Jinnatto ki Sachi Kahaniyan - 28 in Hindi Horror Stories by सोनू समाधिया रसिक books and stories PDF | जिन्नातों की सच्ची कहानियाँ - भाग 28

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जिन्नातों की सच्ची कहानियाँ - भाग 28

महबूब जिन्न, भाग 7


By :- Mr. Sonu Samadhiya 'Rasik '

विशेष - यह कहानी सत्य घटना से पर आधारित है। लेखक इसके सत्य होने का दावा नहीं करते हैं।


पिछले अध्याय से आगे....

“ठीक है...अब बताओ... क्या तुम ठीक हो? और रात को अचानक से क्या हुआ था? अब यार हमारी मुलाकात नहीं होगी क्योंकि अब्बू ने हमारा स्कूल जाना बंद कर दिया है!” - शबीना ने एक साँस में सारे सवाल शकील से कर दिए।


“तुम्हारे अब्बू और अम्मी कुछ ज्यादा ही बोलते हैं।” - शकील ने गुस्से में कहा।


“अरे! ऎसा नहीं है, वो हमारी फिक्र करते हैं।”


“और हम भी तो आपको प्यार करते हैं।” - शकील ने शबीना के गाल से बालों की लट को हटाते हुए कहा।



“अच्छा जी!” - शबीना ने मुस्कुराते हुए शकील की ओर देखा।


“कोई शक है, तो आजमा लो।” - शकील ने शबीना के खूबसूरत जिस्म को घूरते हुए कहा।


“अच्छा जी! ऎसा है तो, आजमा ही लेते हैं।” - शबीना ने मुस्कुराते हुए अपने कपड़े उतारते हुए कहा।


अगली सुबह, जब शबीना की आँख खुली तो उसने खुद को बेड पर अकेले निर्वस्त्र पाया। शकील सुबह होने से पहले ही वहाँ से जा चुका था। ये उसने सही किया, क्योंकि अगर वो किसी की नजर में आ गया तो कयामत ही आ जाएगी। शबीना अपने प्यार को राज ही रखना चाहती थी।

शबीना अपनी पिछली हसीन रात को याद करते हुए मुस्कराने लगी।

जब शबीना अपने कमरे से बाहर आई तो उसने देखा कि उसके घर के आंगन में लोगों की भीड़ जमा थी। वह घबराते हुए वहाँ पहुँची तो देखा कि उसकी अम्मी को लकवा मार गया है। वह बोल नहीं पा रहीं थीं।

जब उन्होने शबीना को देखा तो उनकी आँखों में आँसू आने लगे।

“खाला जान! ये सब कब हुआ...?”

“रात को... इन्हें दौरे भी पड़े थे, ऎसा डॉक्टर ने बोला है। उन्होने तुम्हें आवाज भी लगाई थी, शायद तुम गहरी नींद में थी इसलिए नहीं सुन पाई। सुबह जब मैं आई तो इन्हें जमीन पर बेहोश पाया। मैंने भी तुम्हें आवाज लगाई, तब भी तुमने न सुनी।”

उसी रात.....


“आज मुझे बहुत बुरा लग रहा है, शकील! मेरी अम्मी को पता नहीं क्या हो गया है? वो अब न बोल सकतीं हैं और न ही खुद से कुछ खा नहीं सकती।” - शकील की गोद में अपना सिर रखे शबीना ने कहा।


“ये ठीक ही हुआ न....? अब तुम्हें कोई रोकने वाला और टोकने वाला नहीं है।”


“कैसी बातें कर रहे हो, शकील वो मेरी माँ हैं और उनकी इस हालत की जिम्मेदार मैं खुद को मानती हूँ। क्योंकि जब उन्हें दौरे पड़ रहे थे। तब मैं तुम्हारी बाहों में थी... ।” - शबीना ने दुखी होते हुए कहा।
“अरे! मैं तो मज़ाक कर रहा था, सॉरी जान!”


अगली सुबह जब शबीना पास के कुँए से पानी निकालने जा रही थी कि तभी उसके अब्बू की नजर उसके गले पर पड़ी।


“शबीना आपका ताबीज कहाँ है?”


To be continued..... (कहानी अभी जारी है)


कहानी को अपना सपोर्ट ♥️जरूर करें, धन्यवाद 🙏🏻 🤗♥️

(©SSR'S Original हॉरर)
💕 राधे राधे 🙏🏻 ♥️