Aur Usne - 4 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 4

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और उसने - 4

(4)

सबसे छोटी होने के कारण पापा उसे कितना प्यार करते और मम्मी वह तो उस पर अपनी जान ही देती । घर का कोई भी काम उसे छूने नहीं देती । बर्तन तो कभी भी धोने नहीं देती, हमेशा कहती कि लड़कियां बर्तन नहीं धोती हैं हाथ खराब हो जाते हैं ... किसी राजकुमारी की तरह उसको बड़े लाड़ प्यार से रखती ।

भाई ज़ब शहर से आते तो उसके लिए ढेर सारे गिफ्ट लेकर आते और दीदी जीजाजी जब आते तो उनको जहां भी जाना होता, उसको अपनी बेटी की तरह संग लेकर जाते । जब वो बहुत छोटी रही होगी तब ही मम्मी ने यह बात उसे बता दी कि बेटा मैं तो तुम्हें पैदा ही नहीं करना चाहती लेकिन तुम्हें तो इस दुनिया में आना पहले से ही लिख दिया गया । इतनी दवाइयां खाने के बाद भी तुम आ गई वरना हमारी कोई उम्र थोडे ही ना बची बच्चे पैदा करने की । पता है, जब तुम पैदा हुई तब हमारी उम्र बहुत ज्यादा हो गयी, मुझे तो लगता है कि तुम्हें तो सीधे स्वर्ग से भगवान ने ही भेजा है कि जाओ और अपने मम्मी पापा के बुढ़ापे में उनका सूना घर आंगन महका दो ।

जब वह कुछ ही साल की हुई, तभी उसके पापा का रिटायरमेंट हो गया । मम्मी पापा से कई साल छोटी, जिस वजह से अभी थोडा जवान ही दिखती, हालांकि पापा रिटायर हो गए लेकिन वह मम्मी के लिए और मानसी के लिए पार्ट टाइम काम करने ऑफिस जाने लगे जिससे उन लोगों को किसी तरह की कोई तकलीफ ना हो। पापा हर दिन कुछ पैसे अपने पास छुपा कर रख लेते और बाकी के पैसे मम्मी को दे देते । वे जो पैसे छुपा कर रखते उसमें से रोजाना थोड़े पैसे निकाल कर मानसी को देते कि जाओ तुम अपने लिए कोई चीज खरीद कर खा कर आओ ।

उसे वह दिन याद आया तो मन ही मन मुस्कुरा दी कि जब पापा के पास पैसे नहीं होते लेकिन तब भी वह कहीं से ढूंढ कर उसको पैसे देते, कि अपनी पसंद की चीज खरीद कर खाओ । उसे जो भी चाहिए होता वे हमेशा उसे लाकर देते, वे कभी उसका मन नहीं मारते । लगता शायद उनका नियम बन गया है मानसी के लिए कोई चीज खाने के लिए पैसे देने का । इस बात पर पापा और मम्मी की अक्सर लड़ाई भी हो जाया करती कि तुम लड़की को बिगाड़ रहे हो अब वो बड़ी हो रही है फिर भी तुम इसे बच्चों कि तरह समझते हो । इतना चटोरी या चाटने वाली मत बनाओ कि यह अपना घर भी न देख सके । वो कहावत याद है न तुम्हें कि बतोर (बातें करने वाली) खोबे चार घर और चटोर (चाटने वाली ) खोबे अपना घर । माँ गुस्सा होते हुए कहती रहती।

“तुम अपनी यह कहावतें अपने पास रखा करो, देखना मेरी बेटी तो बड़ा नाम कमाएगी वो शादी करके सिर्फ घर और बच्चे संभालने के लिए इस दुनिया में नहीं आई है, तुम बस देखती रहो अगर मैं नहीं रहा तो याद कर लेना ।” पापा मम्मी को यह कहकर चुप करा देते ।

“हाँ हाँ हम भी देखेंगे तुम्हारी लाड़ली के किरया कलाप, कौन सी और कहाँ की गवर्नर बनेगी ।“ यह कहकर मम्मी चुप हो जाती जबकि वे तो खुद भी उसे बेहद चाहती हैं ।

मानसी उन लोगों की बातें सुनकर रोने लगती क्योंकि उसे बिलकुल पसंद नहीं है कोई ज़ोर से बोले या कोई लड़ाई झगड़ा करे ।

“अब रो क्यों रही है तेरे पापा तो तुझे गवर्नर बनाकर ही दम लेंगे । वो कलक्टर हो जैसे और तू गवर्नर ।” मम्मी तंज़ कसती । उसे समझ नहीं आता कि मम्मी इतनी जरा जरा सी बात पर पापा से इतना झगड़ा क्यों करती हैं और उसे डांटती रहती हैं जबकि वो सबसे ज्यादा मम्मी को ही प्यार करती है ।

आज एक तारीख है और मानसी के पापा को पेंशन मिलनी है । वह तैयार होकर बैंक की तरफ निकल गये, वापस लौटते में एक हाथ में रबड़ी और दूसरे हाथ में समोसे का पैकेट लेकर घर के अंदर घुसे ।

“मानसी, उन्होने बाहर से ही आवाज लगाई, लो बेटा समोसे और यह रबड़ी मम्मी को दे दो और हाँ यह समोसे तुम अभी खा लो गरम गरम हैं वरना ठंडे हो जाएंगे।“

“अरे पापा, आप भी ना ! आप सब कुछ भूल जाओगे लेकिन यह लालाराम के गरम समोसे लाना कभी नहीं भूलोगे ।” मानसी यह कह कर मुस्कुराई ।

“कैसे भूल जाऊंगा भला, मेरी ‘मानसी बेटी’ को लालाराम के समोसे सबसे ज्यादा पसंद है और उसके जैसे समोसे, लगता है पूरे हिंदुस्तान में कहीं भी नहीं मिलते होंगे जैसे समोसे हमारे शहर का लालाराम हलवाई बनाता है । सच में उसके जैसे समोसे कोई और बना ही नहीं सकता क्योंकि मेरी मानसी बेटी को पसंद है इसलिए उसके जैसे ना समोसे कोई बना सकता है और ना कहीं पूरी दुनिया में मिल सकते हैं ।” यह कहकर पापा उसे बड़े स्नेह से देखते ।

“ओहो पापा, आप कितने अच्छे हो ।“ कहकर वो [पापा के गले से लग जाती ।

“चलो बाद में बातें करना पहले फटाफट समोसे प्लेट में निकाल कर लाओ और खा लो, अभी बहुत गर्म है फिर ठंडे हो जाएंगे तो अच्छे नहीं लगेंगे।”

“जी पापा ठीक है, मैं निकाल कर लाती हूं और आप भी समोसे खाओगे, आज कोई बहाना नहीं चलेगा ।” वो इतराती ।

“अरे तुम लोग आपस में क्या बातें कर रहे हो ? अब आप अंदर भी आओगे या बाहर खड़े खड़े ही सब बातें कर लोगे ? हमें पता है कि आज एक तारीख है और तुम समोसे लेकर आए हो और हाँ मेरी रबड़ी भी लाए हो । मुझे सब पता है लेकिन एक बात जरा ध्यान रखना तुम मानसी को जितना बिगाड़ रहे हो ना, आगे चलकर तुम्हें ही बहुत तकलीफ उठानी पड़ेगी, तुमको ही दुख होगा जब इसे जरा सा भी कोई दुःख या तकलीफ होगी । “ मम्मी पापा से झगड़ा करने का कोई मौका नहीं चूकती ।

“अरे क्यों होगा मेरी प्यारी बेटी को कोई दुख या तकलीफ अच्छा अच्छा बोला करो, मैं अपने सच्चे दिल से बोल रहा हूँ कि मेरी बेटी एक दिन पूरी दुनिया पर राज करेगी और कुछ नहीं बस मैं तो अपनी इस बच्ची की सारी खुशियां पूरी करना चाहता हूँ उसे किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं देना चाहता हूँ क्योंकि वह पता नहीं यह कब तक हमारे साथ है रह रही है । तुम ही तो कहती हो कि लड़कियां पराई होती हैं इसलिए मैं उसे एक पल को भी कोई दुख नहीं देना चाहता हूँ और हाँ सुनो मैंने तुम्हें भी तो बिगाड़ कर अपने सिर पर चढ़ा लिया है।” पापा बड़े प्यार से मम्मी को समझाते फिर उनके ही ऊपर तंज़ कसते ।

“बस मैं यही तो कह रही हूँ तुम उसे दुख नहीं देना चाहते कल को उसे कोई जरा सी भी तकलीफ हुई तो वह उस तकलीफ को सह नहीं पाएगी क्योंकि आप उसे तकलीफ देना नहीं चाहते फिर उसे कोई तकलीफ होगी तो उसे बेहद दुख होगा और तब तुम्हें सबसे ज्यादा दुख होगा, जबकि मैं चाहती हूँ कि मेरी बेटी मजबूत बने जिससे हर हाल में खुश रह सके, तुम अभी लाड़ प्यार से खूब बिगाड़ लो भले ही फिर वह बाद में कितना भी कमजोर क्यों न हो जाए ।“

“ उसे कभी कोई कष्ट नहीं होने देंगे, देख लेना तुम याद रख लेना मेरी बेटी है और वह हमेशा बहुत सुखी रहेगी मेरा आशीर्वाद उसके साथ है उसे दुनिया की कोई तकलीफ नहीं सताएगी । बार बार बेकार की बातें मत करो समझी ।“ इस बार पापा ने बड़े गुस्से में कहा ।

“ठीक है भगवान जी ऐसा ही हो, मैं भी तो यही चाहती हूं लेकिन मैं यह भी चाहती हूँ कि मेरी लड़की थोड़ी मजबूत बनकर रहें ताकि दुनिया में जी सके, जिंदगी में सुख दुख धूप छाँव की तरह से होता है ।”

“मम्मी पापा आप लोग फिर से बहस करने लग गए । चलो समोसे खाओ ।“ मानसी ने उन दोनों के पास समोसों की प्लेट लाकर रख दी ।

“ अरे नहीं बेटा तुम लोग समोसे खाओ, मैं रबड़ी खा लूंगी, तुझे मेरी पसंद पता ही है पहले भगवान का भोग लगाऊंगी फिर मैं आराम से बैठकर रबड़ी खाऊंगी।”

“नहीं मम्मी ऐसा कुछ नहीं होता, रबड़ी भी सब लोग खाएंगे और समोसे भी सब लोग खाएंगे । यह नहीं है कि आप रबड़ी खा लोगी और हम लोग समोसे खा लेंगे, जो भी है सब लोग साथ में मिल बैठकर खाएंगे ।“

“मानसी तू अपनी बातों से सबको चुप करा देती है ।“ मम्मी हंसती हुई बोली ।

“ सही करती हूँ ना ?

“ हां तू जो भी करती है, सही ही करती है ।“

“ मम्मी कल हमारे स्कूल में स्टेट लेवल पर एक कंपटीशन का रजिस्ट्रेशन है ।

“ किस चीज का कंपटीशन है बेटा ?”

“अरे मम्मा डिबेट का है, वाद विवाद प्रतियोगिता॥“

“अरे वाह ! क्या तू भी पार्टिसिपेट कर रही है ?”

“ मम्मी सोच तो रही हूँ कि कर लूँ ।“

“ लेकिन तेरी तैयारी कौन करायेगा ?”

“ मैं खुद ही लिखूंगी, खुद ही याद कर लूँगी फिर खुद ही अच्छे से तैयार करके मैडम को दिखा दूँगी । अगर मैं पहली बार करूंगी तभी तो आगे अगली बार भी करूंगी और डरना क्यों ? हैं न मम्मी ?”

“हाँ यह तो ठीक है । चल अच्छे से तैयार करो ।“ मम्मी ने कहा ।

“ हाँ मम्मी ।“

मानसी ने समोसे खाये और पड़ोस में अल्का के घर चली गई ।

अलका उसकी बचपन की सहेली, उसकी सबसे प्यारी सहेली जिससे वह मन की एक-एक बात कर लेती है, तो उसको चेहरे पर खुशी आ जाती है वरना उसका चेहरा उतरा हुआ रहता है उदास और दुखी चेहरा । वह भी तो उससे अपने मन की बात करती है, वैसे हम जिसे दिल से अपना समझते हैं उसके साथ बात करने एक अजब सी सकूँ भरी फिलिंग आती है।“

“ वाकई लालाराम के जैसे समोसे कोई नहीं बनाता है।“ मम्मी मानसी के जाने के बाद पापा से बात करने लगी हैं ।

“अब तुम्हें भी पसंद आने लगे ।“ पापा मुस्कुराये ।

“नहीं ऐसी बात नहीं है आज शायद मुझे थोड़ी भूख लग रही इसलिए । मानसी को तो पूरे दिन समोसे खिला लो, चाहें रोटी मत दो खाने को, तब भी उसका पेट नहीं भरेगा समोसों से ।“

यह कहकर दोनों लोग ज़ोर से हंसने लगे, अभी वे लोग झगड़ा कर रहे, ऐसा उनके चेहरे से बिलकुल भी नहीं लग रहा है ।

पापा अपना चश्मा लगाकर अखबार लेकर पढ़ने बैठ गए और मम्मी ने रबड़ी ले जाकर भगवान के सामने रखी और किचन में अपना काम करने लगी ।

आजकल मम्मी ने घर के काम के लिए सब को हटा कर रखा हुआ है सिर्फ बर्तन, पोंछा करने के लिए एक आंटी आती हैं । वह बचपन से काम कर रही हैं मम्मी ने पापा के रिटायर्मेंट के बाद उनको हटाना चाहा लेकिन वह नहीं हटी बल्कि कहने लगी तुम्हारे पास जो पैसे हैं वह तुम मुझे दे देना, नहीं हो तो मत देना लेकिन मैं जीते जी तुम्हारा यह काम नहीं छोडूंगी । जब मैंने बचपन से करा है तो मैं मरते दम करती रहूँगी । आजकल के जमाने में घर के काम के लिए इतनी अच्छी कोई काम वाली कहां मिलती हैं ? यही सोचकर मम्मी ने उसे नहीं हटाया और वह काम करने आती रही और मम्मी को बर्तन धोने और साफ़ सफाई करने से राहत मिल गयी ।

लेकिन अब वह काम वाली अक्सर बीमार रहने लगी है । उसको पता नहीं कोई ऐसी बीमारी हो गई है जिसकी वजह से उसके शरीर में बहुत दर्द होता और वह बिस्तर से उठ नहीं पाती । बचपन से आज तक काम करती आई है इसीलिए वह इस घर को अपना ही घर समझती है । जिस दिन वो काम करने नहीं आती तो मम्मी बर्तन धोने बैठती लेकिन मानसी से कभी एक कटोरी भी नहीं धुलवाती । अगर मानसी जिद करती कि मैं धो देती हूँ आज के बर्तन तो वह कहती कि “लड़कियों के हाथ खराब हो जाते हैं ज्यादा देर पानी में हाथ डालने से और बर्तन धोने से।“

“तू कुछ और काम कर ले । हाँ मानसी तू ऐसा कर, आज रोटियां सेक लेना मैं आटा गूंद कर दे देती हूँ,।“ सब्जी भी मम्मी को काटना है, आटा भी मम्मी को, बर्तन भी मम्मी को साफ करने हैं । बस वाइपर से पोछा लगाने का काम जरूर मानसी कर लेती है ।

मानसी अलका के घर से लौट के आ गई है । मम्मी किचन में भिंडी की सब्जी और पराठे बनाने की तैयारी कर रही हैं । उसके घर में आज रात के खाने में भिंडी और पराठे ही बनने हैं । पापा सूखी सब्जी से रोटी खा नहीं पाते हैं = इसलिए उन्होंने मम्मी से कहा, उनके लिए थोड़ी सी दाल बना देना, मानसी को दाल बिल्कुल भी पसंद नहीं है । उसे भिंडी पराठा सबसे ज्यादा अच्छा लगता है । वह उससे ही खा लेगी। अब उसे कल की तैयारी करनी है, उसने अपना बिस्तर बिछाया और कल की तैयारी करने के लिए एक लेख लिखने बैठ गई क्योंकि अगर उस का लेख पसंद आया तभी मैडम उसे सलेक्ट करेंगी और वह कॉम्पटीशन में पार्टीसिपेट कर पायेगी । अन्यथा वह इस कंपटीशन में नहीं जा पाएगी ।

रात के 2:00 बज गए थे लेकिन मानसी अभी भी अपने काम में लगी हुई है ।

अब सो जा मानसी बेटा और कितना लिखेगी ? सुबह तुम्हें स्कूल भी जाना है । मम्मी ने उसे डांटा ।

अरे नहीं मम्मी, कर लेने दो फिर कल तो मुझे दिखाना ही है। मैं पूरा लिख कर और फिर इसे सही करके ही सोउंगी । मुझे इस कंपटीशन में हर हाल में भाग लेना ही है और इस प्राइज़ को भी अपने ही नाम करना है ।“ मानसी ने कहा ।

क्रमशः...