पुष्यमित्र शुंग (185-149 ई. पू.) प्राचीन उत्तर भारत के एक हिंदू राजा थे। वे शुंग साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम राजा थे। इससे पहले वे मौर्य साम्राज्य में सेनापति थे। 185 ई.पू. में पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य सम्राट् बृहद्रथ मौर्य के अहिंसक नीतियों के कारण उनका वध कर स्वयं को राजा उद्घोषित किया। उसके बाद उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया और उत्तर भारत का अधिकांश हिस्सा अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। शुंग राज्य के शिलालेख पंजाब के जालंधर में मिले हैं और दिव्यावदान के अनुसार यह राज्य सांग्ला (वर्तमान सियालकोट) तक विस्तृत था। भारतवर्ष में कई महान् राजा हुए हैं। हिंदू धर्म ग्रंथ और ऐतिहासिक साहित्य इनका वर्णन करते हैं। पुराणों में सम्राट् पुष्यमित्र शुंग का एक महान् राजा के रूप में वर्णन मिलता है। शुंग वंश की शुरुआत करनेवाले पुष्यमित्र शुंग जन्म से एक ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय थे। इन्हें वंश के अंतिम शासक राजा बृहद्रथ ने अपना सेनापति बनाया था, हालाँकि पुष्यमित्र शुंग ने बृहद्रथ मौर्य को देशविरोधी कार्य करने के कारण आमने-सामने की लड़ाई में मारकर, मौर्य साम्राज्य को समाप्त कर भारत में दोबारा से वैदिक धर्म की स्थापना की थी। आखिर क्यों और कैसे पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य साम्राज्य को समाप्त किया? आइए, जानते हैं—
वैदिक धर्म का पतन
कहानी का प्रारंभ भारत में क्षत्रिय वंशीय चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल से होता है। चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु आचार्य चाणक्य ने सदैव हिंदू धर्म का विस्तार करने की प्रेरणा दी। आचार्य चाणक्य की मृत्यु के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म अपना लिया और उसके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दिया। चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य की कमान उनके पुत्र बिंदुसार के हाथों में आ गई। बिंदुसार ने अपनी दीक्षा आजीविका संप्रदाय से ली। जिसके चलते वह भी वेद विरोधी सोच वाले बन गए और आम नागरिकों में प्रचलित भाषा, संस्कृत व वैदिक ज्ञान को नष्ट करने का कार्य करते हुए अपनी सोच का प्रसार किया। जब बिंदुसार के पुत्र चंड अशोक राजगद्दी पर बैठे तो प्रारंभ में उन्होंने खूब हिंसा का सहारा लिया। अपने साम्राज्य की सीमा - विस्तार के लिए उन्होंने पूरे कलिंग के आम गरीब, किसान, नागरिकों को तबाह कर दिया। इसके बाद उन्होंने अहिंसा का रास्ता अपनाते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया। बौद्ध धर्म अपनाने से पहले अशोक का साम्राज्य आज के म्यांमार से लेकर ईरान और कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक स्थापित था, हालाँकि कलिंग विजय के बाद इनका सीमा विस्तार कार्यक्रम से मोहभंग हो गया और इन्होंने अपना पूरा जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में लगा दिया और बिखर गया मौर्य साम्राज्य । अशोक द्वारा अपनाए गए बौद्ध धर्म के कारण पूरा मौर्य साम्राज्य हिंसा से दूर हो गया था। इसका लाभ उठाते हुए साम्राज्य के छोटे-छोटे राज्य अपने आपको स्वतंत्र बनाने के प्रयासों में लग गए। इसी के फलस्वरूप, अशोक की मृत्यु और बृहद्रथ के अंतिम मौर्य शासक बनने तक मौर्य साम्राज्य बेहद कमजोर हो गया था। वहीं, इस समय तक पूरा मगध साम्राज्य बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गया। यह विश्वास करना कठिन था, लेकिन जिस धरती ने सिकंदर और सेल्यूकस जैसे योद्धाओं को पराजित किया, वह अब अपनी वीर वृत्ति खो चुकी थी, अब विदेशी भारत पर हावी होते जा रहे थे, कारण केवल एक था, बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक नीतियाँ। इस समय भारत की खोई हुई पहचान दिलाने के लिए एक शासक की आवश्यकता थी, शीघ्र ही उसे पुष्यमित्र शुंग नाम का वह महान् शासक मिल ही गया। राजा बृहद्रथ की सेना की कमान सँभालने वाले ब्राह्मण सेनानायक पुष्यमित्र शुंग की सोच राजा से भिन्न थी। जिस प्रकार बीते कुछ वर्षों में भारत की वैदिक सभ्यता का हनन हुआ था, उसे लेकर पुष्यमित्र शुंग के मन में विचार उठते रहते थे। इसी बीच राजा को समाचार मिला कि कुछ ग्रीक शासक भारत पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं। इन ग्रीक शासकों ने भारत विजय के लिए बौद्ध मठों के धर्म गुरुओं को अपने साथ मिला लिया था। सरल शब्दों में कहा जाए तो कुछ बौद्ध धर्मगुरु राजद्रोह कर रहे थे। भारत विजय की तैयारी प्रारंभ हो गई। वह ग्रीक सैनिकों को भिक्षुओं के वेश में अपने मठों में शरण देने लगे और हथियार छिपाने लगे। यह समाचार जैसे ही पुष्यमित्र शुंग को मिला, उन्होंने राजा से बौद्ध मठों की तलाशी लेने की आज्ञा माँगी, लेकिन राजा ने पुष्यमित्र शुंग को आज्ञा देने से मना कर दिया। इस दौरान सेनापति पुष्यमित्र राजा की आज्ञा के बिना ही अपने सैनिकों समेत मठों की जाँच करने चले गए। जहाँ जाँच के दौरान मठों से ग्रीक सैनिक पकड़े गए, इन्हें देखते ही मौत के घाट उतार दिया गया। वहीं उनका साथ देनेवाले बौद्ध भिक्षुओं को राजद्रोह के आरोप में बंदी बनाकर राज दरबार में प्रस्तुत किया गया।
बृहद्रथ का वध कर पुष्यमित्र बने सम्राट्
बृहद्रथ को सेनापति पुष्यमित्र का यह बरताव अच्छा नहीं लगा। एक सैनिक परेड के दौरान ही राजा और सेनापति के बीच बहस छिड़ गई। बहस इतनी बढ़ गई कि राजा ने पुष्यमित्र पर आक्रमण कर दिया, जिसके प्रत्युत्तर में सेनापति ने बृहद्रथ से उसकी ही भाषा में उत्तर देते हुए परास्त कर उनकी हत्या कर दी। वहीं माना ये भी जाता है कि पुष्यमित्र को राजा बृहद्रथ ने अकेले दरबार में बुलाकर धोखे से मारना चाहा पर युद्ध में प्रवीण सेनापति ने तुरंत तलवार निकालकर अपनी रक्षा करते हुए राजा का संहार कर दिया। अब बृहद्रथ की हत्या हो चुकी थी। इस हत्या के पश्चात् सेना ने वीर पुष्यमित्र का साथ दिया और उसे ही अपना राजा घोषित कर दिया। राजा का पद सँभालते ही पुष्यमित्र ने सबसे पहले राज्य प्रबंध में सुधार किया। पुष्यमित्र शुंग अपंग हो चुके साम्राज्य को दोबारा से खड़ा करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक सुगठित सेना का निर्माण प्रारंभ कर दिया। पुष्यमित्र ने धीरे-धीरे उन सभी राज्यों को पुनः अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाया, जो मौर्य वंश की कमजोरी के चलते इस साम्राज्य से अलग हो गए थे। ऐसे सभी राज्यों को फिर से मगध के अधीन किया गया और मगध साम्राज्य का विस्तार किया। इसके बाद पुष्यमित्र शुंग ने भारत में पैर पसार रहे ग्रीक शासकों को भारत से खदेड़ा। राजा ने ग्रीक सेना को सिंधु पार तक धकेल दिया। जिसके बाद वह दोबारा कभी भारत पर आक्रमण करने नहीं आए। इस प्रकार सम्राट् पुष्यमित्र ने भारत से ग्रीक सेना का पूरी तरह से सफाया कर दिया था। शत्रुओं से आजादी पाने के पश्चात् पुष्यमित्र शुंग ने भारत में शुंग वंश की शुरुआत की और भारत में दोबारा से वैदिक सभ्यता का विस्तार किया। इस दौरान जिन लोगों ने भय से बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था वे पुनः वैदिक धर्म की ओर लौटने लगे। यह भी कहा जाता है कि बौद्ध धर्म के लोगों ने ग्रीक शासकों की सहायता कर
राजद्रोह किया था। इसी के आरोप में पुष्यमित्र शुंग ने ऐसे देशद्रोही क्रूर बौद्ध धर्म के अनुयायियों को सजा दी थी। भारत में वैदिक धर्म के प्रचार और साम्राज्य की सीमा विस्तार के लिए पुष्यमित्र शुंग ने अश्वमेध यज्ञ भी किया। भारत के अधिकांश भाग पर पुनः से वैदिक धर्म की स्थापना हुई। इस तरह से पूरे भारत में वैदिक धर्म की विजय पताका लहराने वाले पुष्यमित्र शुंग ने कुल मिलाकर 36 वर्षों तक शासन किया था।
उद्भव से संबंधित सिद्धांत
महाभाष्य में पतंजलि और पाणिनी की अष्टाध्यायी के अनुसार पुष्यमित्र शुंग भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण थे। इस समस्या के समाधान के रूप में जे. सी. घोष ने उन्हें द्वैयमुष्यायन बताया, जिसे ब्राह्मणों की एक द्वैत गोत्र माना जाता है। उनके अनुसार द्वैयमुष्यायन अथवा द्वैत गोत्र, दो अलग-अलग गोत्रों के मिश्रण से बनी ब्राह्मण गोत्र होती है, अर्थात् पिता और माता की गोत्र (यहाँ भारद्वाज और कश्यप) ऐसे ब्राह्मण अपनी पहचान के रूप में दोनों गोत्र रख सकते हैं, परंतु उज्जैन नगर में अत्रियों की शाखों का निकाय होने के कारण इन्हें अत्रि गौत्रीय भी माना जाता है।
पुष्यमित्र का शासन प्रबंध
साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी । पुष्यमित्र प्राचीन मौर्य साम्राज्य के मध्यवर्ती भाग को सुरक्षित रख सकने में सफल रहा। पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक फैला हुआ था। दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालंधर और स्यालकोट पर भी उसका अधिकार था। साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजकुमार या राजकुल के लोगों को राज्यपाल नियुक्त करने की परंपरा चलती रही। पुष्यमित्र ने अपने पुत्रों को साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सह शासक नियुक्त कर रखा था। उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का राज्यपाल था। राजकुमार सेना के संचालक भी थे। इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी। 36 वर्षों तक शासन करने के पश्चात् 151 ई.पू. में सम्राट् पुष्यमित्र की मृत्यु हुई।