रजत का मन बार-बार मंदिर की ओर खिंचा जा रहा था । वह गेंदा सिंह से कहकर मंदिर की ओर बढ़ गया । मंदिर तक जाने के लिए उसे कुल उन्चास सीढ़ियां तय करनी पड़ीं । मंदिर के पट जो नीचे से देखने पर खुले प्रतीत हो रहे थे वस्तुतः बंद थे । उनका काला रंग कहीं-कहीं से उखड़ गया था । मंदिर की दीवारें पत्थर की थीं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई थी । ऊपर गोल गुंबद और फिर ऊंची लंबी चोटी पर रखा हुआ पीतल का कलश जो धूप में सोने का भ्रम उत्पन्न कर रहा था ।
रजत मंदिर के द्वार से टिक कर खड़ा हो गया । चारो ओर दूर-दूर तक पेड़ और झाड़ियां फैली हुई थीं । रात में वन्य पशुओं के गर्जन से गूंजने वाला वन इस समय चिड़ियों की मधुर कलरव से गूंज रहा था ।
मंदिर के पास ही एक आम का पेड़ था । फलों के भार से दबी हुई उसकी शाखाएं धरती का आंचल चूम रही थीं । सिंदूरी आम के फलों को देखने पर देखने वाले के मन में फूलों का भ्रम उत्पन्न होता था । वातावरण अत्यंत सुहावना था ।
रजत ने घूम कर मंदिर का एक चक्कर लगाया । पीछे की ओर एक छोटा सा द्वार था और उसके पास ही बनी थी यज्ञ वेदी । उस पर जंगली फूलों की लताएं फैल गई थीं । थोड़े अंतर के बाद ही टीले की सीधी ढलान थी जो पीछे एक बड़े गड्ढे में खत्म हो जाती थी । यहां से अगर कोई गिर पड़े तो .....
रजत को झुरझुरी हो आई । अर्ध परिक्रमा करता वह फिर मंदिर के सामने आ गया । कहीं कुछ नवीनता, कोई विचित्रता न होने पर भी रजत को जैसे कोई आत्मिक संबंध मंदिर की ओर खींच रहा था । उसने बंद किवाड़ों को धक्का दिया लेकिन वे टस से मस न हुए । रजत ने कई बार उन्हें खोलने का प्रयत्न किया और अंत में निराश होकर लौट आया ।
दूसरे टीले पर एक छोटा सा शिवाला था । टीले का धरातल कठिनाई से दस वर्ग फीट का ही होगा । काले संगमरमर की छोटी सी शिव मूर्ति के ऊपर सफेद संगमरमर का क्षत्र के आकार का चंदोवा था । शिवलिंग के सामने ही थी नंदी की मूर्ति और वहीं ध्यानावस्थित पार्वती जी भी स्थित थीं । देवताओं पर श्रद्धा न रखने वाले रजत के मन में न जाने कैसे श्रद्धा जाग पड़ी ।
उसने पास फैली जंगली लताओं से फूल चुन कर मूर्ति पर चढ़ा दिए । मस्तक नवा कर जब उसने सिर उठाया तो चौंक पड़ा । शिव मूर्ति के पीछे ही एक छोटा सा पक्का कुंड था जिसमें साफ पानी का सोता छलछला रहा था । पानी की पतली धार झरने के रूप में धीरे-धीरे बहती शिवलिंग के चरण धोती नीचे की ओर उतर गई थी । प्रकृति की इस विचित्र रचना पर रजत चकित रह गया । टीले पर फूटने वाला झरना ..... यह कल्पना भी असत्य लगती है ।
दिन भर रजत गेंदा सिंह से बातें करता रहा और आसपास के वातावरण, मंदिरों और उस खंडहर का विवरण अपनी नोट बुक में नोट करता रहा और फिर आ गई वह रात ...