चिन्मय ने हाई स्कूल कि परीक्षा में पूरे राज्य में प्रथम स्थान अर्जित किया ।
बल्लीपुर गांव समेत पूरे जवार में चिन्मय कि सफलता पर खुशी की खास लहर थी प्रत्येक व्यक्ति चिन्मय कि सफलता कि चर्चा करता फुले नही समाता कहता कि पंडित शोभ राज जी के का भाग्य बा एके लड़िका उहो दुनियां के नाज़ बा एक तरह से जुमला आम हो चुका था।
बेटे कि सफलता पर चिन्मय कि माँ स्वाति ने गांव की देवी जी को कड़ाही चढ़ाया (कढ़ाही चढ़ाना देवी पूजा कि विशेष पध्दति है जिसके अंतर्गत देवी जी को वस्त्र मिष्ठान और वस्त्र आदि अर्पित किए जाते है यह पूजा वर्ष में एक बार सावन के महीने में अवश्य कि जाती है लेकिन किसी विशेष मन्नत के पूरे होने पर या किसी शुभ कार्य के उपरांत निश्चित रूप से कभी की जाती है) पंडित शोभ राज जी ने बेटे कि अकल्पनीय सफलता पर सत्यनारायण भगवान के कथा पूजन का आयोजन किया और पूरे जवार को भोज हेतु निमंत्रित किया।
चिन्मय ने माँ स्वाति से सौभाग्य एव उसकी माई तीखा और जुझारू को निमंत्रित करने का निवेदन किया कुछ नानुकुर के बाद माँ स्वाति चिन्मय कि बात मान गयी लेकिन उन्हें पति को समझाना आवश्यक था स्वाति ने पति शोभराज से बेटे चिन्मय कि मंशा बताई पंडित जी को जब पता चला कि चिन्मय कोल आदिवासी परिवार को भोज में आमंत्रित करना चाहता है उन्होंने पत्नी स्वाति से चिन्मय को समझाने के लिए कहा स्वाति ने कहा बेटे कि एक छोटी सी इच्छा नही पूरी कर सकते जिस बेटे के कारण आपको इतना बड़ा मान सम्मान जवार में मिल रहा है कौन वह आसमान से चांद लाने की जिद्द कर रहा है और जिद्द भी नही यदि आप नही चाहेंगे तो शायद चिन्मय आदिवासी परिवार को भोज में बुलाने कि इच्छा त्याग दे लेकिन आप ऐसा क्यो करेंगे ऐसी कौन सी जिद्द है चिन्मय कि जिससे आपकी मान प्रतिष्ठा पर प्रभाव पड़ेगा पत्नी स्वाति कि मंशा को पंडित शोभराज समझ गए और उन्होंने आदिवासी परिवार को निमंत्रित करने की अनुमति दे दी।
स्वाति के मन से बोझ कुछ हल्का हुआ चिन्मय को उन्होंने बताया की उसके पिता जी आदिवासी परिवार को भोज में आदिवासी परिवार को बुलाने के लिए सहमत हो गए है अतः तुम स्वंय जा कर आदिवासी परिवार को सादर भोज में आने का आमंत्रण दो चिन्मय को लगा जैसे वास्तव में उसने हाई स्कूल में पूरे प्रदेश में प्रथम आकर बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की है तभी तो पिता जी जैसा कठोर व्यक्ति आदिवासी परिवार को बुलाने के लिए सहमत हुये है ।
शनिवार का दिन साप्ताहिक बाज़ार का दूसरा दिन चिन्मय अपरान्ह माँ स्वाति और पिता शोभराज से अनुमति लेकर सौभाग्य और उसके माई बापू को भोज में आमंत्रित करने के लिए घर से निकला मन मे कल्पनाओं के बादल उठते छटते जाने कब वह बाजार पहुंच गया पता ही नही चला वह सीधे साप्ताहिक बाज़ार के अंतिम छोर सड़क के किनारे अपनी लकड़ियों एव वन संपदा जड़ी बूटियों कि दुकान लगाए जुझारू एव सौभाग्य बैठे थे ।
चिन्मय ने पहुंचते ही एक सांस में बोला जुझारू चाचा आप माई तीखा और सौभाग्य हमरे घर अगले अतवार के भोज में जरूर आवे हम नेवता देबे ही आए है।
जुझारू बोला बबुआ तू लड़िका तोहे अबे बड़ छोट के फरक नाही मालूम है का ई नेवता तिवारी बाबा तोहरे बापू के रजामंदी से तू लेके आए ह कि अपने मर्जी से चिन्मय बोला नाही चाचा हम पिता जी के कहे नेवता लेके आये है ।
जुझारू बोले जब तिवारी जी कि मर्जी है त हम जरूर आयब और तीखा , सौभाग्य भी आए पास बैठी सौभाग्य चिन्मय और बापू कि वार्ता को बड़े ध्यान से सुन रही थी।