(12)
“हाँ जी पापा, मैं खा रही हूं लेकिन मैं बस यही सोच रही हूँ पापा कि मम्मी ने इस खाने में क्या मिलाया है ? इस खीर में ऐसा क्या डाला है ? कितना स्वाद मुँह में आ रहा है कि बस मैं बता ही नहीं सकती लेकिन फिर भी मैं बता रही हूँ कि पापा, मुझे मम्मी के हाथ का खाना इस दुनिया का सबसे अच्छा खाना लगता है, भले ही वह सूखे आलू और रोटी बना कर दे दें, तब भी मुझे बहुत अच्छा लगता है ।” मानसी ने चम्मच से खीर खाते हुए कहा ।
“बेटा, तू बिल्कुल सही कह रही है तेरी मम्मी के हाथ में जादू है। इसी जादू से ही तो इन्होंने मुझे सालों से बांध के रखा है, बढ़िया-बढ़िया खाना बनाकर खिलाती रहती है और जादू में बांध देती है और मैं इनके पल्लू से बंधा इनकी हर बात मानता रहता हूँ । जो यह कहती है मैं बस वही करता चला जाता हूँ, बिना कुछ सोचे विचारे सब करता ही जाता हूँ। तूने कभी देखा है मुझे किसी बात के लिए इनको मना करते हुए या ना करते हुए इनकी हर बात में तो मैं हाँ ही मिलाता हूँ और ऐसा किया है सिर्फ इस खाने के जादू ने।” पापा ने मज़ाकिया लहजे में कहा ।
“अच्छा पापा आप भी मानते हैं कि सच में मम्मी के हाथ में जादू है ना ?”
“हाँ बेटा, सच में मैं मानता हूँ कि पक्का उनके हाथों में जादू है जो कुछ वो बनाती हैं, मुझे खिलाती हैं और मेरे पेट में जादू का असर हो जाता है और फिर वह मेरे मस्तिष्क और मन में आ जाता है और उसी जादू से फिर यह हमें नचाती रहती हैं किसी कठपुतली की तरह से।“ यह कहते हुए पापा बहुत जोर से हंसे । इतनी तेज हंसते-हंसते अचानक उनको फंदा लग गया और उनको जोर ज़ोर से खांसी आने लगी।
मम्मी जल्दी से एक गिलास पानी लेकर आई और पापा को देते हुए बोली, “पहले खाना खा लो फिर हंस लेना और बातें कर लेना । तुम बाप बेटियों की तो ना बातें खत्म होती है ना ही हँसना खत्म होता है । हंसते और बातें ही करते रहोगे या आप सही से खाओगे पियोगे भी, नहीं तो फिर बीमार पड़ जाते हो ।“ मम्मी ने डांटते हुए कहा।
“ठीक है बाबा खा ही रहे हैं, और सुनो तुम्हें खिलाने पिलाने का ही काम है बस, हैं न ?” पापा ने पानी पीकर गिलास मम्मी को देते हुए कहा।
खाना खाने के बाद पापा छोटे हलवाई की दुकान से एक किलो लड्डू का डिब्बा लेकर आ गए और मानसी को देते हुए कहा कि “जाओ और पूरे मोहल्ले में दो दो लड्डू अपने हाथों से बाँट कर आओ । आज तुझे डिबेट में फर्स्ट प्राइज मिला है न।“
“तो इसमें लड्डू बांटने वाली कौन सी बात हो गई ? वो भी मोतीचूर के लड्डुओं का डिब्बा लेकर आ गए । ठीक है फ़र्स्ट प्राइस मिला है लेकिन पास हो, तब बांटो या कुछ और अच्छा करें तो बांटो यह क्या डिबेट में फर्स्ट प्राइज लाने में ही तुम लड्डू बँटवा रहे हो ?” मम्मी ने थोड़ा गुस्से से कहा ।
“मेरी बेटी, फर्स्ट प्राइस लेकर आई है, वो अब डिबेट में लाई है या किसी और में लेकर आई है लेकिन मेरा दिल इस समय खुशी से फूला नहीं समा रहा है और मैं चाहता हूँ कि मैं अपनी इस खुशी में पूरे मोहल्ले को शामिल कर लूँ और सबके घर में लड्डू जाएंगे, जब वे लड्डू खाएंगे तो मेरी बेटी को दुआ देंगे तो मेरी बेटी उन सबके आशीर्वाद से और तरक्की करेगी और आगे बढ़ेगी और जीवन में खुशियां लायेगी ।“
“हाँ क्यों नहीं, तुम्हें तो बस बहाना चाहिए । लड्डू बँटवाओ या कुछ भी करो । इससे खुश होकर लोग आशीर्वाद नहीं देंगे बल्कि हमारी बेटी को नजर लगा देंगे।“
“अरे मम्मी, क्या बेकार की बातें कर रही हैं, ठीक है न पापा को खुशी मिल रही है तो कर लेने दो, मन की खुशी से बढ़कर कोई दूसरी खुशी नहीं होती है आप ही तो कहती हैं न फिर क्यों गुस्सा हो रही हैं?” मानसी मम्मी पापा की प्यारी सी नोक झोंक सुनकर मन ही मन हंस पड़ी । हालांकि अंदर से मम्मी तो खुद ही इतना खुश हो रही है और ऊपर से दिखावा ऐसे कर रही है कि जैसे कि वह नाराज हो रही हैं। उनको भी खुशी तो बहुत हो रही है और खुद भी चाहती हैं कि मानसी की इस खुशी में लड्डू बंटे लेकिन उनको पापा को यूँ ही परेशान करना ही है। जब पापा को मौका मिलता है तो वे मम्मी को परेशान कर लेते हैं, इसी तरह से आज मम्मी को मौका मिल गया तो मम्मी परेशान कर ले रही है लेकिन इन दोनों की प्यारी सी नोकझोंक से ही तो घर में अच्छा लगता है अगर मम्मी पापा इस तरह से बोलते हैं, बात करते हैं, तभी तो पता चलता है कि इन दोनों का आपस में कितना ज्यादा प्यार है। जहां झगड़े हैं वहीं मोहब्बत है और जहां मोहब्बत है वहाँ यूं प्यारे झगड़े ।
मानसी अलका को अपने साथ लेकर पूरे मोहल्ले में सबको दो दो लड्डू देने चली गयी । सब लोग उसे बहुत आशीष दे रहे और उसकी तारीफ कर रहे हैं । मानसी बेटा, तू तो है ही बहुत प्यारी और तू पढ़ने में भी बहुत होशियार है, देखना तू बड़ी होकर बहुत समझदार निकलेगी और जरुर कुछ बनकर अपने पापा का नाम रोशन करेगी । यह मोहल्ले वाले लोग कितने अच्छे होते हैं, आज मानसी को पता चला । कितने खुश दिल होते हैं, और सुख दुख में हमेशा साथ देने को आतुर भी होते हैं ।
मानसी और अलका दोनों मानो एक दूसरे की परछाई से है, दोनों हमेशा एक साथ, जहां भी जाना है दोनों ही जाएंगे, नहीं तो कोई नहीं जाएगा, कितने प्यारे से दिन होते हैं बचपन के । ऐसे ही खुशी खुशी गुजरते हैं तब कोई चिंता फिकर नहीं होती, किसी बात की परवाह नहीं होती है । बस कभी-कभी उसे इस बात की परवाह होती है कि वह अपने मम्मी पापा का अच्छे से ख्याल रखें, उनके लिए कुछ करें और खुद अपना भविष्य इतना अच्छा बनाए कि लोग कहें, कि देखो वह मानसी के मम्मी पापा है, वह मानसी को देखो, हमारे शहर और हमारे ही मोहल्ले कि रहने वाली है, हम जानते हैं उसे और उसके मम्मी पापा को भी, तो बस यही एक प्रेरणा होती है मनुष्य के मन में और इससे ही आगे बढ़ने की कोशिश में कुछ लोग लगे रहते हैं, यही भावना मानसी के मन में भी है ।
ऐसे ही कब दिन महीने साल गुजरते चले जाते हैं पता ही नहीं चलता हंसते खेलते बातें करते खाते-पीते खेलते कूदते पढ़ते लिखते हुए ।
इस बार भी हर बार की तरह गर्मियों की छुट्टी में मानसी अपनी मम्मी के साथ नानी के घर गई, पापा घर पर ही रुके रहे । उनकी जिम्मेदारी अलका की मम्मी ने जो ले रखी । वह बड़े प्यार से उनको खाना बनाकर खिलाएंगी । मानसी पूरे 1 या 2 महीने तक अपनी नानी के घर पर रहती है इस बीच में पापा हमेशा आते जाते रहते हैं । इस बार भी वह आएंगे जाएंगे लेकिन अभी मानसी और मम्मी अपने मामा की कार में बैठकर नानी के घर चले गए हैं । जबसे मानसी थोड़ा बड़ी हुई है उसे अपनी नानी के घर पर ज्यादा अच्छा नहीं लगता है। हालांकि नानी, मामा, मामी उनकी बेटी बेटे सब कोई है पर वह मामा के बेटी और बेटे इतने बड़े हैं कि उन्के साथ मानसी को ज्यादा बात करने में अच्छा नहीं लगता है । वह लोग उसके साथ खेलते भी नहीं है । मानसी को नानी के घर पर जाकर अलका की बहुत याद आती है और गर्मी की छुट्टियों के दिन वहाँ पर रहकर काटना बहुत मुश्किल हो जाता है । अगर अलका वहां पर होती तो खूब मजे करती, खूब खेलती और खूब खाती पीती ।
हर बार जाना ही होता है क्योंकि मम्मी को पूरे साल में बस यही दो महीने मिलते हैं अपने घर जाने के लिए वैसे वे कहीं पर भी नहीं आ या जा नहीं पाती हैं मानसी की पढ़ाई की वजह से । हालांकि उसके मामा अपनी कार में खूब घुमाते हैं, खूब दूर-दूर तक लेकर जाते हैं । घर में खूब अच्छी-अच्छी चीजें बनवाते हैं । मानसी के लिए रोज मिठाई फल लेकर आते हैं । खूब प्यार से बातें करते हैं लेकिन फिर भी मानसी को अलका की बहुत याद आती है । इस बार मानसी ने अपने मम्मी पापा को पहले ही कह दिया था कि मम्मी, मैं इस बार नानी के घर में केवल 15 दिन ही रुकूँगी, उसके बाद वापस आ जाऊंगी और मैं कोई ऐसा कोर्स करूंगी जो आगे मेरे किसी काम आयेगा या फिर कोई हॉबी कोर्स करूंगी जिससे मेरे समय का सही से इस्तेमाल हो जायेगा । मैं हर साल यहां पर गर्मियों की छुट्टियों के पूरे 2 महीने बिताती हूं फिर जब वापस घर जाती हूँ तो स्कूल खुल जाते हैं और सारा समय यूँ ही बेकार चला जाता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा, मैं इन छुट्टियों में पूरे एक महीने का कोई क्रश जरूर कोर्स करूंगी । ऐसे ही और सब लड़कियां भी करती हैं । देखो हमारी अल्का भी तो इस बार सिलाई, कढ़ाई, बुनाई तीनों का कोर्स एक साथ ही कर रही है और मम्मी देखना वो कितने अच्छे से सब सीख जायेगी । मुझे इस बार 15 दिन के बाद घर वापस जाना है और वहाँ जाकर हारमोनियम बजाना सीखना है, हाँ मम्मा मुझे सिंगिंग सीखना है, मुझे बहुत पसंद है । उसने अपनी माँ से ज़िद की और माँ के मान जाने पर मानसी इस बार कुछ दिन के लिए ही जाने को राजी हुई है। 15 दिन के बाद उसके पापा उसे लेने के लिए नानी के घर आ जाएँगे और मम्मी कुछ दिनों के लिए वहीं पर अकेले रुक जायेंगी ।
हालांकि मम्मी ने मानसी को समझाया भी कि इस साल तो तुम अभी आठवीं क्लास में हो तो यहाँ पर रुक भी सकती हो लेकिन अगले साल तुम नवीं क्लास में आ जाओगी तो फिर उसके अगले साल तुम्हारे बोर्ड के एग्जाम होंगे तो उसकी वजह से तुम्हें और फिर मुझे भी आने को नहीं मिल पायेगा क्योंकि तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दोगी और मुझे तुम्हारा ख्याल रखने के लिए रुकना पड़ेगा। क्योंकि 10th का बोर्ड होगा तो उसकी पढ़ाई इतनी आसान नहीं है अगले मई जून में तो शायद ही हम लोग आ पाये, तुम्हारे कोचिंग क्लास होंगे । छोड़ो मत करो कोई कोर्स, आगे और भी बहुत मौके मिलेंगे । मम्मी ने मानसी को समझाने की बहुत कोशिश की थी । पर मानसी ने मना करते हुए कहा था, “नहीं मम्मी, आपको लगता है कि अभी बहुत मौके मिलेंगे लेकिन गया समय वापस नहीं आता है,अब मैं बड़ी होने लगी हूँ, मैं समझ गई हूँ कि अगर अभी से मैं ध्यान नहीं दूंगी तो फिर मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी। मुझे लगता है कि मेरे पास अभी सिर्फ यही दो महीने हैं जब मैं कुछ कर सकती हूं फिर मेरे स्कूल खुल जाएँगे और मैं स्कूल जाने लगूँगी फिर उसके बाद में मेरे एग्जाम की तैयारी शुरु हो जायेगी मेरी कोचिंग क्लास होगी और मैं तब क्या कर पाऊंगी, मम्मी आप समझते क्यों नहीं हो ?” मानसी ने किसी तरह से अपनी मम्मी को समझाया और उसने 15 दिन के बाद पापा के साथ घर वापस जाने के लिए अपनी मम्मी को राजी कर लिया है और वह सच में बहुत खुश हो गयी है ।
“ठीक है बेटा, अब तेरा मन है तो तू कर ले कोर्स ।“ आखिर मम्मी को उसकी हाँ में हाँ मिलानी पड़ी ।
“मैं घर में पापा के साथ रहूंगी, उनकी भी देखभाल होती रहेगी और हमारा कोर्स भी पूरा हो जाएगा, पापा अकेले परेशान हो जाते होंगे न ?”प्लीज मम्मी आप नाराज मत होना ? मानसी ने बड़े प्यार से कहा ।
“हाँ ठीक है बेटा, तुम चली जाना और अपना हॉबी कोर्स कर लेना, अब तो खुश हो न ?” मम्मी ने कहा ।
“हाँ मम्मी ।” वो मुसकुराती हुई उनके गले से लग गयी ।
ठीक 15 दिन के बाद पापा उसे लेने के लिए नानी के घर आ गये और वह वापस पापा के साथ अपने घर चली गई लेकिन मम्मी वहीं पर रुकी रहीं क्योंकि मम्मी को यही दो महीने मिलते हैं और मानसी ने ही मम्मी को वहां नानी के पास रुकने के लिए कहा । वे तो उसके साथ आ जाना चाहती लेकिन मानसी ने उनको मना करते हुए कहा, “मम्मी अब मैं बड़ी हो गयी हूँ ना, तो मैं पापा की देखभाल करूंगी । मेरे जाने से पापा को भी अच्छा लगेगा क्योंकि पापा को भी तो अब किसी सहारे की जरूरत पड़ती है।
“ठीक है बेटा तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम सब संभाल लोगी, तुम बड़ी हो गई हो, तो ठीक है मुझे तुम पर विश्वास है तुम जाओ और सही से रहना ।“ मम्मी ने मानसी समझाया ।
क्रमशः...