Aur Usne - 10 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 10

Featured Books
Categories
Share

और उसने - 10

(10)

मानसी सो तो गई लेकिन उसकी पूरी रात ख्वाबों में ही निकल गई । अजीबोगरीब सपने आते रहे । सब गड़बड़ सा हो रहा है । कभी अलका की बातें, कभी आर्टिकल की बातें, कभी स्कूल की और कभी मम्मी पापा की । बातों ही बातों के सपनों आते रहे । सब बोल रहे हैं, कुछ कह रहे हैं । ऐसे ही सपने वो देखती रही और पूरी रात ही गुजर गई ।आजकल मानसी की नींद बिल्कुल भी पूरी नहीं हो रही है । कितनी सारी टेंशन उसके दिमाग में भर गई है । सुबह भी जल्दी आंख खुल गई पापा उठ गए हैं, वे तो रोज ही जल्दी उठते हैं । सुबह 5:00 बजे उनकी आंख खुल जाती है क्योंकि वह रात को 9:00 बजे तक 9:30 बजे तक हर हाल में सो जाते हैं । सुबह 5:00 बजे उठकर वे योगा करते हैं फिर उसके बाद वॉक के लिए पार्क में चले जाते हैं । यही उनका रोज का नियम है । मम्मी जब उठती है, नहा धो कर तैयार होती हैं और चाय वगैरह बना कर वह मंदिर चली जाती है फिर उसके बाद मानसी उठती है।मम्मी या कभी पापा के हाथ की बनी चाय पीती है और अपना नाश्ता खुद बनाकर और पापा का एक परांठा सेकती है फिर तैयार होकर स्कूल जाती है । सबका रोज का यही नियम है लेकिन आज इतनी जल्दी मानसी को उठा देखकर उसके पापा बोले, “क्या हुआ मानसी, रात में नींद नहीं आई ? तू आज इतनी जल्दी कैसे उठ गई ?”

“हाँ पापा मुझे रात में सही से नींद नहीं आई, खूब सारे सपने आते रहे।“

“तू इतनी चिंता फिक्र भी तो करती है, तुझे घर की हर बात की तो चिंता लगी रहती है। न जाने तू क्यों करती है फिकर, अभी तो मैं जिंदा बैठा हूं। सब कुछ मैं देख लूंगा तू बस मस्त रहा कर ।”

“हाँ पापा, मुझे पता है आप सब देख लोगे लेकिन पता नहीं क्यों, मेरे मन में इतनी सारी बातें आती हैं, इतने ख्याल आते हैं कि मैं परेशान हो जाती हूँ।”

“चल अच्छा अभी तू थोड़ी देर लेट जा, अभी आराम कर ले, मैं पार्क से लौट कर आता हूँ फिर हम रोजाना की तरह तुझे उठाएंगे और साथ में चाय पिएंगे।”

“नहीं पापा, अब मैं नहीं सोऊंगी, मेरी एक बार आँख खुल गई तो फिर मुझे नींद नहीं आती है।”

“बेटा, फिर मेरा आज का सारा रूटीन गड़बड़ा जायेगा, बाकी तू देख ले।” पापा हंसते हुए बोले ।

“कोई बात नहीं पापा, एक दिन रूटीन गड़बड़ा जाने दो ।” मानसी उठते हुए बोली।

“तुझे उठाने का, तेरे लिए चाय बनाने का, तुझे सही गलत समझाने का यही तो मेरा रोज का रूटीन है ।अगर तू अभी थोड़ी देर और सो जाती तो ठीक रहता।”

“ अच्छा ठीक है, अब आप इतना कह रहे हो तो मैं जा कर लेट जाती हूँ पर अभी नींद तो नहीं आने की ।“

मानसी जाकर बेड पर लेट गई लेकिन उसकी आंखों से नींद कोसों दूर है और अब कैसे नींद आयेगी, रात भर भी सपनों में न जाने कहां-कहां के आलतू फालतू के सपने उसके दिमाग पर छाए रहे । लेकिन पापा की बातों का ख्याल आते ही वो आँखें बंद करके लेटी रही ।

मानसी ने कल रात लाइट भी बंद नहीं की क्योंकि उसे थोड़ा डर भी लग रहा, अब मम्मी आयेगी तो नाराज होंगी रात को तूने लाइट भी जलती छोड़ दी या रात भर पढ़ाई में लगी रही।

“हे भगवान, जल्दी उठो तो भी प्रॉब्लम, देर से उठो तो भी प्रॉब्लम, यह बड़े लोग अपने काम तो अपने हिसाब से करेंगे लेकिन हम बच्चे अपने हिसाब से कुछ न करें जैसा वे लोग कहें वैसा ही करें, अब मैं भी तो बड़ी हो गयी हूँ। मानसी मन ही मन झींकी फिर खुद को ही समझाया, चलो अच्छा है कहने दो, शायद अभी मैं उनको छोटी लगती हूं ना, तो मुझे उनके हिसाब से ही पालने पोसने दो, यह करने में उन्हें भी अच्छा लगता है, उन्हें भी खुशी होती है और मुझे भी कोई प्रॉब्लम नहीं है।

मानसी लेटी लेटी यही सब सोच रही है कि कब नींद की झपकी आ गई और उसे पता ही नहीं चला।

पापा ने आकर जगाया, उसको चाय पीने को दी और वह स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई। अपना परांठा बनाया, टिफिन में रखा, पापा को एक पराठा देकर वह स्कूल चली गई।

आज अलका को स्कूल जाना नहीं है सो वह अकेले ही चली गयी। स्कूल पहुँचकर उसके दिमाग में अल्का की बातें गूंजने लगी, जब लड़कियां बड़ी हो जाती हैं तो उनको पीरियड होता है, आज वो हर लड़की को बड़े ध्यान से देख रही है ।

किसी तरह से उसने इन विचारों से छुटकारा पाया और आखिर उसने बहुत अच्छे से अपना आर्टिकल तैयार कर लिया । एक्प्रेशन और सारी भाव भंगिमा भी बहुत अच्छे से वो सीख गई है ।

पाँच दिनों तक तो अलका न स्कूल आई और न ही वो भी अल्का के घर गयी । कोई अंजाना सा डर उसके मन में बैठ गया ।

खैर उसने अपना आलेख बहुत अच्छे से याद करके मम्मी को सुनाकर और हाथ व चेहरे के भावभंगिमा को दिखाया।

मम्मी को बहुत अच्छा लगा और वे बोली, “बेटा तुम्हारी मेंहनत जरूर सफल होगी।”

उसने जिस डिबेट में ( वाद विवाद प्रतियोगिता में) भाग लिया है, उसके पक्ष में अपना सबजेक्ट रखा है । आखिर वो दिन भी आ ही गया जब कंपटीशन होना निश्चित हुआ । उसको शहर के ही बॉयज स्कूल में जाना है । कई अन्य स्कूलों के बच्चे भी आए हैं जिसमें कुछ लड़कियां,कुछ लड़के हैं । कुल मिलाकर 8 लड़कियां होगी लेकिन 12 लड़के हैं । जब मानसी उस स्कूल में पहुंची जहां डिबेट होनी है तब उसे वहाँ के लड़के ऐसे देख रहे, कि जाने कब से या कभी उन लोगों ने कोई लड़की देखी ही ना हो । मानसी को थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन क्या कर सकते हैं उसे तो अच्छे से अपनी परफॉर्मेंस देनी है, देखने दो इन लोगों को यूँ ही हमें घूर घूर कर । प्रतियोगिता शुरू हो गयी है, जब मानसी का नाम पुकारा गया तो पूरा हाल तालियों से गड़बड़ा उठा और उसमें सबसे तेज बजती हुई ताली अलका ही है, उन बजती हुई तालियों के बीच ही वो मंच पर जाकर खड़ी हो गई, उसका दिल बहुत तेज तेज धड़क रहा है, बहुत घबराहट भी हो रही है, पता नहीं कैसे कर पायेगी लेकिन जब उसने माइक संभाला और उसने सामने ना देखते हुए अपना पूरा ध्यान उस डिबेट की तरफ ही लगा दिया जो उसने पक्ष में बोलने के लिए तैयार किया और उसने इतने अच्छे से परफॉर्मेस दी कि उसके बोलने के समय पूरा हॉल शांत हो गया लेकिन जब उसका बोलना खत्म हुआ तो फिर पूरा हाल बहुत तेज तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा। मानसी अपना परफॉर्मेंस देकर चुपचाप हॉल में अपनी कुर्सी पर आकर अल्का के पास बैठ गई । अलका ने कहा, “तू बेकार ही डर रही, तूने बहुत अच्छा बोला ।“ करीब 3 घंटे तक प्रोग्राम चला । सारे स्कूल के बच्चों ने बहुत अच्छे से बोला । खूब समा बंध गया था । फिर अंत में जब रिजल्ट की बारी आई तो उसके ही स्कूल की एक लड़की गजाला को थर्ड प्राइज के लिए बुलाया गया, सेकंड प्राइस एक लड़के को मिला, मानसी बहुत उदास और निराश हो गई थी, उसे लगा कि उसे अब कोई प्राइज नहीं मिलेगा, उसकी सारी मेहनत बेकार चली गयी। वह चुप होकर बैठ गई थी लेकिन अंदर से रोना आ रहा था और किसी भी तरह से उसके आँसू नहीं रुक रहे ।

अल्का ने उसे समझाते हुए कहा, “कोई बात नहीं तूने तो अपना काम बहुत अच्छे से किया है न, अभी प्राइस नहीं मिला तो अगली बार जरूर मिलेगा, तू हिम्मत मत हार, मुझे विश्वास है तुझे कुछ न कुछ जरूर मिलेगा । मुझे पता है तूने बहुत मेहनत करी है, मैंने तुझे देखा है किस तरह से इस लेख को तैयार करने में लगी रही है रात रात भर।”

हां अलका, कोई बात नहीं लेकिन मम्मी पापा दोनों कितने आस के साथ बैठे होंगे कि मानसी कोई न कोई प्राइस तो जरूर लेकर आयेगी । तभी हाल में मानसी का नाम गूँजा फर्स्ट प्राइज जाता है मानसी को।

सभी बच्चे बड़े उत्साह में तालियां बजाने लगे, मानसी अपना नाम सुनकर फिर से खुशी के आंसूओं से रो पड़ी और उसने कसकर अलका को अपने गले से लगा लिया । अल्का ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए हौले से कहा, “देखा मैं अभी कह रही ना, तुझे जरूर कुछ ना कुछ प्राइस मिलेगा, तू जरूर जीतेगी, तेरी मेहनत सफल जरूर होगी।“

मानसी को लग रहा है कि आज उसके पापा के कहे शब्द पूरे हो गए हैं, वे उस दिन कह रहे कि लिस्ट में आज तेरा नाम सेकिंड नंबर पर नाम आया है लेकिन जब कंपटीशन होगा तो तू फ़र्स्ट प्राइस ही जीत कर लाएगी । कहते हैं न कभी कभी जीभ पर सरस्वती का बास होता है बस वही हुआ है और पापा की बात सच हो गयी लग रही है ।

मानसी को प्राइस में एक किताब और एक लिफाफा मिला उसमें कुछ रुपये रखे हुए थे इसके साथ ही उसे जज की तरफ से स्पेशल प्राइस भी दिया गया, मानसी खुशी के मारे उछल पड़ी । वो मन ही मन बहुत खुश हो रही थी । उसने तो यह सोचा ही नहीं कि उसे फर्स्ट प्राइज मिलेगा। हाँ यह उम्मीद जरूर रही कि कोई ना कोई प्राइस तो उसे अवश्य मिलेगा।

प्राइस लेने के बाद सभी बच्चों के लिए डायनिंग हॉल में नाश्ते का अरेंजमेंट किया गया है लेकिन मानसी खुशी के मारे कुछ खाना नहीं चाह रही है, उसे लग रहा है कि जल्दी से पहले वो अपने घर पहुंच जाए और अपने पापा, मम्मी को अपना प्राइस दिखा दे फिर उसके बाद कुछ और काम करें पर अल्का बोली, “नहीं पहले कुछ खा लेते हैं उसके बाद घर चलते हैं।“

“अरे नहीं बहन, रहने दो घर पर जाकर खाते हैं न ।“ मानसी ने कहा ।

अलका बोली, “चल ठीक है मानसी नाश्ता रहने दे बस घर ही चलते हैं लेकिन पहले देखो अपना रिक्शावाला आया भी है या नहीं हम घर जाएंगे कैसे ?”

“ओहह, यह तो सही कह रही है, यहाँ से घर भी बहुत दूर है रिक्शे वाला आयेगा तब ही तो जा पाएंगे ।“ वह लोग यह सब बातें कर ही रहे कि उसकी क्लास टीचर आ गई और मानसी की पीठ थपथपाते हुए बोली, “मुझे तुम पर गर्व है मानसी बेटा । मुझे विश्वास था तुम कोई प्राइस तो जरुर जीतोगी क्योंकि तुम्हारी लगन देखकर ऐसा ही लग रहा लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि तुम फर्स्ट प्राइज जीत जाओगी और उसके साथ में स्पेशल प्राइस भी अपने नाम कर लोगी। पता है बेटा मेहनत और सच्ची लगन से सब कुछ हासिल हो सकता है ।” उनके चेहरे से खुशी छलक रही ।

“ थैंक्यू मैम, आपने मुझ पर इतना विश्वास रखा, आपके विश्वास का ही फल है कि मैंने यह प्राइस जीता।” मानसी ने मैडम से कहा।

“खुश रहो बेटा, खूब तरक्की करो और खूब आगे बढ़ो, मैं यही चाहती हूँ कि अपने स्कूल और मम्मी पापा का नाम रोशन करो । अभी तो तुम्हारा केवल डिस्ट्रिक्ट लेवल पर कॉम्पटीशन हुआ है फिर नेशनल लेवल पर तुम जाओ, उसके बाद तुम अंतरराष्ट्रीय लेवल पर जाकर फर्स्ट प्राइज को जीत कर लेकर आओ। तो हमारा सर गर्व से ऊंचा हो जायेगा कि हमारे स्कूल की लड़की इतना अच्छा काम कर रही है, इतना अच्छा लिख रही है, इतना अच्छा पढ़ रही है और इतना अच्छा बोल भी रही है। शाबाश बेटा, खूब खुश रहो, खूब आगे बढ़ो।” मैडम तो शायद आज सारे आशीषों से उसे नबाज़ देना चाहती हैं ।

“मैडम मैं पूरी कोशिश करूंगी कि मैं यह सब कर पाऊं, अगला डिबेट कंपटीशन जब भी होगा, उससे पहले मैं तैयारी शुरू कर दूंगी और कोई ना कोई प्राइस तो जरूर लाऊंगी। फ़र्स्ट आने के लिए मैं बस कोशिश करूंगी और मैं हमेशा कोशिश करती रहूंगी, जैसे मैंने इस बार कोशिश की ।“ मानसी खुश होकर बोली।

“शाबाश बेटा, मुझे तुमसे यही उम्मीद है। मुझे लग रहा है कि तुम कोशिश करती हो और जो कोशिश करते हैं वह कभी नहीं हारते क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।”

“जी मैडम, चलो अच्छा मैडम फिर अब मैं घर जाऊं क्या?”

“नहीं बेटा अभी नहीं, पहले कुछ खा लो। नाश्ता करो, चाय वगैरह सब है,जो भी तुम्हें लेना है वह तुम ले लो, उसके बाद मेरे साथ चलना मैं तुम लोगों को कार से तुम्हारे घर तक छोड़ दूंगी।”

“थैंक यू मैडम, पर आप क्यो परेशान होंगी मेरा रिक्शावाला आयेगा न, मैं उसके साथ चली जाऊंगी और अलका भी तो हमारे साथ है, मैं अकेले थोड़ी ना जाऊंगी।”

“ठीक है मानसी बेटा, पहले तुम लोग नाश्ता करो फिर उसके बाद तुम अलका के साथ रिक्शे में चली जाना लेकिन बिना कुछ खाये मत जाना।”यह कहकर मैडम स्कूल की और टीचरों के पास जाकर खड़ी हो गई। मानसी ने अल्का से कहा, बहन अब तो खा कर ही जाना होगा जब क्लास टीचर इतना कह कर गयी हैं लेकिन एक काम करना तू अपनी ही प्लेट में मेरे लिए भी थोड़ा कुछ रख लेना।”

अलका ने एक प्लेट उठाई और अपना और उसका नाश्ता लगा लिया। उसी एक ही प्लेट में दो गुलाब जामुन, बर्फी, समोसे, नमकीन और 2, 4 बिस्किट रख लिए। वहां पर और भी कुछ खाने का सामान रखा हुआ है लेकिन उन लोगों ने बस इतना ही सामान लिया है। वहाँ पर चाय भी है लेकिन चाय पीने का मन नहीं था तो एक तरफ जाकर बैठ गयी और खाने लगी। अल्का तुझे समोसे खाने का बहुत मन है न, “चल अब तू एक साथ दो समोसे खा ले एक अपना और एक मेरा।”

पर समोसे तो तुझे भी पसंद हैं ....

 

क्रमशः...