुद ही उसे हँसी आ गई किंतु नहीं । यह भ्रम नहीं था । सांकल फिर बजी थी । बिल्कुल उसी ढंग से । उसी अंदाज में ।

रजत ने सांस रोक ली और कान लगा कर आहट सुनने लगा । अपने संदेह का वह निवारण करना चाहता था । थोड़े अंतराल के बाद फिर सांकल बजी किंतु इस बार कुछ आहिस्ता आहिस्ता ।

रजत ने टटोल कर अपनी टार्च उठा ली और दूसरे हाथ से पिस्तौल का हत्था कस कर पकड़ लिया । कौन हो सकता है इस समय ? कहीं कोई आत्मा ? धत, यह सब मनुष्य का वहम है कोरी कल्पना । आत्माओं का कोई अस्तित्व नहीं । फिर ?

जरूर कोई डाकू होगा । चंबल की घाटियों में डाकू रहते ही हैं । उन्हीं में से कोई यहां आश्रय की तलाश में आया होगा और प्रकाश की रेखा के सहारे इस कमरे तक .....

सांकल एक बार फिर बजी ।
रजत बिना आहट किए पांव दबा कर द्वार तक पहुंचा और खामोशी से आहिस्ता आहिस्ता कुंडा खोल कर आड़ में खड़ा हो गया । हवा का एक झोंका उढ़के हुए किवाड़ों को धकेल कर अंदर घुस आया ।

बहुत देर तक जब रजत ने कोई आहट न सुनी तो टार्च जला कर बाहर निकल गया । उसके दाहिने हाथ में अभी भी पिस्तौल का दस्ता दबा हुआ था । सावधानी से उसने पूरे आँगन और आसपास के कमरों का निरीक्षण किया ।

आंगन में धूल की परतें और पत्तों का अंबार था किंतु किसी के आने का उसे कोई चिन्ह नहीं मिला । तो क्या वह उसका भ्रम था ? यह कैसे हो सकता है ?