Aur Usne - 17 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 17

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और उसने - 17

(17)

“मैं तो हमेशा ही मिस करता हूँ, जरा सी देर को कहीं या ऑफिस जाता हूँ और वह घर में होती हैं, तब भी मैं उन्हें मिस करता हूँ ।“ पापा मुसकुराते हुए बोले ।

“क्या पापा, अभी सुबह से ही मजाक के मूड में आ गए, अच्छा आप टहलने जाओ मैं उठ रही हूँ ।” पापा को चाहें कितनी भी तकलीफ क्यों न हो वे कभी भी किसी को बताते ही नहीं हैं बल्कि तकलीफ या दुख में वे कुछ ज्यादा ही खुश नजर आने लगते हैं ।

“नहीं जाना आज मुझे टहलने को ।“

“जाना है, जाना है, जाना है । आप जाओ, अभी जाओ ।“

“तेरी ज़िद के आगे मैं हार जाता हूँ, चल मैं जा रहा हूं और अब तुम उठो और नाश्ता बना लो ।“

“आप जाओ मैं उठ कर बनाती हूँ, ठीक है पापा ।“

पापा चले गए थे और मानसी ने उठकर बिस्तर की चादर देखी, कहीं गंदी तो नहीं हो गयी है लेकिन कुछ भी दाग नहीं लगे थे, कहीं कोई गंदगी नहीं, उसके पेट का दर्द भी अब पहले से बिल्कुल कम हो गया था, कुछ भी दर्द का एहसास नहीं हो रहा था । उसने जल्दी से उठकर बिस्तर समेटा, तब तक घर पर काम करने वाली बुआ भी आ गई थी ।

“बुआ आप जल्दी आ गई हैं, चलो अच्छा हुआ कि जल्दी आ गयी क्योंकि आपको पता है आज मम्मी आ रही है। अच्छे से घर साफ कर दो । अगर आप चाय पियो तो मुझे बता दो, मैं बनाने जा रही हूँ ।”

“बना ले बिटिया पी लूंगी ।“

मानसी के शरीर में आज कुछ अलग ही रौनक आ गई थी कल जिस तरह से शरीर में हो रहा था आज वैसा कुछ नहीं था । वह जल्दी से उठकर बाथरूम गई, हाथ मुंह धोया और जाकर चाय बनाने लगी ।

नमक अजवाइन के पराठे बना देती हूँ । पापा भी खा लेंगे और एक बुआ जी को दे दूंगी । वे भी खुश हो जायेँगी, कहां मिलता है उनको भी घर में कुछ अच्छा खाना पीना । उनके घर में खाना होता तो इस बीमारी में भी क्यों बर्तन धोने के लिए और सफाई करने के लिए आती । वैसे भी उनके ऊपर बहुत तरस आता है क्योंकि वह बहुत कमजोर हो गई है अपनी बीमारी के कारण से फिर भी हमेशा काम करने के लिए आ जाती हैं । कितना भी मना करो लेकिन नहीं मानती हैं कहती हैं जब तक हाथ पाँव चलेंगे तब तक तुम्हारा काम नहीं छोड़ूँगी । मानसी ने नमक अजवाइन वाले परांठे बनाए । दो पराँठे और एक गिलास भरकर चाय बुआ जी को दे दी ।

“खुश रहो बेटा, जीती रहो खूब तरक्की करो” कहती हुई वे आराम से बैठकर खाने लगी । तब तक पापा भी आ गए थे।

“मैं नहा धोकर आता हूँ तभी चाय पीऊँगा। अभी मेरी इच्छा नहीं हो रही है।“

“ठीक है पापा, आप आओ तभी मैं भी आपके साथ चाय पीऊँगी।“

वे दोनों पराठा खा कर चाय पी कर बैठे ही थे कि दरवाजे पर खटपट की आवाज आई । “अरे मम्मी आप आ गई, अभी इतनी जल्दी ? कितने बजे निकली थी वहाँ से ?” मानसी खुशी से उछल पड़ी और मम्मी के गले से लग गयी ।

“जरा घड़ी तो देख बेटा कितना बजा है ? 11:00 बज रहा है न, मैं वहां से 6:00 बजे निकली हूँ ।“

“अरे इतनी जल्दी क्यों निकली ? आराम से आती ना ।“

“नहीं बेटा तेरे मामा को आज ऑफिस भी जाना था इसलिए वह छोड़कर वापस घर चले जाएंगे ।“

“मामा अभी वापस जाएंगे ?”

“हां अभी जाएंगे बेटा ।”

तब तक मामा कार में से सामान निकाल कर ले आए थे । इतना सारा सामान था । मम्मी जब भी नानी के घर से आती हैं, तो ढेरों सामान लेकर आती हैं । अचार, पापड़, बरी, गुड॰ चने और मिठाई, नमकीन, न जाने कितनी चीजें । तरह-तरह की सब्जियां, और सब्जी पूरी तो इतने भरकर लेकर आती हैं कि आराम से चार-पांच दिन तक खाई जाए लेकिन मम्मी पास पड़ोस में सबके घर पर भिजवा देती हैं जिससे वह 2 दिन में खत्म हो जाती हैं ।

मम्मी के आने से घर में कितना अच्छा लगने लगा है। एकदम रौनक ही लौट आई थी । जब मम्मी घर में नहीं, तो एकदम सूना सूना खाली खाली सा घर लग रहा । ऐसा लगता, उसे जैसे घर में कोई है ही नहीं । और सिर्फ मम्मी के आने से ही ऐसा लगने लगा है पूरा घर भरा भरा सा हो । मम्मी जब बोल रही हैं, बात कर रही हैं, हंस रही हैं, तो लगा रहा है कि पूरा घर खुशी से झूम रहा है, घर भी खुश हो गया है मम्मी के आ जाने से । सच में ऐसा ही तो होता है कि अगर कोई घर से दूर चला जाए तो घर भी उदास हो जाता है । उसे अच्छा नहीं लगता होगा न ।

“मानसी बेटा, तुम तो बहुत कमजोर हो गई इतने ही दिनों में, क्या खाना पीना सही से नहीं खाया तुमने ?”

“मम्मी बहुत खाना खाया है । बहुत अच्छे से खाना खाया है । सब कुछ तो पापा लाते हैं कभी कोई भी परेशानी नहीं हुई लेकिन आपकी याद बहुत आयी, आपकी कमी रही बस इसी वजह से अच्छा नहीं लग रहा हम लोगों को ।“

“और तुमने पापा का खाने पीने का सही से ध्यान रखा न ?”

“हां मम्मी, मैंने सब ध्यान रखा । समय पर खाना, नाश्ता देना और बुआ जी भी तो आती हैं न, उनकी तबीयत नहीं सही है फिर भी आकर सारा काम कर जाती, मेरी सब्जियां भी काट देती, आटा गूँद देती, मैं उनको मना भी करती लेकिन वो नहीं मानती ही नहीं । उन्हें तो सब करना होता है । “बेटी तू अकेले कैसे करेगी ?” “बिटिया तुझसे सब काम अकेले नहीं होगा ।“ यह कहते हुए वह सारा काम कर जाती हैं ।“ यह सब कहते हुए मानसी जोर से हंस पड़ी । “और हाँ मम्मी अल्का भी तो हैं न, और उसकी मम्मी वे भी खूब ख्याल रखती हमारे खाने पीने का।

आज मानसी बहुत खुश है कि उसकी मम्मी घर पर लौट के आ गई हैं और वह अल्का को बुलाने के लिए आवाज लगाने ही जा रही कि तब तक खुद ही दौड़ती हुई अलका आ गई ।

“अरे चाची जी आप आ गई, फिर रुको रुको रुको मैं अभी चाय लेकर आती हूँ । मामा जी नमस्ते, आप जाना नहीं, जब तक मैं चाय ना लेकर आ जाऊँ “। अलका ने खुशी से उछलते हुए आदेश भरे स्वर में कहा ।

“मैं बना लूंगी अलका बेटा, तू रहने दे, चाय मत बना कर ला । अरे अब तो मैं आ गई हूं ना, मैं बना लूंगी।“ मानसी की मम्मी ने कहा, ।

“चाय तो मानसी भी बनाना सीख गयी होगी ना, यह भी तो इतने दिनों से काम कर रही है।“ मानसी के मामा ने कहा ।

“हां हां मानसी तो सब कुछ कर लेती है, बहुत अच्छा खाना बनाती है, सब काम कर लेती है।” झट से पापा बोल पड़े।

“आप सब लोग हंसते बातें करते रहो, मैं जब तक बनाकर और लेकर भी आ जाऊंगी,” कहते हुए अलका अपने घर चली गई ।

“ अलका बिल्कुल ठीक कह रही है, हम लोग को तो बातों से ही फुर्सत नहीं मिलेगी तब तक वह बनाकर भी लेकर आ जाएगी, बहुत तेज है यह तो, यह भी हमारी बेटी जैसी ही है, जैसे मानसी, वैसे ही अल्का बल्कि हम लोगों का इतना ख्याल रखती है कि बस पूछो ही मत, लगता ही नहीं है कि वह हमारे पड़ोस की बेटी है लगता है जैसे वह हमारी खुद की अपनी एक और बेटी है ।”

“हां बिटिया ही पालते रहो आप तो, मामा जी हंसते हुए बोले, आपको बहुत प्यार है ना बेटियों से इसलिए एक और प्यारी बेटी आपको मिल गई है।”

“ मम्मी वहां पर नानी मम्मी और दीदी भैया वगैरह सब लोग ठीक है ना जब मैं वहां से चली आई, तो वह लोग मतलब कोई किसी को बुरा तो नहीं लगा, किसी को मेरी याद तो नहीं आयी कि मानसी अकेले क्यों चली गई है।“ मानसी मम्मी से पूछने लगी ।

“हां उन लोगों को थोड़ा बुरा लग तो रहा लेकिन नानी समझ गयी कि तुझे अपना भी तो ध्यान देना है पढ़ाई करनी है, कुछ अपने शौक पूरे करने हैं इसलिए उन्हें ज्यादा बुरा नहीं लगा।

“लेकिन मम्मी अब मैं अकेले कभी नहीं रहूँगी और पापा को भी अकेले कहीं नहीं छोड़ेंगे आप, क्योंकि मैंने देखा है, जब आप घर में नहीं होती हैं तो घर में बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है फिर बताओ भला पापा कैसे रहते होंगे ? हमेशा अकेले, जब आप अपने घर चली जाती हो, तो मैं भी तो जाती हूं आपके साथ में, पापा के दिन पता नहीं कैसे कटते होंगे? न जाने यहां पर अकेले कैसे अच्छा लगता होगा?”

“ हाँ बिल्कुल अच्छा नहीं लगता होगा, यह बात तो बिल्कुल ठीक कह रही है तू, दरअसल मैं सच बताऊँ, मेरा भी अकेले मन नहीं लगता है, तू संग में होती है तो थोड़ा मन लगा रहता है फिर भी तेरे पापा की चिंता लगी रहती है, क्या कर रहे होगे ? आज क्या किया होगा, क्या खाया पिया होगा? क्या बनाया होगा लेकिन इस बार तुम तो यहां थी फिर भी मेरा मन यही पर अटका हुआ था कि पता नहीं मानसी ने वहाँ पर कैसे सब संभाला होगा ?:”

“अरे मम्मी अल्का है ना, उसकी मम्मी हैं, सब ने मिलकर हमारा बहुत अच्छे से ख्याल रखा और यह दिन निकल गए लेकिन आपका न होना तो खल ही रहा । अभी मेरे स्कूल खुलने में तो पूरे 8 दिन हैं । चलो अच्छा हुआ मम्मी कि आप आ गई, मुझे आपकी बहुत याद आ रही । मानसी ने लाड़ से मम्मी के गले में बाहें डालते हुए कहा ।

“ मैं इसीलिए तो 8 दिन पहले आई हूं । नानी तो और भी रोक रही लेकिन मैंने कहा, नहीं जाने दो वहां पर मानसी मुझे याद कर रही है तो मैं जल्दी से आ गयी” .... मम्मी मुस्कुराई । .

“अच्छा मम्मी यह सब बातें छोड़ो और यह बताओ नानी कैसी है ? उनकी तबीयत ठीक है ना ?” मानसी ने मम्मी की बात को बीच में ही काटते हुए कहा ।

“हां बेटा वह बिल्कुल ठीक हैं, वो फिर बाद में हम लोगों से मिल्ने आयेंगी । मामा उनको लेकर आएंगे ।“

मामा जी चुपचाप बड़ी देर से उन लोगों की बातें सुन रहे, वे अचानक से मानसी की मम्मी से बोल पड़े “हाँ हाँ मैं तो बस इसी काम के लिए बैठा हूँ कभी तुम्हें लेकर आऊँ और कभी तुम्हारी मम्मी को ।”

वो तो तुम्हें करना ही पड़ेगा क्योंकि मम्मी भी तुम्हारी हैं और बहन भी तुम्हारी ही ।” मम्मी ने मुसकुराते हुए कहा ।

मामा ने चाय नाश्ता किया ।मानसी और अलका दोनों को पैसे दिए और वापस चले गए क्योंकि उन्हें दोपहर में 4:00 बजे तक हर हाल में ऑफिस जाकर एक मीटिंग अटेंड करनी है ।

“ मम्मी आपको पता है, मैंने हारमोनियम पर पूरे 4 गाने बजाने सीख लिए हैं और मैं अच्छे से गाने भी लगी हूँ ।”

“अच्छा, अरे वाह ! यह काम तूने बहुत अच्छा किया । तू हारमोनियम बजाना सीख गई, तुझे गाना बहुत पसंद है न, अब क्या करना है, तुझे अभी से ही डिसाइड करना पड़ेगा।“

“मम्मी यह गाना सीखना तो मात्र एक शौक है वैसे मुझे तो बस साइंस लेनी है, मुझे डॉक्टर या फिर इंजीनियर बनकर दिखाना है । मैं बहुत मेहनत करूंगी । अपनी जान लगा दूंगी पढ़ाई करने में और पूरी लगन के साथ पढ़ाई करूंगी और देखना मम्मी मैं आपका हर सपना जरूर पूरा कर पाऊंगी, आपका हर ख्वाब। जो आपने अभी तक पूरा नहीं किया या जो आपको अभी तक नहीं मिला वह सब मिलेगा, आपको हर खुशी मिलेगी।“

“बेटा मेरी ऐसी कभी कोई चाहत रही ही नहीं, लेकिन अब मैं चाहती हूँ कि तू अच्छे से कुछ बन जाए, लिख पढ़ जाए। तुम हम लोगों का नहीं सोचो अपना भविष्य बनाने को अपने पांव पर खड़ी हो जाओगी तो वही हमारे लिए सबसे बड़ी खुशी की बात होगी और हां तू जो कुछ भी करें पूरी लगन के साथ करें, मैं यही चाहती हूं क्योंकि सच्ची लगन से दुनिया में सब कुछ संभव है।“

“अरे भाई कोई हमसे भी बात कर लो या फिर तुम मां बेटी दोनों आपस ही में बातें करते-करते सब बातें खत्म कर दोगे और फिर मेरे लिए कुछ नहीं बचेगा ।” पापा जो बहुत देर से शांत बैठे उन दोनों की बातें सुन रहे हैं, अब बोल पड़े।

“क्यों नहीं भाई, मम्मी जरा आप अब पापा से भी बात कर लो क्योंकि पापा आपको बहुत मिस करते हैं। आप एक दिन के लिए कहीं जाती हो तो भी वह आपको बहुत मिस करते हैं और आप एक घंटे के लिए भी उनकी नजरों से दूर हो जाती हो, तब भी बहुत मिस करते हैं लेकिन वह 2 महीने के लिए नानी के पास जाने के लिए आपको परमिशन दे देते हैं क्योंकि वह नहीं चाहते कि आप अपनी मम्मी से मिल न सको, साथ रह न सको, या फिर उनकी वजह से आपको अपनी मम्मी से दूर रहना पड़े और अपना बचपन जहां गुजारा वहाँ कुछ दिन बिता न सको ।” मानसी ने मम्मी से कहा ।

क्रमशः...