नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक
मनुष्य अगर परमेश्वर की मर्जी के बिना अपनी दुनियां खुद बसाने लगे तो बनाने वाले का परिश्रम व्यर्थ ही कहलायेगा. यदि ईश्वर ही घर न बनाये तो फिर उसे क्या मनुष्य बना सकता है? यदि मनुष्य की सुरक्षा विधाता न करे तो उसका जीना कठिन हो जाता है. मनुष्य जो दिन-रात कड़ी-से-कड़ी मेहनत करके दुःख की रोटी खाता है, क्या उसे बगैर परमेश्वर की मर्जी के मिल जाया करती है? कोई सुख की रोटी खाता है. कोई दुःख भरी, आंसुओं के साथ अपनी रोटी खा लेता है. कोई रोता है, कोई हंसता है, कोई सुख देता है, कोई दुःख देता है- दुनियां के विधान में यह सब क्या है? यह सब वह है जिसे इंसान अपनी सारी ज़िन्दगी भर, भुगतता है, संघर्ष करता है, जिसकी तमाम कार्यवाहियों से वह दिन-रात परेशान रहता है और फिर भी नहीं समझ पाता है कि, यह सब क्यों उसके साथ हुआ है? अगर हुआ भी है, तो यह सब करनेवाला कौन है? क्या ईश्वर अथवा मनुष्य के वे कार्य जिन्हें वह करता है, उन्हीं के कारण या फिर उसके वे हालात जिन पर वह नियन्त्रण नहीं रख पाता है. और जब सब कुछ नष्ट उसकी ही आँखों के सामने हो जाता है, मनुष्य लुट जाता है- जमाने के सामने और खुद अपनी ही दृष्टि में, यही सोचकर तब वह अपने बचे हुए जीवन के दिनों में यही मलाल करता है कि- 'काश: एक अवसर और मिल जाता तो ये कर लेते, वह भी कर लेते?' सही बात तो यही है कि, जब अवसर था तो परवा नहीं की और जब समय निकल गया तो दोष किसको? अपनी किस्मत अथवा ईश्वर को? यह जानते हुए भी कि, ईश्वर झूठा दोष लगाने वालों को पसंद नहीं करता है. अधिकाँश दुनियां के धर्म-ग्रन्थ कहते हैं कि, ईश्वर जिसने मनुष्य की सृष्टि की है, वह कभी-भी अपनी रची हुई सन्तान, अर्थात मनुष्य को दुःख नहीं देता है, जबकि वास्तविकता यह है कि, मनुष्य स्वयं ही अपने गलत कार्यों, गलत फैसलों, पापमय कर्मों, दुष्कर्मों, गलत संगतियों में पड़कर, अपराधिक गतिविधियों में उलझकर, लालच में, हिंसा के जघन्य अपराधों आदि अनेकों शैतानी गति-विधियों में उलझकर अपने लिए खुद ही मुसीबतें खड़ी करता है और दोष ऊपरवाले को दिया करता है. तभी तो कहा गया है कि, इंसान जैसा बोयेगा, वही काटेगा भी- जैसे कर्म करेगा, वैसा ही उसे फल भी मिलेगा.
यह बात भी सच है कि, स्त्री-पुरुष के जोड़े ऊपर से ही बनकर आते हैं. लाख कोशिशें लोग कर लें, अगर आपके हाथों में आपकी प्रेयसी की लकीर नहीं है तो उसे पाने की हरेक ताकत व्यर्थ ही होगी. यह दुनियां बनाने वाले ने अगर आपको उसके साथ नहीं जोड़ा है, जिसे आप अपनी ज़िन्दगी समझ बैठे हैं तो फिर कुछ भी क्यों न कर लें, वह जोड़ा जुड़ ही नहीं सकेगा. और आपने, साम, दाम, दंड और भेद लगाकर जोड़ भी लिया तो कितने दिन यह रिश्ता कायम रह सकेगा? आप और हम स्वयं ही फैसला कर सकते हैं.
मोहित की वापिसी और अपने रूठे हुए प्यार को फिर एक बार पाने की लालसा को पूरा होते देख, अपने प्यार की सेज़ पर बिखरे हुए मुहब्बतों के सैकड़ों फूलों को दोबारा समेटने की खुशियों की तरंगों में, मोहिनी के पैर अब ज़मीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. बात भी सही थी कि, उसका प्यार वापस उसे मिल रहा था- मोहित उसका वापस उसके पास आ चुका था- अब इन दोनों कीमती वस्तुओं से भी अधिक अगर सारी दुनियां भी मोहिनी के चरणों में डाल दी जाती, तब भी वह मोहित के अपार प्रेम के आगे उसे ठुकरा देती. उसका मोहित उससे पहली दुनिया में छीन लिया गया था- लेकिन, अब दूसरे संसार की इस अनूठी दुनियां में वह उसे फिर से मिल भी गया था- इससे अधिक उसे अब और क्या चाहिए था? सो, इन्ही खुशियों की अपार तरंगों के मध्य वह भी अपने विवाह की तैयारियां करने लगी- सही बात भी है- ज़िन्दगी की अनमोल और प्यारी खुशी में अगर पैर काँटों पर भी पड़ जाते हैं, तो नई ओस में नहाए हुए फूलों की अनुभूति होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
मोहित और मोहिनी के विशेष-विवाह की खबरें, रोनित और उसकी फर्म के सभी कर्मचारियों से लेकर, उसके आस-पास के सभी नाते-जान-पहचान वालों के मध्य शीघ्र ही फैलते ज़रा भी देर नहीं लगी. कारण था कि, फर्म और आस-पास के सभी जानकारों में मोहिनी का विवाह एक उस लड़की का बंधन था जो वास्तव में आकाशीय आत्मिक संसार और सांसारिक; दोनों ही से अपना रिश्ता कायम किये हुए थी. एक प्रकार से यूँ भी कह सकते है- मोहिनी आधी देवी और आधी नारी? भूत और मानव का मिलन? कैसे एक रूह की पति-पत्नी के प्रणय की समीपता एक इंसानी शरीर के साथ सम्पन्न हो सकेगी? यही एक सवाल तमाम लोगों की आँखों में मानो कभी भी न निकल सकनेवाली किसी फांस के समान चुभा हुआ था.
नये-नये ढंग से हर तरह की तैयारियां होने लगीं. रोनित ने अपनी कम्पनी का एक बहुत बड़ा हिस्सा मोहिनी के विवाह के लिए यूँ ही दे दिया था. दो सप्ताह के बाद विवाह की सारी रस्में पूरी होनी थीं. तम्बू, पंडाल और कनातों से स्थान सजाये जा रहे थे. कहीं भी ज़रा भी धूल तक न उड़े, इसलिए हर दिन भिश्ती लोग अपनी मशकों में पानी भर कर उन स्थानों को सींच देते थे, जहां पर तनिक भी धूल उड़ने की सम्भावना हो सकती थी. विद्दयुत की रोश्नाइयों और फूल-पत्तियों की तो कोई भी शुमार नहीं थी- विवाह का सारा क्षेत्र दूधिया रोशनी के झाग में शाम होते ही झिलमिलाने लगता था- मानो किसी विदेशी कार्निवाल के आयोजन की तैयारियां हो रही हों.
लेकिन, रोनित के लिए अचानक से एक घटना ऐसी हुई कि, जिसने उसके दिमाग के सारे तारों को एक ही स्थान पर बुरी तरह से मरोड़ दिया था. मोहित, अपने विवाह से एक सप्ताह पहले रोनित के पास आया और आनन-फानन में उसने उसकी फर्म से अपने सारे शेयर अलग किये और कम्पनी की साझीदारी से भी अलग हो गया. रोनित के लिए मोहित का अचानक से ऐसा रवैया कोई आघात तो नहीं था, परन्तु घोर आश्चर्यजनक अवश्य ही था. वह समझ नहीं पाया कि, जो इंसान उसके साथ पिछले कितने ही महत्वपूर्ण वर्षों से साथ उसे अब अचानक से ऐसा क्या हो गया कि, उसने इस प्रकार का कदम उठाया है. उसकी कम्पनी के साथ कोई साज़िश हो, कोई खेल खेला जा रहा हो- इसलिए, कोई भी निर्णय न लेने तक उसने मोहित के पीछे अपनी खुफिया टीम को लगा दिया.
अपने विवाह कि खुशियों के मध्य एक दिन मोहिनी को वह दिन याद आया कि, जब वह अंग्रेज गोरों के कब्रिस्थान में मरने के बाद अपनी भटकी हुई आत्मा के रूप में प्राचीर की बाहरी दीवार पर कैटी जॉर्जजियन की कब्र के सामने बैठी हुई अपनी फूटी किस्मत पर आंसू बहाया करती थी. यही कारण था कि, वह इसी श्रृद्धा में उसकी और अपने कब्र पर फूल और अगरबत्तियाँ जलाने जाया करती थी. यही सोचकर कि, कुछ भी हो, उस कब्र में उसका अपना शरीर रखा हुआ था और वह खुद भी उस कब्र के अंधेरों में वहां पर काफी दिनों तक शरणागत रही थी. तब मन में यही धारणा बनाकर वह एक दिन फिर से कैटी जॉर्जजियन की कब्र पर गई- यही सोचकर कि, हो सकता है कि, मोहित से विवाह के बाद उसके जीवन में बहुत से बदलाव आयें और फिर उसे यह अवसर फिर कभी भी न मिल सके.
रविवार का दिन था.
सुबह का सूरज आज बिलकुल ही नदारद था. आकाश पर रात में बारिश होने के कारण अभी भी बादलों के काफिले, एक-दूसरे से मानों अधिकतम शीत होने के कारण गठरी बनकर चिपके हुए थे. वातावरण में ठंड का प्रकोप हो चुका था. मोहिनी ने गोरों के कब्रिस्थान के बड़े-से गेट के सामने अपनी कार रोकी और कार के शीशे को नीचे उतारकर बाहर के वातावरण का जायजा लेना चाहा तो ठंडी-ठंडी वायु की लहरें उसके कोमल गालों पर मानों सुइंयाँ सी चुभाने लगी. इस प्रकार कि, पल भर की इन शीत की ठंड से भरी वायु की लहरों ने उसके गालों को लाल कर दिया. बाहर हवा के प्रवाह से चर्च की घंटियों की आवाजें वातावरण को और भी मधुरतम बना रहीं थी- स्थानीय मसीही बस्ती के पास में बने चर्च की सुबह होनेवाली रविवार की इबादत का समय हो चुका था.
मोहिनी ने कार के शीशे को बंद किया और कार बंद करने से पहले उसने मोमबत्तियां तथा फूलों की 'रीथ' और ताजे गुलाब के फूलों को हाथ में लिया, फिर कार-से चाबी निकालकर, उसे बंद करके वह जैसे ही कब्रिस्थान के बड़े लोहे के गेट के सामने आई, उसका सामना नबीदास से हो गया.
'आप. . .फिर से ?' नबीदास ने उसे मानो टोका.
'हां ! क्यों?'
'न. . .न . .नहीं. मैं तो ऐसे ही?' नबीदास विस्मित भाव से बोला.
'आप मुझे देखकर यूँ डर-से क्यों जाते हो?' मोहिनी ने उससे पूछा.
'नहीं, मैं भला क्यों डरूंगा?' वह बोला.
'लगता तो यही है.' मोहिनी बोली.
'दरअसल, मोहिनी बिटिया, बात यह है कि, आप कहती हैं कि, आप यहाँ पर करीबन तीन वर्ष पहले इस कब्रिस्थान में आईं थीं- और मैं यहाँ पर लगभग पिछले पन्द्रह वर्षों से इस कब्रिस्थान की देखभाल करता आ रहा हूँ; तब से मैं यही सोचता आ रहा हूँ कि, वह कौन-सी मिट्टी या ज़नाज़ा ऐसा था कि जिसके दफ़न के बारे में मैं भूल चुका हूँ? आपसे पूछता हूँ तो आप कहती हैं कि, अपनी ही कब्र पर फूल रखने आती हैं? यह कैसे हो सकता है कि, जब कोई मर चुका है तो वह अपनी ही कब्र पर फूल और अगरबत्तियाँ चढ़ाने कैसे आ सकेगा?'
'?'- आपके यूँ आसानी से समझ में नहीं आ सकेगा. मुझे आपके ही विश्वास और आपकी ही भाषा में समझाना पड़ेगा.' मोहिनी बोली.
'वह क्या?'
'वह ऐसे कि, अब मुझे बताओ कि आप ईसाई हो?'
'हां.'
'ईसा मसीह पर विश्वास करते हो?'
'हां. . .हां.'
'वह 'वर्जिन' माता से पैदा हुए थे?'
'यह भी कोई पूछनेवाली बात है- हरेक मसीही, इस पर विश्वास करता है.'
'ईसा मसीह सूली पर मार दिए गये थे कि नहीं?'
'हां मारे गये थे.'
'उन्हें किसने सूली पर चढ़ाया था?'
'नालायक रोमियों ने?'
'मरने के बाद वे कब्र में दफ़ना दिए गये थे कि नहीं?'
'जी. . .दफनाये गये थे?'
'उनके दफनाने के तीन दिन के बाद क्या हुआ था?'
'वे फिर से जीवित हो गये थे.'
'जीवित होने के बाद . . .?'
'अपने विश्वासियों को दिखाई दिए गये थे.'
'जब वे मरने के बाद दोबारा दिखाई दिए हैं, तो उन्हीं की महिमा से अगर मैं मरने के बाद आपको दिखाई दे रही हूँ तो विश्वास क्यों नहीं करते हो?'
'?'- नबीदास चुप.
'बताओ न?' मोहिनी ने पूछा तो नबीदास बोला,
'हां, यह तो है?'
'है तो अब हटो मेरे आगे से. मुझे जाने दो.'
'?'- नबीदास चुपचाप मोहिनी के सामने से हट गया. मोहिनी कब्रिस्थान के अंदर प्रविष्ट हो गई. नबीदास ने उसे अंदर जाते देखा तो बगैर कुछ भी सोचे चर्च के पास दौड़ा चला गया- यही सोचकर कि यही अवसर है कि, वह फिर से प्रीस्ट महोदय को मोहिनी की इस दोबारा वापिसी के बारे में जाकर अवगत करा दे. जाए और उनसे यह भी पूछे कि, यह कौन और कैसी औरत है जो कहती है, वह मर गई है और ज़िंदा होकर अपनी ही कब्र पर मोमबत्तियां जलाने और फूल चढ़ाने आया करती है? समझ में नहीं आता है कि, इन मुर्दों की बस्ती में मुर्दे रहते हैं? रूहें भटकती हैं अथवा इंसान रहते हैं? इन्सान और वह भी मरने के पश्चात? घोटाले तो इस संसार में होते देखे हैं- यह क्या अजीब बात है कि, घोटाले आसमान में भी होने लगे हैं क्या?
उधर मोहिनी जैसे ही कैटी जॉर्जजियन की कब्र के पास पहुंची, वहां पर पहले ही से खड़ी हुई एक गोरी, चिट्टी, अंग्रेज, स्थूलकाय औरत को देखकर चौंक-सी गई. वह अंग्रेज औरत कद में भी कोई अधिक लम्बी नहीं थी और काले रंग की अंग्रेज ड्रेस पहने हुई थी. उसके चेहरे पर छोटे-छोटे, हल्के कत्थई रंग के चकत्ते-से थे और शायद यही उसके स्वरूप की विशेषता हो सकती थी.
'हलो? हाऊ आर यू?' मोहिनी को देखते ही वह स्त्री बोली और फिर हल्का-सा मुस्कराई.
'?'- आई एम रीयली फाइन. हाऊ अबाउट यू?' मोहिनी ने उसे देखकर एक संशय से कहा.
'वैरी गुड.'
'कैन यू स्पीक हिंदी?' मोहिनी ने पूछा.
'वैरी लिटिल- थोड़ा-थोड़ा.' उस स्त्री ने बताया तो मोहिनी ने आगे कहा कि,
'मॉफ करें, मैंने आपको पहचाना नहीं?'
'ओ. . कम ऑन यंग गर्ल- इतना जल्दी भूल गया? मैं कैटी जॉर्जजियन हूँ. तुम मेरे साथ यहाँ पर काफी समय तक रहा था.'
'कैटी जॉर्जजियन. . .?' मन ही मन मोहिनी ने यह नाम दोहराया और फिर सामने उसकी कब्र पर नाम पढ़ा- 'कैटी जॉर्जजियन- 10/10/1800 - 11/8/1890. फिर आगे पूछा,
'कितने दिनों से यहाँ रह रही हैं आप?'
'ऑलमोस्ट मोर देंन हंड्रेड इयर्स.'
'?'- मोहिनी को समझते देर नहीं लगी कि, जिस स्त्री की कब्र के सामने वह खड़ी है, वही उससे सम्बोधित है.
'अब ज्यादा सोच में मत पड़ो. मैं तुम्हें कुछ आगाह करने के लिए ही आई हूँ, वरना मुझे आने की कोई आवश्यकता नहीं थी.'
कैटी जॉर्जजियन ने कहा तो मोहिनी बोली,
'अब बता भी दीजिये, शीघ्रता से. मुझे बहुत खुशी होगी?'
'जिस मोहित नाम के लड़के से तुम अपना शादी करने जा रहा है, उससे दूर रहना. बिलकुल भी उससे शादी मत करना, नहीं तो शादी के बाद वह तुमको मरवा देगा.'
'?'- मोहिनी के गले, मुंह और उसके ब्लाऊज की दोनों बगलों में पसीना आ गया. उसने भयभीत होते हुए विस्मय से पूछा,
'आपको कैसे मालुम?'
'एक इकरा नाम की औरत का संदेश मेरे पास आया था.'
'?'- हे, मेरे ईश्वर, मेरे भगवान . . . अब क्या होनेवाला है?' कहते हुए, घबराकर मोहिनी अपना सिर, दोनों हाथों से पकड़कर वहीं नीचे आँखे बंद किये हुए बैठ गई. फिर थोड़े से पलों के बाद जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो कैटी वहां से नदारद थी- उसके सामने चर्च के प्रीस्ट, कब्रिस्थान का चौकीदार नबीदास और दो अन्य स्त्रियाँ खड़े हुए उसे बड़ी हैरानी के साथ निहार रहे थे. अपने साथ लाई हुई मोमबत्तियां और गुलाब के ताज़े फूल, फूलों से बनाई हुई 'रीथ' नीचे जमीन पर पड़े हुए उन सबको जैसे मुंह चिढ़ा रहे थे.
-क्रमश: