Aur Usne - 5 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 5

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और उसने - 5

(5)

मम्मी और पापा दोनों लोग सो गए, मानसी अभी भी काम कर रही है। लाइट जाने के बाद उसने कैंडल जलाकर आर्टिकल लिखना जारी रखा । वह बार-बार लिखती और मिटा देती क्योंकि उसे सेटिस्फेक्शन नहीं हो रहा है कि वह जो कुछ लिख रही है वह सही है, फाइनली उसने 4:00 बजे के करीब आठ पन्ने का एक आर्टिकल तैयार किया, ठीक 4:00 बजे वह सो गई, 7:00 बजे तक आंख ही नहीं खुली,। पापा ने उसको हिलाकर जगाते हुए कहा, “ मानसी आज स्कूल नहीं जाना है क्या? “

“अरे कितने बज गये पापा, मुझे तो 8:00 बजे स्कूल जाना है ।”

“तू जल्दी से उठ जा, और अभी सात बजा है।”

“पापा आपको पता है कि अलका ने भी अब हमारे साथ रिक्शे पर जाना शुरू कर दिया है।“ मानसी जल्दी से उठते हुए बोली ।

“चलो यह सही रहा, विचारी वह इतनी दूर तक पैदल जाती थी।“

“ हां पापा, लेकिन मैं उसे कभी-कभी अपने रिक्शे पर बिठा लेती थी ।“

“ लेकिन अब तो वह रोजाना ही तेरे साथ रिक्शे पर स्कूल जाएगी ना ?”

“हां पापा, अब वह हमेशा साथ ही जाएगी उसके भाई की जॉब लग गई है ना, तो उसे कोई दिक्कत ही नहीं है, अब आराम से जायेगी ।“ मानसी खुश होकर बोली !

“चल अच्छा ठीक है अब उठ जा बेटा मम्मी मंदिर गई हुई है अभी मैंने चाय बना कर रखी है, तू बस पराठा सेक ले, मैं परांठा नहीं सेंक पाऊंगा और मम्मी आज 9:00 बजे तक आएंगी मंदिर से ।“ पापा उसकी ख़ुशी में खुश होते हुए बोले ।

“क्यों पापा 9:00 बजे क्यों ?”,

“ क्योंकि आज उनके मंदिर में कुछ स्पेशल हवन कीर्तन हो रहा है ।“

“ठीक है पापा ।“

“ वह तुझे इतना उठाती रही तू उनकी आवाज से टस से नहीं हुई वह बिल्कुल अभी अभी निकल कर गई हैं । अब तो कम से कम उठ जाओ नहीं तो देर हो जायेगी, 1 घंटा तैयार होने में टिफिन लगाने में आराम से लग ही जायेगा ।“

“अरे बाबा, बस उठ ही रही हूँ ।“

“बाबा नहीं पापा और तेरी नींद पूरी नहीं हुई है ना ?”

“ हां पापा, लेकिन कोई बात नहीं, मैं आज रात को जल्दी सो जाऊंगी, कल संडे है, बस यह काम जरूरी है न कि मेरा आर्टिकल कंप्लीट हो जाए जिससे कि मैं मैडम को दिखा सकूं और मेरा सलेक्शन हो जाए, क्योंकि मुझे हर हाल में इस कंपटीशन में पार्टिसिपेट करना है ।“

“ हां हां कर लेगी बेटा, मुझे पता है तू जो चाहती है बस वही करती है और जो तेरे मन में होता है, बस वही होता है और तू कभी भी गलत काम नहीं करती है इसलिए तेरा दिल साफ है तो जब साफ दिल से और सच्चे मन से कुछ भी काम करते हैं उनका हर काम जरूर पूरा होता है, सच्चे मन से और साफ मन से किया हुआ हर काम हमेशा पूरा होता है, कभी अधूरा नहीं रहता।“

“ हां पापा, यह बात तो सही है, मैं कोई भी काम अपने पूरे दिल से और सच्चे मन से ही करती हूँ ।“

“ हां हां पता है बेटा, आखिर बेटी किसकी है,” पापा थोड़ा मुस्कुराए ।

“ चल अब बातें बंद कर और चाय पी के फटाफट तैयार हो जा, ठीक है ।“

मानसी उठी चाय पी और फ्रेश होने के लिए वॉशरूम चली गई । मम्मी का नियम है वे रोज सुबह सात बजे नहा धोकर मंदिर जाती है और आठ बजे तक वापस लौट आती है लेकिन कभी कभी थोड़ा देर भी हो जाती है वे उसके लिए कभी टिफिन नहीं बना पाती है इसलिए सुबह सुबह मानसी को खुद ही अपना टिफिन बनाना पड़ता है पहले मम्मी सुबह पाँच बजे उठकर उसके लिए पराँठे सेकती,पर अब जब वो बड़ी हो गयी है तो वो खुद ही बनाने लगी है और आटा तो मम्मी रात को ही फिरज में गूँद कर रख देती हैं इसलिए कोई दिक्कत ही नहीं है, पापा चाय बना देते हैं बस ।

आज तो शनिवार है और शनिवार को उसे कलरफुल यूनिफार्म मतलब कैजुयल ड्रेस पहन कर जाना होता है । आज कौन सी ड्रेस पहन के जाऊं, उसने सोचा । वही पहन लेती हूँ जो इस बार भैया लखनऊ से लेकर आए थे चिकन वाली कुर्ती और ब्लू वाली जींस ।

मानसी जल्दी से यूनिफार्म पहन कर तैयार हुई, उसने अपने बालों की दो चोटियां बनाई और फिर तैयार होने के बाद किचन में जाकर खुद फ्रिज से आटा निकाल कर दो पराठे सेक लिए एक पापा के लिए खाने को दिया और एक अपने टिफिन में रखा, तब तक उसके रिक्शा वाले भैया जी उसे स्कूल ले जाने के लिए आ गए हैं, वह पापा को बाय करके रिक्शे में बैठ गयी।

उसने अलका को आवाज देकर बुलाया, वह भी आकर साथ में बैठ गई और फिर वे दोनों बातें करते हुए स्कूल की तरफ रवाना हो गए ।

आज मानसी को अलका के साथ रिक्शे में स्कूल जाते हुए बहुत अच्छा लग रहा है हालांकि वह पहले भी कभी कभी अलका को अपने रिक्शे में अपने साथ बिठा लिया करती लेकिन रिक्शे वाला उसके पैसे मांगता तो उसे अच्छा नहीं लगता । आज से उसे हमेशा रिक्शे में जाने को मिलेगा और वह रिक्शेवाले को पूरे महीने के पैसे भी देगी क्योंकि अब वह अफोर्ड कर सकती है । उसके भाई की जॉब लग गई है अभी तक तो ऐसे ही काम चल रहा था । उसके पापा के एक्सीडेंट में खत्म होने के बाद उसके पास पैसे नहीं होते किसी तरीके से घर का गुजर बसर होता लेकिन अब जब भैया की जॉब लग गई है तो अब पैसों की कोई कमी नहीं है, वह आराम से रिक्शे में जा सकती है ।यह सोच कर आज मानसी बहुत खुश है कि अल्का को पैदल स्कूल नहीं जाना पड़ेगा । पहले भी साथ में ही जाती लेकिन कुछ समय पहले उसने पैसों की दिक्कत की वजह से रिक्शा छोड़ दिया । मानसी इस बात को सोचकर ही वह खुश हो रही है कि चलो भाई की जाब लगने से अल्का के दिन भी अच्छे आ गए । अब उसे स्कूल जाने के लिए पैदल नहीं चलना पड़ेगा, स्कूल के गेट के पास जाकर रिक्शा रुका तो वह दोनों उतर गए और आज बहुत खुशी खुशी अपनी क्लास के अंदर जाकर बैठ गए । वह लोग एक क्लास में ही पढ़ते हैं और दोनों इतने पक्के दोस्त हैं कि साथ में रहना, साथ में खाना पीना, उठना बैठना सब कुछ एक साथ, एक पल भर को भी दूर नहीं रहना, वह क्लास में भी साथ में ही बैठते हैं तो मैडम कहती कि क्या तुम दोनों कभी अलग भी होते हो या फिर ऐसे ही हमेशा साथ में रहते हो ? क्या घर में भी साथ खाते पीते और सोते हो ? उनकी इस बात पर पूरा क्लास जोर से हंस पडता और वह लोग अपना सर नीचे झुका कर बैठ जाती और आपस में घुसुर पुसुर करने लगती । कभी कोई भी सवाल मैडम पूछती तो सबसे पहले मानसी ही अपना हाथ ऊपर उठाती जवाब देने के लिए जबकि अल्का कभी भी किसी भी सवाल का जवाब नहीं देती । वह तो बस मानसी को देखती रहती ।

अल्का का पढ़ने लिखने में जरा भी मन नहीं लगता और मानसी की हमेशा से पढ़ने लिखने में बहुत ज्यादा रूचि रहती । वह पूरा दिन पढ़ सकती और पूरी रात भी पढ़ाई कर सकती, उसे कभी पढने लिखने में थकन ही नहीं होती जबकि अलका इसकी उल्ट, वो जरा सा पढकर थक जाती उसके सिर में दर्द होने लगता। कंपटीशन के लिए मानसी ने अपना आर्टिकल भी रात भर बैठकर कर लिखा था ताकि वो उसे आज सबमिट कर सके। अलका को कुछ भी पढ़ने लिखने जरा भी शौक नहीं, ना ही किसी कंपटीशन में पार्टीसीपेट करने का मन, उसे बस घर के काम करने अच्छे लगते और अपने घर में मम्मी के काम में हाथ बटाती रहती । घर की कढ़ाई, बुनाई, सिलाई यह सब काम भी करती । लेकिन मानसी का इन सबसे दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं, उसे तो कुछ अलग करना है, पढ़ लिख कर कुछ बनना है । तो वह अपनी पढ़ाई लिखाई पर खूब ध्यान देती है ।

जब क्लास मॉनिटर ने आकर सारे बच्चों से आर्टिकल लिए तो मानसी ने सबसे पहले अपना आर्टिकल दिया । मैडम ने थोड़ी देर बाद क्लास मे आकर कहा कि जिन जिन बच्चों का सलेक्शन हो जाएगा उनके नाम बाहर ब्लैक बोर्ड पर लिख दिए जायेंगे । अब मानसी को बस इस बात की चिंता है कि उसका सलेक्शन हो जाए और उसका नाम बाहर ब्लैक बोर्ड पर लिख दिया जाए। वो हर पीरियड के बाद ब्लैक बोर्ड पर जाकर देख आती और आकर सीट पर बैठ जाती । पूरा दिन यहीं चलता रहा, अलका उसे देखती रही और कहती रही, “क्या बात है मानसी ? तू इतना परेशान क्यों है ? ब्लैक बोर्ड पर तेरा नाम तो होना ही है, सब सही हो जायेगा, तू क्यों फ़िक्र करती है ? अगर आज सलेक्शन नहीं हुआ तो अगली बार हो जाएगा फिर अगली बार नहीं हो तो फिर अगली बार हो जाएगा, कभी न कभी तो होना ही है।“

“नहीं नहीं अलका, तू नहीं जानती मैंने कितनी तैयारी की है। मुझे इसी बार सेलेक्ट होना है ।“

“जब तेरा इतना मन है तो देखना हो ही जायेगा बहन, तू बस विश्वास रख, कहते भी हैं कि विश्वास से बड़ी कोई चीज नहीं होती है, कहत कबीर सुनो भाई साधो, मैं और कहीं नहीं सिर्फ विश्वास में हूँ, बस तू विश्वास कर, तेरा सलेक्शन हो जायेगा। अल्का की इतनी अच्छी बातें सुनकर उसका मनोबल थोड़ा ऊंचा हो गया है । उसने सोचा सच में हो ही जाएगा और वाकई उसका सलेक्शन हो गया । वह बाहर ब्लैक बोर्ड पर जैसे ही देखने गयी तो देखा उसका नाम सबसे ऊपर वाली लाइन से दूसरे नंबर पर है। वह खुशी के मारे उछल पड़ी और उसने जाकर अलका को कस के अपने गले से लगा लिया, “बहन मेरा सलेक्शन हो गया है, देख मेरा नाम सेकंड नंबर पर लिखा हुआ है, यार तुझे तो कोई साधू संत या फ़क़ीर होना चाहिए क्योंकि तेरी हर बात सच हो जाती है ।“ मानसी ने खुश होते हुए कहा।

“अरे यार मैंने कहा ना कि तेरा हो जाएगा, तू क्यों फ़िक्र करती है और देख हो गया ना।“ यह कहते हुए अल्का खुशी से भर गयी । सच में दोस्त हो तो अल्का जैसा ही हो।

स्कूल की छुट्टी हुई वह घर पहुंची, सबसे पहले उसने खुशी से उछलते हुए मम्मी पापा को बताते हुए कहा । “देखो मम्मी, मेरा सलेक्शन हो गया है। मैंने पूरी रात लिखा न, तो मेरी वह मेहनत वसूल हो गई है।“

“मैं बहुत खुश हूँ मुझे ऐसा लग रहा है । जैसे मैंने केवल पार्टीसिपेट करके ही अपना नाम प्राइस के लिए कनफर्म कर लिया है,मुझे इतनी ज्यादा खुशी हो रही है ।” वो मम्मी से बोली ।

“ हां बेटा मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है, तूने रात भर दिल लगाकर मेहनत करी ना, तो बस हो गया । तुम अगर कल रात मन से मेहनत नहीं करती तो तेरा सलेक्शन भी नहीं होता और अगर हो भी जाता तो तुझे इतनी खुशी नहीं होती जितनी खुशी तुझे अब हो रही है । मुझे पता है तूने किस कदर जी तोड़ मेहनत करी है, पूरी रात जागती रही जबकि तुझे पता है कि सुबह स्कूल भी जाना है ।“ पापा ने कहा ।

“ हां पापा, यह बात भी बिल्कुल ठीक है और सुनो पापा मुझे अब इस आर्टिकल को अच्छे से तैयार करना है । एक्सप्रेशन के साथ में स्टेज पर देना आसान नहीं है । हर बात पर ध्यान देना होगा । आज से मैं 2 घंटे इसको याद करने को दूंगी बाकी और सब बातों के लिए 2 घंटे । मुझे हर हाल मे इसको अच्छे से प्रिपेयर करना है । उसके बाद में प्राइज तो मैं लेकर ही आऊंगी जैसे मैंने कल प्रॉमिस किया कि मैं सेलेक्ट होकर दिखाऊंगी। पापा अभी मैं आपसे प्रॉमिस करती हूँ कि मैं प्राइज लेकर आऊंगी ।

“ हाँ भाई हाँ तू प्राइज भी लेकर आयेगी, जैसे तू सलेक्ट हुई है ठीक वैसे ही तुम नंबर वन प्राइज लेकर आओगी । सलेक्शन में तेरा सेकंड नंबर पर नाम लिखा है ना, अब तू देखना तेरा नाम फर्स्ट नंबर पर लिखा होगा ।” पापा ने खुश होते हुए कहा ।

“ थैंक यू पापा मैं बस यही चाहती हूं, मुझे हमेशा फर्स्ट आना है, हर काम में और हर बात में ।”

“हाँ बेटा, ऐसा ही होगा । जैसा तू सोचेगी या जैसे सपने देखेगी ठीक बिल्कुल वैसा ही होता जायेगा।“

मानसी आज सच में इतना खुश है कि उसने स्कूल से आकर खाना भी नहीं खाया और अलमारी में बैग रखकर वो सीधे छत पर चली गई,, छत पर ठंडी ठडी हवा चल रही है, छत की दीवार से सटा एक ईदगाह है, जहां पर ईद वाले दिन पर मुस्लिम लोग नमाज पढ़ने के लिए बहुत दूर दूर से आते हैं, वो ईदगाह बहुत सुंदर सा बना हुआ है और इतना बड़ा है, कि कम से कम 10 हजार लोग एक साथ बैठ कर नमाज पढ़ लें । इसके आस पास यहाँ पर ईद का मेला भी तो लगता है, । खूब सारी खिलौने की दुकाने, चाट पकौड़े के ठेले, गुब्बारे वाले, बांसुरी, भोपू वाले और तरह तरह के झूले। सब कुछ सुबह सुबह ही सज जाता है, कितनी रौनक होती है । जब ईद वाले दिन लोग नमाज पढ़ते हैं तो वो और अल्का छत पर आकर उसे देखते हैं। नमाज पढ़ते समय सब लोग एक साथ झुकते हैं, खड़े होते हैं, तब कितना अच्छा लगता था । फिर बाद में वो भी तो हर ईद पर मेला देखने जाती थी । आज इस ईदगाह को देखकर उसे मुंशी प्रेमचंद की लिखी ईदगाह कहानी याद आ गयी, उसमें हामिद तीन पैसे लेकर मेला देखने जाता है । जिसमें वो पहले नमाज पढ़ने के लिए जाता है और कुछ खाता पीता नहीं है बल्कि अपनी अम्मी के लिए चिमटा खरीद कर लाता है, ।

क्रमशः...