Aur Usne - 11 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 11

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और उसने - 11

(11)

तभी वहां पर और भी बच्चे आ गए और उससे कहने लगे, “मानसी जी आपने बहुत अच्छा बोला । आज आप बहुत अच्छा बोल ही नहीं रहे बल्कि इतना अच्छा एक्स्प्रेशन भी दे रहे । आपको सुनकर बहुत अच्छा लगा, जब आप आप बोल रहे तो हम लोग एकदम से शांत होकर सिर्फ न आपका भाषण ही सुनते रह गए, बल्कि सुमधुर आवाज में भी खो गए क्योंकि आपकी आवाज बहुत अच्छी है। न जाने क्या क्या वे लोग बोले जा रहे हैं और मानसी कुछ बोल ही नहीं पा रही है सिर्फ मुस्कुरा दे रही है क्योंकि यह वही बच्चे हैं, जो सुबह उसे घूर घूर कर देख रहे और अब वही लोग बड़ी इज्जत के साथ उसे देख रहे हैं, बहुत खुश हो रहे हैं कि एक लड़की होकर भी उसने फर्स्ट प्राइज अपने नाम किया है, फर्स्ट प्राइज के साथ स्पेशल प्राइस भी।

मानसी को बेहद खुशी हो रही है इसीलिए वह चाह रही है कि पहले वह घर जाए अपने मम्मी पापा से मिले और उन लोगों के साथ अपनी खुशी को भी शेयर करे लेकिन मैडम और अल्का के कहने पर उसे यहाँ पर रुकना पड़ रहा है । चलो कोई बात नहीं अभी रिक्शे से 10 मिनट में घर पहुंच जाऊंगी।

“अल्का जल्दी जल्दी से खा ले तुझे जो कुछ भी खाना है । मैं तो बस एक बर्फी और नमकीन ही खाऊंगी और चाय भी नहीं पीनी है बस पानी पी लेती हूँ तुझे चाय पीनी है अल्का ?”

“हाँ ।” यह कहती हुई अल्का मुस्कुराई।

“फिर तू आराम से खाती पीती रह, मैं तो जा रही हूँ ।“मानसी को अल्का के ऊपर आज बड़ा गुस्सा आ रहा है ।

वो उठी पानी पिया और घर जाने के लिए हाल से बाहर निकलने लगी ।

“रुक तो मानसी, मैं चाय नहीं पीती हूँ घर पर भी नहीं न, तुझे तो पता ही है, वो तो मैं तुझे चिढाने के लिए कह रही हूँ।” अल्का ने हँसते हुए कहा।

“अल्का देख, मेरा मूड खराब मत कर।”

“आपको नहीं खाना है मानसी दी, तो आप यह डिब्बा रख लो घर जाकर खा लेंना।“ एक लड़के ने नाश्ते का डिब्बा देते हुए कहा।

“भाई तू इसे दे दे ।“ मानसी ने अल्का की तरफ इशारा करते हुए उस लड़के से कहा।

अलका ने जल्दी से खाया और नाश्ते का डिब्बा लेकर वो दोनों बाहर आ गयी। वहाँ उसका रिक्शावाला तो अभी नहीं आया है लेकिन मानसी के पापा एक तरफ को खड़े हुए हैं। मानसी भागती हुई गई और पापा के गले लगते ही बोली, “पापा देखो, मुझे फर्स्ट प्राइज मिला है आज मैं बहुत खुश हूँ।“ वह खुशी के मारे बहुत तेज उछल रही है ।

“वाह मानसी बेटा, इसलिए तो मैं आया हूँ, मुझे पता था मेरी बेटी जरूर कोई ना कोई प्राइस लेकर आयेगी और उससे उसे इतनी खुशी मिली होगी जो अकेले संभाली नहीं जाएगी,,, समझी ।“ पापा हँसते हुए बोले।

“अरे पापा ।“ मानसी बोली ।

“हाँ बेटा, सच में । उसे प्राइस में इतना सारा सामान भी तो मिला होगा न, तो मेरी बेटी अकेले कैसे उठाकर घर ले कर आ पायेगी, बस इसीलिए मैं चला आया ।“

मानसी पापा की इस बात पर खूब जोर से हंसी और खुशी से उनके गले लग गयी । पापा ने उसे प्यार से सहलाते हुए उसका माथा चूम लिया।

मानसी पापा के साथ स्कूटर पर बैठ गई अल्का भी उसके साथ में ही बैठी थी, बस पापा बैठने ही वाले थे कि तभी उसका रिक्शावाला आ गया।

“अरे भैया जी, आप आ गए, आज तो मैं अपने पापा के साथ उनके स्कूटर पर बैठकर घर जा रही हूँ।”

“मैं तो बहुत जल्दी जल्दी भाग कर आया कि तुम्हें देर हो रही होगी और तुम हमारा इंतजार कर रही होगी।” स्कूल के बच्चों को भी उनके घर नहीं छोड़ा।

“क्या करें भैया जी, पापा अचानक आ गए, मुझे लगा कि वो नहीं आएंगे और अब आ गए हैं तो मैं इनके साथ ही घर जाऊंगी । अब आप ऐसा करो, जल्दी से वापस स्कूल चले जाओ और बच्चों को उनके घर छोड़ दो।“ मानसी ने उसे समझाया, “और हाँ भैया जी सुनो, आज मुझे फर्स्ट प्राइज मिला है। मैं कल आपके लिए लड्डू लेकर आऊंगी, अभी आप यह बर्फी खा लो। मानसी ने डब्बे में से दो बर्फी निकाल कर उसे देते हुए कहा।

“अरे वाह बिटिया रानी, तुम फर्स्ट आई हो, खूब तरक्की करो, तुम खूब खुश रहो । मुझे पता है तुम बहुत अच्छी लड़की बनोगी।“ रिक्शावाला तो पहले से ही मानसी को बहुत पसंद करता है । उसे लगता है कि यह बहुत समझदार और प्यारी बच्ची है इसलिए वह हमेशा उसकी बात भी मानता है, वह जब भी कुछ कहती है तो वह उसकी हर बात को बड़े मन से सुनता है और किसी बच्चे की बात पर इतना ध्यान नहीं देता है ।

“धन्यवाद भैया जी, अब पहले आप जाओ और बच्चों को घर छोड़ दो, मैं और अलका दोनों पापा के साथ उनके स्कूटर पर जा रही हूँ, चिंता मत करो।“

“ठीक है मानसी बेटा, मैं जा रहा हूँ और तुम पढ़ाई में अपना खूब मन लगा कर रखो, खूब अच्छे बच्चे बनो।“

“हाँ जी भैया जी, ठीक है।“

रिक्शावाला चला गया, मानसी अपने पापा के साथ घर जा रही है । अलका भी उसके साथ ही है । मानसी ने बड़े प्यार से अलका को नाश्ते का डिब्बा देते हुए कहा, “ले अलका, इसे तू खा लेना बहन, तुझे मेरी वजह से वहां पर सही से खाने को नहीं मिला ना?”

“नहीं मानसी, मैंने तो खूब अच्छे से खाया है और यह तेरा हिस्सा है इसे तू ही चुपचाप से खा लेना, मैं खा कर आई हूँ, मैं तेरी तरह नहीं हूँ कि ना खाऊं या नखरे दिखाती रहूँ । मुझे जो अच्छा लगता है वह मजे से खा लेती हूँ । मुझे समोसा पसंद है मैं ने खा लिया, मुझे गुलाब जामुन पसंद है मैंने खा लिया, अच्छा चल, अब मैं घर जा रही हूँ, तू भी जल्दी से अपने घर जा वहाँ चाची जी तेरा इंतजार कर रही होंगी ।“

“ हाँ अलका, मैं जा रही हूँ मैं तो मम्मी से मिलने के लिए बहुत बेताब हो रही हूँ । वे कितनी खुश होंगी जब मैं उन्हें बताऊंगी कि मुझे फर्स्ट प्राइज मिला है उसके साथ में स्पेशल प्राइस भी मिला है,, आज उनकी खुशी के कोई ठिकाने नहीं होंगे।“ मानसी खुश होकर बोली।

घर का दरवाजा खुला हुआ ही है शायद मम्मा को उसके आने की भनक लग गयी होगी । वह तेजी से चलती हुई गई और जाकर सीधे अपनी मम्मी के गले से लग गई, मम्मी ने उसकी आंखों में इतनी खुशी पहली बार देखी है, उसकी आंखें खुशी से चमक रही हैं, मम्मी मुझे फर्स्ट प्राइज मिला और देखो स्पेशल प्राइस भी साथ में मुझे लिफाफे में कुछ रुपए भी मिले हैं, यह आप रखो । यह सिर्फ आपके लिए और पापा के लिए हैं। इसमें से आप दोनों लोगों के लिए गिफ्ट आएंगे और किसी के लिए कुछ नहीं आयेगा और मम्मी देखो इसके अलावा मुझे सर्टिफिकेट भी मिला है मम्मी को सारा सामान पकड़ाते हुए मानसी ने कहा, “इसे आप भगवान के पास रख दो ।“

“ हां हां बेटा ठीक है, ठीक है, अब चुप हो जा और कितना बोलेगी, बाकी बाद में बोलना या फिर धीरे-धीरे से, हल्के हल्के से एक एक बात बोल, ऐसे तो समझ में ही नहीं आ रहा है कि तू क्या बोल रही है या तू क्या कह रही है ?” तब तक पापा भी स्कूटर को खड़ा करके अंदर आ गए ।

“लीजिए पापा, आपके और मम्मा के लिए हैं । देखो इसमें कितने रुपए हैं इससे आपके नए कपड़े आ जाएँगे?“

“नहीं बेटा यह तेरा इनाम है, तो तेरे लिए ही कपड़े आएंगे, इसे तू अपने पास ही रख।“

“नहीं पापा यह आपके और मम्मी के लिए है इनसे आपके और मम्मी के नए कपड़े आएंगे । कब से आप दोनों ने नए कपड़े नहीं बनवाए हैं । अब आप इसे खोल कर तो देखो, इसमें कितने रुपए रखे हुए हैं ? मानसी ने कहा ।

“नहीं मानसी बेटा, यह तो तुम ही खोल कर देखो तुम्हें मिला है ना, तुम्हारी पहली कमाई, तुम्हारा पहला इनाम है।” पापा ने प्यार से समझाते हुए कहा।

“ हां पापा पहला तो है लेकिन अब तो मुझे यूं ही मिलते रहेंगे, रोज-रोज कहीं ना कहीं से कमाई होती रहेगी । मैं चाहती हूँ कि मैं बस काम करती रहूं क्योंकि अब आपको घर में रहकर आराम करना है । बहुत काम कर लिया है आपने सबके लिए।” मानसी बड़े उत्साह में बोलती जा रही है ।

“मुझे पता है । अब तुम ही काम करोगी और मैं आराम करूंगा क्योंकि तुम मेरी सबसे लाडली बेटी हो और मुझे तुमसे बहुत उम्मीद है लेकिन पहले पढ़ लिख लो, अच्छे से कुछ बन जाओ फिर काम करना फिर पैसे कमाना, अभी तो तुम मेरी जिम्मेदारी हो और मुझे ठीक से निभाने दो ।“

“ ठीक है पापा, अब आप इतने भाषण मत दो क्योंकि भाषण तो मैं देकर आई हूँ । अब यह देखो मेरा लिफाफा इसमें कितने रुपए रखे हुए हैं ?” मानसी ने खुशी से चहकते हुए कहा ।

“ अपनी मम्मी को दे दो । मम्मी ही देखेंगी कि कितने रुपए रखे हुए हैं ? लक्ष्मी अगर लक्ष्मी के हाथ में जाये तो बरकत होती है ।” पापा ने मानसी से कहा ।

“ठीक है पापा, आपकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी इसलिए मैंने वहाँ पर आपको नहीं दिए । मुझे पता है कि आप मम्मी की बहुत ज्यादा इज्जत करते हो, बहुत ज्यादा प्यार करते हो, उनकी हर बात मानते हो, वे जैसा कहती हैं वैसा ही करते हो इसीलिए आप आज इतने सुखी हो । हमारे पास अगर कुछ नहीं है तब भी हमारे पास सब सुख हैं, सारी खुशियां हैं । कोई बात नहीं है, पैसे कम है तो क्या हुआ पैसों से ही थोड़े ना कोई खुशियां आती है। इंसान के मन में सकूँ हो तभी तो खुशियां आती है ।“ मानसी ने कहा ।

“ मेरी प्यारी बेटा, तू तो बहुत समझदार हो गई है । मुझे नहीं लगता था कि एक ही डिबेट जीत के तू इतनी समझदार हो जाएगी ?” पापा ने उससे बड़े मजाकिया लहजे में कहा ।

“ हा हा हा हा हा, आप भी न पापा ?” मानसी खूब जोर से हंसी मानों आज उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही न हो।

मानसी ने मम्मी को लिफाफा पकड़ाया और मम्मी ने सारा सामान ले जाकर भगवान की अलमारी में रख दिया और वे मानसी से बोली, “मानसी चलो बेटा पहले हाथ मुंह धो लो, फिर मैंने तुम्हारे लिए आज खीर पूरी बनाई है उसे खाओ।“

“अरे वाह ! मेरी फेवरेट, मुझे खीर पूरी बहुत पसंद है । पता है मम्मी, वहाँ पर खाने को इतना सारा नाश्ता मिला लेकिन मैंने इसलिए नहीं खाया कि मुझे पता है मेरी मम्मी ने आज मेरे लिए बहुत अच्छा खाना, नाश्ते के लिए बना के रखा होगा ।“

हां हां भाई तुझे तो सब कुछ पता है आखिर हमारी बेटी है ना इसलिए अब बातें बाद में करते हैं । पहले तुम मुंह हाथ धोकर कपड़े बदल कर आओ और खाना खाने के लिए बैठो ।“

मानसी हाथ मुंह धोने गई, तब तक मम्मी, पापा और उसके लिए प्लेट में खाना लगा कर ले आई । उसकी प्लेट में खीर पूरी थी और पापा की प्लेट में चने की सब्जी पूरी और खीर।

“मम्मी आपने मुझे चने की सब्जी क्यों नहीं दी ?”

“क्योंकि मैं जानती हूँ आज हमारी बेटी मीठी चीज से ही खाना खायेगी, मैं नहीं चाहती कि आज तू नमकीन चीज खाए।”

“मम्मी आप मुझे खिला पिला कर बहुत मोटा करना चाहती हो लेकिन देख लेना मैं मोटी नहीं होंगी क्योंकि मैं इतना खाऊंगी ही नहीं तो मोटी होंऊँगी कैसे ? आपकी कोई चाल कामयाब नहीं होने दूँगी । आप मुझे मोटा कर ही नहीं सकती।“ मानसी मुसकुराती हुई बोली।

“मैं तुझे मोटा थोड़ी ना कर रही हूँ मैं तो तुझे स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाना चाहती हूँ । तेरा यह स्वास्थ्य ही तेरे काम आएगा, आगे बढ़ने में, अगर तुम स्वस्थ रहोगी तभी तो आगे बढोगी, कुछ कर पाओगी जीवन में।“

इसी तरह हंसते बोलते हुए खाना कब खत्म हो गया, पता ही नहीं चला, “और मम्मी आप खाना तो खाओगे नहीं, हैं न ? हम लोगों को खिला दिया और आपका पेट भर गया होगा, हैं न ?” मानसी ने मम्मी से कहा।

“नहीं नहीं मैं क्यों नहीं खाऊंगी लेकिन हाँ शाम को खाऊंगी क्योंकि आज मेरा व्रत है ।” मम्मी ने मुसकुराते हुए जवाब दिया।

“आज किस चीज का व्रत है ?”

“आज तुझे फर्स्ट प्राइज मिला इस चीज का व्रत है लेकिन तू तो भूल गई थी आज शुक्रवार भी है और मैं संतोषी माता का व्रत रखती हूँ।”

“मम्मी सच्ची में, मैं भूल ही गई इसीलिए आपने चने और खीर पूरी बनाया है ।”

खीर पूरी खाते हुए मानसी सोच रही है कि मम्मी के हाथ में क्या कोई जादू है या फिर कौन सी ऐसी चीज उनके पास है जो वह इसमें मिला देती है तो खाना इतना स्वाद हो जाता है किसी और के खाने में यह स्वाद क्यों नहीं होता है । लेकिन जब वह स्कूल जाती है तब उसे अपने टिफिन का खाना अच्छा नहीं लगता क्योंकि उसमे खुद का बनाया हुआ पराठा रखा होता है, तब उसे अलका की मम्मी के हाथ का बना हुआ खाना बहुत पसंद आता है और वह उसका पूरा टिफिन फिनिश कर देती है । सच में दुनिया की सारी मम्मी लोगों के हाथों में जादू होता है या कोई ऐसी बात होती है, या जरूर कुछ ऐसा होता है कि उनका हाथ लगते ही खाने में स्वाद बढ़ जाता है और खाना इतना अच्छा लगने लगता है कि जी करता है बस खाते जाओ, खाते जाओ, खाते जाओ ।

“अरे मानसी क्या सोच रही हो, खाओ भी तो ?”

क्रमशः...