Aur Usne - 6 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 6

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और उसने - 6

(6)

वह भी करेगी अपने मम्मी पापा के लिए, बहुत कुछ करेगी, इतना खुश रखेगी कि उन्हें कभी कोई तकलीफ नहीं होने देगी, भाई और दीदी दोनों मम्मी पापा को अकेला छोड़ कर चले गए हैं । पापा के पास तो इतने पैसे भी नहीं कि अपने घर को अच्छे से सही करवा ले, सारा पैसा तो बच्चों की पढ़ाई और शादी में खर्च कर दिया सिर्फ वही तो अकेली रह गयी है। पापा का रिटायरमेंट हो गया लेकिन कभी वह एहसास ही नहीं होने देते कि वह रिटायर है और उनके पास अब उतने । पैसे नहीं है। फिर भी वह तो मानसी को उसी ठाट बाट से रखते हैं जैसे कि उन्होंने और सब बच्चों को पाला पोसा । मानसी को पता ही नहीं चलता कि पापा के पास पैसे नहीं है क्योंकि उसने कभी पापा को खाली हाथ देखा ही नहीं हमेशा उनके हाथ में पैसे होते हैं पता नहीं कहां से लाते हैं ऊपर से पापा पता नहीं कैसे इतनी मेहनत कर लेते हैं ? कौन इंसान रिटायरमेंट के बाद काम करता है, पैसे कमाता है ? कोई नहीं करता लेकिन उसके पापा करते हैं उसकी खुशी के लिए करते हैं । वह भी फिर इसीलिए उनको उतना ही खुशी देगी जितना कि मम्मी पापा ने उसे दी है । कोई काम नहीं करने देगी बहुत काम कर लिया पापा ने अब वो सिर्फ आराम करेंगे । उसके पापा का तो यही काम है जैसे हर ख्वाहिश पूरी करना, हर बात मानना, कभी किसी काम के लिए मना ही नहीं करते, देखो मम्मी अपने लिए कभी साड़ी नहीं खरीद कर लाती है लेकिन उसकी हमेशा एक नई फ्रॉक सिल जाती है । पापा जब लखनऊ गए, तब भी मम्मी के लिए साड़ी लेकर नहीं आए लेकिन उसके लिए कुर्ती जरुर लेकर आये पिंक कलर की चिकन की कढ़ाई वाली।

मानसी अभी यह सब सोच ही रही है कि अलका भी छत पर आ गई है और उसे देखते हुए बोली । “अरे मानसी, तू छत पर ? तूने खाना नहीं खाया ?”

“नहीं और तू भी तो छत पर है क्या तूने खाया खाना ?”

“नहीं यार, आज मम्मी ने बहुत बेकार सब्जी बनाई है तो मेरा खाने का मन ही नहीं करा, अभी मैं थोड़ी देर के बाद अपने हाथों से कुछ अच्छी सी सब्जी बनाऊंगी फिर उससे खाना खाऊंगी ।“ अल्का ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।

“चल रुक जरा, मैं देखती हूं कि मेरे घर में क्या बना है फिर मैं ऊपर खाना लेकर आती हूं हम दोनों छत पर बैठकर साथ में ही खाएंगे, तू भी अपना खाना लेकर आ जा जो भी बना है ।“

“मेरे घर में कोफ़ते बने हैं और कोफ्तों से मुझे नफरत है। “

“ कोई बात नहीं यार, सब की पसंद का खाना बनता है ना, हो सकता है तेरे भाई को कोफ्ते यह बहुत पसंद हैं इसलिए आज उनकी पसंद का खाना बना दिया, बेचारी मम्मी का तो ख्याल किया कर, वे तो हर किसी का एक जैसा ख्याल रखती हैं ना, और उनका कौन ख्याल रखता है ?”

“यह बात तो तू सच कह रही है । भाई को कोफ्ते बहुत पसंद हैं । मम्मी सबका ख्याल बिल्कुल एक जैसा ही रखती हैं।“ अल्का के चेहरे के भाव बदले ।

“ठीक है, अब छोड़ तू और नीचे जा, मैं भी नीचे जा रही हूं हाथ मुंह धोकर खाना लेकर आती हूँ, तू भी लेकर आ फिर हम दोनों ही छत पर ही बैठ के एक साथ में खाना खायेगे ।“

“ ठीक है मैं जा रही हूं ।“

मानसी और अलका दोनों नीचे चले गये ।

मानसी ने देखा आज उसकी मम्मी ने बैंगन का भर्ता और पीली वाली दाल बनाई है हालांकि उसे दाल बिल्कुल पसंद नहीं है लेकिन बैंगन का भर्ता उसका बहुत पसंदीदा है । उसने प्लेट में खूब सारा बैगन का भरता लगाया दो रोटियां रखी और एक कटोरी में दाल लेकर ऊपर जाने लगी तो मम्मी बोली, “अरे यह खाना लेकर कहाँ जा रही है ?”

“आज मैं छत पर बैठकर खाना खाऊंगी ।”

“क्यों, नीचे क्यों नहीं, ऊपर छत पर बंदर भी होंगे ।“

“नहीं हैं मम्मी, देखो कितना अच्छा मौसम हो रहा है, हल्के हल्के से बादल हो रहे हैं। ऊपर छत पर कितना अच्छा लग रहा, इसलिए हम दोनों साथ में खाना खाएंगे।”

“कौन तुम और अल्का न ?” मम्मी को पता है कि यह दोनों अक्सर ऐसा ही करती हैं।

“जी मम्मी ।“

“ठीक है, चली जाओ लेकिन सुनो पहले दाल में घी डालो और रोटी में भी घी लगाओ फिर खाना लेकर छत पर जाओ।“

“अरे मम्मी कितना घी खिलाओगी, मैं मोटी हो जाऊंगी घी खा खाकर ।“

“कोई मोटे बोटे नहीं होगी, चुपचाप रोटी में घी लगाओ और दाल में भी घी डालो गर्म करके, फिर जाओ।“ मम्मी ने फिर से दोहराया ।

उसे पता है कि मम्मी तो मानने वाली नहीं हैं इसलिए उसने जल्दी से रोटी में घी लगाया, दाल में भी डाला और वो थाली लेकर छत पर आ गयी । वहाँ पर उसने फोल्डिंग बिछाई और उस पर बैठी तभी अलका भी आ गई ।

उसके घर में लौकी के कोफ्ते बने हैं जो उसे बहुत पसंद थे । उसने अल्का से कहा, “देख अल्का तू मेरी दाल और बैगन का भर्ता खा और मैं तेरी कोफ़्ते की सब्जी खाती हूँ । वैसे बैगन का भर्ता मुझे भी बहुत पसंद है। लेकिन मुझे कोफ्ते ज्यादा पसंद है ।“ मानसी ने अल्का से कहा ।

“ठीक है फिर हम दोनों मिलकर खाते हैं तुझे जो अच्छा लगता है तो वह तू खा ले । मुझे जो अच्छा लगेगा वह मैं खा लूंगी ठीक है न ?”

“ओके।“

वे दोनों हँसती जा रही हैं, बातें करती जा रही हैं और खाना भी खाती जा रही हैं ।

अलका और मानसी दोनों साथ साथ खाना खा रहे हैं और हंसते हुए बातें भी कर रही हैं तो लग रहा है कि इन दोनों का कितना प्रेम है आपस में, उन दोनों को ऐसा लगता है कि जैसे समय यही पर ठहर जाए और वे लोग यहीं पर बैठे बस बातें करते रहे एक दूसरे से और हंसते रहे, मुस्कुराते रहे लेकिन ऐसा होता कहां है, वक्त कभी ठहरता है किसी के लिए भी, उसे तो बस चलना होता है और वह चलता रहता है लगातार, हर समय, हर पल और सारी मासूमियत अपने संग ले जाता है, दे जाता है ढेर सारी जिम्मेदारियों को ।

वैसे अच्छा ही है ना, वक्त को चलते रहना चाहिए और वक्त के साथ हमें भी चलते रहना चाहिए । अगर हम वक्त के साथ नहीं चलते हैं तो हम जिंदगी में पीछे रह जाते हैं और हमें दुनिया नकार देती है और अगर हम वक्त से आगे निकल जाते हैं तो हम खुद को ही खो देते हैं इसलिए हमें वक्त के साथ ही हमेशा चलते रहना चाहिए । चाहें वह जिस तरह से भी जिस राह, जिस तरफ ले जाए । वक्त पर कभी कोई शक नहीं करना चाहिए क्योंकि वक्त तो एक नदी है ना, नदी के समान बहता रहता है । कभी किनारों को साथ लिए बहता है और कभी बंधन से घबरा कर किनारे तोड़ देता है और कभी अथाह जलराशि के साथ गंभीर होकर भागता चला जाता है। सच में वक्त से बड़ा बलवान कोई भी नहीं होता है ।

“मानसी आज हम दोनों न छत पर ही सोएंगे ।“ अल्का ने मानसी की खामोशी को तोड़ते हुए कहा ।

“ठीक है पर तुझे अचानक यह ख्याल क्यों आया ?” मानसी ने कहा तो अल्का बोली, “क्योंकि अभी थोड़े दिनों के बाद गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो जायेंगी और तू अपनी नानी, मामा के घर चली जाएगी । मुझे तो अकेले यही रह जाना है ।“ अलका ने कहा ।

“हां यार, तू भी चल न इस बार मेरे साथ, वैसे तू चिंता मत कर आज हम ऊपर ही सो जाएंगे, ऐसा करते हैं अभी बर्तन नीचे रख कर आते हैं । थोड़ी देर के बाद छत पर पानी का छिड़काव कर देंगे, फिर रात को हम दोनों छत पर सोएंगे तारों की छांव में । रात भर यह गाना भी गायेंगे । ले तो आए हो हमें तारों की छांव में.........” यह कहते हुए वे दोनों जोर से हंस पडी ।

“मानसी बेटा, तुम ऐसे ही ठट्ठे मार के हंसती रहोगी या पढ़ाई लिखाई भी करोगी? नीचे से मम्मी की आवाज आई।

“बेटा कम से कम तुम अपने कपड़े तो समेट कर जाती । अभी साथ में स्कूल से आई हो, स्कूल में पूरा दिन साथ रही अभी भी दिल नहीं भरा है तुम दोनों का।“ मम्मी ने नीचे से ही डांट लगाई ।

“अलका मम्मा बुला रही है । मैं अभी नीचे जाती हूँ फिर शाम को छत पर आते हैं। ठीक है न अभी जाने दे मुझे, “ मानसी ने अलका से कहा ।

“हाँ ठीक है तू जा, मैं भी जाती हूँ देख लूँ जाकर मम्मी का अगर कुछ काम होगा तो कर दूंगी वरना वही सारे काम करती रहती हैं ।“अलका मुस्कुराती हुई बोली !

“सही है तू अपनी मम्मी के घर के कामों में मदद कर और मुझे अपने आर्टिकल को तैयार करना है । मैं स्टेज पर जाकर बहुत अच्छे से प्रेजेंट करना चाहती हूँ कि लोग सुनते ही वाह-वाह करके ताली बजाना शुरू कर दे, वरना फिर मेरा लिखना, याद करना और तैयारी करना सब बेकार हो जायेगा।“ मानसी थोड़ा गंभीर होकर बोली ।

“ठीक है मेरी जीनियस बहन ।” अल्का ने उसकी बात सुनकर हँसते हुए कहा ।

“तू न हँसती बहुत है, शायद तू पागल है कभी तो सिरियस हुआ कर ।” मानसी ने भी हँसते हुए जवाब दिया।

वे दोनों नीचे चली गयी ।

मानसी ने अपने कपड़े चेंज करके नाइट सूट पहना और सब सामान सही से अलमारी रख दिया फिर अपना कागज पैन किताबें सब लेकर जमीन में ही चटाई बिछाकर बैठ गयी । आज उसके पास बहुत सारे काम थे फिर कोचिंग के लिए अपने नोटस भी बनाने हैं । आर्टिकल को खूब अच्छे से याद करके, अपनी भाव भंगिमाओं के साथ पढ़कर दिखाना भी है, इसके साथ ही खाना बनाने में मम्मी की थोड़ी सी हेल्प करना है।छोटे मोटे काम जैसे खाना लगवा देना है, पानी भर कर रख देना है आदि । मम्मी परेशान ना हो क्योंकि आजकल मम्मी को ही सारे काम करने पड़ते हैं इस सोच के वह जल्दी जल्दी अपना काम करने लगी । उसने देखा उसके पास अब पैन नहीं रह गए हैं और उसे बहुत सारा लिखना है । उसने पापा को आवाज लगाई । “पापा आपके पास पेन है, एक मुझे चाहिए ।“

“अरे तो तूने पहले क्यों नहीं बताया, अभी तो आकर बैठा हूँ अब मैं इस समय पैन कहां से लाकर दूंगा । अभी बाजार तो जा नहीं पाऊंगा क्योंकि मुझे अपनी तबीयत सही नहीं लग रही है।“ पापा ने बड़ी हल्की आवाज में कहा।

“क्या हुआ पापा आपको ?” मानसी एकदम घबरा गयी ।

“कोई खास बात नहीं है, बस थोड़ी सी तबीयत खराब लग रही है। मामूली सा बुखार जैसा लग रहा है और कोई बात नहीं है ।“

“जाने क्यों पापा आप कभी अपना ख्याल नहीं रखते हैं और सबका आपको ख्याल रहता है, पर अपने बारे में कभी सोचते ही नहीं हो । बुखार है तो दवाई लेनी चाहिए । चलिये मैं पहले आपको दवाई दिला कर लाती हूँ फिर उसके बाद कुछ और काम करना है, उठिए जल्दी से ।“ मानसी ने पापा के माथे पर हाथ रखते हुए कहा । “पापा आप को बहुत तेज बुखार है ।”

“कोई बात नहीं बेटा, सब सही हो जायेगा बुखार तो ऐसे ही आता जाता रहता है।

लेकिन पापा याद करो, जब आप को पिछली बार बुखार आया, तो आपकी बेहोशी जैसी हालत हो गयी । मुझे याद है जब मैं आपको डॉक्टर को दिखाने के लिए आपको ले कर जा रही, तो आप रिक्शे में ही नहीं बैठ पा रहे थे और आप उस रिक्शे मे ही ऐसी बुरी तरीके से फैल गए कि मैं आपको पकड़ नहीं पा रही और सही से संभाल नहीं पा रही । पापा प्लीज अभी चलो, क्योंकि अभी बुखार उतना तेज नहीं है फिर बाद में बहुत दिक्कत हो जाएगी ।” मानसी अपनी रौ में बोलती चली गयी।

मानसी ने जल्दी से अपने कपड़े बदले और पापा को डॉक्टर के पास ले गई ।

हालांकि कि अभी वो इतनी बड़ी नहीं है लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझती है । मानसी अभी केवल एइघ्थ क्लास में ही पढती है । पर पापा मम्मी उम्र दार हो गए हैं, वो इतना काम नहीं कर सकते हैं फिर भी उनको सारे काम करने पड़ते हैं । उसके दो भाई है दो भाभी है और उनके बच्चे भी हैं । एक दीदी की शादी हो गई और एक दीदी जो अभी शादी करने लायक हो गयी हैं वह अपनी पढ़ाई लिखाई के लिए बाहर गई हुई हैं क्योंकि उनको आगे पढ़ने के लिए स्कूल से स्कॉलर शिप मिली हुई है। अब सिर्फ वही बची है अपने पापा मम्मी का एकमात्र सहारा । वह उनके जीने का सहारा भी हो सकती है और उनका ध्यान रखने का भी । और उसकी वजह से ही उनके घर में रौनक भी रहती है शायद क्या, हां पक्का तभी तो मम्मी पापा उसे बेइंतेहा प्यार करते हैं जान झिड़कते हैं । वो जो भी कहती है मान लेते हैं क्योंकि उनको लगता है मानसी ही उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगी और जीवन में बड़ा नाम कमायेगी।

मानसी ने अपने पापा को डॉक्टर को दिखाया वे उसके फैमिली डॉक्टर हैं और फ्रेंडली सारी बातें खुलकर करते हैं । पहले घर में किसी की तबीयत खराब होती, तो वे हमेशा घर पर ही देखने आते लेकिन जब से उनका बड़ा हॉस्पिटल बन गया है तब से वे हॉस्पिटल में ही देखते हैं पर कभी इमरजेंसी हो जाये तो अभी भी घर पर जाते हैं इसलिए वे उसे बिलकुल घर के मेम्बर जैसे ही लगते हैं ।

मानसी ने उनसे पूछा, डॉक्टर अंकल पापा को क्या हुआ ? उनकी अचानक से इतनी तबीयत कैसे खराब हो गई?”

“ अरे कुछ खास नहीं हुआ है बेटा, हल्का सा बुखार है वो भी थकान की वजह से हुआ है । बस आपके पापा को थोडे रेस्ट की जरूरत है । ज्यादा काम की वजह से बुखार आ गया है । लगता है भाई साहब ने रिटायरमेंट के बाद भी कोई काम शुरू कर दिया ?” वे थोड़ा मुस्कुराते हुए बोल रहे हैं।

“जी भाईसाहब, थोड़ा काम शुरू कर दिया है, मन भी लगा रहता है और घर के लिए आर्थिक सहायता भी हो जाती है, अभी मानसी की तो पूरी जिम्मेदारी ही हमारे ऊपर है । इसे पढाना लिखाना भी है और फिर शादी ब्याह भी करना है ।”

क्रमशः...