Aur Usne - 3 in Hindi Fiction Stories by Seema Saxena books and stories PDF | और उसने - 3

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और उसने - 3

(3)

“ आंटी आप नीचे रुको मैं आती हूँ।”

“ ठीक है बेटा !”

जी आंटी यह कहकर उसने फोन रखा और कबीर से बोली, “यार आज मुझे अभी तो रूचि आंटी के साथ ही जाना ही पड़ेगा ।”

मैं ऐसा करती हूँ कबीर कि अभी इस समय मैं रुचि आंटी के साथ उनके जा रही हूँ । पहली बात तो मम्मी की बात खराब नहीं होगी और दूसरी बात रुची आंटी मुझे खुद लेने के लिए आई हैं तो उनको भी बुरा नहीं लगेगा ।”

“मैं भी तो तुझे लेने आया हूँ बल्कि मैं तो इतनी दूर से आया हूँ।“

जानती हूँ पर क्या करे रुचि आंटी ने मेरी मम्मी की एक बार में ही बात सुनी और फ़ौरन हाँ कर दी, तुम इस बात को समझो और जहाँ तक मुझे लगता है कि तुम मुझे अच्छे से समझते हो, मेरी हर बात समझ सकते हो, मानते भी हो और यह मम्मी की बात है, तो कबीर तुम्हें ऐसा करना चाहिए कि अभी मुझे रुचि आंटी के साथ जाने दो और फिर मैं वहां पर एक दिन के लिए ही रुकूँगी, कल मैं आ जाऊंगी, कोई भी बात बोलकर कि मैं ठीक हूं और अब मैं अपनी फ्रेंड के घर जा रही हूँ ।“

“ऐसे कैसे आ जाओगी, तुम्हें नहीं पता लॉक डाउन लग रहा है ?”

“कबीर मुझे ऐसा लग रहा है कि आज आंटी के साथ ही जाना चाहिए। उनके पति ने मुझे अच्छी तरह से देखा, अच्छे से दवाइयां दी, वहाँ पर मेरा मन न भी लगे लेकिन तबीयत जरूर सही ही जायेगी।“ मानसी ने एक बार और कबीर को समझाने की कोशिश की है।

“.............” कबीर कुछ नहीं बोला एकदम शांत रहा ।

“कबीर बोल, मुझे जाना चाहिए न ?”कबीर को शांत देख कर मानसी बोल पड़ी ।

“ ठीक है फिर तू देख ले, जैसी तेरी मर्जी क्योंकि तू अपने मन के आगे किसी दूसरे की तो सुनेगी नहीं, करेगी तो वही जो तुझे करना है । मैंने तो अपना काम किया बाकी तू जान लेकिन हाँ एक बात ध्यान रखना आज रात ठीक 12:00 बजे से लॉक डाउन लग रहा है तू फिर कहीं भी आ जा नहीं सकती, तुझे हर हाल में 8 दिन वहीं पर रुकना होगा । जैसे भी चाहे तू मैनेज कर ।” कबीर ने सारी बातें अच्छे से समझाते हुए उसको कहा।

मानसी बहुत पेशोपेश में पड़ी हुई है कि क्या करें, क्या नहीं ? आखिर उसने डिसाइड किया कि उसे रुचि आंटी के साथ ही जाना चाहिए । मानसी ने अपना पिठू बैग उठाया उसमें अपने दो कपड़े रखे, जींस टॉप और ट्रैक सूट, अपनी दवाइयां रखी और पानी की बोतल ले ली । कम कपडे रखने का एक कारण यही रहा कि उसे आंटी के घर ज्यादा दिन रुकना नहीं है ।

“कबीर अभी फिर चले ? बोल न ?”

“हाँ ठीक है, चलना तो है ही और हाँ सुन, तुझे जब कभी भी, किसी भी समय मेरी जरूरत पड़े तो फौरन मुझे कॉल करना फिर मैं चाहें कैसे भी कुछ करूं और तेरे पास तक आऊंगा ।” कबीर ने आगे बढ़कर उसे गले से लगाते हुए कहा ।

रूम को लॉक करके वह लोग नीचे आ गये हैं । रुचि आंटी अपनी गाड़ी में ही बैठी हुई हैं । कुछ-कुछ पहले जैसे ही दिख रही हैं । हाँ थोड़ी मोटी जरूर हो गयी हैं । उस में तो काफी अंतर आया होगा, उस ने अपना हाथ हिलाया, “हेलो आंटी,,.,,“ उन्होंने इशारे से उसे अपने पास बुलाया। ड्राइवर ने उतर कर कार का पीछे वाला गेट खोल दिया । वो उसमें बैठ गई । कबीर अपनी बाइक स्टार्ट करके तब तक जा चुका है।

“नमस्ते आंटी जी,आपने मुझे पहचाना?” मानसी ने अपने दोनों हाथ जोड़कर उनको नमस्ते करते हुए पूछा ।

“अपनों को कोई भूलता है क्या, जो तुझे पहचान लूंगी ? “

“क्या सच में आप मुझे पहचान गई ?”

“अरे हाँ बेटा, कोई भला अपनों को कैसे भूले ? पहचान तो जाऊंगी मेरी बहन की प्रिय सहेली की बेटी है और फोन पर अभी कहा नीचे आ जाओ तो फिर तू ही नीचे उतर के आई इसलिए भी पहचान गई और थोड़ा तो आईडिया भी लग ही जाता है,,” वे बड़े प्यार से बात कर रही हैं, बिलकुल माँ जैसी, उसे ऐसा लग रहा है कि वो अपनी माँ से ही बात कर रही है ।

उसके पी जी से बमुश्किल 15 मिनट का सफर रहा होगा कार से हालांकि रोड पर थोड़ी भीड़ भाड़ भी थी उस समय लेकिन ठीक 15 मिनट के बाद कार एक बेहद खूबसूरत सोसाइटी के सामने जाकर रुक गई । वह बहुत ऊंची सी बिल्डिंग है, करीबन 15 या 20 फ्लोर तो जरुर ही होंगे । उसी के पार्किंग कंपाउंड में जाकर कार खड़ी हो गई, मानसी आंटी के साथ बिल्डिंग के अंदर घुस गई और 12 फ्लोर पर लिफ्ट से पहुंच गई उनका तीन चार कमरों का एक बड़ा सा फ्लैट है, जिसमें तीन बेडरूम,, एक बड़ा सा हॉल, सुंदर सा सजा हुआ साफ सुथरा किचन वगैरह है । सब कुछ ठीक-ठाक है । वैसे इस शहर के हिसाब से इतना बड़ा घर होना बहुत बड़ी बात है । अच्छे से मेंटेन किया हुआ खूबसूरत घर, एक हेल्पर आकर उसका सामान एक कमरे में ले गया । मानसी ने सोचा कि तीन कमरों का घर और चार हेल्पर, कमाल है सारा घर तो यही लोग ही घेर लेते होंगे फिर घर के सब लोग कहां रहते होंगे ? उसने मन ही मन सवाल किया और मुस्कुराई ।

“ मानसी क्या सोच रही है तू ?” आंटी ने उसे मुस्कुराता देख पूछ लिया।

उनकी इस बात पर मानसी बोली, “कुछ नहीं बस यूं ही ।, वैसे आपका घर बहुत प्यारा है, बेहद सुंदर और खूबसूरत,लोकेशन भी बहुत अच्छी है और सच में बहुत ही अच्छा घर है आपका ।“

“ हाँ सुंदर तो है लेकिन अभी छोटा है ।, तू तो जानती ही है कि यहां सही जगह पर घर मिलना कितना मुश्किल है । अभी हम लोगों को यहां मतलब इस शहर में आये हुए बमुश्किल दो साल ही हुए हैं । अंकल को पहले अपना हॉस्पिटल सेट करना और साथ ही दोनों बच्चों को भी सेटल करना जरुरी लगा, इसी चक्कर में इतना टाइम लग गया और हम अपना घर सही से नहीं ले पाये।

“ अरे नहीं आंटी, यही घर बहुत प्यारा है, हाँ शायद आपके हिसाब से छोटा हो सकता है ? वैसे छोटा तो है ही । यही सोचते हुए वह मन में फिर मुस्कुराई क्योंकि इतने हेल्पर हैं घर में और एक ड्राइवर भी है । उसका भी कभी तो आना जाना होता ही होगा ऊपर से होंस्पिटल का स्टाफ और फिर इसके आलावा उनके दो बेटे और अंकल कुल मिलाकर 4 लोग तो यह ही हो गए । सब मिलाकर 8, 9 लोग तो हैं ही और सिर्फ तीन कमरों का घर,, छोड़ो उसे क्या करना ? वह यहाँ से चली जाएगी, तबीयत सही होने के बाद, आठ दिन का ही तो लॉकडाउन लगा है, उस के बाद की फ्लाइट ले लेती हूँ । अभी आज ही बुक कर लूंगी और इन आठ दिनों को निकलने में समय ही कितना लगता है ।?

. “आओ मानसी में तुम्हें तुम्हारा रूम दिखा देती हूँ.. “आंटी की इस बात से उसकी सोच टूट गयी और वो उनके पीछे पीछे चलती हुई आ गयी हैं ।

“देखो बेटा यह तुम्हारा रूम है, वैसे यह गेस्ट रूम नहीं है बल्कि यह हमारा बैडरूम है लेकिन आज से तुम इस कमरे में आराम से रहो, बिल्कुल चिंता मत करना कोई भी परेशानी नहीं होगी और सुनो इसे अपना घर ही समझना । तभी एक हेल्पर उसका सामान एक साइड में रख कर चला गया ।

“ मानसी बेटा तुम आराम से लेट जाओ, हम तुम्हारा सामान अभी अलमारी में लगवा देंगे ।“

“आंटी सामान ही कहां है एक ही बैग है । मैं कुछ लेकर ही कहां आई हूं ? बस ऑफिस का लैपटॉप बैग है जिसमें एकाध कपड़ा रख लिया है ।”

“अरे क्यों बेटा, अपने कपड़े तो रख लेती, अभी कम से कम साथ आठ दिन तो यहाँ रुकना ही होगा ना ?

“ तबीयत ठीक नहीं होने के कारण इतना ध्यान भी नहीं दिया कि मुझे आठ दिन तक रहना है । तो बस इसमें एक ट्रैक सूट है, एक लोअर टीशर्ट है, और जींस टॉप तो मैं पहन के ही आई हूँ, बाकी मैंने और कुछ रखा ही नहीं जल्दी जल्दी में ।“

“कोई बात नहीं, यह जो तेरे भाई सरीखे मेरे बेटे हैं ना वे किस दिन काम आयेंगे । उनके कपड़े पहन लेना, उसकी टीशर्ट, उसके लोअर वे सब तेरे काम आ जाएँगे । इन लोगों के पास कितने सारे कपड़े यूं ही पड़े हुए हैं ।”

“वे लोग कहां है अभी इस समय, ?” मानसी ने पूछा ।

“वह लोग अभी अपने कमरे में ही होगे । तू तो शायद उन लोगों को जानती होगी ना ?”

“आंटी मैंने बचपन में आपके एक बेटे को देखा है थोड़ा गोल मटोल सा था ?”

“हाँ, मेरा दूसरा बेटा  उससे करीब नौ साल छोटा है ।“

“बहुत डिस्टेंस है दोनों में, ?”

“हाँ बेटा ।”

“आंटी पहले अंकल तो आर्मी में डॉक्टर पद पर रहे, हैं ना ?” उसने याद करते हुए कहा ।

“ हाँ आर्मी में डॉक्टर ही हैं लेकिन अब वे रिटायर हो गए हैं तो अब अपनी खुद की प्रैक्टिस कर रहे हैं ।“

“चलिए यह सही हुआ । पहले जब आप मेरे घर आती, तो आप ढेर सारी बातें करती । आपका बेटा हमारे साथ में खेलता रहता । मुझे बहुत अच्छे से याद है हम दोनों साथ-साथ के ही हैं, वह हमारी एज ग्रुप का ही है ना ?”

“हाँ बेटा, सही है, तुझे सब याद भी है । पता है मानसी आज तू आई है ना तो घर में बड़ी रौनक सी लग रही है । मेरे दो बेटे हैं तो मुझे बहुत ख्वाहिश है कि मेरी एक बेटी हो, कितनी दुआयें मांगी पर शायद ईश्वर को मंजूर नहीं है, मुझे बेटी देना खैर आज तेरे आ जाने से मुझे ऐसा लग रहा है कि सच में मुझे मेरी बेटी मिल गई है।“ वह नम आँखों से हंसी ।“

उनकी बात सुनकर मानसी भी मुस्कुरा दी । आज भी जब लोग लड़कियों को बोझ सा समझते हैं वही रुचि आंटी जैसे लोग भी हैं जो लड़कियों के लिए तरसते हैं और मंदिर मस्जिद में मन्नतें मांगते हैं ।

अभी वे दोनों बातें ही कर रहे कि एक हेल्पर उन लोगों के लिए पानी, जूस और एक प्लेट में मीठे बिस्किट लेकर आ गया ।

“सुनो मानसी, तुम पहले पानी और फिर एक गिलास जूस पियो, उसके बाद तुम रेस्ट करो । जो तुम खाओगी वो खाना हम बनवाते हैं । आज तुम्हारी पसंद का खाना हमारे घर में बनेगा। वो बड़ी खुश होकर बोली आज हम सब तुम्हारी पसंद का ही खाना खाएँगे।“

“आंटी मैं तो सब कुछ खा लेती हूँ, जब से मैं घर से बाहर निकली हूँ ना, तो सब कुछ खाने की आदत ही पड गयी है । अब सब तरह का खाना खाना ही पड़ता है और सब जगह मुझे एडजस्ट करना पड़ता है। खाने के लिए कोई भी दिक्कत नहीं है जो भी बनेगा मैं सब कुछ खा लूंगी।“

“नहीं बेटा, अभी तुम्हारी तबीयत सही नहीं है इसलिए तुम्हें जो अच्छा लगे, जो तुम्हारा मन करे, और जो तुम्हारे मुंह का स्वाद ठीक करे, वही तुम बता दो, तुम्हारे लिए बन जाएगा । इसे अपना ही घर समझो बेटा, यहाँ कोई फॉर्मेलिटी नहीं है। ठीक है न बेटा ?”

“जी ठीक है आंटी ।”

“मानसी मुझे तुमसे बहुत सारी बातें करनी है लेकिन अभी तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं होने से मैं चाहती हूं तुम रेस्ट करो । जब तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी ना तो हम तुम मिलकर ढेर सारी गप्पे मारेंगे, खूब सारी बातें करेंगे, मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा तुमसे बात करके क्योंकि मैं घर में पूरा दिन खाली ही रहती हूँ,।”

मानसी ने सोचा अब यह मुझसे बातें कर कर के मेरा सारा दिमाग खा जाएंगी । मैं तो ज्यादा बोलने का पसंद नहीं करती हूँ, लेकिन उनका मन रखने को मुस्कुराते हुए मानसी ने कहा, “ओके आंटी ठीक है । उसने पानी पिया और जूस के लिए मना करते हुए बोली, आंटी जूस ठंडा है इसलिए मैं अभी नहीं पियूंगी ।”

“नहीं बेटा, यह नॉर्मल है पियो और इसके साथ में दो बिस्किट भी खाओ फिर थोड़ी देर रेस्ट करो, क्योंकि तुम्हारा बी पी लो है खाने पीने से अच्छा लगेगा और तबियत भी ठीक होगी।“ उन्होने बहुत प्यार से कहा ।

इतने प्यार से कही हुई बात भला कहां टाली जा सकती है । मन ना होने पर भी उसने जूस पिया और बिस्किट खाए । अब उसका मन कर रहा है कि आंखें बंद करके सो जाए । उसे अब अच्छा लग रहा है बिल्कुल घर जैसा माहौल मिल गया है । उसे ऐसा लग रहा है मानों वह अपनी मां के पास आ गई है हालांकि घर की बात अलग होती है फिर भी उसे तबीयत खराब होने पर घर जैसा माहौल तो मिला है । जब तबीयत खराब होती है तो लगता है कि कहीं किसी ऐसी जगह पर रहा जाये, जहां पर कोई अपना हो, जो उसकी देखभाल कर सके, उसे हाथ में खाना पानी आदि दे सके और वह आराम से, चैन से सकून की नींद सो सके । यहां आकर उसे ऐसा ही महसूस हो रहा है । आंटी उठकर कमरे से बाहर चली गई । कितनी प्यारी हैं आँटी, बस उनको बातें करने का आज भी उतना ही शौक है जैसे कि पहले रहा । यह सोचकर वह मन ही मन मुस्कुराई । उसने अपनी आंखें बंद कर ली । आँखें बंद करने के साथ ही आँखों में नींद तो नहीं आई लेकिन उसे अपने बीते हुए दिन याद आने लगे हैं ।

मानसी ने अपनी आँखें तो बंद कर ली पर उनमे नींद का बिल्कुल भी नामोनिशान नहीं हैं बल्कि उनमें यादें भरी हुई हैं, उसके बचपन की, उसके युवा होने की खूबसूरत, प्यारी और सुनहरी यादें । बचपन के वो दिन, कितने प्यारे दिन, जब वो मम्मी-पापा और कोई नहीं । बड़े भाई शहर में जॉब कर रहे और दीदी की शादी हो गयी, तो वे अपने घर परिवार और बच्चों में व्यस्त हो गयी ...

क्रमशः...