Aehivaat - 13 in Hindi Women Focused by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | एहिवात - भाग 13

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एहिवात - भाग 13

उत्सव में सम्मिलित होने आए सभी रिश्तेदार वापस लौट चुके थे परिवार अपने नियमित दिनचर्या पर लौट आया।
 
पंडित शोभराज तिवारी ने पत्नी स्वाति को बुलाया फिर चिन्मय को और चिन्मय से पूछा-
तुमने आदिवासी जुझारू औऱ तीखा का चरण स्पर्श क्यो किया?
 
सभी नातेदार रिश्तेदार गांव जवार वालो के सामने पिता द्वारा ऐसा प्रश्न सुनते ही चिन्मय भौचक्का हो गया वह थर थर कांपने लगा क्योकि पिता ने कभी भी चिन्मय से कोई सवाल इतनी कठोरता से नही किया था ।
 
चिन्मय ने स्वंय को संयमित करते बोला पिता जी बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना तो आप ही ने सिखाया है ।
 
पंडित शोभराज तिवारी और क्रोधित होते हुए बोले हमने ई थोड़े कहा है कि जेके चाह चरण स्पर्श कर पूरा जवार हमार चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेत है जुझारू और पूरा बनवासी समाज हमरे सामने एक पैर पर खड़ा रहत है जब तक हम कहित नाही तब तक बैठते नाही तू हमार बेटबा होईके नान्ह क चरण स्पर्श करत ह उत्सव वाली राती पूरा गांव थू थू करत रहा हम त समझे नाही पावत रहे कि हम का जबाब देई गांव जवार के रिश्ते नातेदारन के तू एक ही औलाद केतनी खुशी रही शर्म से सर झुका दिए ।
 
चिन्मय पिता कि बातों को सुनता रहा चिन्मय को मालूम था कि उसके पिता जी विद्वान के साथ साथ जवार के रसूखदार व्यक्ति है उन्हें सर उठाकर बात करना पसंद नही है ।
 
चिन्मय हाथ जोड़कर अपराधी कि तरह पिता के सामने खड़ा बोला पिता जी आप धर्म मर्मज्ञ है और अनुभवी है मैंने तो अभी मात्र मेट्रिक कि परीक्षा उत्तीर्ण की है मैं जो कुछ अपनी समझ जानकारी से कहूंगा यदि आपको अच्छा न लगा तो पहले ही क्षमा मांगता हूं ।
 
चिन्मय बोला पिता जी मुझे तो इतना ही मालूम है कि इंसान इंसान होता है ऊंच नीच तो कर्म होता है जुझारू छोटे सिर्फ इसलिये है कि वह वनवासी है आदिवासी है हमने तो यही पढा है कि वन जंगलों में ऋषि मुनियों के आश्रम और वनवासी आदिवासी दोनों साथ साथ निर्भय निडर एक साथ रहते थे वन प्रदेशो में गुरुकुल आश्रम ऋषि मुनियों कि साधना तपस्या और भोले भाले आदिवासीयो का ही तो प्रमाणित सत्य बंधुत्व सहयोग पड़ोसी का रिश्ता है जिसे किसी साक्ष्य कि आवश्यकता ही नही है इतना तो आपने धर्म ग्रंथो में स्वंय अध्ययन किया होगा आपने कभी नही सुना होगा या पढ़ा होगा कि किसी भी ऋषि मुनि को किसी आदिवासी वनवासी समाज से कभी कोई परेशानी हुई आदिवासी समाज द्वारा ही ऋषि मुनियों कि आवश्यकतानुसार सेवा की जाती रही है आदिवासी समाज वन जंगलों में सिर्फ ऋषि मुनियों के साथ सानिध्य में रहा है जिसके कारण इस समाज मे राष्ट्र धर्म संस्कृति से भवनात्मक अनुराग है यही वह समाज है जहां से सभ्यता संस्कृति जन्म लेती है।
 
ब्रह्म कि पूर्णता ब्रह्मांड कि सार्थकता के स्वंय साक्ष्य है ब्रह्म के ब्रह्मांड के दो मुख्य अवयव प्रथम प्रकृति दूसरा उसमें रचा बसा उसकी रक्षा के लिए मरता मिटता समाज वनवासी ही ब्रह्मांड कि पूर्णता को परिभाषित करते है अतः जुझारू और उनका परिवार कैसे छोटे हो सकते है आपका सम्मान करते है आपकी योग्यता का मान करते है यह उनकी संस्कृति है इसका अर्थ यह विल्कुल नही की उनको सम्मान का अधिकार ही नही है ।
 
चिन्मय बोले जा रहा था पिता शोभराज पूरी तन्मयता से बेटे कि बात सुनते जा रहे थे जब चिन्मय ने बोलना बंद किया पंडित शोभराज बोले शाबाश बेटे आज तुमने मैट्रिक परीक्षा में प्रदेश में प्रथम एव शोभराज के बेटे होने कि योग्यता को प्रमाणित कर दिया मेट्रिक के विद्यार्थी को इतना गहरा ज्ञान यदा कदा ही सम्भव है।
 
मैं तो अपनी व्यस्तताओं के कारण बहुत ध्यान तुम्हारी पढ़ाई लिखाई पर नही रख पाता हूँ मुझे विश्वास हो गया कि तुम स्वंय मेधावी हो और तुम जो कुछ भी करोगे सर्वोत्तम अनुकरणीय करोगे जिस पर मुझे अभिमान होगा पंडित शोभराज तिवारी कि आंखे भर आई थी उन्होंने चिन्मय को अपने गले लगाया और पितृत्व के आकाश कि गहराई के स्नेह नेह में डुबो दिया बोले ठिक किया तुमने जुझारू का आशीर्वाद लेकर।
 
एक दो दिन बाद पुनः माँ स्वाति ने सौभाग्य के विषय मे चिन्मय से पूछा बोली बेटे सौभाग्य बता रही थी कि तुम उसे विगत दो वर्षों से पढ़ा रहे हो वह स्कूल जाती नही तुम घर से समय से स्कूल जाते हो समय से आते हो तुमने सौभाग्य को कब कैसे पढ़ाते थे उसने प्राइमरी का कोर्स भी पूरा भी कर लिया चिन्मय ने मां को बताया कि मंगलवार शनिवार बाज़ार के दिन दस मिनट का समय जुझारू चाचा से बड़ी मुश्किल से मांग के पढ़ाते थे देखे त हुऊ कार्डबोर्ड पर और तरह तरह से घर वर्णमाला हिंदी अक्षर गिनती आदि बनावत रहे मां को भी समझ मे आ गया कि उनका बेटा निष्पाप निष्कलंक है मां स्वाति ने भी चिन्मय को गले से लगाया आशीर्वाद दिया।
 
जून का महीना भीषण गर्मी स्कूल बंद फिर भी प्रत्येक मंगलवार और शनिवार के बाज़ार जाता चिन्मय पिता और माँ की अनुमति लेकर और अपने वादे के अनुसार सौभाग्य को पढ़ाता छुट्टियां समाप्त होने वाली थीं सम्भवतः छुट्टियों में अंतिम बाज़ार मंगलवार चिन्मय बाजार पहुंचा और ज्यो ही सौभाग्य को पढा कर लौटने लगा जुझारू ने रोकते हुए कहा बाबू अब बज़ारे सौभाग्यवा नाही आयी सयान हो गइल बा कही ऊंच नीच हो गइल त कहा मुहँ छिपावत फिरब वैसे बजारी में कातर जईसन निगाह एके निहारत रहतेन चिन्मय बोला चाचा हम चलित है ईश्वर के जो मंजूर होई ऊहे होई और चला गया ।
 
छुट्टियां समाप्त हो गयी और चिन्मय ने दूसरे स्कूल में दाखिला लिया जो बाज़ार और जुझारू के गांव के बीच मे था और नियमित स्कूल जाने लगा मेट्रिक टॉपर होने के नाते स्कूल में उंसे किसी परिचय का मोहताज नही होना पड़ा ।