सौभाग्य पिता और चिन्मय कि वार्ता के बीच मे बोली माफ करना बापू महल अटारी के भोज में हम तू और माई कैसे जाब ना त इनके लोगन जैसे कपड़ा रही ना रुतबा जुझारू बेटी सौभाग्य से बोले बात त बेटी पते क कहत हऊ और चिन्मय कि तरफ मुखतिब होते बोला बाबू हमार हैसियत नाही कि तोहरे समाज मे जाई सकी हम लोग ठहरे बन जंगल मे रहे वाले लोग तोहन लोगन कि बराबरी कैसे करी सकित है ना हमरे पास ढंग के कपड़ा बा ना पैर में पहिने खातिर जूता चप्पल तोहरे भोज में हम पचन भंगी जईसन लागब जाय द बाबू हम लोग नाही आई सकित पंडित जी से हमरे तरफ से माफी मांग लिह चिन्मय कि जिद्द थी कि सौभाग्य उसकी सफलता के उपलक्ष्य में आयोजित भोज में अवश्य भाग ले चिन्मय बोला जुझारू चाचा चिंता जिन कर हम कपड़ा के व्यवस्था करी देव भोज अगले अतवार के है अभी मंगल बाजार के तोहार हमार मुलाकात होई उहि दिन तोहरे पूरे परिवार के कपड़ा और जौन जरूरत होई सब मिल जाय तब त भोज में
अईब कौनो परेशानी जुझारू बोले बाबू काहे जिद्द करत है काहे हम वनवासी मनई
खातिर परेशान होब।
चिन्मय बोला हमे कौनो परेशानी न होय चाचा तोहे सौभाग्य के माई के साथे आवे के ह हमार जिद्द ह।
हम तोहरे लड़िका बराबर हई एक छोटा फरमाईस हमार ना पूरा करब जुझारू निरुत्तर होकर बोले बाबू तू जीत गए हम हारे ।
चिन्मय घर लौट गया घर पर होने वाले आयोजन कि तैयारी जोरों पर चल रही थी आखिर पंडित शोभराज तिवारी जी के इकलौते बेटे कि सफलता और उनके अभिमान गौरव का आयोजन था।
पंडित जी कोई कोर कसर नही छोड़ना चाहते थे ।
मंगलवार की बाज़ार को चिन्मय बाज़ार पहुंचा और जुझारू सौभाग्य से बोला आप लोग कुछ देर अपना बाज़ार में बेचने वाला सामान कही रख दे हिफाज़त से और मेरे साथ चले जुझारू समझ गए और बेटी सौभाग्य से बोले बेटी सारा बाज़ारे क समान बगल में बैठे बिन्दा कोल कि निगरानी में रख द और स्वंय बिन्दा कोल से बोले बिन्दा बाबू हम लोग कुछ देर खातिर ई बल्लीपुर के तिवारी जी के बेटवा के साथे जाइत है तब तक हमरे समान के निगरानी करें देख कुछ बेवजहै नुकसान ना हो।
बिन्दा कोल ने जुझारू को पूर्णतया आश्वस्त किया कि निश्चित होके जाय जुझारू और सौभाग्य चिन्मय के साथ बाज़ार में कपड़े के दुकान गए जहां चिन्मय ने सौभाग्य जुझारू और तीखा के लिए अपने पसंद के कपड़े खरीदे और दर्जी को सिलने हेतु आवश्यक निर्देश दिया और बोला शनिवार बाजार को कपड़े सिलकर मिल जाने चाहिये दर्जी सुलेमान ने कहा विल्कुल शनिवार के सारा कपड़ा सिलके तैयार रही फिर जूते चप्पल कि दुकान से चिन्मय ने सौभाग्य तीखा और जुझारू के लिए सैंडिल एव चप्पलें खरीदी चिन्मय ने कपड़े सिलाई और सैंडिल चप्पलों के दाम खुद भुगतान करता बोला अब जुझारू चाचा आब कि नाही हमरे घरे अब बराबर भय कि नाही हमरे समाज के ।
जुझारू निरुत्तर सर झुकाए बोले बाबू आज हमें भरोसा जरूर हो गइल कि देश बदले जेके शुरुआत तोहरे जईसन नया जमाना के नौजवान से शोभा है ।
चिन्मय बोला अच्छा चाचा हम चलित है और चिन्मय घर वापस लौट आया दो दिन बाद पंडित शोभराज तिवारी को किसी कार्य बस बाज़ार जाना पड़ा वह बाज़ार में अपने चिर परिचित व्यवसायी सेठ बलकिशन कि दुकान पहुंचे सेठ बालकिशन कि कपड़ा ,परचून ,और आभूषण कि दुकानें थी कहावत मशहूर थी कि सेठ बाल किसन बजारी से बाहर होय जाय त बजारी में सियार फेकरे मतलब साफ था कि सेठ बालकिशन है त बाज़ार क रुतबा बजारी लेखा है नाहि त बाजार बंजर पंडित शोभराज तिवारी के पहुचते ही सेठ बालकिसन ने तिवारी जी का आओ भगत किया और आदर सम्मान के बाद बैठाया तिवारी जी का व्यवहार कद कुछ ऐसा था कि हर व्यक्ति उन्हें सम्मान देता तिवारी जी भी किसी के आफत विपत पर अपनी पूरी क्षमता के साथ ईमानदारी से खड़े रहते जन धन जईसन जरूरत हो ।
सेठ बालकिशन को पंडित शोभराज तिवारी ने बताया कि उनके घर बेटे के मैट्रिक परीक्षा में प्रदेश में प्रथम स्थान लाने के उपलक्ष्य में सत्यनारायण कि कथा और भोज का आयोजन किया गया है और बड़ी विनम्रता से सेठ बालकिशन को आमंत्रित करने के बाद कुछ आवश्यक कपड़े खरीदे बैठकी और बात चीत के बीच सेठ बालकिशन ने पंडित जी को बताया कि अतवार को उनका बेटा चिन्मय आया था उसके साथ कोल परिवार था जिसके लिए कपड़ा आदि खरीदा पंडित शोभराज तिवारी बोले सेठ जी हमार बेटबा हमरे नाव पर कुछ उधारी त नाही लगावे बा सेठ बाल किसान ने पंडित जी को बताया कि नही चिन्मय ने जो भी खरीदारी कि है उसका भुगतान दे दिया है ।
शोभराज तिवारी जी गहरी सोच में डूब गए आखिर उनका बेटा किस कोल परिवार के लिए क्यो आया था ?तभी उन्हें पत्नी स्वाति के द्वारा बताई बात ध्यान आई सेठ बालकिशन ने पंडित जी से कहा पंडित जी किस सोच में डूब गए क्या हुआ ?पंडित शोभराज तिवारी बोले नही कुछ नही कोई बात नही सेठ बाल किशन को लगा की पंडित जी को छेड कर अच्छा नही किया अतः कुछ देर चुप रहने के बाद वह बात और विषय को बदलते हुए पंडित जी को सामान्य करने की कोशिश करते रहे ।
पंडित शोभराज तिवारी एकाएक उठे और बोले सेठ जी हम चलते है आप सपरिवार आना मत भूलिएगा सेठ बालकिशन बोले बिल्कुल पंडित जी हम सपरिवार आएंगे पंडित जी गांव बल्लीपुर को चल दिये लेकिन उनके मन मे एक चिंता अवश्य थी की किस परिवार के लिए उनके बेटे ने कपड़े आदि खरीदे और क्यो ? इसी उधेड़ बून में वह घर पहुंचे पता ही नहीं चला।