Aur Usne - 16 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 16

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और उसने - 16

(16)

मानसी अक्सर इस बात को सोचती है कि पापा ने तो उन लोगों की बहुत अच्छे से परवरिश की होगी पाल पोस कर बड़ा किया होगा मम्मी ने कितना लाड प्यार किया होगा लेकिन वह लोग बड़ी होकर मम्मी पापा को एकदम से भूल कैसे गए,? इतनी दूर दूर जाकर रहने लगे, कभी उन्हें पूछते भी नहीं कि मम्मी पापा की उम्र हो गई है और अब इतने पैसे भी नहीं है मम्मी पापा के पास, सारे पैसे तो उन लोगों की पढ़ाई लिखाई और शादी ब्याह में खर्च कर दिये हैं। नौकरी तो वैसे भी नहीं बची है थोड़ी सी पेंशन मिलती है । उस पेंशन में क्या होता है ? उसकी पढ़ाई का कितना ज्यादा खर्चा है, घर का खर्चा है, क्या उन लोगों के दिमाग में यह बात नहीं आती है ? मानसी ने सोचा लेकिन कोई बात नहीं, जब वह बड़ी हो जाएगी और पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जायेगी तो अपने मम्मी पापा को कभी भी, कोई भी दुख नहीं देगी। उन्हें बहुत सारी खुशियां देगी क्योंकि इन लोगों ने बहुत कष्ट उठाकर हमारा ख्याल रखा है, हमें पढ़ाया लिखाया है, वह भले ही सारे दुख सह लेगी लेकिन उसके मम्मी पापा को बहुत सारी खुशियां मिले । उसने मन ही मन यह बात सोची और एक कपड़े में मन्नत की गांठ बांधकर रख दी । कपड़े में गांठ बांधकर रखने वाली बात उसने अपनी मम्मी से सीखी है वो जब भी किसी काम को पूरा करना चाहती हैं तो अपने रुमाल या साड़ी के पल्लू में कोने में गांठ बांध लेती हैं और पूरा होने पर खोल देती हैं वैसे उसने अभी एक पिक्चर भी देखी “सांड की आँख” जिसमें दादी अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए दुपट्टे के छोर में गांठ बांध लेती हैं और फिर बात पूरी भी हो जाती है । सच में मन्नतें पूरी होती हैं ।

वो अक्सर ही यह बातें सोचती है लेकिन आज तो उसने पक्का निश्चय कर लिया है कि वह अपने मम्मी पापा का ख्याल बहुत अच्छे से रखेंगी, कभी कोई दुख या तकलीफ नहीं होने देगी।

रात को मानसी को नींद भी नहीं आ रही है । नींद आती भी तो कैसे पेट तो बराबर दर्द कर रहा है और ब्लड इतना ज्यादा बह रहा है कि ऐसे लग रहा है जैसे उसके सारे कपड़े खराब हो जायेँगे और शरीर का सारा ब्लड ही बाहर निकल कर आ जायेगा । इतनी तेजी से ब्लीडिंग हो रही है, वह बेड पर पेट के बल लेट गई शायद दर्द में इस तरह से लेटने में कुछ आराम मिल जाये,फिर किसी तरह से उसे नींद आ गई, सुबह जब आंख खुली तो देखा पूरा बिस्तर गीला गीला हो रहा है, चादर तो पूरी खराब हो गई है, उसे फिर से अफसोस होने लगा कि वह क्यों यहाँ चली आई ? अपनी मम्मी के साथ ही नानी के घर पर रहती, बाद में कभी गाना सीख लेती लेकिन उसे क्या पता था कि यह बीमारी भी इसी वक्त अचानक से आ जायेगी और ऐसी तकलीफ होगी, इतना ज्यादा दर्द, भी कोई लड़की कैसे एडजस्ट करती होगी, या फिर उसे ही सारे दुख, सारे कष्ट, सारी तकलीफ हो रही है। हे भगवान! सिर्फ लड़कियों को ही क्यों तकलीफ सहनी होती है, सारे दुख दर्द सब लड़कियों के ही नाम क्यों होते हैं, उन्हें ही क्यों दबाया जाता है? वैसे भी वह प्राकृतिक रूप से थोड़ी कमजोर ही होती हैं और इस तरह की यह प्रक्रिया करके उनके शरीर को इतना कमजोर क्यों बना देती है प्रकृति, जैसे कि अलका ने बताया कि मां बनने के लिए इस का होना बहुत जरूरी है लेकिन क्या प्रकृति ऐसा नहीं कर सकती थी कि मां बनने के लिए यह सब जरूरी ना होता ? हर महीने यह सब कष्ट नहीं सहना पड़ता, अलका ने उसे यह भी बताया है कि कम से कम 50, 55 साल की उम्र तक यह चलता रहेगा और हर महीने लगातार होगा, कोई महीने अगर नहीं होता है इसका मतलब होता है या तो कोई बीमारी है या फिर आप प्रेग्नेंट हो । अलका को यह सारी जानकारी पता नहीं कहां से मिल गई ? वह सारी बातें ढूंढकर न जाने कहाँ से ले आती है, घर ग्रहस्थी की बातें, औरतों की बातें, पास पड़ोसी की बातें, उसके दिलो-दिमाग में यह सब बातें ही चलती रहती हैं? उससे थोड़ा ही तो बड़ी है लेकिन व्यवहार बिलकुल अम्मा दादी जैसा है ।

मानसी के तो मन में केवल पढ़ाई की ही बातें रहती है। उसे खूब पढ़ाई करना है, आगे बढ़ना है, कुछ बहुत अच्छा बनना है, अपने पैरों पर खड़े होना और अपने मम्मी पापा को अच्छे से रखना है क्योंकि आज के जमाने में पैसा सबसे ज्यादा जरूरी चीज है । आज जिसके पास पैसा है उसी की इज्जत भी होती है वरना इज्जत करना तो दूर लोग पूछते भी नहीं है ? लोग अपने रिश्तेदारों को, अपने मिलने जुलने वालों को भी पैसे की माप पर ही मापते हैं । जिसके पास जितना ज्यादा पैसा होता है उसकी उतनी ही ज्यादा इज्जत होती है शायद आजकल यही नियम बन गया है । उस दिन चाणक्य को पढ़ रही थी तो उसमें लिखा था कि “कलयुग में सिर्फ पैसे से ही आपकी इज्जत होगी” अगर आपके पास पैसा है तो पूरी दुनिया आपके कदमों में होगी, इसलिए कलयुग में इंसान के पास पैसे का होना बहुत जरूरी है।

सुबह बिस्तर छोड़ कर उठने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था । पूरे शरीर में जैसे दर्द से कुछ टूट रहा था । हल्की-हल्की हरारत सी भी महसूस हो रही थी । शरीर में बहुत दर्द हो रहा था लेकिन अभी पेट का दर्द थोड़ा कम हो गया था । आंखें बिल्कुल खुल ही नहीं रही थी । आंखों में खूब सारी नींद भरी हुई थी लेकिन अब उठना होगा क्योंकि बेड की चादर पूरी तरह से गंदी हो गई है । उसने घड़ी की तरफ नजर डाली, अभी तो 7:00 ही बजा है, पापा घर पर नहीं है इसका मतलब पापा टहलने चले गए हैं । उनका तो टहलने का टाइम भी यही है, वह 8:00 बजे तक वापस लौट कर आयेँगे। फिर चाय और बिस्किट या कुछ और खाएंगे फिर वे अपनी दवाइयां लेंगे, उनको कितनी सारी तो दवाइयां तो खानी पड़ती हैं, शुगर की दवाई, वीपी की दवाई, गैस की दवाई और ना जाने किस किस की । पापा की लगातार दवाइयाँ चलती रहती हैं, एक दिन का भी गैप नहीं जाता है, न जाने कितनी बीमारियां उनके शरीर में भरी हुई है । इतना सारा पैसा लगता है उनकी दवाइयों में, डॉक्टर को दिखाने में, उनकी फीस में, हे भगवान जी मेरे पापा की तबीयत सही रखना । मानसी को लगता है कि उसके पापा को देखने के लिए तो कोई भी नहीं है सिर्फ मम्मी और खुद उसके, बड़े भाई बहन सिर्फ नाम के लिए हैं।

चलो मैं पापा के आने से पहले उठ जाती हूँ और चादर को सर्फ डालकर धो देती हूँ नहीं तो यह दाग शायद न छुट पाये । वो उठी और चादर को सर्फ में धोया लेकिन दाग साफ ही नहीं हो रहा था। उसे याद आया नमक या नीबू लगाकर रगड़ने से यह दाग निकल जाये । पर उससे धब्बा हल्का तो पड़ा लेकिन पूरी तरह से साफ ही नहीं हुआ ।

पापा वॉक करके वापस आ गए थे । उन्होने आकर चाय बनाई, मानसी को दी और खुद भी पी फिर पापा ने अपनी सिगरेट सुलगा ली थी और चुपचाप बैठकर एक तरफ उसे पीते रहे । मानसी भी बेड पर लेट गई बिना कोई बात किए ही खामोश उदास । पापा समझ रहे थे कि मानसी को मम्मी कि याद आ रही है इसलिए उदास और खामोश है । अलका के घर से खाना आ गया था । उन दोनों ने खाना खाया । मानसी को आज का दिन किसी तरह काटना था । फिर तो मम्मी आ ही जाएंगी, मानसी को अपनी मम्मी के आने का बेसब्री से इंतजार था कि जल्दी से मम्मी आए और उन्हें सारी बातें बताएं हालांकि अलका ने सब कुछ बताया था लेकिन फिर भी उसे अपनी मम्मी से सब बातें करनी थी । उनसे सब पूछना था । उसे बचपन का वह दिन याद आया जब उसकी नाक से बहुत सारा ब्लड निकला था और पापा घबरा गए थे डॉक्टर के पास ले जाने के लिए रिक्शा ले आये थे तब वह आठ नौ साल की थी । उसे नहीं पता था यह सब क्या हो गया है इसकी नाक से ऐसा क्यों हो रहा है तो मम्मी ने बताया था कि धूप में खेलने से नकसीर फूट गई है, इसमें ऐसे ही होता है । फिर उन्होंने उसके सिर पर खूब सारा ठंडा ठंडा पानी डाला था । फिर सूंघने के लिए मिट्टी दी थी और फिर अंगूर का रस थोड़ा-थोड़ा उसको पिलाया था । सीधे सीधे पलंग पर लिटा दिया था। उसकी दो-तीन बार ऐसे ही नकसीर फूटी थी फिर वह अपने आप से सही हो गई थी। जब पहली बार उसकी नकसीर फूटी थी तब भी वह घर में अकेली थी मम्मी नहीं थी । उस दिन घर में सिर्फ वह और पापा थे, मम्मी अल्का के साथ कहीं गयी हुई थी तब पापा बहुत बुरी तरह से घबरा गए थे कि यह सब क्या हो गया है वह भी बहुत परेशान हुई थी लेकिन फिर ठीक हो गया कोई दिक्कत नहीं रही थी और आज ऐसा, यह सब हो गया ।

जब नकसीर फूटी थी तो उस ने पापा को बता दिया था लेकिन आज अलका ने पापा को बताने के लिए मना क्यों किया और वह खुद भी बताने में झिझक रही थी जबकि यह भी तो एक शारीरिक प्रक्रिया ही है। यह कहीं कोई बीमारी तो है नहीं, उसे अपने पापा को सब बता देना चाहिए, अल्का अगर मना कर रही है तो करने दो।

चलो छोड़ो, अभी रहने दो, जब मम्मी आ जायेंगी तो वह खुद ही बता देंगी इसी तरह पूरी रात इन सब खयालों और बातों को सोचते सोचते ही गुजर गयी । जरा देर को ही नींद आई होगी । सुबह आंख खुली तो देखा पापा भी अपने बिस्तर पर लेटे हुए हैं शायद वे टहलने के लिए पार्क में नहीं गए।

पापा तो कभी भी लेट नहीं करते हैं चाहे कितनी भी बारिश आए तब भी वह चले जाते हैं छाता लेकर ही चले जाएंगे। वह थोड़ा बहुत चलेंगे फिर वापस आएंगे। उनका कहना है कि सुबह के समय में टहलने से शरीर में बीमारियां कुछ तो कम होगी या फिर उनका असर कम रहेगा । सुबह की ताजी हवा शरीर के स्वस्थय के लिए बहुत अच्छी होती है । पता नहीं पापा ने अपनी लाइफ में कितनी परेशानियां कितनी तकलीफ सही है इसीलिए उनके अनुभव कमाल के हैं । वे कितना कुछ उसे बताते समझाते रहते हैं ।

मेरी तो अभी इतनी उम्र भी नहीं है तब भी मेरे दिमाग में कितनी सारी बातें है कितनी परेशानी है कितनी तकलीफ हैं जबकि मेरे सर पर पापा और मम्मी सब मेरी देखभाल करने के लिए है कि पापा के पास ऐसा कोई भी नहीं है जिससे वह अपने मन की बात कह सकें वे मम्मी से भी अपने मन की बात नहीं कहते हैं ।

उन्हें कितनी भी कोई भी परेशानी हो लेकिन मम्मी से कभी नहीं कहेंगे अगर बीमार है तो अकेले ही दवाई लेने के लिए डॉक्टर के यहां चले जायेँगे अपने टेस्ट अकेले करा आयेंगे, इंजेक्शन अकेले जा कर लगा आयेंगे । कभी भी किसी का भी वह सहारा नहीं ढूंढते हैं, हाँ लेकिन उनको जब भी बुखार आता है, तो उनकी बहुत बुरी हालत हो जाती है। ठीक से बैठ भी नहीं पाते, उनको नशा या बेहोशी जैसी कुछ होने लगती है, तो उन्हें तब बहुत दिक्कत होती है, तब वे डॉ के पास मानसी के साथ ही जाते हैं। मानसी किसी तरह से उनको रिक्शे पर बिठाकर लेकर जाती है।

“अरे पापा रात को आप सोए नहीं थे क्या जो आपकी अभी तक आंख नहीं खुली, उठो पापा आपको पार्क में टहलने नहीं जाना क्या?”

“नहीं मानसी, आज मैं नहीं जाऊंगा आज मैं घर पर लेट कर तुम्हारी मम्मी का इंतजार करूंगा।”

“आप इंतजार करोगे, तब भी मम्मी उसी समय आयेगी, अगर आप इंतजार नहीं करोगे, तब भी वह उसी समय पर आयेगी इसलिए आप चुपचाप से उठो और टहलने के लिए पार्क में जाओ, तब तक मैं आपके लिए आज चाय नाश्ता बना कर रखती हूँ ।”

“ तेरे पेट का दर्द कैसा है तू ठीक है तो ना, अब कोई परेशानी तो नहीं है ?”

“ नहीं पापा, अभी मैं बिल्कुल ठीक हूँ, आज तो मम्मी आ रही है तो मैं वैसे ही बिल्कुल ठीक हो गई, अब कोई दर्द बर्द नहीं है।“

“चल यह ठीक रहा, मम्मी के आने के नाम से ही तेरी बिल्कुल तबीयत सही हो गई।”

“हाँ पापा, मैं मिस भी बहुत कर रही थी ना मम्मी को, पहली बार उनसे अलग रही थी । क्या आप उनको मिस नहीं कर रहे थे ?”

क्रमशः...