Aur Usne - 21 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 21

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और उसने - 21

(21)

“ओहह कबीर, फिर हम कब तक यहाँ रहेंगे? कबीर हम अपने घर कैसे जा पाएंगे ? तुम कैसे अपने घर जाओगे ? मैं कैसे अपनी मम्मी पापा से मिल पाऊँगी ?” मानसी ने घबरा कर एकसाथ कई सवाल कबीर से कर दिए ।

“अभी तो कुछ नहीं पता है शायद लॉकडाउन खुलने के बाद ही कुछ हो सकेगा।”

“ तुम्हारा खाना कैसे बन रहा है कबीर ? कुक तो आ नहीं रहा होगा न?”

“कुक कहाँ से आ नहीं रहा होगा ? वो तो शुरू से ही मेरे साथ ही रहता है न, तो मुझे खाने पीने की कोई दिक्कत ही नहीं है ।“

“अच्छा तब तो ठीक है तुम अपना ख्याल रखना और यहाँ पर बार बार फोन मत करना, अच्छा नहीं लगता है क्योंकि आंटी जी हमेशा हमारे आसपास ही होती हैं ।“

“जरूरी होने पर भी नहीं करें ?”

“हाँ तब तो कर ही लेना ।“

उसने फोन रख दिया शायद कबीर नाराज भी हो गया है और सच बात भी है नाराज होने की, कोई आपसे आपका हाल चाल पूछने के लिए बात करे और आप मना कर दो, अच्छा थोड़े ही न लगता है ।

आज कितने दिन ऐसे ही निकल गए, वो भी अब आँटी के साथ घर के कामों में हाथ बटाने लगी है, सब काम आपस में बाँट लिए गए हैं, किस को क्या करना है । वैसे सबके हिस्से का काम आंटी को ही करना पड़ता है । अंकल के हिस्से सब्जी काटने का काम आया है, वे सुबह सुबह ही सारी सब्जियाँ काट जाते और कभी जल्दी चले जाते तो उनके हिस्से का यह सारा काम मानसी को करना पड़ता है, वो अक्सर अपनी उंगली भी सब्जी के साथ ही काट लेती है । आंटी उसे मना करती रहती लेकिन वे कितना काम करें, बेटे भी मन होने पर वॉशिंग मशीन में कपड़े धो देते हैं या घर की साफ सफाई कर देते। जब नहीं करते तो आंटी के हिस्से में ही घर के सारे काम आ जाते और वे हँसते मुसकुराते हुए दिन भर घर के उन कामों में लगी रहती हैं । वे बिलकुल पहले जैसी ही हैं, वे जरा भी नहीं बदली हैं । एक दिन मानसी को बचपन की बातें बताने लगी, कि “जब तुम छोटी सी ही रही होगी न, तब मैंने तुम्हारी मम्मी से कहा, मुझे अपनी यह बेटी दे दो क्योंकि तब मुझे बेटियाँ बहुत प्यारी लगती हैं लेकिन मेरा बेटा पैदा हो गया है, तब उन्होने हँसते हुए कहा कि बेटा हो गया तो क्या हुआ हम तुम्हारे बेटे के संग इसका व्याह करा देंगे, तो बेटा यह समझो यह घर तुम्हारा ही है बिलकुल निश्चिंत होकर रहो, यहाँ किसी तरह की कोई फ़ोर्मेल्टी नहीं करो।”

अरे यह क्या बात हुई मुझे बचपन से ही अपने बेटे की पत्नी के रूप में चुन लिया, क्या मेरे कोई अरमान नहीं हैं, उस नकचढ़े लड़के के साथ तो मेरा निबाह कतई नहीं हो सकता । हे भगवान, तुमने मुझे किस मुसीबत में फंसा दिया? कैसे निकल पाऊँगी मैं यहाँ से ? कहते हैं कि कभी भी सोचा हुआ पूरा नहीं होता है, उसका सोचा हुआ भी तो कहाँ पूरा हो रहा है लेकिन लगता है आंटी जी का सोचा हुआ कहीं पूरा न हो जाए । यूं ही लॉक डाउन लगा रहा तो वह यही फंस कर रह जाएगी फिर न जाने क्या होगा ? मानसी का दिल घबरा रहा था उसे किसी तरह से अपने घर जाना था । कल सुबह ही कबीर से फोन पर बात करती हूँ और उससे कहती हूँ कि कुछ करो और यहाँ से अपने शहर के लिए निकल लो। हे भगवान यह क्या मुसीबत पैदा कर दी तुमने, कुछ तो ख्याल किया होता । उसके साथ अच्छा सिर्फ यह हुआ था कि वो चाइना से वापस इंडिया आ गयी थी, नहीं तो न जाने क्या ही हुआ होता। इन दिनों सब सही रहे, कम से कम अपनों से दूर होने पर भी मिलने की आस तो बनी ही रहेगी, कभी तो मिलना हो ही जायेगा ।

“मानसी बेटा क्या सोच रही हो ? यहाँ अकेले क्यों बैठी हो ? आओ चलो थोड़ी देर बोलकनी में देखते हैं, बाहर क्या चल रहा है ?”

“हाँ आती हूँ औंटी जी,” मन न होते हुए भी उसे उठकर बाहर जाना पड़ा लेकिन बाल्कनी ने आकर बहुत अच्छा लग रहा है। खूब पौधे लगे हुए हैं करीने से सजे हुए, अलग अलग रंगों के गुलाब, और भी फूल के पौधे लगे हुए हैं । सफ़ेद रंग का गुलाब तो आज एक पौधे पर झूमता हुआ मुस्कुरा रहा है । कितने प्यारे लगते हैं यह फूल पौधे पत्ते इनको देखकर मन खुश हो जाता है, आंटी उन पौधों के बारे में बताती जा रही हैं कि यह किस का पौधा है या यह कौन सा फूल है आदि आदि और वो सोच रही है कि यह लॉकडाउन जल्दी से खत्म हो और वो फौरन यहाँ से निकल जाये, अपने घर या फिर पी जी में चली जाये या फिर कबीर के ही पास। यहाँ पर न जाने कैसी बंदिश सी लगने लगी है और अब यहाँ से निकलने का मन करने लगा है, जबसे उसे बचपन में ही उसकी शादी आंटी जी के बेटे के साथ तय करने के बारे में पता चला । उसे आंटी का वो लड़का बचपन में भी पसंद नहीं और न ही अब, पहले उसकी नाक निकलती रहती और अब वो कमरे में लैपटॉप में घुसा रहता है। पेटू और आलसी कहीं का । मानसी ने यह सब सोचते हुए बुरा सा मुंह बनाया ।

उसने सोचा कि कल सब लोगों के उठने से पहले ही वह कबीर से फोन पर बात कर लेगी, इधर बालकनी में ही आ जाएगी क्योंकि इधर आंटी सुबह-सुबह तो आती नहीं है फिर उसके दिल में ख्याल आया हो सकता है वह वॉक के लिए इधर ही चक्कर लगा लेती हो, वह यही सब सोच रही थी कि उसे आंटी जी की आवाज आ गई, “मानसी बेटा, क्या सोच रही हो ? आओ चलो मैं तुम्हें अदरक इलायची वाली चाय बनाकर पिलाती हूँ । अंकल तो अभी हॉस्पिटल से आयेंगे नहीं मुझे तेरी कंपनी मिल जायेगी ।

“हाँ आती हूँ आंटी जी ।” उसने यूं ही जवाब दे दिया ।

वो कबीर को कैसे फोन कर पायेगी? आंटी तो हमेशा सुबह से लेकर रात तक उसके आगे पीछे लगी रहती हैं । उसने सोचा चलो कबीर को एक मैसेज ही डाल देती हूं कि जब तुझे घर जाने के लिए कोई रास्ता निकले तो मुझे भी अपने साथ ही ले चलना । व्हाट्सएप खोला तो देखा कबीर का मैसेज पड़ा हुआ है । “मानसी मैं अपने घर के लिए निकल रहा हूँ, पापा को हार्टअटैक पड़ा है, मैं बाइक से ही घर जा रहा हूँ क्योंकि फ्लाइट ट्रेन बस सब बंद हो चुकी है तो मैं किसी और तरीके से जा ही नहीं सकता इसलिए मजबूरन मैं बाइक से घर की तरफ निकल रहा हूँ, देखता हूँ कितनी दूर तक बाइक से जा पाता हूं फिर आगे कैसे मैनेज करना है लेकिन मुझे तो अपने घर हर हाल में पहुंचना ही है भले ही कितना समय क्यों न लग जाए।

ओह माय गॉड, इतनी खराब पोजीशन हो चुकी है इस देश में, कि फ्लाइट बंद, ट्रेन और बस भी बंद फिर कोई कैसे कहां जाएगा ? कोई अपना मर जाएगा, तो उसे खबर तो मिलेगी लेकिन वो उस तक पहुंच भी नहीं पाएगा यही सोचते-सोचते उसके दिमाग में चक्कर सा आ गया उसने अपनी आंखें बंद कर ली और ईश्वर से प्रार्थना करने लगी, हे ईश्वर ! मेरी मदद करना मेरे मम्मी पापा का ख्याल रखना.।

मैं कुछ कर ही नहीं सकती सिर्फ पैसों से क्या होता है। मैं कितना कुछ करना चाहती हूँ, मैं उनके बारे में कितना कुछ सोचना चाहती हूँ। पर कुछ नहीं कर पा रही हूँ । मैं अपने ही अंदर दर्द के सागर में डूब गई हूँ । अथाह दर्द के सागर में डूबती ही चली जा रही हूँ और यहाँ से उबरने का कोई रास्ता भी नजर नहीं आ रहा । वैसे भी मैं अंतर्मुखी स्वभाव की हूँ, ज्यादा किसी से बातें नहीं करती, जब कुछ भी कोई परेशानी तकलीफ होती मैं अपने ही भीतर उतर जाती हूँ रो रो के अपनी आँखें सूजा लूँगी लेकिन किसी से कुछ कह नहीं पाऊँगी । मानसी की आंखों में आंसू भर आए हैं । उसने सोचा मम्मी हमेशा कहती हैं कि सुबह-सुबह वासी घर आंगन रोते नहीं है कुछ बुरा होता है । उसने जल्दी से अपनी आंखें पोछी, नहीं नहीं वह कमजोर नहीं होगी, नहीं वह बिल्कुल नहीं रोएगी, अपने आप को मजबूत बनाना है हर हाल में जीना है अपने लिए ना सही लेकिन अपने मम्मी पापा के लिए तो सोचना ही होगा । चलो घर में फोन करके बात ही कर लेंगे शायद मम्मी पापा से बात करके मन को तसल्ली हो जाए । वो जल्दी से उठ कर खड़ी हुई, शीशे के पास जाकर अपने चेहरे को हल्का सा टचअप किया और पाँव में स्लीपर डालकर कमरे से बाहर आ गई । सुबह की हल्की हल्की रोशनी घर के अंदर आ रही है, बालकनी में पड़ी कुर्सियों पर आंटी अंकल दोनों बैठे हुए सुबह की चाय पी रहे हैं।

वह अब कहाँ पर बात करे चलो कमरे में ही बात कर लेते हैं, तभी अंकल की आवाज कानों में पड़ी, “बेटा कैसी हो ? तबीयत तो ठीक है ना तुम्हारी?”

“हां अंकल, अब मैं बिल्कुल ठीक हूं ।“

“ओके बेटा, अपना ख्याल रखो ”।

“जी अंकल ॥“

वे अपने हॉस्पिटल जा रहे हैं, आजकल बहुत जल्दी चले जाते हैं, आंटी उनको गेट तक छोड़ने गयी और वो अपने कमरे में आकर घर पर बात करने के लिए फोन मिलाने लगी ।

घर पर फोन मिलाते ही लगने लगता है कि वो अपनी कल्पना की उड़ान से अपने शहर अपनी गली अपने घर के दरवाजे तक घूम आई है । ऐसे ही तो लगता है कि उसके शहर और उसकी गली की एकदम शुद्ध ताजी हवा और फूल के कितने सारे पौधे लगे हुए हैं और वो उनके आसपास बिचर रही है । उसके घर के दरवाजे के सामने लगा हुआ वो नीम का बड़ा सा पेड़ है जिसमें नन्ही नन्ही छोटी-छोटी निमकौरी आती हैं तो पूरी गली में वे बिखर जाती हैं फिर वह अपने घर में से नारियल की झाड़ू लेकर आती और उन्हें बुहार कर एक किनारे से कर देती । मम्मी कहती बेटा यह नीम की निमकौरी बहुत फायदा करती है वैसे भी नीम के पेड़ की एक एक चीज फायदेमंद होती है उसकी पत्तियां, उसकी डंडियाँ, उसकी हवा, उसकी ऑक्सीजन और उसकी सारी चीजें बहुत फायदेमंद होती हैं । नीम का पेड़ आवोहवा के लिए सबसे ज्यादा अच्छा होता है तो उसे पापा कभी काटने नहीं देते हैं ।

वो पेड़ अभी भी यूँ ही उसके दरवाजे पर खड़ा हुआ उसके आने की राह जोह रहा होगा । मानसी ने मन ही मन में सोचा आखिर वह अपनी कल्पना से बाहर निकल आई है और उसने अपनी मम्मी का फोन मिला दिया कि आज तो बात कर ही लेती हूँ ॥

“ हेलो हेलो बेटा, कैसे हो ? मम्मी ने फोन उठाने में जरा भी देर नहीं लगाई, ऐसा लगा रहा जैसे वे उसके फोन का ही इन्तजार कर रही हैं ।

“हाँ मम्मी ? मम्मी मैं बिल्कुल ठीक हूँ । आप कैसे हो? पापा कैसे हैं ?” मम्मी की आवाज सुनते ही उसकी आँखें नम हो गयी हैं ।

“हम सब लोग यहां पर बिलकुल ठीक है बेटा, और इन दिनों तो तेरा भाई भाभी और बच्चों के साथ रहने के लिए घर पर आया हुआ है।“

“क्या सच में भाई घर पर आ गए हैं ?”

“हाँ बेटा, घर पर ही आकर काम शुरू कर दिया है उसने क्योंकि वो लॉक डाउन के चक्कर में पहले ही वह घर आ गया ।”

“ मम्मी भाभी और बच्चे भी आ घर पर गए हैं ?”

हाँ बेटा भाभी और बच्चे भी यही है, सब साथ ही आ गए, जब तेरा भाई आ गया तो फिर अकेले वे लोग वहाँ क्या करते ?”

“अच्छा मम्मी तभी आप मुझे याद नहीं करती हो ? इतने दिन हो गए मुझे यहां पर आए हुए, कभी मुझसे आराम से बात भी नहीं की और न ही भैया भाभी के बारे में बताया ।“ मानसी ने बड़े उदास मन से कहा ।

“अरे ऐसा नहीं कहते बेटा, मैं रोजाना बात करती हूं लेकिन सिर्फ रुचि से । उनसे ही तेरी बात भी कर लेती हूं । तुझसे मैं इसलिए नहीं करती हूँ कि कहीं रुचि को यह न लगे कि बेटी को मेरे घर छोड़ तो दिया लेकिन विश्वास नहीं है कि मैं उसका सही से ख्याल कर रही हूँ इसलिए यह अपनी बेटी से बात करती रहती हैं।“

“ठीक है अब जो भी है मुझे क्या पता ?”

“तू पूछना रुचि से, मैं तेरे सारे हाल चाल उससे ले लेती हूँ ।“

“मुझे तो कभी नहीं बताया, “

“हो सकता है बेटा, वह काम में भूल गई हो । आजकल उन्हें बहुत काम करना पड़ता है ना बेटा, तू उनकी हेल्प कर दिया कर, जब भी समय मिला करें उनका उनका सारा काम निपटा दिया कर, मुझे पता है तेरा भी घर से ही काम चल रहा है, तू वर्क फ्रॉम होम कर रही है लेकिन बेटा जैसे ही तुझे जरा सा भी समय मिले तू आंटी के घर के कामों में हेल्प करा दिया कर।“

“हां मम्मी मैं करवा देती हूँ।“

“बेटा वह भी तेरा ही घर है ।“

“हां मैं अपने घर की तरह ही रहती हूँ लेकिन यह मेरा घर नहीं है ।“ मानसी ने बड़े रूखेपन से कहा ।

क्रमशः...