सीमा असीम सक्सेना द्वारा लिखी “खो गए हम कहाँ” फिल्म की समीक्षा ...
फिल्म का नाम है “खो गए हम कहाँ” ।
कलाकार है सिद्धांत चतुर्वेदी, आदर्श गौरव, अनन्या पांडे, रोहन गुरब्ख्शानी, कल्कि केकल, विजय मौर्य और अन्य ।
इस फिल्म के लेखक हैं जोया अख्तर, अर्जुन वरैन सिंह और रीमा कागती ।
निर्देशक है अर्जुन वरैन सिंह ।
निर्माता है फरहान अख्तर, रितेश सिंधवानी, जोया अख्तर और रीमा कागती ।
ओटीटी प्लेटफोर्म है नेटफ्लिक्स ।
रिलीज हुई है 26 दिसंबर 2023 और
मेरे हिसाब से इस फिल्म को रेटिंग जाती है 4 ।
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म “खो गए हम कहां” के मुख्य किरदार सिद्धांत चतुर्वेदी, आदर्श गौरव और अनन्या पांडे फिल्म में अपने अपने किरदारों के लिए काफी प्रशंसा बटोर रहे हैं । इस साल कई फिल्में रिलीज हुई और कई सुपरहिट भी हुई हैं, उन फिल्मों ने बहुत अच्छा रिकॉर्ड बनाया है, जिसमें “द केरला स्टोरी, पठान, गदर टू, जवान, एनिमल” आदि अन्य कई और फ़िल्में भी हैं पर इस जमाने के हिसाब से एक अभी बहुत अच्छी फिल्म आई है जिसका नाम है “खो गए हम कहां” जो कि नई उमंगें, नई उम्मीदें लेकर आई है, लकीर का फकीर बनाने की बजाय फिल्म में इस तरफ इशारा किया गया है कि नई पीढ़ी आज के डिजिटल युग में खुद को क्या दे रही है, वो किस तरफ जा रही है ? इसी को दिखाने के लिए यह फिल्म आईने की तरह काम करती है ।
इस फिल्म में तीन युवा कलाकारों के साथ जोया अख्तर के सहायक रहे अर्जुन वरैन सिंह ने बनाया है, हमारी भारतीय संस्कृति पर मौजूदा दौर की डिजिटल क्रांति कितना खतरनाक असर डाल रही है, इसी की तरफ ध्यान देने के लिए इस फिल्म को बनाया है । अर्जुन वरैन सिंह की निर्देशक के रूप में जितनी भी तारीफ की जाये कम ही लगती है क्योंकि वह एक नये निर्देशक हैं और उनकी पहली ही फिल्म होने के नाते यह फिल्म उनके अंदर एक बहुत अच्छी संभावना दिखाती है। लगता है कि वह आगे भी अच्छी फिल्में बनाएंगे और समाज में नई उम्मीद जगाएंगे । इस फिल्म के हिसाब से युवा लडके लड़कियां दोस्त हो सकते हैं। फिल्म खो गए हम कहां तीन दोस्तों की कहानी है, पुरानी कहावत है कि एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते हैं लेकिन इस फिल्म में दिखाया गया है कि एक लड़का और एक लड़की दोस्त हो सकते हैं और अपने किरदारों के पारदर्शी चरित्र चित्रण के जरिए इस कहावत को भी खत्म करते हैं, लड़का और लड़की ना सिर्फ दोस्त है बल्कि वे एक साथ एक ही फ्लैट में रहते हैं और हमेशा दोस्त की ही तरह से रहते हैं । तीनों साथ-साथ एक ही स्कूल में मतलब बोर्डिंग स्कूल में पढे हैं और जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए कोशिश कर रहे हैं नील (आदर्श गौरव )को अपना जिम खोलना है, अहाना (अनन्या पण्डे) नौकरी छोड़कर जिम का बिजनेस संभालना चाहती है और उनका एक दोस्त इमाद (सिद्धांत चतुर्वेदी)जिसके पास बहुत सारा पैसा है और वह इस जिम वाले बिजनेस में निवेश करने को तैयार है। इस तरह से कहानी के समानांतर तीनों की अलग-अलग कहानी है, जो इस फिल्म में दिखाई गई है, सामाजिक दबाव की वजह से इमाद का मानसिक संतुलन थोडा उपर नीचे होता है क्योंकि इमाद ने बचपन में जो झेला है, वह एक ग्रंथि बनाकर उसके दिलो दिमाग में है और वह इसी कारण दूसरों को हंसाने में, खुश रखने में अपनी भी खुशी ढूंढता रहता है, साथ ही वह डेटिंग ऐप पर रोज एक नई लड़की ढूंढता है, पसंद करता है और फिर एक बार उससे बहुत बड़ी उम्र की लड़की टकरा जाती है, वे दोनों एक दूसरे के साथ गंभीर होना चाहते हैं, मतलब गंभीर रिश्ते में आना चाहते हैं लेकिन दोनों की आदतें, उनकी बातें सबसे बड़ी अडचन बनकर सामने आती हैं । नील जिम में काम करता है, उसको लगता है कि वह यहाँ काम कर रहा है तो यह जिम उसका ही है, पर जिम का मालिक उसे एक दिन जता देता है कि वह सिर्फ वहां का एक अदना सा कर्मचारी है । अहाना का अपना जीवन असंतुलन से भरा है, उसका बॉयफ्रेंड आगे निकल चुका है, उसके जीवन में नए लोग आ चुके हैं, लेकिन अहाना सोशल मीडिया पर उसे स्टॉक करती रहती है, नकली आईडी बनाकर अपने लोगों पर नजर रखती है, उनकी खुशियों में अपने दुःख तकलीफ के कारण तलाश करती है और गुस्सा दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर नकली आईडी के द्वारा या गुमनाम आई डी बनाकर अपने ही करीबियों को परेशान करती रहती है । इस तरह से यह छोटी-छोटी सी कहानी हैं जो इस फिल्म में दिखाई गयी हैं । जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, दिल चाहता है जैसी पिक्चरों में तीन दोस्त होते हैं ठीक उसी तरह से इस पिक्चर में भी हैं , बस इसमें इतना अंतर है कि आज जो मेट्रो शहर में युवा लोग अपनी जिंदगी को जी रहे हैं, वह दिखाया गया है।
नील का पिता अपने बेटे के तौर तरीके से सहज नहीं है लेकिन अपने इसी बेटे के याद दिलाने पर पत्नी के साथ डिनर पर जाता है, पिता खुले स्वभाव के हैं वह बेटे से उसकी दिवंगत मां से विरासत में मिले धन से लेकर उसकी गर्लफ्रेंड तक की बातें करते रहते हैं ।
अहाना के माता-पिता पारंपरिक विचारधारा के हैं, फिल्म के मुख्य किरदारों की सभी की पारिवारिक कथाएं हैं और इन सब को बेहद सरल तरीके से परदे पर दिखाना अर्जुन वरेन सिंह की निदेशन क्षमता और उनकी काबिलियत का पता चलता है। फिल्म “खो गए हम कहां” से पहले सिद्धांत चतुर्वेदी और अनन्या पांडे की फिल्म गहराइयां भी आ चुकी है आदर्श गौरव की उनके साथ पहली फिल्म है, तीनों के आपसी रिश्ते को फिल्म में देखें तो यह फिल्म आदर्श गौरव की ज्यादा कहलायेगी । आदर्श गौरव ने अपना वक्त भी कैमरे के सामने ज्यादा दिया है । आदर्श की बतौर अभिनेता इस फिल्म में काफी सराहना मिलेगी और उनके अभिनय की पहचान भी बनेगी । फिटनेस कोच के तौर पर मलाइका अरोड़ा के साथ होने और मलाइका का नील के साथ सेल्फी लेने वाला पूरा दृश्य आदर्श को लंबी रेस का घोड़ा साबित कर सकता है । अनन्या पांडे ने फिल्म में अच्छा काम करके यह साबित कर दिया है कि अगर उन्हें ढंग का रोल मिले या फिर उनके हिसाब से मिले, तो वह काम बहुत अच्छा कर करती है । एक अभिनेत्री के तौर पर अनन्या पांडे ने इस फिल्म में पहली बार दर्शकों को पूरी तरह से प्रभावित करने और अपने किरदार के साथ जोड़े रखने में सफलता हसिल की है । बस सिद्धांत चतुर्वेदी को इस फिल्म में ऐसा कुछ खास करने को नहीं मिला है जो वे अपनी अन्य पिछली फिल्मों में ना कर चुके हो, सिद्धांत के लिए फिल्मों का चयन करना, सबसे बड़ी चुनौती है । उनका करियर एक अभिनेता के तौर पर वही पर रुका हुआ सा ही लगता है । फिल्म “खो गए हम कहां” में उनके हिस्से में स्टैंड अप कॉमेडी सीन ही आता है, जिसमें ईमाद अपने बचपन की यादों का पहली बार सबके सामने खुलासा करते हैं । फिल्म में मुंबई की नाइट लाइफ को भी बड़े अच्छे से दिखाया गया है लेकिन कहानियों को दिखाने के लिए जिस तरह के प्रभाव की जरूरत होती है वह नहीं है । फिल्म का संगीत काफी अच्छा है और उससे फिल्म में माहौल भी बनता है लेकिन फिल्म का कोई भी गाना दर्शकों की जुबाँ पर चढ़ा नहीं है।
मुझे लगता है कि नये साल में नये जमाने की खो गए हम कहाँ एक अच्छी फिल्म है और नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई है, तो आराम से घर में बैठकर एक बार देख ही लेनी चाहिए।
सीमा असीम सक्सेना