Uljhan - Part - 4 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | उलझन - भाग - 4

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उलझन - भाग - 4

निर्मला ने अपनी पढ़ाई के बारे में कुछ भी नहीं छिपाया, जो सच था वह बता दिया। लेकिन वह हैरान ज़रूर थी कि उसके ग्यारहवीं तक पढ़ी होने की बात किसने कही। वह समझ गई कि यदि प्रतीक को यह पहले से ही मालूम होता तो उसके हाव-भाव इस तरह से ना बदलते। वह यह भी समझ गई कि प्रतीक ख़ुश नहीं है।

उसे दुःखी देखकर निर्मला ने कहा, "आप चिंता मत कीजिए, मैं आगे पढ़ाई ज़रूर कर लूंगी।"

प्रतीक ने अपने आप को संभाला और उसके बाद उसने कहा, "ठीक है पढ़ लेना" और लाइट बंद कर दी।

प्रतीक और निर्मला आज रात तन से तो एक हो गए लेकिन मन से प्रतीक उससे जुड़ नहीं पाया। निर्मला ने तन के साथ अपना मन भी उस पर कुर्बान कर दिया लेकिन एक हाथ से ताली कभी नहीं बच पाती। निर्मला के जीवन में तनाव ने स्थान ले लिया। उसके सास ससुर तो उससे बहुत ख़ुश थे। जैसी संस्कारी बहू वह चाहते थे उन्हें बिल्कुल वैसी ही बहू मिली थी लेकिन प्रतीक जैसी पत्नी चाहता था वैसी पत्नी उसे न मिल पाई।

प्रतीक का व्यवहार जैसा एक पत्नी के साथ होना चाहिए वैसा बिल्कुल नहीं था। उसके व्यवहार में प्यार कम और औपचारिकता ज़्यादा थी। निर्मला की पढ़ाई में जो बाधा आई थी, उसी बाधा ने उसके वैवाहिक जीवन को भी प्रभावित कर दिया। अब तो पढ़ाई ना कर पाने का उसका दुख और बढ़ता ही जा रहा था। फिर भी निर्मला सोचती कि वह उसके प्यार की डोर से एक न एक दिन प्रतीक को अपनी बाँहों के झूले में अवश्य ही झुलाएगी। इस तरह वह बेचारी हमेशा प्रतीक की जी हुजूरी में लगी ही रहती।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था प्रतीक का दिल और अधिक भटक रहा था। उसे अब भी उस राजकुमारी की तलाश थी जिसे वह सपनों में देखा करता था।

इन्हीं दिनों उसके ऑफिस में एक नई पोस्टिंग हुई। इस जगह पर एक बहुत ही खूबसूरत मॉडर्न लड़की आई थी जिसका नाम था बुलबुल। आज ऑफिस में बुलबुल का पहला दिन था। उसका टेबल प्रतीक के बाजू में ही था। वह जैसे ही ऑफिस आई प्रतीक उसे देखते ही अनजाने में सीधे उठकर खड़ा हो गया, मानो उसके बॉस आ रहे हों। बुलबुल ने लाल रंग की खूबसूरत मिडी पहनी हुई थी, कंधे पर पर्स लटक रहा था, कलाई पर सुंदर-सी घड़ी बाँधी थी, सुनहरे बाल खुले थे और पंखे की हवा से उड़ भी रहे थे। प्रतीक उसे देखता ही रह गया। उसे ऐसा लग रहा था जिसे वर्षों से वह खोज रहा है वह यही तो है उसके सपनों की शहजादी। बस अब मैं इसे ... सोचते हुए ही उसे निर्मला की याद आ गई। परंतु निर्मला, वह तो जबरदस्ती मुझ पर थोपी गई है। उसमें मेरी कोई गलती नहीं है। वह पापा मम्मी की जवाबदारी है जो उसे जबरदस्ती ले आए हैं।

वह अपने कदमों को आगे बढ़ाते हुए बुलबुल के पास पहुँचा और कहा, "वेलकम इन अवर ऑफिस।"

उसने भी उसे हाथ मिलाते हुए कहा, "ओह थैंक यू वेरी मच।"

इस तरह दोनों में औपचारिक बातें शुरू हो गईं। प्रतीक के दिल में तो वह पहली नज़र में ही समा गई थी। धीरे-धीरे 15 दिन बीत गए।

एक दिन प्रतीक ने बुलबुल से आग्रह करते हुए कहा, "बुलबुल चलो, आज हम साथ में लंच करते हैं।"

बुलबुल ने ख़ुश होते हुए कहा, "हाँ चलते हैं, मुझे भी अकेले लंच करना अच्छा नहीं लगता।"

उस दिन से वह लगभग हर रोज़ ही साथ में लंच करने लगे। उनकी दोस्ती बढ़ती ही जा रही थी, जिसे ऑफिस में भी सब नोटिस कर रहे थे। लेकिन यह उनकी व्यक्तिगत ज़िन्दगी थी इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता था।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः