Aur Usne - 20 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 20

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और उसने - 20

(20)

“मैं अभी जल्दी ही तो आया था, और हाँ तुम्हारे मम्मी पापा बिल्कुल ठीक हैं, मैं अक्सर जाता आता रहता हूँ। पर एक बात बता तू इंडिया कब आई तूने बताया भी नहीं ?“

“कबीर सुनो, मैंने मम्मी पापा किसी को भी नहीं बताया कि मैं इंडिया में आ गई हूँ, अगर मैं उन्हें बताती तो वह मुझे कहते, फौरन वापस घर आ जाओ, पहले मेरे साथ कुछ दिन रहो फिर जॉब सर्च करो, लेकिन कबीर अभी मुझे इंटर्नशिप करनी बहुत जरूरी है । इसी के बाद मेरा आगे का पैकेज तय होगा । और तुम तो जानते ही हो आजकल इतना अच्छा जाब इतनी आसानी से नहीं मिलता है ।“

“हाँ मैं सब जानता हूं लेकिन मैं यह भी चाहता हूँ कि तुम पहले अपनी मम्मी पापा से एक बार मिल तो आओ, जिससे उनके दिल को तसल्ली हो जाएगी । वह कितने दिनों से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं । तुम यह भी तो जानती हो न कि वे तुम्हें कितना प्यार करते हैं ?”

“मैं सब जानती हूँ कबीर मुझे सब पता है।” मानसी ने थोड़ा उदास होते हुए कहा ।

“जब तुझे सब कुछ पता है तो तू अपने बुड्ढे मम्मी पापा को इतने दुख क्यों दे रही है? तू जाकर उन्हें अपनी शक्ल तो दिखा सकती है ना, वे कितने खुश हो जायेँगे, कितना दुखी और परेशान होते हैं वे लोग तेरे लिए।” कबीर ने समझाने के लहजे में कहा ।

“कबीर तू मुझे इतना इमोशनल मत कर, मैंने अपने दिल को किस तरह से समझाया है यह बात तू नहीं जानता लेकिन मेरी भी एक परेशानी है ना कि मैं अभी घर नहीं जा सकती, अगर अभी मैं घर गयी और तो फिर मैं उनका चेहरा देख कर अकेले वापस लौट कर नहीं आ पाऊंगी, मुझे पता है कि मैंने एक साल से अपने मम्मी पापा को नहीं देखा है, तो मुझे अभी 6 महीने का वक्त और दे दो, बस फिर मैं उन्हें अपने साथ में ही रखूंगी क्योंकि अभी 6 महीने की मेरी इंटर्नशिप है उसके बाद मैं यहां पर फ्लैट ले लूंगी।“

“ मानसी अगर तू बुरा ना माने तो मैं तुझसे एक बात कहूं, मुझे पता है तेरी खुद्दारी यह बात स्वीकार नहीं करेगी लेकिन मैं रिक्वेस्ट कर रहा हूं, एक तरीके से प्रार्थना कर रहा हूँ कि तू मेरी बात सुन और मन लगाकर समझ फिर भले तू चाहें तो नाराज हो जाए लेकिन मेरी बात का जरूर ध्यान दे, देख मैं अपने पापा का इकलौता बेटा हूँ उनके पास अथाह पैसा है, और यह बात तू भी जानती है कि मैं जॉब पैसों के लिए नहीं कर रहा हूँ केवल अपनी खुशी के लिए कर रहा हूँ मुझे एक 2 साल के बाद अपने पापा का बिजनेस ही संभालना है, तो मानसी मैं तुझे बताना चाहता हूँ कि इस शहर में फ्लैट लेना इतना आसान नहीं है जैसा तू समझ रही है, इस शहर में करोड़ों का एक फ्लैट मिलेगा, 6 महीने के बाद तेरी सैलरी करोड़ों में नहीं हो जाएगी और लोन लेकर फ्लैट लेना, मुझे लगता है कोई फायदे की बात नहीं है, फिर ज़िंदगी भर किस्तें ही भरते रहो । तू मेरी एक बात मान ले बस, मैं तेरे बारे में कुछ गलत नहीं सोचता मैं केवल एक इंसान होने के नाते कह रहा हूं कि मैं अपने पापा के पैसों से एक फ्लैट यहाँ ले लेता हूं उसमें तू अपने मम्मी पापा के साथ में आराम से रह फिर जब तेरे पास पैसा हो तो तू वह फ्लैट जो मैं खरीद लूंगा उसके पैसे मुझे चुका देना, बोल ठीक है न ?”

मानसी चुप रही, कुछ नहीं बोली, वो क्या बोले ? अभी एकदम से करोड़ों के फ्लैट में कैसे रह सकती है ? अभी वह कबीर को इतना जानती भी नहीं है, ठीक है वह अच्छा लड़का है, उसके मम्मी पापा का ख्याल रखता है लेकिन जब से उसने अलका का हश्र देखा है तभी से उसने सोच लिया है वह किसी कीमत पर किसी लड़के की बातों में नहीं आयेगी चाहे वह कितना भी अच्छा क्यों ना हो?

“ठीक है कबीर, तेरा मन है तो तू एक फ्लैट ले ले लेकिन मैं अपने मम्मी पापा को मेरी इंटर्नशिप पूरी होने के बाद ही अपने साथ रखूंगी और सिर्फ सिक्स मंथ की ही तो बात है, कब यह दिन निकल जाएँगे पता भी नहीं चलेग, उसके बाद मेरा पैकेज इतना होगा कि मैं अपना और अपने मम्मी पापा का बहुत अच्छे से ख्याल और उनकी देखभाल कर सकूँगी।”

“हां मैं अच्छे से जानता हूँ मानसी, तू अभी बहुत आगे बढ़ेगी, तेरे पास पैसों की कभी कमी नहीं होगी, चल अब मैं ज्यादा बहस नहीं करता, मैं तो यहां पर एक फ्लैट ले ही लेता हूँ बाकी तेरी मर्जी।“

कबीर ने वहां पर एक फ्लैट ले लिया, मानसी अभी पीजी में ही रह रही थी, कबीर के फ्लैट में रहने नहीं गई थी। कबीर अपने फ्लैट में अकेले रहता था उसने एक कुक रखा हुआ था जो उसके लिए खाना बनाता था घर की देखभाल करता था और उसके साथ ही रहता था।

मानसी की अब एक महीने की और इंटर्नशिप रह गई थी, यह भी निकल ही जायेगी, बस फिर वह अपने मम्मी पापा के साथ में रहेगी, कितने दिन हो गए उनसे मिली नहीं, कभी-कभी मानसी यह सोच कर बहुत उदास हो जाती थी और उसके आंसू बहने लगते थे लेकिन उसने अपने दिल को पत्थर का बना कर रखा हुआ था कि नहीं अभी तो वह इंतजार कर रहे हैं । थोड़े से समय के बाद सब सही होने वाला ही है लेकिन सोचा हुआ कभी भी पूरा नहीं होता है कहाँ हुआ है आज तक किसी का सोचा हुआ सब कुछ पूरा । अचानक से पूरे देश और दुनिया में वायरस ने कब्जा कर लिया और उसका सारा प्लान चौपट हो गया । जब ऑफिस में वर्क फ्राम होम कर दिया गया तो पी जी की सब लड़कियां घर चली गयी, बस मानसी बुखार की वजह से रह गयी और अब यह लॉकडाउन, न जाने कब और कैसे वह अपने मम्मी पापा से मिल पायेगी । दर्द से कराह उठी मानसी, एक तो बुखार और दूसरा घर से मम्मी पापा से दूर ।

“मानसी बेटा उठो, क्या हुआ ? बहुत तकलीफ है क्या ? तुम पूरी रात बहुत गहरी नींद में रही शायद दवाई का असर रहा होगा, कुछ खाया भी नहीं। चलो अब यह काढ़ा पी लो और बादाम खा लो फिर फ्रेश होकर नाश्ता कर लेना।” आंटी ने मानसी को जगाते हुए एक साथ सब कह दिया ।

“हाँ आंटी जी, रात बहुत अच्छी नींद आ गयी थी और अब मैं थोड़ा ठीक भी महसूस कर रही हूँ। मुझे अब कोई तकलीफ नहीं है लेकिन पहले मैं टूथब्रुश करके फिर यह चाय पी लूंगी और बिस्किट खा लूँगी, आप परेशान मत होइए ।“ आंटी के चिंताग्रस्त चेहरे को देख कर मानसी ने कहा ।

“ नहीं बेटा, मैं परेशान नहीं हूँ । यह तो काढ़ा है और पहले तुम काढ़ा पी लो फिर उसके बाद उठ जाना, फ्रेश हो जाना, कोई जल्दी नहीं है। वैसे ही लॉकडाउन लग चुका है, कहीं आना जाना तो है नहीं, घर में ही रहना है ।”

मन ना होते हुए भी उसने उस कडवे काढ़े को पी लिया और फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चली गई। वो जल्दी ही बाथरूम से निकल आई थी, तब तक आंटी उसके लिए ब्रेड, बट्टर और चाय लेकर आ गई थी । उसका तो मन नहीं कर रहा है कुछ खाने का, और जबसे पी जी में रह रही थी उसने सुबह का नाश्ता बंद कर दिया था, बस दो टाइम खाना खा लिया या जो भी मिल गया, बस उसमें ही हो जाता था । लेकिन आंटी तो बार-बार कुछ न कुछ खाने पीने का सामान ला ला कर दे रही थी तो उसे अपने घर की याद आ रही थी, अपनी मम्मी की याद आ रही थी, वह भी तो ऐसे ही करती थी कि तू पहले कुछ खाले, फिर पढ़ाई करना, कितनी बार खुशामद कर करके कहती थी उसको खाने के लिए, और पापा उनका बश चले तो वे दिन रात मानसी को चाट पकौड़े और मिठाइयाँ ही खिलाते रहे । मिस यू सो मच पापा । मानसी आज पूरी तरह से अपने घर की याद में डूबी हुई थी। उसे लगा कि दुनिया की सारी मां एक सी होती है, वात्सल्य प्रेम से भरी हुई और परवाह करने वाली बिना कुछ कहे हर बात समझ जाने वाली । सच में दुनिया में माँ जैसा दूसरा कोई भी नहीं होता है । माँ का प्यार ही सबसे सच्चा प्यार बाकी कोई भी रिश्ता हो उसमें थोड़ा बहुत स्वार्थ जरूर होता है ।

मानसी आज सुबह से देख रही थी कि आंटी जी ही घर के सारे काम क्यों कर रही है, इनके घर में कल तो चार-पांच लोग काम करते हुए उसने देखे थे वे सब कहां चले गए ? उसका मन हुआ कि वह पूछ ले, फिर उसने सोचा, छोड़ो रहने दो, अच्छा नहीं लगेगा यह पूछते हुए लेकिन आंटी थोड़ी देर बाद उसके लिए कटे हुए फ्रूट और एक गिलास में जूस लेकर आई तो वो खुद ही बताने लगी कि “बेटा, जो काम करने वाले नौकर थे वह सब तो आज से आयेँगे ही नहीं क्योंकि हमने किसी भी नौकर को अपने घर में रूम नहीं दिया था रहने को । वे सारे अपने घर से ही आते थे, सुबह को आ जाते थे और रात को 10 बजे तक चले जाते थे, कोई दिक्कत ही नहीं होती थी, कभी ऐसा सोचा ही नहीं था कि ऐसे दिन भी आएंगे, अब लगता है हमें एक नौकर के लिए तो घर में रहने के लिए जगह देनी ही होगी।” वे शायद मानसी के मन कि बात समझ गयी थी इसलिए उसे बताने लगी ।

“यह तो बिलकुल सही कहा आपने, हमें कहां पता होता है कि कब क्या हो जायेगा?”

किसी बात का कुछ भी नहीं पता होता है जीवन में । जो होना है वह तो हर हाल में होकर ही रहेगा क्योंकि जीवन क्षणभंगुर है, नश्वर है ।

“ओहो आंटी जी फिर तो आपको ही सारा काम करना पड़ेगा, कैसे कर पाएँगी, न जाने यह लॉक डाउन कितने दिनों के लिए चलता रहेगा ? एक-दो दिन में तो सब कुछ सही नहीं हो जाएगा कम से कम 15 दिन के लिए या 20 दिन के लिए तो लगा ही होगा, तब तो वे लोग चाह कर भी नहीं आ पाएंगे,।”

“हाँ बेटा कैसे आ पाएंगे ऐसे में जब किसी को घर से निकलने ही नहीं दिया जाएगा और उनका घर भी करीब में नहीं है फिर भी बेचारे वे लोग कल रात को 11:00, 11,30 बजे तक घर के सारे काम करने के बाद निकल कर गए हैं क्योंकि उन्हें अपने घर तक पहुंचने में भी यहां से कम से कम आधा एक घंटा लग जाता है बल्कि 2 घंटे मान लो।”

आंटी जी उससे बातें भी करती जा रही थी और साफ सफाई के काम भी करती जा रही थी। वह देख रही थी सुबह से काफी काम उन्होंने अकेले ही किए है । दोनों बच्चे काफी देर तक सोते रहे थे, अंकल तो हॉस्पिटल चले गए, मानसी को अच्छा नहीं लग रहा था कि वे अकेले सारे काम करती रहें और वो बस आराम से लेट कर अपनी सेवा कराती रहे । थोड़ी सी तबीयत ही तो सही नहीं है ना, लेकिन पहले से तो बहुत आराम हो गया है इसलिए वो आंटी के साथ काम करने के लिए उनके साथ किचिन में आ गयी।

“मानसी बेटा, आज तुम रहने दो अभी आराम कर लो फिर कल से काम करा लेना,अब तो तुम्हें मेरे पास ही रुकना है ?”

हे भगवान, ऐसा क्यों किया तुमने, क्यों लगा दिया यह लॉकडाउन, अब कैसे घर पहुंच पाऊंगी मैं, मेरा घर करीब में भी तो नहीं है, बहुत दूर है, यहां से अगर फ्लाइट से गई तो मुझे पूरा दिन लग जाएगा और ट्रेन से जाने में तो पूरे 3 दिन बर्बाद हो जाएगे, फ्लाइट भी मेरे शहर तक नहीं जाती है आगे जाने के लिए चेंज करना पड़ेगा किसी कन्वेंस का सहारा ढूंढना पड़ेगा, ट्रेन बस या कैब । मन ही मन यह सोच कर वो दुखी हो गयी ।

अब वो जल्दी तो घर नहीं जा पाएगी, न जाने क्या होगा ? क्या सोचा और क्या हो गया? खैर जो भी होगा, अच्छा ही होगा और होता भी वही है। सब हमारे अच्छे के लिए ही होता है, हमारे हाथ में कुछ नहीं है, क्या होना है और क्या नहीं, हम तो अपने मन को खुद ही समझा लेते हैं या वक्त के मारे परेशान होते रहते हैं ।

आंटी ने अपने हाथ से पूरे घर में झाड़ू पोछा और सारे बर्तन साफ करने के बाद सबके लिए खुद ही खाना बनाया । इतने नौकर होने के बाद घर के काम करने की उनकी तो आदत भी नहीं रह गई होगी लेकिन फिर भी वह उसी सफाई से सब काम कर रही थी चेहरे पर बिना कोई शिकन लाये। सच में स्त्रियाँ कच्ची मिट्टी की बनी होती हैं, वे माहौल के हिसाब से उसी तरह ढल जाती हैं और कभी कोई शिकवा शिकायत भी नहीं करती हैं, बल्कि अपना फर्ज़ समझ कर खुशी खुशी घर के या बाहर के हर काम को अपने हाथ में ले लेती हैं, सच में स्त्रियाँ न हो तो दुनिया ही थम जाये । मानसी यही सब सोच रही कि तभी उसका हाल चाल और तबीयत के बारे में पूछने के लिए कबीर का फोन आ गया, उसने बताया कि जो अभी लॉकडाउन लगाया गया है वो कम से कम एक दो हफ्ता तो चलेगा ही चलेगा, उसके बाद आगे भी बढ़ाया जायेगा क्योंकि कोई भी चीज एकदम से सही नहीं होती है, इसके लिए तो महीनों और सालों गुजर जाएंगे सब कुछ सही तरीके से सही होने में, यह बीमारी जो पूरी दुनिया में फैली है वो कोई मामूली नहीं है, जानलेवा है और महामारी है, सैकड़ों की तादाद में लोग अपनों को खो रहे हैं बस इसीलिए जो अपनों से दूर हैं वे वापस उनके करीब लौट जाना चाहते हैं।“

क्रमशः...